तीस्ता नदी जल विवाद

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत की यात्र की। शेख हसीना की भारत यात्र के दौरान वर्षों से लंबित तीस्ता जल समझाैते पर सहमति बनने की सम्भावना भी व्यक्त की जा रही थी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। तीस्ता नदी जल विवाद दोनों देश के बीच आपसी विवाद का एक प्रमुख कारण है।

विवाद का कारण

भारत-बांग्लादेश समझौते के तहत किस देश को कितना पानी मिलेगा, फिलहाल यह साफ नहीं है। जानकारों का कहना है कि समझौते के प्रारूप के मुताबिक, बांग्लादेश को 48 फीसदी पानी मिलना है, लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार की दलील है कि ऐसी स्थिति में उत्तर बंगाल के छह जिलों में सिंचाई व्यवस्था पूरी तरह ठप हो जाएगी।

बंगलादेश सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति से अध्ययन कराने के बाद बांग्लादेश को मानसून के दौरान नदी का 35 या 40 फीसदी पानी उपलब्ध कराने और सूखे के दौरान 30 फीसदी पानी देने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन बांग्लादेश को यह मंजूर नहीं है। बांग्लादेश ज्यादा पानी मांग रहा है जो कि तीस्ता पर इसकी निर्भरता को देखते हुए जायज भी है लेकिन बंगाल सरकार इसके लिये तैयार नहीं हैं।

भारत के लिए यह संधि कितनी जरूरी है

2014 में सरकार बनाने के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में चीन की बढ़ती चुनौती को देखते हुए मोदी सरकार ने अपने पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने की वकालत की थी। इसके बावजूद पाकिस्तान सहित कई देशों पर चीन अपना प्रभाव कायम रखने या बढ़ाने में सफल रहा है। इन परिस्थितियों में भारत सरकार बांग्लादेश में बेगम खालिदा जिया की सरकार नहीं चाहेगी जिन्हें पाकिस्तान से नजदीकी रखने और भारत-विरोधी तत्वों को शह देने के लिए जाना जाता है। माना जाता है कि शेख हसीना ने बीते कुछ समय के दौरान आतंकी तत्वों पर लगाम पाने में काफी हद तक सफलता पाई है।

तीस्ता नदी जल विवाद

तीस्ता नदी के पानी पर विवाद देश के विभाजन के वक्त से ही चला आ रहा है। तीस्ता के पानी के लिये ही आल इंडिया मुस्लिम लीग ने वर्ष 1947 में सर रेडक्लिफ की अगुवाई में गठित सीमा आयोग से दार्जिलिंग व जलपाईगुड़ी को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में शामिल करने की मांग उठाई थी, लेकिन कांग्रेस और हिंदू महासभा ने इसका विरोध किया था। तमाम पहलुओं पर विचार के बाद सीमा आयोग ने तीस्ता का ज्यादातर हिस्सा भारत को सौंपा था, उसके बाद यह मामला ठंडे बस्ते में रहा। लेकिन वर्ष 1971 में पाकिस्तान से आजाद होकर बांग्लादेश के गठन के बाद पानी का मामला दोबारा उभरा।

विदित हो कि वर्ष 1983 में तीस्ता के पानी के बंटवारे पर एक तदर्थ समझौता हुआ था और इस समझौते के तहत बांग्लादेश को 36 फीसदी और भारत को 39 फीसदी पानी के इस्तेमाल का हक मिला, बाकी 25 फीसदी का आवंटन नहीं किया गया था।

गंगा समझौते के बाद दूसरी नदियों के अध्ययन के लिये विशेषज्ञों की एक साझा समिति गठित की गई थी, इस समिति ने तीस्ता को अहमियत देते हुए वर्ष 2000 में इस पर समझौते का एक प्रारूप पेश किया। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010 में दोनों देशों ने समझौते के अंतिम प्रारूप को मंजूरी दे दी थी और इसके एक साल बाद यानी वर्ष 2011 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ढाका दौरे के दौरान दोनों देशों के राजनीतिक नेतृतव के बीच इस नदी के पानी के बंटवारे के एक नए फार्मूले पर सहमति भी बनी थी। लेकिन पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विरोध की वजह से इस पर हस्ताक्षर नहीं किया जा सका था।

बांग्लादेश के लिये तीस्ता का महत्त्व

गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना के बाद तीस्ता भारत व बांग्लादेश से होकर बहने वाली चौथी सबसे बड़ी नदी है। सिक्किम की पहाडि़यों से निकल कर भारत में लगभग तीन सौ किलोमीटर का सफर करने के बाद यह नदी बांग्लादेश पहुंचती है। बांग्लादेश का करीब 14 फीसदी इलाका सिंचाई के लिए इसी नदी के पानी पर निर्भर है और बांग्लादेश की 7.3% आबादी को इस नदी के माध्यम से प्रत्यक्ष रोजगार मिलता है।