भारत की आसियान देशों को जोड़ने की कूटनीति

पूर्व की ओर देखो नीति भारत द्वारा द- पू- एशिया के देशों के साथ बड़े पैमाने पर आर्थिक और सामरिक संबंधों को विस्तार देने, भारत को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित करने और इस इलाके में चीन के प्रभाव को संतुलित करने के उद्देश्यों से बनाई गई थी। वर्ष 1991 में नरसिंह राव सरकार द्वारा शुरू की गयी इस नीति के साथ ही भारत के विदेश नीति के परिप्रेक्ष्यों में एक नई दिशा और नए अवसरों के रूप में देखा गया और उनके बाद की सरकारों ने भी इसे अपने कार्यकाल में लागू किया। वस्तुतः यह नीति शीत युद्ध की समाप्ति के बाद उभरे नए वैश्विक और क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्यों, शक्ति संतुलन और भारत की नई आर्थिक नीतियों के साथ विदेश नीति के समन्वय की अवधारणा का परिणाम थी। इसके मूल रूपरेखाकार के रूप में तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को माना जाता है। यह इन क्षेत्रें के साथ नए रिश्ते बनाने की शुरुआत नहीं थी बल्कि प्राचीन काल के रिश्तों को जोकि दीर्घअवधि से उपेक्षित थे को पुनर्जीवित करने की कोशिश थी।

भारत को इस नीति से लाभ हुआ है और वह इस नीति के द्वारा अपने संबंध इन पूर्वी देशों से मजबूत करने में सफल रहा है। सरकार की पूर्व की ओर देखो नीति से पूर्वी बंदरगाहों से व्यापार को प्रोत्साहन मिला है। इससे भारत का पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया से व्यापार बढ़ा है और विश्व के समुद्री मार्ग के जरिये होने वाले व्यापार में देश के पूर्वी तट को महत्वपूर्ण स्थान मिला है। 1990 के दशक के शुरुआती वर्षों में आरंभ हुए भारत-आसियान संबंधों में काफी प्रगति देखी गयी है जैसे 1992 में भारत आसियान का एक क्षेत्रीय संवाद भागीदार बना और 1996 में एक पूर्ण संवाद भागीदार बना। दिसंबर 2012 में, भारत और आसियान देशों के नेता आसियान के साथ भारत की क्षेत्रीय संवाद भागीदारी की 20वीं वर्षगांठ और उनकी वार्षिक शिखर वार्ताओं की 10वीं वर्षगांठ मनाने के लिए नई दिल्ली में एकत्र हुए थे। शिखर वार्ता में दोनों पक्षों के संबंध बढ़कर कूटनीतिक भागीदारी के स्तर तक पहुंच गए और परिणामस्वरूप आसियान - भारत विजन स्टेटमेंट तैयार हुआ जो इस बहु-आयामी संबंध के भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है।

यही कारण है कि लगभग 25 वर्ष बाद पुनः भारतीय प्रधानमंत्री ने भारत की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए पुनः एशिया की ओर रूख किया है और इसे पूर्व की ओर देखो (look east) के स्थान पर पूर्व में सक्रिय (act east) होने की नीति कहा है।

