भारत की प्राकृतिक संसाधन क्षमता : आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की कुंजी
संसाधनों को उनकी उत्पत्ति के आधार पर जैविक या अजैविक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। भारतीय भू-भाग में दोनों ही प्रकार के संसाधन विद्यमान हैं तथा भारत की अर्थव्यवस्था इन संसाधनों के उपभोग या निर्यात पर अत्यधिक निर्भर है। प्राकृतिक संसाधनों एवं आर्थिक विकास के बीच सकारात्मक संबंध पाया जाता है। ऐसे में आत्मनिर्भर भारत की दिशा में आगे बढ़ने के लिए अन्य कदमों के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों के अधिकतम किन्तु विवेकपूर्ण उपयोग पर भी ध्यान केन्द्रित करना होगा। साथ ही यह भी ध्यान में रखना होगा कि पर्यावरणीय एवं मानवीय क्रियाकलापों के कारण वर्तमान में प्राकृतिक संसाधनों ....
क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |
पूर्व सदस्य? लॉग इन करें
वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |
संबंधित सामग्री
- 1 भारत की दुर्लभ भू-संपदा का समुचित दोहन: एक रणनीतिक अनिवार्यता - संपादकीय डेस्क
- 2 प्रौद्योगिकीय आत्मनिर्भरता: भारत की भावी संवृद्धि का एक प्रमुख स्तंभ - संपादकीय डेस्क
- 3 कृत्रिम बुद्धिमत्ता का पर्यावरणीय प्रभाव : नवाचार और धारणीयता का संतुलन
- 4 भारत की वैश्विक रणनीतिक साझेदारियां
- 5 भारत की साइबर प्रतिरोधक क्षमता का सुदृढ़ीकरण एक राष्ट्रीय सुरक्षा अनिवार्यता - संपादकीय डेस्क
- 6 पुनरुत्थान के मार्ग पर बिम्सटेक भारत के लिए रणनीतिक एवं आर्थिक अवसर - आलोक सिंह
- 7 डिजिटलीकरण: सामाजिक परिवर्तन का उत्प्रेरक - संपादकीय डेस्क
- 8 अमेरिका की नई टैरिफ नीति वैश्विक व्यापार युद्ध की दस्तक - डॉ. उदय भान सिंह
- 9 पीटलैंड्स का संरक्षण वैश्विक तापमान वृद्धि से निपटने का सतत समाधान - संपादकीय डेस्क
- 10 सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम संभावनाएं, चुनौतियां एवं समाधान - डॉ. अमरजीत भार्गव