पाइका विद्रोह

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्री प्रकाश जावेडकर ने ओडिशा में घोषणा की कि 1817 का पाइका विद्रोह को इतिहास की पुस्तकों में ‘स्वतंत्रता का प्रथम युद्ध’ के रूप में स्थान दिया जाएगा। इसे वर्ष 2018 के पाठ्यक्रम में एनसीईआरटी पुस्तकों का हिस्सा बनाया जाएगा। उनके मुताबिक इसमें ब्रिटिश के खिलाफ विद्रोह की सूचनाएं हैं ताकि लोगों को विद्रोहों के बारे में तथ्यात्मक जानकारी प्राप्त हो सके। ज्ञातव्य है कि अभी पाइका विद्रोह की 200वीं वर्षगांठ मनायी जा रही है। यह भी उल्लेखनीय है कि अभी तक 1857 के सिपाही विद्रोह को ही प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम माना जाता है।

पाइका विद्रोह को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का दर्जा दिये जाने का आधार

  1. पाइका विद्रोह ईस्ट इंडिया कंपनी के दमनात्मक शासन के खिलाफ व्यापक एवं सुसंगठित संघर्ष था।
  2. इस विद्रोह में सभी वर्ग के लोगों ने हिस्सा लिया और यह महज संयोग नहीं है कि इसका जो स्वरूप व विषय था, वह आगे जाकर भारत के स्वतंत्रता संघर्ष व उसके परिणाम से बहुत हद समानता रखता था।
  3. चूंकि भारत के औपनिवेशिक शासन की जड़ ईस्ट इंडिया कंपनी में छिपी है, इसलिए 1857 के सिपाही विद्रोह व उसके बाद की दीर्घकालिक परिघटनाओं की जड़ों को उसके पूर्व की ब्रिटिश विरोधी विद्रोहों में खोजने व उससे संपर्किंत करने की आवश्यकता है।
  4. पूर्व के सभी औपनिवेशिक विद्रोहों की तुलना में पाइका विद्रोह इसलिए विशिष्ट है क्योंकि यह एक व्यापक जन आंदोलन था। इसने आगे के प्रतिरोध के जन आंदोलनों का स्वरूप निर्धारण में उत्प्रेरक के साथ-साथ मशाल वाहक की भूमिका भी निभायी जिससे अंततः भारत को स्वतंत्रता हासिल हुयी।

पाइका विद्रोह, ऐसा पहला विद्रोह नहीं है जिसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम घोषित करने की मांग हुयी है। इससे पहले दक्षिण भारतीय इतिहासकारों ने दीवान वेलु थाम्पी के नेतृत्व में हुये 1808 के त्रवणकोर विद्रोह को भी औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध प्रथम विद्रेाह का दर्जा देने की मांग की थी।

पाइका विद्रोह

पाइका विद्रोह 1817 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की शोषणकारी नीतियों के विरुद्ध ओडिशा में पाइका जाति के लोगों द्वारा किया गया एक सशस्त्र, व्यापक आधार वाला और संगठित विद्रोह था। पाइका ओडिशा की एक पारंपरिक भूमिगत रक्षक सेना थी। वे योद्धाओं के रूप में वहाँ के लोगों की सेवा भी करते थे। पाइका विद्रोह के नेता बक्शी जगबंधु थे। पाइका जाति भगवान जगन्नाथ को उड़ीया एकता का प्रतीक मानती थी।

कौन थे पाइका?

ओडिशा के गजपति शासकों के अधीन लड़ाकू किसानों को पाइका कहा जाता था। युद्ध के समय ये राजा को अपनी सैन्य सेवा प्रदान करते थे।

विद्रोह के कारण

  • पाइका विद्रोह के कई सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारण थे। 1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा खुर्दा (उड़ीसा) की विजय के बाद पाइकों की शक्ति एवं प्रतिष्ठा घटने लगी।
  • अंग्रेजों ने खुर्दा पर विजय प्राप्त करने के बाद पाइकों की वंशानुगत लगान-मुक्त भूमि हड़प ली तथा उन्हें उनकी भूमि से विमुख कर दिया। इसके बाद कंपनी की सरकार और उसके कर्मचारियों द्वारा उनसे जबरन वसूली और उनका उत्पीड़न किया जाने लगा।
  • कंपनी की जबरन वसूली वाली भू-राजस्व नीति ने किसानों और जमींदारों को एक समान रूप से प्रभावित किया।
  • नई सरकार द्वारा लगाए गए करों के कारण नमक की कीमतों में वृद्धि आम लोगों के लिये तबाही का स्रोत बनकर आई।
  • इसके अलावा कंपनी ने कौड़ी मुद्रा व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया था, जो कि ओडिशा में कंपनी के विजय से पहले अस्तित्व में थी और जिसके तहत चांदी में कर चुकाना आवश्यक था। यही इस असंतोष का सबसे बड़ा कारण बना।
  • यह विद्रोह बहुत तेजी से प्रांत के अन्य इलाकों जैसे पुर्ल, पीपली और कटक में फैल गया। इसके बाद दमन का व्यापक दौर चला, जिसमें कई लोगों को जेल में डाल दिया गया तथा कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
  • बक्शी जगबंधु को अंततः 1825 में गिरफ्रतार कर लिया गया और कैद में रहते हुए ही 1829 में उनकी मृत्यु हो गई।

क्यों महत्त्वपूर्ण है पाइका विद्रोह?

  • 1857 का स्वाधीनता संग्राम जिसे सामान्य तौर पर देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम माना जाता है उससे भी पहले 1817 में ओडिशा में हुए पाइका विद्रोह ने पूर्वी भारत में कुछ समय के लिये ब्रिटिश राज की जड़ें हिला दी थीं।
  • दरअसल, ब्रिटिश राज के विरुद्ध विद्रोह में पाइका लोगों ने अहम् भूमिका निभाई थी, लेकिन किसी भी मायने में यह विद्रोह एक वर्ग विशेष के लोगों के छोटे समूह का विद्रोह भर नहीं था।
  • विदित हो कि घुमसुर जो कि वर्तमान में गंजम और कंधमाल जिले का हिस्सा है वहाँ के आदिवासियों और अन्य वर्गों ने इस विद्रोह में सक्रिय भूमिका निभाई थी।