कावेरी जल विवाद

एक शताब्दी से भी अधिक पुराने कावेरी जल विवाद पर सर्वाेच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक निर्णय दे दिया। इस निर्णय में न्यायालय ने कर्नाटक को अतिरिक्त 14.75 हजार मिलियन क्यूबिक फुट जल प्रदान किया_ जबकि तमिलनाडु के हिस्से में कटौती कर दी। पुडुचेरी व केरल के लिए जल आवंटन की स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया गया। इसके अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक को अपने अंतरराज्यीय बिलीगुंडलु बांध से कावेरी नदी का 177.25 टीएमसीफुट जल तमिलनाडु को जारी करने का आदेश दिया_ इसके पहले बिलीगुंडलु बांध से तमिलनाडु को आवंटित जल 192 टीएमसीफुट था। कोर्ट द्वारा कर्नाटक को प्रदत्त 14.75 टीएमसीफुट अतिरिक्त जल वर्ष 2007 में न्यायाधिकरण द्वारा निर्धारित 270 टीएमसीफुट जल के अतिरिक्त होगा। इस तरह कर्नाटक को अब कुल 284.75 टीएमसीफुट जल प्राप्त होगा।

आदेश के अनुसार तमिलनाडु को अब कावेरी नदी का 404.25 टीएमसीफुट पानी मिलेगा। इससे पहले कावेरी जल विवाद अधिकरण ने राज्य को 419 टीएमसीफुट पानी का आवंटन किया था। इस तरह से न्यायालय ने कावेरी द्वारा तमिलनाडु को मिलने वाले जल की मात्र घटा दी, जबकि कर्नाटक के हिस्से में बढ़ोत्तरी कर दी। न्यायालय का यह निर्णय 15 वर्षों के लिए वैध रहेगा। सर्वाेच्च न्यायालय के अनुसार 802 किलोमीटर लंबी कावेरी नदी में उपलब्ध कुल 740 टीएमसीफुट जल में से अब कर्नाटक को 284.­75 टीएमसीफुट तथा तमिलनाडु को 404.25 टीएमसीफुट जल मिलेगा। साथ ही केरल और पुडुचेरी को पहले की ही तरह क्रमशः 30 टीएमसीफुट व 7 टीएमसीफुट जल मिलता रहेगा।

अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2017

इस संबंध में संसद में अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2017 लंबित है जो अंतरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 में संशोधन करता है। इस संशोधन विधेयक को लोकसभा में 14 मार्च, 2017 को प्रस्तुत किया गया। 1956 के अधिनियम के अनुसार जल विवाद से जुड़ी कोई शिकायत मिलने पर यदि बातचीत के जरिये इसका हल नहीं निकलता तो संसद को 1 वर्ष के भीतर जल विवाद ट्रिब्यूनल का गठन करना होता है। संशोधित विधेयक में इस प्रावधान में संशोधन किया गया है तथा प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार विवाद निस्तारण समिति का गठन करेगी तथा यह समिति 1 वर्ष के अन्दर केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।

संशोधित विधेयक में अंतरराज्यीय जल विवाद निपटारों के लिए अलग-अलग अधिकरणों की जगह ‘अंतरराज्यीय नदी जल विवाद न्यायाधिकरण’ नामक एक स्थायी अधिकरण (विभिन्न पीठों के साथ) की व्यवस्था करने का प्रस्ताव है जिसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और अधिकतम छह सदस्य तक होंगे।

विदित हो कि कावेरी बेसिन, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और पुडुचेरी राज्यों में फैला हुआ है जो 81,155 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को जल उपलब्ध कराता है। कावेरी बेसिन का 54% हिस्सा तमिलनाडु, 42% हिस्सा कर्नाटक तथा 4% हिस्सा केरल में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त कावेरी बेसिन के अंतर्गत 33 लोकसभा क्षेत्र आते हैं जिनमें तमिलनाडु के 18, कर्नाटक के 11, केरल के 3 तथा पुडुचेरी का 1 लोकसभा क्षेत्र शामिल है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा कर्नाटक को कावेरी के जल का 14.75 हजार मिलियन क्यूबिक फीट अतिरिक्त हिस्सा देने का फैसला इसलिए लिया गया क्योंकि, कोर्ट का मानना था कि कर्नाटक, ऐतिहासिक रूप से कावेरी नदी के पानी की ‘सीमित पहुंच और उपयोग’ का सामना करता रहा है। भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि आंकड़ों से स्पष्ट है कि तमिलनाडु के पास कावेरी बेसिन के नीचे 20 टीएमसीफुट भूजल उपलब्ध है। इसलिए न्यायालय ने तमिलनाडु को निर्देश दिया कि कावेरी के जल पर निर्भर रहने के बजाय राज्य, कम से कम 10 टीएमसीफुट भूजल का उपयोग करे।

न्यायालय ने कहा कि कर्नाटक को अतिरिक्त दिए जाने वाले 14­75 टीएमसीफुट जल के 4.75 टीएमसीफुट भाग को घरेलू व पेयजल उपयोग हेतु बेंगलुरू को दिया जाए। फैसले में कहा गया कि वर्ष 2007 में कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए जल-साझा समझौते (Water-Sharing Agreement) में कर्नाटक की पेयजल जरूरतों विशेष रूप से बेंगलुरू की ‘अनदेखी’ की गई। साथ ही न्यायालय ने कहा कि तमिलनाडु की तुलना में, कावेरी नदी के ऊपरी बेसिन में होने के बावजूद, कर्नाटक में 28 जिले अभी भी सूखे से पीडि़त हैं।

न्यायालय ने केंद्र को 1956 के अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम (Inter-State Water Dispute Act of 1956) की धारा 6। के अनुसार, कावेरी जल-साझाकरण योजना बनाने हेतु 6 सप्ताह का समय प्रदान किया। यह योजना ट्रिब्यूनल द्वारा 2007 में दिए गए जल-साझा समझौते तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा किये गए संशोधनों के अनुरूप होनी चाहिए। साथ ही इस योजना के तहत जल आवंटन व्यवस्था अगले 15 वर्षों तक अपरिवर्तित रहनी चाहिए। इसके अतिरिक्त न्यायालय ने कहा कि ट्रिब्यूनल के अनुसार नदी जल के बंटवारे का अधीक्षण तथा इसका नियमन करने के लिए 6 सप्ताह के अन्दर केंद्र को कावेरी मैनेजमेंट बोर्ड का गठन करना होगा। यह कावेरी मैनेजमेंट बोर्ड राज्यों को पानी जारी करने का प्रबंधन करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि शीर्ष अदालत के आदेश लागू किए जाएं। इसमें एक अध्यक्ष तथा दो सदस्यों की नियुक्ति केंद्र द्वारा की जाएगी_ तथा कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल व पुडुचेरी चारों राज्यों से एक-एक प्रतिनिधि शामिल होंगे।

न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि विभिन्न राज्यों से होकर गुजरने वाली एक अंतरराज्यीय नदी, ‘राष्ट्र की संपत्ति होती है न कि किसी राज्य की।’ इसलिए कोई भी राज्य इसके जल पर स्वामित्व के एकाधिकार का दावा नहीं कर सकता।