आंध्र प्रदेशः विशेष श्रेणी की स्थिति

आंध्र प्रदेश विधानसभा द्वारा एक संकल्प (Resolution) पारित करके राज्य को विशेष श्रेणी की स्थिति (Special Category Status, SCS) प्रदान करने हेतु केंद्र सरकार से आग्रह किया गया। विधान सभा के प्रस्ताव में आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के प्रावधानों को लागू करने करने का भी अनुरोध किया गया है। आंध्र प्रदेश द्वारा पारित संकल्प में पोलावरम सिंचाई परियोजना, विशाखापत्तनम रेलवे जोन, दुगाराजापटनम बंदरगाह, राज्य में शैक्षणिक संस्थानों जैसे परियोजनाओं का भी उल्लेख किया गया है और उन्हें तुरंत पूरा किये जाने पर बल दिया गया।

आंध्र प्रदेश सरकार का पक्ष

राज्य विधानसभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू नेकहा कि आंध्र प्रदेश का विभाजन अवैज्ञानिक तरीके से किया गया, जिससे राज्य को भारी नुकसान हुआ।उन्होंने केंद्र पर राज्य विधानसभा के पुनर्गठन की ‘अनदेखी’ पर आरोप लगाया और दावा किया कि आंध्र प्रदेश के पिछड़े जिलों के विकास के लिए उपलब्ध कराया गया धन पर्याप्त नहीं है। आंध्र प्रदेश के लिए विशेष श्रेणी की स्थिति की मांग 2014 में तेलंगाना की स्थापना के बाद से लगातार जारी रही है।

विशेष श्रेणी के राज्य की मांग को लेकर आंध्र प्रदेश का आंदोलन आज से नहीं है। यह तब से ही शुरू हो गया था, जब से तेलंगाना इससे अलग हुआ है। इसके अलावा 2014 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि आंध्र प्रदेश राज्य को 5 साल के लिए विशेष श्रेणी के राज्य का दर्जा दिया जाएगा। इसके बाद से ही लगातार आंध्र प्रदेश अपनी मांग को समय-समय पर दोहराता रहा है।

विशेष श्रेणी की स्थिति प्राप्त करने के लाभ

  • संघीय सहायता और टैक्समें अधिमान्य उपचार
  • महत्वपूर्ण उत्पाद शुल्क रियायतों के कारणइन राज्यों ने अपने क्षेत्र में विनिर्माण सुविधाएं स्थापित करने के लिए बड़ी संख्या में औद्योगिक इकाइयों को आकर्षित किया है जिससे उनकी अर्थव्यवस्था में वृद्धि हो रही है
  • विशेष श्रेणी के राज्यों में बजट की बाधा नहीं है क्योंकि केंद्रीय स्थानांतरण उच्च है
  • ये राज्य ऋण स्वैपिंग और ऋण राहत योजनाओं (राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम के क्रियान्वयन के माध्यम से) के लाभों का लाभ उठाते हैं जो कि औसत वार्षिक ब्याज दर को कम करने की सुविधा देता है। केन्द्रीय सकल बजट का महत्वपूर्ण 30% विशेष श्रेणी राज्य को जाता है।

विदित हो कि केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देने के प्रश्न पर कहा है कि 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद आंध्र प्रदेश को विशेष श्रेणी की स्थिति (Special Category Status, SCS) प्रदान करना संभव नहीं है। हालांकि केंद्र सरकार ने आन्ध्र प्रदेश के लिए विशेष सहायता उपायों का आश्वासन दिया।

क्या है विशेष श्रेणी की स्थिति (Special Category Status): संविधान में किसी भी राज्य कोविशेष श्रेणी की स्थिति (Special Category Status) राज्य के रूप में वर्गीकृत करने के लिए कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन इस तथ्य पर विचार करते हुए कि भारत के कुछ क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से दूसरों की तुलना में वंचित हैं, केंद्र सरकार ने राज्यों की वित्तीय मदद की है। राज्यों को यह वित्तीय सहायतापूर्व योजना आयोग के निकाय राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा आवंटित की गयी। केंद्र सरकार द्वारा विशेष श्रेणी की स्थिति के राज्यों को केंद्र प्रायोजित योजना में आवश्यक 90 प्रतिशत धनराशि दी जाती है जबकि सामान्य श्रेणी के राज्यों में यह 60 प्रतिशत है, जबकि शेष राशि राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की जाती है। विशेष राज्यों कोइसके अलावा एक्साइज और कस्टम डड्ढूटीज, इनकम टैक्स एवं कॉर्पाेरेट टैक्स में बड़ी राहत दी जाती है। साथ ही केंद्रीय बजट के योजित व्यय का 30 फीसदी विशेष दर्जा वाले राज्यों के विकास पर खर्च होता है।

14 वें वित्त आयोग की सिफारिशः पूर्व में राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा किसी राज्य को कठिन और पहाड़ी इलाके, कम जनसंख्या घनत्व, आदिवासी आबादी का एक बड़ा हिस्सा, सीमाओं के साथ रणनीतिक स्थान, आर्थिक और ढांचागत पिछड़ेपन आदि कारकों के आधार पर विशेष श्रेणी की स्थिति का दर्जा दिए जाने पर विचार किया जाता था। योजना आयोग की जगह लेने वाली नीति आयोग को धन आवंटित करने की कोई शक्ति नहीं है। इसलिए केंद्र में सत्ताधारी पार्टी के लिए किसी राज्य के पक्ष में निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। केन्द्र सरकार के अनुसार 2015 में चौदहवें वित्त आयोग द्वारा उसकेसिफारिशों को स्वीकार किए जाने के बाद विशेष श्रेणी के राज्यों की अवधारणा को प्रभावी ढंग से हटा दिया गया था। केंद्र सरकार आंध्र प्रदेश को एक विशेष श्रेणी के राज्य ‘मौद्रिक समकक्ष’ (monetary equivalent) का दर्जा प्रदान करना चाहती है। केंद्र सरकार आंध्र प्रदेश को बाहरी एजेंसियों जैसे अन्य माध्यमों के माध्यम से विशेष श्रेणी के राज्यों के समतुल्य 90 प्रतिशत धनराशि देने के लिए प्रतिबद्ध है। 14वेंवित्त आयोग द्वारा राज्यों के लिए ‘विशेष दर्जा’ को केवल उत्तर-पूर्वी राज्यों औरतीन पहाड़ी राज्यों (hilly states) तक ही सीमित कर दिया गया था।

