सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय

यह दो या अधिक बैंकों की संपत्तियों और देनदारियों के संयोजन को संदर्भित करता है। एम. नरसिम्हन समिति सहित विभिन्न समितियों और विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि भारत के पास कम, लेकिन बड़े बैंक होने चाहिए।

छोटे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (पीएसबी) निम्न कारणों से उच्च आर्थिक विकास के लिए एक बाधा के रूप में कार्य करते हैं:

  • सीमित भौगोलिक पहुँच।
  • संसाधनों की द्वैधता।
  • सीमित आकार के कारण कम जोखिम लेने की क्षमता।
  • नैतिक जोखिम (Moral Hazard) की घटना।
  • अक्षमता और अव्यवसायिक प्रबंधन।

बैंक ऑफ बड़ौदा और एसबीआई को क्रमशः अप्रैल 2019 और सितंबर 2019 में समेकित किया गया तथा 30 सितंबर 2019 को घोषणा की गई कि 10 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को चार बड़े बैंकों में विलय कर दिया जाएगा।

प्रमुख बैंक विलय होने वाले बैंक रैंक के आधार पर
पंजाब नेशनल बैंक ओबीसी, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया दूसरी बड़ी बैंक
केनरा बैंक सिंडिकेट बैंक चौथी बड़ी बैंक
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया आंध्रा बैंक, कॉरपोरेशन बैंक पांचवीं बड़ी बैंक
इंडियन बैंक इलाहाबाद बैंक सातवीं बड़ी बैंक

बैंक विलय का महत्व

क्षमता वृद्धिः बैंकों का विलय, बड़े बैंकों के सृजन को बढ़ावा देंगे, जिससे उधार देने की क्षमता बढ़ेगी। इससे पहले, सरकार ने एसबीआई का विलय इसके सहयोगी बैंकों के साथ और बैंक ऑफ बड़ौदा में विजया बैंक एवं देना बैंक का विलय कर चुकी है।

वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकताः विलय के पश्चात, ये बड़े बैंक विश्व स्तर पर और निजी बैंकों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम होंगे। ऋण देने की लागत को कम करके उनकी परिचालन दक्षता में वृद्धि करेगा। विलय के बाद भारत में कुल 12 सार्वजानिक क्षेत्र के बैंक होंगे, जिनमें से आधे (पंजाब नेशनल बैंक, केनरा बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन बैंक, एसबीआई और बैंक ऑफ बड़ौदा) वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम होंगे।

संसाधन का कुशल उपयोगः बैंकों के विलय से उनके संसाधन का कुशल उपयोग सुनिश्चित होगा, जिससे बैंकों का लाभ मिलेगा। क्योंकि CASA [चालू खाता बचत खाता] में वृद्धि होगी और अधिक पहुंच सुनिश्चित हो सकेगी। शाखाओं, लोगों, प्रौद्योगिकी आदि सहित कई क्षेत्रों में लागतों के युक्तिकरण और मजबूत संस्थानों के निर्माण से बैंकों के लाभ में वृद्धि होगी एवं बैलेंस शीट मजबूत होगा।

चिंताएं

विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने की क्षमता संदिग्ध हैः सरकार द्वारा घोषित बैंकों में विलय के बाद भी बैंक उतने बड़े नहीं हैं कि वैश्विक प्रतिस्पर्द्धियों पर हावी हो सके। उदाहरण के लिए, विलय के बाद भी PNB दुनिया के 50वें सबसे बड़े बैंक के आकार का लगभग एक तिहाई है।

आकार और दक्षता के बीच सहसंबंध विवादित हैः विश्लेषकों के अनुसार, आकार-दक्षता का केवल तभी तक सकारात्मक सहसंबंध होता है, जब आकार काफी कम (लगभग 10 बिलियन डॉलर) हो। यहां तक कि भारत में बड़े पीएसबी निजी बैंकों (आकार में बहुत छोटे) के मुकाबले बुरा प्रदर्शन करते हैं। एचडीएफसी बैंक के बुक वैल्यू रेशियो की कीमत 4 के करीब है, जबकि एसबीआई की करीब 1.25 है।

प्रबंधन लगभग सभी बैंकों का विलय प्रबंधकीय अक्षमता से ग्रस्त है। जब मौजूदा प्रबंधन परिसंपत्तियों के मौजूदा स्तर पर प्रदर्शन देने में सक्षम नहीं है, तो प्रबंधन एक बहुत बड़ी और अधिक जटिल इकाई की सफलता कैसे बना सकता है?

सुझाव

बैंक समेकन के अलावा आज बैंकिंग क्षेत्र में व्यापक सुधारों की आवश्यकता है, जिसमें प्रबंधन, निजीकरण और परिचालनगत परिवर्तन शामिल हैं।

बैंकों को स्वतंत्र बनानाः पी.जे. नायक समिति ने पीएसबी को अधिक से अधिक स्वतंत्रता प्रदान करने का सुझाव दिया था। अंततः पीएसबी स्वतंत्र और जवाबदेह होने चाहिए और बैंक को अपना CEO चुनने की अनुमति दी जानी चाहिए।

बैंक बोर्ड को मजबूत बनानाः बैंक नेतृत्व को राजनीतिक नेतृत्व के बजाय पेशेवर बोर्ड के प्रति जवाबदेह बनाना; इसके लिए बैंक बोर्ड को मजबूत करना चाहिए और बैंक में सरकारी स्वामित्व को बैंक के चुकता पूंजी (paid-up capital) का 50% तक सीमित करना चाहिए।

बैंकिंग के रिस्क को कम करनाः बैंक उन एनबीएफसी को उधार देते हैं, जो आगे चलकर हाउसिंग प्रोजेक्ट्स को लोन देते हैं और डिफॉल्ट के दौरान यह जोखिम बैंकों को ट्रांसफर हो जाता है। इसे रोकने के लिए, NBFC को सीधे बाजारों से धन जुटाने के लिए सक्षम बनाया जाना चाहिए।

सरकारी अधिदेशों को कम करनाः समय-समय पर सरकार पीएसबी को अवैतनिक सरकारी अधिदेश (Uncompensated Government Mandates) जारी करती है, उदाहरण के लिए जन धन खाते खोलना, एसएलआर बॉन्ड की अनिवार्य खरीद, ग्रामीण ऋण लक्ष्य और ऋण छूट आदि। अवैतनिक सरकारी अधिदेश बैंकों को अप्रतिस्पर्द्धी बनाते हैं और अल्पसंख्यक शेयरधारकों के हितों के खिलाफ हैं। इन मुफ्त बैंकिंग सेवाओं को कम किया जाना चाहिए और बजटीय संसाधनों से मुआवजा या भुगतान किया जाना चाहिए।

बैंकों का बेहतर प्रशासन, बोर्डों की संरचना के प्रति अधिक उदार दृष्टिकोण, निजी क्षेत्र के सममूल्य अनुक्रमण योजना और प्रतिस्पर्द्धी कार्यकारी पारितोषिक (executive compensation) यह निर्धारित करेगा कि किये गए सुधारों से इन बैंकों में कितनी स्वतंत्रता और जवाबदेही सुनिश्चित हुई है।