नीति आयोगः तीन वर्षीय एक्शन प्लान

नीति आयोग ने अपने तीन साल के ड्राफ्ट एक्शन एजेंडे के तहत विकास में तेजी लाने के उद्देश्य से कराधान, कृषि एवं ऊर्जा क्षेत्र में कई सुधारों और रोजगार के अवसरों में इजाफे का सुझाव दिया। अरविंद पनगढि़या की ओर से जारी किए गए ड्राफ्रट एजेंडे में सरकार की भूमिका को फिर से संगठित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया, जिसमें ऐसी गतिविधियों में अपनी भागीदारी को सीमित करने का सुझाव दिया गया है जिसमें किसी सार्वजनिक उद्देश्य की सेवा की आपूर्ति नहीं की जाती है। अन्य चीजों के अलावा नुकसान में चल रही सीपीएसई को भी बंद करने और 20 सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों में रणनीतिक विनिवेश का भी सुझाव आयोग की तरफ से दिया गया है।

तीन साल का एजेंडे (2017-18 से 2019 -20) कर चोरी को रोकने, कर आधार का विस्तार और सुधारों के माध्यम से कराधान प्रणाली को सरल करने के उद्देश्य से उठाया गया कदम बताया जा रहा है। इसमें यह भी सुझाव दिया गया है कि सरकार वर्तमान दर से मौजूदा कस्टम डड्ढूटी दरों को मजबूत करने पर विचार कर सकती है।

अन्य सुझावों में सार्वजनिक खरीद प्रणाली को मजबूत करने के अलावा प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए सभी क्षेत्रें में सरकारी नियमों की व्यापक समीक्षा और सुधार के माध्यम से एक संस्थागत तंत्र का निर्माण शामिल है।

नीति आयोग का 3 वर्षीय एक्शन प्लान

वित्त वर्ष 2017-18 से 2019-20 तक के लिए इस एक्शन प्लान के जरिए नीति आयोग और केन्द्र सरकार की तैयारी 2019-20 तक देश में चौबीस घंटे बिजली, सस्ता डीजल और पेट्रोल उपलब्ध कराने के लिए सुधार का जरुरत और 100 स्मार्ट सिटी में डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क खड़ा करने की है। नीति आयोग के एक्शन प्लान के मुताबिक आजादी के बाद देश में बदलाव के लक्षण 1980 के दशक में दिखना शुरु हुए और 1991 देश की अर्थव्यवस्था के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव और अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यलय में 6 फीसदी विकास दर संभव हुई और फिर मनमोहन सिंह के कार्याकाल में 8 फीसदी की ग्रोथ पर अर्थव्यवस्था पहुंची। अब नीति आयोग इसे अगले तीन वर्षों तक मजबूत रखते हुए 2019 तक शिक्षा, एग्रीकल्चर, ग्रामीण विकास, डिफेंस, रेलवे, राजमार्ग पर अपना खर्च बढ़ाते हुए केन्द्र सरकार सबका साथ-साथ विकास के फॉर्मूले पर काम करेगी।

मनरेगा का सोशल ऑडिट कराया जाए सरकारी शोध संस्थान नीति आयोग ने ग्रामिण रोजगार योजना मनरेगा का सामाजिक अंकेक्षण अनिवार्य किए जाने का सुझाव दिया है। आयोग के मुताबिक महात्मा गांधी राष्ट्रीय गारंटी कानून मनरेगा को मजबूत बनाया जाना चाहिए।

नीति आयोग के पूर्ववर्ती योजना आयोग के ही तर्ज पर बनी योजना प्रक्रिया के अनुरुप इस एजेंडे की शुरुआत इस प्रश्र से होती है कि सरकारी संसाधानों की प्राथमिकता क्या होनी चाहिए? इसमें दलील दी गई की कुल व्यय में गैर विकासात्मक राजस्व व्यय की जिम्मेंदारी को वर्ष 2015-16 के 47 फीसदी से घटाकर वर्ष 2019-20 तक 41 फीसदी किया जाए। इसके अलावा पूंजीगत व्यय में सतत सुधार किया जाए। एजेंडे में कहा गया है कि पुराने योजनागत व्यय के अंतर को खत्म करने से इस बात का स्पष्ट अंदाजा लगाया जा सकता है कि उत्पादन व्यय क्या हो सकता है?

अगर राजस्व की बात करें तो एजेंडा में माध्यम अवधि के ढांचे की बात कही गई है जिसमें यह मान लिया गया है कि अगले तीन साल में कर राजस्व में 14 से 17 फीसदी तक की बढ़ोतरी होगी। कहा गया है की यह जीडीपी में वृद्धि के रुप में होगी।

वहीं प्रत्यक्ष कर के मामले में यह बढ़ोतरी अधिक हो सकती है। एजेंडे के मध्यम अवधि के राजकोषीय ढांचे में विनिवेश प्राप्तियों को लेकर भी आशावादी अनुमान जताए गए हैं। अगले दो वित्त वर्ष में हर वर्ष 80,000 करोड़ रुपये की प्राप्ति का अनुमान है। इसे देखते हुए ही राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के मार्ग पर बढ़ने और वर्ष 2018-19 तक राजस्व घाटे को कम करके जीडीपी के 3 फीसदी तक लाने का बात की गई है। इसके लिए वर्ष 2019-20 तक राजस्व घाटे को कम करके जीडीपी के 1 फीसदी से कम के स्तर पर लाना होगा।

शिक्षा पर किए जाने वाले व्यय में भी भारी इजाफे का इरादा जाहिर किया गया है। इसके अलावा भी सड़कों तथा रेलवे के पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी की बात भी इसमें शामिल है। उम्मीद यह है कि सड़क और रेलवे क्षेत्र का पूंजीगत व्यय मौजूद 71,000 करोड़ रुपये से बढ़कर वर्ष 2019-20 तक 2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचाया जा सकेगा।

कुल मिलाकर एजेंडा सुधारवादी और आशवादी नजर आ रहे हैं। ऐसे में उसकी यह दलील सही है कि निर्यात को बढ़ावा देने की सरकार की नीतियों में अहम भूमिका रहेगी।