विमुद्रीकरण

विमुद्रीकरण के बाद कैशलेस होने की प्रक्रिया में गति आ गई है। विमुद्रीकरण से काले धन पर अंकुश लगने की पूरी संभावनायें भी हैं। कैशलेस होने से अर्थव्यवस्था में तेजी तो आयेगी, परंतु उस तेजी के लिये भारत को बहुत इंतजार करना है, कैशलेस होने के लिये बहुत सी समस्याएँ भी हैं उनसे भी निपटना होगा और हर उस वर्ग को साथ लेकर चलना होगा जो केवल कैश पर ही भरोसा करता है।

भारत का 125 करोड़ की आबादी है जिसमें केवल 3 करोड़ क्रेडिट कार्ड हैं और 70 करोड़ डेबिट कार्ड हैं। कैशलेस को क्रियान्वयन करना ही बहुत बड़ा कार्य है, क्योंकि जारी कार्डों से अधिकतर को तो उपयोग ही नहीं किया जाता है, जितने भी लोगों के पास कार्ड हैं उनमें से बहुत कम ही लोग कार्ड का उपयोग कैशलेस के लिये प्रयोग करते हैं। अधिकतर डेबिट कार्ड का उपयोग केवल एटीएम से कैश निकालने के लिये ही किया जाता है। बहुत से लोग क्रेडिट कार्ड ले लेते हैं, परंतु उपयोग कैसे करना है, पता नहीं होने से उपयोग नहीं करते हैं।

अभी हम भले ही मोबाईल वॉलेट की बातें कर रहे हों जो कि उपयोग करने में बहुत आसान हैं, परंतु उसके लिये भी स्मार्टफोन चाहिये। स्मार्टफोन भारत में लगभग 25 करोड़ हैं और जनधन खाते लगभग 22 करोड़ खोले गये हैं। परंतु इससे ही हमें पता चलता है कि भारत में आर्थिक विभाजन है। भारत सरकार UPI (Unified Payments Interface) को कैशलेस में रामबाण औषधि बता कर प्रचारित कर रही है। लगभग किसी भी GSM फोन से जो आधार कार्ड से जुड़े हुए हैं UPI का उपयोग कर सकते हैं, पर इसके लिये सबसे पहले भारतीय जनता को नगद के मानसिक अवरोध से निकलना होगा। यह भी देखना होगा कि साधारण से सेल फोन से भी UPI को संचालित किया जा सके, क्योंकि कुछ फोन तो बहुत ही पुराने हैं और कई वर्गों का स्मार्टफोन रखने का बजट नहीं होता। अनपढ़ या थोड़ा बहुत पढ़ी लिखी जनता भी नई कैशलेस तकनीक का उपयोग क्या बिना डर से कर पायेगी?

अभी तक के जितने भी मोबाईल वॉलेट उपलब्ध हैं वे सब क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड या नेटबैंकिंग से ही चार्ज होते हैं, सरल शब्दों में कहें कि आपकी वित्तीय निजी जानकारी किसी के पास जा रही है और आम जनता इस जानकारी को देने में असुरक्षित महसूस करती है। इस ऑनलाईन के युग में सभी जानते हैं कि यह जानकारी कहीं न कहीं किसी न किसी सर्वर पर उपलब्ध होगी और देर सबेर किसी ने अगर हैकिंग कर ली तो फिर उनको लुटने से कोई नहीं बचा सकता है। कैशलेस ही भविष्य है, हर समस्या का समाधान है। इसके लिये हमें सुरक्षित उपाय भी करने होंगे, जिससे आम जनता के बीच का डर खत्म हो। पिछले सालों में ही देखें तो सरकार के ही कई बैंक खाते हैक हो चुके हैं और कुछ दिनों पहले ही लाखों डेबिट कार्ड की जानकारी चुराये जाने का मामला प्रकाश में आया था और कई लोगों ने ऑनलाईन चोरी की शिकायतें भी दर्ज करवायी थीं।

लगभग सारी मशीनें और सॉफ्टवेयर एप सभी अंग्रेजी भाषा में ही उपलब्ध थे, विमुद्रीकरण की घोषणा के बाद से ही मोबाईल वॉलेट कंपनियों को समझ में आया कि स्थानीय क्षेत्रीय भाषाओं का एप पर होना बहुत जरूरी है, तभी क्षेत्रीय व्यापारी वर्ग जो मोबाईल वॉलेट का उपयोग करना चाह रहे हैं, वे लोग भी जुड़ पायेंगे। सबसे बड़ी मुश्किल तो उन लोगों की है जिनका हाथ क्षेत्रीय भाषाओं और अंग्रेजी दोनों में ही कमजोर हैं। कमजोर तबका जिनको मोबाईल रखना भी महँगा साधन लगता है, उनको मोबाईल से बैंकिंग सोचना ही कठिन है। उनका गुजारा तो नगद से ही होता है और नगद के बिना उनका जीवन गुजारा बहुत ही मुश्किल है। निरक्षर वर्ग के लिये कैशलेस एक दुर्लभ चीज है, उनके लिये कोई भाषा ले आओ, उनको किसी न किसी की सहायता की जरूरत रहेगी ही। वे लोग जब बैंक का खाता तक खुलवाने में डरते हैं, बैंक का फॉर्म भरने के लिये किसी का मुँह ताकना पड़ता है, वे कैसे कैशलेस का उपयोग कर पायेंगे, यह तय करना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है। सरकार को इस तरह की शिक्षा का प्रसार गाँव गाँव में विभिन्न माध्यमों से करना होगा।