त्वरित सुनवाई का मौलिक अधिकार एवं न्यायिक विलम्ब
- बॉम्बे हाईकोर्ट ने 19 जुलाई, 2021 को आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी की मृत्यु की न्यायिक जांच की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि "त्वरित सुनवाई एक मौलिक अधिकार है" (speedy trial is a fundamental right)।
- जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एनजे जमादार की पीठ ने भीमा कोरेगांव मामले के आरोपियों का जिक्र करते हुए यह टिप्पणी की।
- बता दें कि स्टैन स्वामी भीमा कोरेगाँव मामले में न्यायिक हिरासत में थे। उन पर हिंसा भड़काने का मामला चल रहा था। कई आदिवासी संगठनों समेत कांग्रेस और जेएमएम ने उनकी गिरफ्तारी का विरोध किया था।
त्वरित सुनवाई ....
क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |
पूर्व सदस्य? लॉग इन करें
वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |
संबंधित सामग्री
- 1 आपदा रोधी अवसंरचना: एक वैश्विक आवश्यकता
- 2 स्मार्ट सिटी मिशन के 10 वर्ष: उपलब्धियां एवं चुनौतियां
- 3 सतत विकास लक्ष्य एवं भारत: प्रगति एवं चुनौतियां
- 4 सार्वभौमिक टीकाकरण: सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा का भारतीय संकल्प
- 5 महासागरों का संरक्षण: सतत एवं समावेशी भविष्य की आधारशिला
- 6 51वां G7 शिखर सम्मेलन: प्रमुख वैश्विक मुद्दों पर सहमति बनाने में कितना सफल
- 7 भारत-साइप्रस: द्विपक्षीय सहयोग की नई दिशा की ओर अग्रसर
- 8 प्रधानमंत्री की क्रोएशिया यात्रा: द्विपक्षीय संबंधों का एक महत्वपूर्ण पड़ाव
- 9 संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशन: भारत की भूमिका
- 10 नीति निर्माण में अग्रणी प्रौद्योगिकियों की भूमिका पारदर्शिता, प्रभावशीलता और समावेशिता की नई नींव