पूर्वी घाट में वन आवरण में कमी

हैदराबाद विश्वविद्यालय के अध्ययन अनुसार पूर्वी घाट में पिछले 95 वर्षों के दौरान वन आवरण में लगभग 16 प्रतिशत की कमी पाई गयी। उपग्रह तस्वीरों के अध्ययन अनुसार 1920 से 2015 के बीच वन आवरण 43.4 प्रतिशत से घटकर 27.5 प्रतिशत हो गया है।

  • पिछले कुछ वर्षों में वन क्षेत्र का लगभग 8% कृषि क्षेत्रों में परिवर्तित हो गया था, जबकि लगभग 4% साफ भूमि या घासस्थल में परिवर्तित हुआ है। साथ ही अध्ययन में भूखण्डों की संख्या में वृद्धि से विखंडन के संकेत भी मिले हैं। 1920 में लगभग 1379 भूखण्ड (Patch) थे जो वर्ष 2015 तक बढ़कर 9,457 हो गये।
  • सर्वाधिक पर्यावास विखण्डन ओडिशा के गजपति जिले, तेलंगाना के महबूबनगर और नल्लामलाई और कोल्लि की पहाडि़यों में हुआ।
  • शुरुआती वर्षों में वनोन्मूलन का प्रमुख कारण कृषि था लेकिन 1975 के बाद खनन और अन्य विकास गतिविधियां- सड़क तथा बांध निर्माण प्रमुख कारण थे। 1920 में खनन क्षेत्र 622 वर्ग किमी. था जो वर्ष 2015 में बढ़कर 962 वर्ग किमी. हो गया।

पूर्वी घाट का पारिस्थितिकी महत्व

  • पूर्वी घाट पारिस्थितिकी दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह अत्यंत उपजाऊ है तथा यहां अत्यधिक वर्षा से वनस्पति की अधिकता है जिससे यह क्षेत्र जीव जंतुओं तथा वनस्पतियों के लिए आदर्श क्षेत्र है। यहां पर उष्णकटिबंधीय, आर्द्र मिश्रित और अर्द्ध-सदाबाहरी एवं मैंग्रोव वन पाये जाते हैं। साथ ही इस क्षेत्र में आयरन, मैंगनीज, तांबा, बॉक्साइट, क्रोमियम, अभ्रक, बलुआ पत्थर और संगमरमर के भंडार है।
  • पूर्वी घाट लगभग 2600 पादप प्रजातियों का घर है। पर्यावास विखण्डन तथा क्षति से स्थानिक प्रजातियों को खतरा हो सकता है।
  • पूर्वी घाट में प्रमुख पक्षी बगुला, कबूतर, मालाबार हॉर्नबिल तथा वन्यजीवों में नीलगिरि ताहर, तेंदुआ, सांभर, पेंगोलिन, लवण मगर आदि पाये जाते हैं। पूर्वी घाट में लगभग 20 राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव तथा पक्षी अभयारण्य हैं। पूर्वीघाट देश की अनियमित निम्न पर्वत श्रेणी है जो बंगाल की खाड़ी के समानांतर ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक के कुछ हिस्सों तक 1750 किमी- तक फैली है। प्रायद्वीपीय भारत की 4 प्रमुख नदियां यहां से गुजरती हैं-गोदावरी, महानदी, कृष्णा और कावेरी।