भारतीय रिजर्व बैंक का नया आर्थिक पूंजी ढांचा

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 26 अगस्त को 1.76 लाख करोड़ रुपये के लाभांश और अधिशेष भंडार को सरकार को हस्तांतरित करने की मंजूरी दी। यह राशि राजकोषीय घाटे को बढ़ाए बिना धीमी होती अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने में सरकार की मदद करेगी। आरबीआई के पूर्व गवर्नर बिमल जालान के नेतृत्व में आरबीआई के आर्थिक पूंजी ढांचे (ECF) की समीक्षा के लिए एक समिति का गठन किया गया था, जिसने हस्तांतरण की सिफारिश की थी।

पृष्ठभूमि

  • वर्तमान ECF, आरबीआई द्वारा जोखिम के रूढि़वादी मूल्यांकन (Conservative Assessment) पर आधारित है, जो आरबीआई द्वारा धन पर अनावश्यक रोक लगाता है।
  • सरकार के अनुसार, आरबीआई का आरक्षित कोष इसकी आकस्मिक जरूरतों से अधिक है। दुनिया भर के कुछ केंद्रीय बैंक (जैसे कि यूएस और यूके) अपनी संपत्ति का 13% से 14% आरक्षित कोष में रखते हैं, जबकि भारतीय रिजर्व बैंक 27% रखता है।
  • मालेगाम समिति ने भी आरबीआई के कोष को कम करने की वकालत की, और 2013 में आरबीआई का अधिशेष लगभग 1.49 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया।
  • इस आलोक में आरबीआई ने 26 दिसंबर, 2018 को एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता पूर्व गवर्नर बिमल जालान ने किए इन्होंने मौजूदा आर्थिक पूंजी ढांचे की समीक्षा की और रिजर्व बैंक के उचित आकार को बनाए रखने और सरकार को कितना लाभांश देना चाहिए, उसके बारे में सलाह दी।

समिति की सिफारिशें

आरबीआई को ‘आकस्मिक जोखिम बफर’बनाए रखना चाहिए, जो ज्यादातर केंद्रीय बैंक की बैलेंस शीट के 5.5-6.5% के बीच होना चाहिए। चूंकि नवीनतम आकस्मिकता निधि की राशि आरबीआई की बैलेंस शीट का लगभग 6.8% थी, इसलिए अतिरिक्त राशि (5.5% से अधिक) सरकार को हस्तांतरित की जानी चाहिए (लगभग 52,000 करोड़ रुपये)।

  • आरबीआई के बैलेंस शीट का 20-24.5% के दायरे में मुद्रा और सोने का पुनर्मूल्यांकन खाता (CGRA) में फंड रिजर्व रखना चाहिए। चूंकि यह जून 2019 तक 23.3% था, समिति ने महसूस किया कि इसमें और अधिक जोड़ने की आवश्यकता नहीं है, इसलिए इस वर्ष आरबीआई की पूर्ण शुद्ध आय, 1,23,414 करोड़ रुपये को हस्तांतरित किया जाना चाहिए। विदित है कि केंद्र की कुल हस्तांतरणीय राशि लगभग 1.76 लाख करोड़ रुपये है।
  • केंद्रीय बैंक के लेखांकन वर्ष को वित्तीय वर्ष के साथ संरेखित करना चाहिए, जिससे सरकार को अंतरिम लाभांश का भुगतान करने की आवश्यकता को दूर किया जा सके। यह सरकार को आरबीआई द्वारा अधिशेष हस्तांतरण का बेहतर अनुमान प्रदान करने में भी मदद करेगा।
  • आरबीआई को अपने ‘ऑफ-बैलेंस शीट’के बढ़ते महत्व के मद्देनजर, ऑफ-बैलेंस शीट एक्सपोजर के बाजार जोखिम का आकलन करने के लिए एक रूपरेखा तैयार करनी चाहिए।
  • आर्थिक पूंजी के दो घटकों (प्राप्त इक्विटी और पुनर्मूल्यांकन शेष) के बीच एक स्पष्ट अंतर की समिति द्वारा अनुशंसा की गई है, मुख्य रूप से पुनर्मूल्यांकन शेष की अस्थिर प्रकृति की वजह से।
  • प्रत्येक पाँच वर्षों में आरबीआई के आर्थिक पूंजी ढांचे की समीक्षा की जानी चाहिए।

प्रभाव

ढांचे की समीक्षा के परिणामस्वरूप अतिरिक्त पूंजी को मुक्त किया जाएगा, जिसे आरबीआई तब सरकार के साथ साझा कर सकता है, जब अर्थव्यवस्था की गति धीमी हो रही हो और सरकार को धन की तत्काल आवश्यकता हो।

  • इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा; क्योंकि यह बाजार में तरलता को बढ़ाएगा, जिससे अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ेगी।
  • हालांकि, इससे आरबीआई को तत्काल कोई नुकसान नहीं पहुंचता है, लेकिन तथ्य यह है कि केंद्रीय बैंक के पास वित्तीय आपदा की स्थिति में बहुत कम विकल्प बचते हैं, क्योंकि इसका भंडार न्यूनतम स्तर तक खली हो गया है। यानी, इसे संकट से निपटने के लिए न्यूनतम राशि ही उपलब्ध है।

सुझाव

सरकार ने बजट में उम्मीद जताई थी कि रिजर्व बैंक से 90,000 हजार करोड़ रुपया मिलेगा, लेकिन उससे भी 86,000 करोड़ अधिक रुपया मिलने वाला है। यह एक बार प्राप्त होने वाला अप्रत्याशित लाभ है और यह इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि कर राजस्व- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों कर, अपनी क्षमता से बहुत कम हैं। इसलिए समय की मांग है कि कर के पारंपरिक स्रोतों में सुधार किया जाए; जैसे कर आधार बढ़ाना, प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) में सुधार, कर- जीडीपी अनुपात सुधारना आदि।