राष्ट्रीय ऊर्जा नीति

2017 से लेकर 2040 के बीच भारत में अक्षय ऊर्जा के संबंध में तेजी से वृद्धि होने की संभावना है।नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत ड्राफ्रट राष्ट्रीय ऊर्जा नीति (Draft National Energy Policy - DNEP) के मसौदे में इस बात का अनुमान व्यक्त किया गया है। यदि ऐसा होता है तो इससे जीवाश्म ईंधन ऊर्जा की तीव्रता में भारी कमी आएगी। उल्लेखनीय है कि आर्थिक और जनसंख्या वृद्धि की वजह से भारत की वार्षिक प्रति व्यक्ति बिजली की खपत में 2015-16 में 1075 केडब्ल्यूएच की तुलना में वर्ष 2040 में 2900 केडब्ल्यूएच तक होने की संभावना है। निकटतम अवधि में पूरे भारत में 100% विद्युतीकरण के लक्ष्य को पूरा करने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में 2.5 बिलियन डॉलर का निवेश करने की घोषणा की गई है। इस घोषणा का लक्ष्य वर्ष 2018 के अंत तक भारत में हर घर को विद्युतीकृत करते हुए ऊर्जा दक्षता में निरंतर सुधार करना है।

कोयले के आधार पर मसौदे का आकलन

इस तथ्य के बावजूद कि मौजूदा कोयला संयंत्र न्यूनतम क्षमता के साथ संचालित हो रहे हैं, डीएनईपी के अंतर्गत ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता व्यक्त की गई है। यह इस बात को प्रमाणित करता है कि वर्ष 2022 तक भारत के कुल बिजली उत्पादन हेतु आवश्यक 67% ईंधन की आपूर्ति कोयले से ही होगी।

समस्या

इस संदर्भ में पहली समस्या यह है कि एक ओर तो भारत इस बात का दावा करता है कि वह अक्षय ऊर्जा के संबंध में बड़ा कदम उठाएगा और वहीं दूसरी ओर ईंधन की आपूर्ति हेतु कोयले पर इसकी बहुत अधिक निर्भरता अभी भी जारी है। यदि नवीनीकरण विकल्पों में वृद्धि होगी तो कोयला आधारित बिजली में भी वृद्धि होगी।

यह द्वंद्व होना स्वभाविक है क्योंकि वर्ष 2015 में संपन्न हुई पेरिस जलवायु बैठक में ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में किसी भी प्रकार की वास्तविक कटौती हेतु भारत द्वारा कोई प्रतिबद्धता व्यक्त नहीं की गई। इस संबंध में दूसरी विसंगति यह है कि एक निश्चित समय में संपूर्ण देश का विद्युतीकरण करने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये भारत को वर्ष 2022 में मात्र 741 मिलियन टन और वर्ष 2027 में मात्र 876 मिलियन टन कोयले की ही आवश्यकता होगी।

महत्त्वपूर्ण सुझाव

भारत की ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी आपूर्तिशृंखला में किसी भी तरह की अनियमितता से बचने के लिये तेल के वृहद् सामरिक भंडारण की आवश्यकता है। जहाँ एक ओर पिछले कुछ वर्षों से भारत अपनी भंडारण क्षमता में वृद्धि कर रहा है, वहीं पिछले कुछ सालों में अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतों में कमी आई है। हालाँकि, यहाँ यह समझना बहुत जरुरी है कि तेल के रणनीतिक भंडारण से तेल पर भारत की उच्च निर्भरता के व्यवस्थित कारणों पर किसी तरह का कोई असर होता नजर नहीं आता है।

वर्तमान स्थिति

वर्ष 2003 के विद्युत अधिनियम के तहत बिजली उत्पादन को लाइसेंस मुक्त रखा गया है, स्पष्ट है कि निजी खनिकों को बिजली उत्पादन हेतु संयंत्र स्थापित करने के लिये किसी प्रकार का लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें केवल ग्रिड के लिये कनेक्शन लेना होगा। चूँकि ग्रिड राज्य के स्वामित्व में आता है, इसलिये केंद्र सरकार के पास कनेक्शनों को स्थगित करने या उनमें देरी करने के संबंध में पर्याप्त शक्ति होती है। पिछले तीन वर्षों में धीमी औद्योगिक वृद्धि के कारण स्वतंत्र कोयला उत्पादकों को ऊर्जा की कम मांग का सामना करना पड़ रहा है।

इस संबंध में कोयला उत्पादकों द्वारा सरकार से किसी प्रकार की राहत अथवा समर्थन की उम्मीद की जा रही है। हालाँकि, ऐसे किसी समर्थन के प्राप्त होने की उम्मीद नहीं आ रही है। इतना ही नहीं बल्कि परंपरागत बिजली उद्योगों द्वारा भी उच्च स्तरीय बैंक ऋण की समस्या, दिवालियापन एवं अन्य कानूनी कार्यवाहियों का सामना किया जा रहा है। डीएनईपी इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ आंतरिक दहन इंजन के क्रमिक प्रतिस्थापन से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदुओं को उजागर करने में विफल रहा है।डीएनईपी के अंतर्गत यह स्वीकार किया गया है कि वर्ष 2005 से 2016 के मध्य भारत की तेल की खपत में 63 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि इसकी कुल परिष्कृत क्षमता में केवल 15 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इसी अवधि में देश की गैस की खपत में 38 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि वर्ष 2012 से इसके उत्पादन में गिरावट आई है।