बैंकिंग क्षेत्र में सुधार

भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में विगत दो वर्षों के दौरान महत्वपूर्ण बदलाव आया है। पहला एवं सबसे महत्वपूर्ण बदलाव बैंकिंग क्षेत्र की पहुंच में हुआ विस्तार है। प्रत्येक वयस्क भारतीय, चाहे उसकी आर्थिक स्थिति कैसी भी रही हो, के लिए बैंक खाते खोलने से संबंधित प्रधानमंत्री की जन धन योजना विश्वास से जुड़ा एक कदम था। पहले बैंकिंग क्षेत्र को आम तौर पर केवल ऐसे लोगों का ही विशेषाधिकार समझा जाता था, जिसके पास पैसे हों।

ये जीरो बैलेंस वाले नए खाते खुद बैंकों के लिए भी लाभदायक साबित हुए। इसकी वजह यह थी कि जैसे ही सरकार ने निर्धनों में से सबसे निर्धन के कल्याणकारी लाभों के लिए उनके बैंक खातों में पैसे भेजना शुरु किया, ये बैंक खाते जीरो बैलेंस वाले खाते नहीं रह गए। लाभों के प्रत्यक्ष अंतरण से वास्तविक लाभार्थियों को निधि का रिसाव रुका जिससे कल्याण के वितरण में वास्तविक आमूल चूल परिवर्तन देखने में आया। इन खातों की बड़ी संख्या निश्चित रुप से एक समग्र समावेशी प्रणाली के निर्माण में मदद करेगी।

दूसरी बात यह कि, सरकार ने बैंकिंग क्षेत्र के लिए संस्थागत संरचनाओं को मजबूत बनाने के लिए भी कदम उठाया है। इस दिशा में दो महत्वपूर्ण कदमों का उल्लेख किया जा सकता है। पहला है सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के बोर्डों को पेशेवर बनाने पर नया जोर। आज भी, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भारतीय वित्तीय प्रणाली की रीढ़ की हड्डी हैं और उनके बोर्डों को पेशेवर बनाने के लिए जितना ज्यादा उपाय किए जाएं, उतना ही लाभदायक है।

हाल में उठाए गए दूसरे संस्थागत कदम का बहुत महत्वपूर्ण नीतिगत प्रयोजन है। अभी तक, भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति की रूपरेखा एक निकाय द्वारा बनाई जाती थी जिसकी प्रकृति भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के लिए मुख्य रूप से सलाहकार की होती थी। आखिर में, नीतिगत निर्णय गवर्नर का हुआ करता था बजाये गवर्नर और उनकी नीति परिषद के सामूहिक निर्णय के। भारतीय रिजर्व बैंक की एक उच्च स्तरीय समिति ने मौद्रिक नीति के आधुनिकीकरण का सुझाव दिया था जो सामूहिक रूप से केंद्रीय बैंक के नीतिगत उद्देश्य पर निर्णय ले सके।

इसलिए, मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) गठित की गई और तब से मौद्रिक नीति निर्णय इस समिति के विशेषाधिकार हैं जहां भारतीय रिजर्व बैंक के प्रमुख के अन्य सदस्यों के साथ साथ मतदान के अधिकार होते हैं। ऐसा कहा जा सकता है कि अमेरिका या ब्रिटेन जैसे अधिकांश विकसित देशों में मौद्रिक नीति का निर्णय सामूहिक रूप से एक समिति के माध्यम से किया जाता है। इससे व्यक्ति विशेषों की त्रुटियों या एक ही ढर्रे की सोच की गुंजाइश खत्म हो सकती है।

हाल में किया गया एक अन्य संस्थागत नवोन्मेषण के माध्यम से दो व्यापक तरीके से भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में विविधता लाया जाना है। पहली बात, अधिकारियों ने नई बैंकिंग कंपनियों की अनुमति दी जिससे जमीनी स्तर पर नए विचार, नई कंपनियां एवं प्रतिस्पर्धा आई। निजी क्षेत्र की नई कंपनियां अभी अनुभवहीन हैं। लेकिन, निश्चित रूप से उन्होंने जमाओं को जुटाने, जोकि अभी तक एक उपेक्षित क्षेत्र रहा था, एवं नई छोटी व्यवसाय इकाइयों को फंड देने के मामले में पहले ही गतिशीलता प्रदर्शित करनी शुरु कर दी है। इस क्षेत्र में दूसरा संस्थागत नवोन्मेषण विशिष्ट बैंकों का समावेश रहा है। उदाहरण के लिए ‘पेमेंट बैंकों’ को लें। कुछ वर्ष पहले तक भी इस प्रकार के बैंक की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। अब तक तीन पेमेंट बैंक स्थापित हो चुके हैं। पहला पेमेंट बैंक एयरटेल ने आरंभ किया था।

सबसे हाल में, सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की बढ़ती गैर लाभकारी परिसंपत्तियों के बोझ को खत्म करने की दिशा में बेहद गंभीर कदम उठाया है। इसके लिए एक अध्यादेश जारी किया गया है। हाल के एक अध्यादेश के तहत, भारतीय रिजर्व बैंक को अधिकार दिया गया है कि वह एकल बैंकों की गैर लाभकारी परिसंपत्तियों की समस्या के समाधान के लिए प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप कर सकता है, यह भविष्य के लिए एक बेहद सकारात्मक कदम है।