अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थान तथा आरक्षण
हाल ही में, मद्रास उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों के संबंध में आरक्षण के नियम का पालन करने की आवश्यकता नहीं है।
- अदालत के अनुसार सरकार इन संस्थानों को ऐसे उम्मीदवारों को आरक्षण देने के लिए मजबूर नहीं कर सकती।
- न्यायाधीशों ने यह भी माना है कि राज्य सरकार को किसी संस्था की अल्पसंख्यक स्थिति को किसी विशेष अवधि तक सीमित करने का कोई अधिकार नहीं होगा।
- निर्णय के अनुसार एक बार दिया गया दर्जा तब तक जारी रहेगा जब तक कि राष्ट्रीय ....
क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |
पूर्व सदस्य? लॉग इन करें
वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |
संबंधित सामग्री
- 1 भारत की लिंग संवेदनशील बजटिंग की सराहना
- 2 सार्वजनिक वितरण प्रणाली को युक्तिसंगत बनाने पर पॉलिसी ब्रीफ
- 3 बच्चों के विरुद्ध हिंसा समाप्त करने पर वैश्विक सम्मेलन
- 4 'बाल विवाह मुक्त भारत' अभियान
- 5 शिक्षा मंत्रालय की स्टार्स कार्यशाला
- 6 बच्चों एवं युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर मार्गदर्शन दस्तावेज
- 7 मातृ स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन में भारत की प्रगति को मान्यता
- 8 बाल विवाह निषेध अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु दिशानिर्देश
- 9 राष्ट्रीय पोषण माह का 7वां संस्करण
- 10 दिव्यांगों के लिए एक्सेसिबिलिटी स्टैंडर्ड्स मॉड्यूल लागू