रघुराम समिति की सिफारिशें

रघुराम समिति (2013) ने राज्यों को विशेष दर्जा प्रदान करने में बदलाव का प्रस्ताव दिया। प्रस्तावित पद्धति की आवश्यकता के आधार पर राज्यों में धन का आवंटन के लिए अल्प विकास सूचकांक (under development index) का निर्माण किया गया है।

अल्प विकास सूचकांक में निम्न दस उप-घटक शामिल हैं: (i) मासिक प्रति व्यक्ति खपत व्यय, (ii) शिक्षा, (iii) स्वास्थ्य, (iv) घरेलू सुविधाओं, (v) गरीबी दर, (vi) महिला साक्षरता, (vii) एससी-एसटी जनसंख्या का प्रतिशत, (viii) शहरीकरण दर, (ix) वित्तीय समावेश और (x) कनेक्टिविटी। समिति अनुशंसा करती है कि ‘कम से कम विकसित’ राज्य, जो सूचकांक द्वारा पहचाने गए हैं, केन्द्रीय सहायता के अन्य रूपों के लिए पात्र हैं, जिसे केंद्र सरकार विकास की प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए आवश्यक समझा सकता है।

अन्य राज्यों द्वारा विशेष श्रेणी की स्थिति की मांगः आंध्र प्रदेश के अलावा, ओडिशा और बिहार द्वारा भी विशेष श्रेणी की स्थिति की मांग की गयी थी हालांकि, उन्हें यह दर्जा नहीं दिया गया क्योंकि वे एक विशेष श्रेणी की स्थिति के राज्य के रूप में योग्य होने के मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं। विदित हो कि राष्ट्रीय विकास परिषद् ने सबसेपहले 1969 में जम्मू-कश्मीर, असम और नागालैंडको विशेष श्रेणी की स्थिति का दर्जादिया था। इन वर्षों में, आठ अन्य राज्यों को सूची में जोड़ा गया - अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा और अंत में, 2010 में, उत्तराखंड को। 2014-15 तक इन 11 राज्यों को विभिन्न प्रकार के लाभ और रकम प्राप्त हुई थी। वर्तमान में कुल 11 राज्यों में विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त है-

  1. अरुणाचल प्रदेश
  2. असम
  3. हिमाचल प्रदेश
  4. जम्मू और कश्मीर
  5. मणिपुर
  6. मेघालय
  7. मिजोरम
  8. नागालैंड
  9. सिक्किम
  10. त्रिपुरा
  11. उत्तराखंड

निम्नमापदंडों के आधार पर राज्यों को विशेष दर्जा दिया गया-

  • कम संसाधन आधार
  • पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्र
  • कम जनसंख्या घनत्व
  • जनजातीय आबादी का बड़ा हिस्सा
  • देश की सीमाओं के साथ सामरिक महत्व का स्थान

क्यों दिया जाता है विशेष राज्य का दर्जा

कुछ राज्य भौगोलिक एवं सामाजिक-आर्थिक विषमताओं के कारण पिछड़े हैं। इन राज्यों में ज्यादा दुर्गम पहाड़ी इलाके होने और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित होने के कारण उद्योग-धंधा लगाना मुश्किल होता है। कुछ राज्य में बुनियादी ढांचा का घोर अभाव है और आर्थिक रूप से काफी पिछड़े हैं। ऐसे में ये राज्य विकास की रफ्रतार में पिछड़ जाते हैं।

  • विकास के मार्ग पर इन राज्यों को साथ लेकर चलने के लिए विशेष राज्य का दर्जा दिया जाता है। विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने के बाद केंद्र सरकार इन राज्यों को विशेष पैकेज सुविधा और टैक्स में कई तरह की राहत देती है। इससे निजी क्षेत्र इन इलाकों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं जिससे इलाके के लोगों को रोजगार मिलता है और उनका विकास सुनिश्चित होता है।
  • देश की तीसरी पंचवर्षीय योजना यानी 1961-66 तक और फिर 1966-1969 तक केंद्र के पास राज्यों को अनुदान देने का कोई निश्चित फॉर्म्युला नहीं था। उस समय तक सिर्फ योजना आधारित अनुदान ही दिए जाते थे।
  • 1969 में केंद्रीय सहायता का फॉर्म्युला बनाते समय पांचवें वित्त आयोग ने गाडगिल फॉर्म्युले के अनुरूप तीन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया- असम, नागालैंड और जम्मू-कश्मीर। इसका आधार था इन राज्यों का पिछड़ापन, दुरूह भौगोलिक स्थिति और वहां व्याप्त सामाजिक समस्याएं। उसके बाद के वर्षों में पूर्वाेत्तर के बाकी पांच राज्यों के साथ अन्य कई राज्यों को भी यह दर्जा दिया गया।