तेजसः हवा में रीफ्यूलिंग का सफल परीक्षण

सितम्बर 2018 में भारतीय वायुसेना (आईएएफ) ने स्वदेश विकसित हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) तेजस के पहले मिड एयर रिफ्रयूलिंग को सफलतापूर्वक पूरा किया गया, अर्थात तेजस विमान में 20 हजार फीट की ऊंचाई पर रिफ्रयूलिंग की गई। लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्रट तेजस में वायुसेना के आईएल-78 टैंकर विमान से 1900 किलोग्राम ईंधन भरा गया। इस तरह भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया, जो हवा में ही लड़ाकू विमान की रिफ्रयूलिंग में सक्षम हैं।

  • इस परीक्षण के लिए रूसी निर्मित आईएल-78 एमकेआई टैंकर आगरा में आईएएफ के बेस से लॉन्च किया गया था, जबकि एलसीए तेजस लड़ाकू विमान ग्वालियर से लॉन्च किया गया था। विशेष रूप से निर्मित तेजस विमान ने टैंकर के साथ ड्राई कॉन्टैक्ट सहित कई परीक्षणों को पूरा किया। इसके लिए 9 और परीक्षण आयोजित किए जाएंगे, जिनमें वेट टेस्ट भी शामिल होंगे, जहां आईएएफ टैंकर से लड़ाकू जेट तक ईंधन का वास्तविक हस्तांतरण होगा।
  • यह परीक्षण तेजस के लिए ‘फाइनल ऑपरेशनल क्लियरेंस’ का मार्ग प्रशस्त करेगा। तेजस में एयर-टू-एयर रिफ्रयूलिंग की जांच अंतरराष्ट्रीय एयरोस्पेस सिस्टम प्रमुख कोबम द्वारा डिजाइन की गई है।
  • मिड एयर रिफ्रयूलिंग टेस्ट की सफलता स्वदेशी लड़ाकू विमान के लिए काफी महत्वपूर्ण है, जो कि इसकी रेंज और पेलोड में वृद्धि कर इसकी मिशन क्षमता को बढ़ाने में मदद करेगी।

तेजसः प्रमुख तथ्य

  • एलसीए तेजस भारत द्वारा विकसित किया गया एक हल्का एवं कई तरह की भूमिकाओं वाला जेट लड़ाकू विमान है। इसको एलसीए प्रोग्राम के तहत 1980 के दशक में हिंदुस्तान एयरोनॉटिकल लिमिटेड (एचएएल) और एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (एडीए) द्वारा स्वदेश में विकसित और निर्मित किया गया है।
  • एलसीए तेजस को विकसित करने का उद्देश्य पुराने पड़ रहे मिग-21 का स्थान लेना है। एलसीए कार्यक्रम 1983 में दो प्राथमिक उद्देश्यों के लिए शुरू किया गया था। एलसीए के कार्यक्रम का अन्य मुख्य उद्देश्य भारत के घरेलू एयरोस्पेस उद्योग की चौतरफा उन्नति के वाहक के रूप में कार्य करना था।
  • लड़ाकू विमान तेजस 50 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ान भर सकता है। तेजस में जमीन पर निशाना लगाने हेतु आधुनिक लेजर गाइडेड बम लगे हुए हैं। इसमें सेंसर तरंग रडार लगाया गया है, जो दुश्मन के विमान या जमीन से हवा में दागी गई मिसाइल के तेजस के पास आने की सूचना देता है।
  • यह अपनी श्रेणी में दुनिया के सबसे छोटे और हल्के सुपरसोनिक लड़ाकू विमान के रूप में जाना जाता है। इस विमान के निर्माण में वर्ष 1993 से 2013 तक, अर्थात 20 वर्ष का समय लगा। इसकी पहली उड़ान 2001 में हुई थी।