हिन्द महासागर में चीन की उपस्थिति

चीन ने पूर्व अफ्रीका के जिबूती में 2017 में नौसेना बेस खोला था। वह पहले ही हिंद महासागर में स्वेज नहर से लेकर मलक्का तक अपना विस्तार कर रहा है। चीन, पाकिस्तान के ग्वादर में एक बंदरगाह बना रहा है; वहीं श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को वह 99 वर्ष के लिए लीज पर ले चुका है मालदीव के कई छोटे द्वीपों पर भी चीन द्वारा आधारभूत संरचनाओं में निवेश किया जा रहा है।

दक्षिण चीन सागर

अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय को न मानते हुए, चीन ने दक्षिण चीन सागर में अपनी विस्तारवादी नीति को चालू रखा है। चीन द्वारा दक्षिण चीन सागर में मैजिक मशीन द्वारा निर्मित द्वीप (Magical Machine of Making Island) अन्य देशों के प्रभुत्व को चुनौती देने के समान है।

चीन द्वारा अंतरराष्ट्रीय कानून (UNC Law of Sea) का प्रयोग इस क्षेत्र में एक्सक्लुसिव इकोनॉमिक जोन (Exclusive Economic Zone-EEZ) के लूप होल के रूप में किया गया है। इसके अन्तर्गत किसी भी देश की समुद्री सीमा का विस्तार 200 नॉटिकल मील तक होता है। दक्षिण चीन में द्वीपों का निर्माण, चीन के लिए न सिर्फ सामरिक महत्व रखता है, अपितु उसके ईईजेड को भी बढ़ाता है। भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया, यूएस इस क्षेत्र में शान्ति एवं स्वंतत्र नौपरिवहन हेतु Quad के अन्तर्गत एकत्र हुए हैं। इस परिप्रेक्ष्य में भारत एवं अन्य Quad सदस्यों को इस क्षेत्र के लिए विशेष Code of Conduct का निर्माण करना आवश्यक है।

इंडो-पैसिफिक

अमेरिकी राष्ट्रपति तथा अमेरिकी प्रशासन द्वारा एशिया प्रशांत की जगह भारत-प्रशांत शब्दावली का प्रयोग करना वैश्विक स्तर पर भारत की अहमियत की ओर संकेत करता है। साथ ही एशिया में भारत की भूमिका को नेतृत्व के स्तर पर भी पहचान दिलाता है। चीन द्वारा इस शब्दावली अर्थात इंडो-पैसिफिक पर एतराज जाहिर किया गया है। वस्तुतः भारत को अमेरिका का अहम सुरक्षा साझीदार का दर्जा मिलने के बाद उसे लागू करने की प्रक्रिया भी चल रही है।