भारत जलवायु कार्य योजना-2030

भारत ने 2 अक्टूबर, 2015 को संयुक्त राष्ट्र जलवायु निकाय यूएनएफसीसीसी को अपनी जलवायु पहल योजना सौंपी। इसमें भारत ने कहा है कि वह यह सुनिश्चित करेगा कि वर्ष 2030 तक जीडीपी की

प्रमुख तथ्य

  • विश्व की 7.8% जैव विविधता व विश्व के 34 बॉयोडाइवर्सिटी हॉटस्पॉट में 2 भारत में हैं। इसे संरक्षण की जरूरत है। ध्रुवीय क्षेत्र के बाहर सर्वाधिक हिम संकेंद्रण क्षेत्र हिमालयन पारिस्थितिकी में है। इसलिए हिमालयन पारितंत्र को बचाने की जरूरत है।
  • भारतीय महाद्वीप विश्व के सर्वाधिक आपदा संभावित क्षेत्रों में से एक है। लगभग 85% क्षेत्र संकटग्रस्त हैं। इसलिए उत्सर्जन कटौती जरूरी है।
  • भारत की 14.2% आबादी उसकी 7517 किलोमीटर तटीयरेखा पर रहती है। वैश्विक तापवृद्धि से सर्वाधिक खतरा समुद्री स्तर के बढ़ने में है।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण सूखा एवं बाढ़ की निरंतरता में बढ़ोत्तरी हुयी है। इसका असर कृषि उत्पादन पर पड़ेगा।

प्रति इकाई कार्बन उत्सर्जन वर्ष 2005 की तुलना में एक तिहाई (33% से 35%) कम होगी। भारत 2030 तक अपनी 40% विद्युत जरूरत नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करेगा। भारत को अपनी जलवायु परिवर्तन योजना लक्ष्य को पूरा करने के लिए वर्ष 2013-14 के मूल्य पर 2.5 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी।

भारत ने घरेलू स्तर पर अपने कार्य का विकास करने के लिए कई नीतियां आरंभ की हैं और कई संस्थानिक तंत्र स्थापित किए हैं। भारत सरकार जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना शुरू कर रही है। इस योजना में सरकार द्वारा उठाए जाने वाले अन्य विभिन्न कदमों के अलावा सौर, ऊर्जा दक्षता, कृषि, जल, धारणीय वास, वानिकी, हिमालयी, पारिस्थितिक तंत्र और जानकारी से संबंधित आठ राष्ट्रीय मिशन शामिल हैं। इन कार्यों में जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान करने की प्रतिबद्धता परिलक्षित होती है। जलवायु परिवर्तन से संबंधित अत्यावश्यक जानकारी के मिशन के एक भाग के रूप में भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा प्रोद्यौगिकी, अग्रिम कोयला प्रोद्यौगिकी, परिवर्धित ऊर्जा दक्षता, हरित वन, धारणीय वास, जल, धारणीय कृषि और विनिर्माण के क्षेत्रों में 8 वैश्विक प्रोद्यौगिकी जांच समूहों की स्थापना की है।