एक्ट ईस्ट पॉलिसी से भारत को प्राप्त होने वाले लाभ

  • कॉमर्स, कल्चर और कनेक्टिविटी (वाणिज्य, संस्कृति और कनेक्टिविटी) आसियान के साथ भारत की मजबूत साझेदारी के तीन स्तंभ हैं।
  • आर्थिक परिदृश्य में, दोनों पक्ष शीघ्र ही सेवाओं और निवेशों में भारत-आसियान एफटीए पर हस्ताक्षर कर सकते हैं जोकि माल संबंधी एफटीए का सम्पूरक होगा, जिस पर वर्ष 2009 में हस्ताक्षर किए गए थे और जिसके फलस्वरूप द्विपक्षीय व्यापार में मात्रत्मक उछाल आया है, जो अब 100 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया है। इसे वर्ष 2022 तक दोगुने स्तर तक ले जाने का लक्ष्य है। द्विपक्षीय निवेशों में भी उछाल आया है। भारत में आसियान की ओर से पिछले 10 वर्षों में 35 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक का निवेश हुआ है।
  • कनेक्टिविटी की अगर बात करें तो भौतिक, संस्थागत एवं मानसिक संपर्क भारत-आसियान भागीदारी का चिरकालिक एजेंडा रहे हैं। भारत ऐसी ट्रांस-नेशनल परियोजनाओं को बढ़ावा देने में सबसे आगे रहा है जो इस क्षेत्र को सड़क, रेल और समुद्री संपर्क मार्गों से जोड़ने की मंशा से शुरू की गई हैं। भारत-म्यांमार-थाईलैण्ड त्रिपक्षीय राजमार्ग का तमू-कलेवा-कलेम्यो सेक्टर पूरा होते ही यह इस क्षेत्र के साथ भारत के बहु-आयामी संबंधों में नई गति पैदा होगी। भारत के पूर्वाेत्तर राज्यों, जो आसियान के प्रवेश द्वार हैं, के आर्थिक उत्थान को आगे बढ़ाने के नवीन उत्साह से भरी भारत सरकार के साथ यह संवर्धित कनेक्टिविटी इस क्षेत्र की नई समृद्धि का विश्वास दिलाती है। आने वाले दिनों में, जहाजरानी एवं वायुमार्ग कनेक्टिविटी पर अधिक ध्यान दिया जाएगा। जिसमें समुद्रतटीय भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच मरीन गलियारा विकसित करने, भूमि और समुद्र के बीच कनेक्टिविटी विकसित करना आदि शामिल हैं।
  • दोनों पक्ष कूटनीतिक मुद्दों पर, जिनमें ट्रांस-नेशनल आतंकवाद, तटीय दस्युता और परमाणु प्रसार के मुद्दे शामिल हैं, अपने सहयोग की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
  • दक्षिण चीन सागर में असंतोष की पृष्ठभूमि में, भारत ने समुद्र में आवागमन की स्वतंत्रता पर लगातार बल दिया है और सभी तटीय क्षेत्रें के विवादों का संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून के अनुसार निपटारा करने पर बल दिया है।
  • भारत तीन निधियों-50 मिलियन डॉलर की आसियान-भारत सहयोग निधि; 5 मिलियन डॉलर की आसियान-भारत हरित निधि; और आसियान-भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी निधि के माध्यम से दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में क्षमता-निर्माण परियोजनाओं में अपनी विशेषज्ञता को साझा कर रहा है।
  • भारत की योजना कंबोडिया, लाओस, म्यांमार और वियतनाम में चार सूचना प्रौद्योगिकी केंद्र स्थापित करने की है। भारत वियतनाम के हो ची मिन्ह शहर में एक ट्रैकिंग एवं डाटा रिसेप्शन केंद्र शुरू करने जा रहा है, जो आसियान देशों के लिए आपदा प्रबंधन एवं खनिज खोज में अनुप्रयोग हेतु रिसोर्ससैट एवं ओशनसैट से रिमोट सेंसिंग डाटा प्राप्त करेगा।
  • संस्कृति एवं सृजनात्मकता इस बढ़ते हुए संबंध को मानसिक एवं आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करते हैं। प्राचीन समय में सुवर्णभूमि, सोने की भूमि, के रूप में पहचाने जाने वाले दक्षिण पूर्व एशिया पर भारतीय संस्कृति का गहरा प्रभाव है।
  • रामायण और महाभारत यहाँ पर काफी प्रचलित हैं। बौद्ध धर्म भारत-आसियान संबंधों की आध्यात्मिक धुरी है क्योंकि इस पूरे क्षेत्र से बौद्ध लोग, बोध गया जैसे प्रतिष्ठित स्थानों, जहां भगवान बुद्ध को बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था, की यात्र पर आते हैं। प्राचीन और आधुनिक संबंधों का मेल करते हुए, नालंदा विश्वविद्यालय पुनः शुरू किया गया है।