सतत् कृषि के लिए राष्‍ट्रीय मिशन (एनएमएसए)

सतत् कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन (National Mission for Sustaniable Agriculature - NMSA) का उद्देश्य विशेष कृषि पारिस्थितिकी में एकीकृत कृषि, उचित मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन और संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकी के माध्यम से सतत् कृषि को प्रोत्साहित करना है। फसल उत्पादन और पशुपालन दोनों क्षेत्रों में उपयुक्त अनुकूलन और शमन उपायों से इसे प्राप्त करने का लक्ष्य है। NMSA के चार प्रमुख कार्यक्रम घटक या गतिविधियाँ हैं-

  • वर्षा-सिंचित क्षेत्र विकास (RAD);
  • कृषि भूमि (फार्म) पर जल प्रबंधन (OFWM);
  • मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (SHM);
  • जलवायु परिवर्तन और सतत कृषिः निगरानी, मॉडलिंग और नेटवर्किंग (CCSAMMN)।

उद्देश्य

स्थानीय विशिष्ट एकीकृत / समग्र कृषि प्रणालियों के माध्यम से कृषि को बढ़ावा देकर उत्पादक, टिकाऊ, पारिश्रमिक और जलवायु अनुकूल बनाना।

  • उपयुक्त मिट्टी और नमी संरक्षण उपायों के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना।
  • सॉइल फर्टिलिटी मैप, मृदा परीक्षण आधारित सूक्ष्म एवं स्थूल पोषक तत्वों के अनुप्रयोग और उर्वरकों के विवेकपूर्ण उपयोग आदि के आधार पर व्यापक मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन प्रथाओं को अपनाना।
  • ‘प्रति बूंद अधिक फसल’ प्राप्त करने के लिए कवरेज का विस्तार करना एवं कुशल जल प्रबंधन के माध्यम से जल संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग।
  • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन उपायों के क्षेत्र में किसानों और अन्य हितधारकों की क्षमता का विकास करना।
  • एनएपीसीसी के तत्वावधान में सतत् कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक प्रभावी अंतर और अंतः विभागीय / मंत्रिस्तरीय समन्वय तंत्र स्थापित करना।

मुख्य विशेषताएं

  • वर्षा-सिंचित क्षेत्र विकास कार्यक्रम उत्पादकता बढ़ाने के लिए एकीकृत कृषि प्रणाली जैसे बागवानी, पशुधन, मत्स्य पालन आदि को बढ़ावा देने और जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिमों को कम करने पर केंद्रित है।
  • कृषि भूमि (फार्म) पर जल प्रबंधन (OFWM) का उद्देश्य ड्रिप और स्प्रिंकलर प्रौद्योगिकियों जैसे पानी के कुशल अनुप्रयोग और वितरण प्रणाली जैसे तकनीकी हस्तक्षेपों को बढ़ावा देकर जल उपयोग दक्षता को बढ़ाना।
  • मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (SHM) का उद्देश्य रासायनिक उर्वरकों के विवेकपूर्ण उपयोग के माध्यम से एकीकृत पोषक प्रबंधन (INM) को बढ़ावा देना और मृदा स्वास्थ्य में सुधार के लिए जैविक खादों और जैव उर्वरकों के अधिक उपयोग को बढ़ावा देना है।
  • CCSAMMN जलवायु परिवर्तन और स्थानीय कृषि जलवायु परिस्थितियों से संबंधित जानकारी का संचार करता है।
  • क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण को अपनाना, जिसमें एक विशिष्ट क्षेत्र के सभी किसानों को पारदर्शी और समयबद्ध तरीके से लाभार्थियों के रूप में चुना जाता है।
  • निधि का आवंटन योजना के तहत की गई भौतिक और वित्तीय प्रगति के आधार पर किस्तों में किया जाता है।

प्रगति

देश में सभी किसानों को मृदा पोषक तत्वों के बारे में जानकारी प्रदान करने वाले ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ के कार्यान्वयन से मृदा स्वास्थ्य और इसकी उर्वरता में सुधार होगा।

  • योजना के तहत आवंटित निधि का 50% छोटे, सीमांत किसानों के लिए उपयोग किया गया है, जिनमें से कम से कम 30% महिला लाभार्थी हैं।
  • स्थान विशेष पर हस्तक्षेप (interventions) की पहचान करते समय आईसीएआर के जिला कृषि आकस्मिकता योजना और एनआईसीआरए (जलवायु प्रतिरोधक कृषि पर राष्ट्रीय पहल) के निष्कर्षों को ध्यान में रखा गया।
  • भूमि उपयोग सर्वेक्षण, मृदा प्रोफाइल अध्ययन और मृदा विश्लेषण के माध्यम से मृदा संसाधनों से सम्बंधित डेटाबेस का निर्माण जीआईएस प्लेटफॉर्म पर किया गया। इससे स्थान और मृदा विशिष्ट फसल प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने में सहायता हुई।
  • फूड बास्केट में विविधता को बढ़ावा देने के लिए ब्रीडर सीडर उत्पादन और पोषक तत्वों से भरपूर अनाज (जैसे बाजरा) का प्रचार हुआ।
  • एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH) का कार्यान्वयन और किसानों की आय को दोगुना रखने के लिए सेरीकल्चर और मधुमक्खी को बढ़ावा देना।

सुझाव

एनएमएसए के विकेंद्रीकृत नियोजन और कार्यान्वयन सुनिश्चित करने में पंचायती राज संस्थानों (पीआरआई) को शामिल करना।

  • सूक्ष्म स्तर के जल भंडारण या जल संरक्षण / प्रबंधन गतिविधियों का समर्थन करना।
  • मिड-कोर्स सुधार एवं प्रभावकारिता, प्रदर्शन, परिणाम और कमियों का आंकलन करने के लिए ‘थर्ड पार्टी एजेंसी’ के माध्यम से द्वि-वार्षिक आधार पर एनएमएसए के मूल्यांकन करवाना।
  • राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञों की सहायता से इसकी निगरानी सुनिश्चित कर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) को रिपोर्ट करने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन कार्य योजना की तकनीकी व्यवहार्यता की जाँच की जानी चाहिए और यदि आवश्यक हो तो घटकों में बदलाव भी की जानी चाहिए।
  • किसानों / लाभार्थियों द्वारा उपकरण / आगतों की खरीद का प्रमाण सुनिश्चित करने के बाद सब्सिडी का सीधे हस्तांतरण करना।
  • जिला स्तर पर वार्षिक कार्य योजना (AAP) की तैयारी के लिए निचले स्तर पर कार्य करने वाले संस्थानों से परामर्श लिया जाना चाहिए, इससे स्थानीय प्राथमिकताओं के अनुसार राज्य स्तरीय वार्षिक कार्य योजना का समेकन किया जा सकता है।

चुनौतियां

  • आईसीएआर, कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) और राज्य कृषि उद्योग जैसे विभिन्न कृषि संस्थानों के बीच संचालन और संचार अंतर का होना।
  • उपयुक्त प्रौद्योगिकी और विशिष्ट स्थानीय कृषि प्रथाओं की पहचान करने में जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले संस्थानों के साथ परामर्श का अभाव।
  • एनएमएसए के कार्यान्वयन रणनीतियों के बारे में कृषि विभाग द्वारा स्वेच्छा से सार्वजनिक डोमेन में डेटा उपलब्ध न कराया जाना।