राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (रफ्तार)

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, जिसका उद्देश्य कृषि क्षेत्र में 4% की वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त करने के लिए कृषि क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के हस्तक्षेपों को समर्थन प्रदान करना है। यह योजना राज्यों को जिला / राज्य कृषि योजना के अनुसार स्वयं के कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के विकास गतिविधियों को चयन की अनुमति देती है। नवम्बर 2017 में सरकार ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना-कृषि और संबंधित क्षेत्र पुनरोद्धार लाभकारी दृष्टिकोण (आरकेवीवाई-आरएएफटीएएआर) के रूप में जारी रखने को मंजूरी दी।

आरकेवीवाई-आरएएफटीएएआर की प्रमुख उप-योजनाएं इस प्रकार हैं-

  • पूर्वी भारत में हरित क्रांति लाना (बीजीआरईआई)।
  • फसल विविधीकरण कार्यक्रम (सीडीपी)।
  • समस्याग्रस्त मृदा में सुधार (आरपीएस)।
  • खुरपका और मुंहपका रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एफएमडी-सीपी)।
  • त्वरित चारा विकास कार्यक्रम (एएफडीपी)।

उद्देश्य

कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश बढ़ाने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित करना।

  • कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के योजना निर्माण और क्रियान्वयन की प्रक्रिया में राज्यों को लचीलापन और स्वायत्तता प्रदान करना।
  • कृषि-जलवायु परिस्थितियों, प्रौद्योगिकी और प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर जिलों और राज्यों के लिए कृषि योजनाओं की तैयारी सुनिश्चित करना।
  • राज्यों की कृषि योजनाओं में स्थानीय आवश्यकताओं / फसलों / प्राथमिकताओं को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित सुनिश्चित करना।
  • हस्तक्षेपों के माध्यम से महत्वपूर्ण फसलों में उपज अंतराल को कम करने के लक्ष्य को प्राप्त करना।
  • कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में किसानों को अधिकतम लाभ प्राप्त करने में सक्षम बनाना।
  • कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के उत्पादन तथा उत्पादकता में मात्रत्मक परिवर्तन लाने के लिए समग्र रूप से सम्बंधित समस्याओं को दूर करना।

मुख्य विशेषताएं

फसल-पूर्व और कटाई के बाद के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए अधिक से अधिक वित्तीय आवंटन सुनिश्चित करता है।

  • जोखिम कम करने में किसान के प्रयासों को मजबूत करता है और कृषि-बुनियादी ढांचे के निर्माण द्वारा कृषि-व्यवसाय उद्यमिता को बढ़ावा देता है।
  • राज्यों को स्थानीय कृषि आवश्यकताओं के अनुसार योजनाओं को निष्पादित करने के लिए लचीलापन और स्वायत्तता प्रदान करता है।
  • मूल्यश्रृंखला को बढ़ावा देने के साथ किसानों को आय बढ़ाने के साथ-साथ उत्पादन / उत्पादकता को प्रोत्साहित करने वाले उत्पादन मॉडल को बढ़ावा देता है।
  • अतिरिक्त आय सृजन गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ किसानों का जोखिम कम करता है; जैसे एकीकृत खेती, मशरूम की खेती, मधुमक्खी पालन, सुगंधित पौधों की खेती, फूलों की खेती आदि को प्रोत्साहित करना।
  • कौशल विकास, नवाचार और कृषि-उद्यमिता आधारित कृषि व्यवसाय मॉडल के माध्यम से युवाओं को आकर्षित करना, जो उन्हें कृषि के तरफ आकर्षित करे और बनाए रखे।

प्रगति

तिलहन, दलहन और नारियल की सरकार द्वारा खरीद को सुनिश्चित करने के लिए प्रधान मंत्री-आशा का शुभारंभ किया गया।

  • सरकार ने 2018-19 के मौसम में सभी रबी और खरीफ फसलों की एमएसपी कीमतों में वृद्धि की, जो उत्पादन लागत का लगभग 150% हैं।
  • जरूरत आधारित बुनियादी ढांचे, उपकरण और जनशक्ति के साथ नए कृषि व्यवसाय इन्क्यूबेटरों की स्थापना की जा रही है।
  • मॉडल अनुबंध खेती अधिनियम के माध्यम से राज्यों में अनुबंध खेती को लागू करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
  • कृषि आय के पूरक और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन बढ़ाने के लिए ‘हर मेढ़ पर पेड़’ कार्यक्रम के तहत कृषि वानिकी को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • नीली क्रांति को प्राप्त करने और भारतीय कृषि में विविधता लाने के लिए मिशन फिंगरिंग और नीली क्रांति पर जोड़ दिया जा रहा है।

सुझाव

आरकेवीवाई राज्य योजना के लिए एक अतिरिक्त केंद्रीय सहायता है। अतः मनरेगा, स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (एसजीएसवाई) आदि जैसी अन्य समान योजनाओं के साथ अभिसरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

  • प्रमुख खाद्य फसलों; जैसे गेहूं, दाल, बाजरा आदि का समेकित विकास किया जाना चाहिए।
  • आजीविका के अवसरों को बढ़ाने के लिए वाटर-शेड क्षेत्रों में वर्षा आधारित खेती प्रणाली का विकास करना।
  • फार्म फील्ड केन्द्रों में एकीकृत कीट प्रबंधन प्रणाली के लिए किसानों को प्रशिक्षित करना।
  • जैविक और जैव उर्वरकों के स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देना।
  • स्थानीय क्षेत्र विस्तार, कृषि पेशेवरों का क्षमता निर्माण और आरकेवीवाई की अवधारणा के बारे में उनके बीच जागरुकता बढ़ाना।

चुनौतियां

  • वित्तीय बाधा जिसके अंतर्गत आरकेवीवाई के बजट आवंटन का केवल 1% प्रशासनिक प्रबंधन पर खर्च करने की अनुमति देता है।
  • डीएसी (कृषि और सहकारिता विभाग) के पास आरकेवीवाई के कार्यान्वयन का मूल्यांकन करने के लिए प्रशिक्षित श्रमशक्ति नहीं है।
  • कृषि में सार्वजनिक निवेश में कमी, खराब निवेश दक्षता और योजना एवं विकास में लोगों की भागीदारी की कमी।
  • कृषि जलवायु अध्ययन का अभाव और विकेंद्रीकृत स्थानीय योजना में इसके एकीकरण ने जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन को प्रभावित किया है।
  • कृषि और इसके संबद्ध क्षेत्रों में अधिक से अधिक वित्तीय संसाधनों को आवंटित करने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित करने में अक्षम है।