राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 24 नवंबर, 2021 को 2019-21 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) चरण-2 के आंकड़े जारी किए गए।

महत्वपूर्ण तथ्यः राष्ट्रीय स्तर पर प्रति महिला बच्चों की औसत संख्या यानी कुल प्रजनन दर (टीएफआर) घटकर अब 2-0 हो गई है। यह NFHS-4 में 2.2 थी।

  • भारत में पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं हैं, इसके समग्र लिंगानुपात में 1,000 पुरुषों के लिए 1,020 महिलाएं हैं, जो 2005-06 में 1,000 से घटकर 2015-16 में 991 हो गई थी।
  • पिछले पांच वर्षों में जन्म लेने वाले बच्चों के लिए जन्म के समय लिंगानुपात 2015-16 में 919 प्रति 1,000 पुरुषों से बढ़कर अब मामूली सुधार के साथ 929 प्रति 1,000 हो गया है।
  • अस्पताल जैसी संस्थागत सुविधाओं में जन्म लगभग 79% से बढ़कर 89% हो गया।
  • 12-23 महीने की आयु के बच्चों के बीच पूर्ण टीकाकरण अभियान में अखिल भारतीय स्तर पर 62% से 76% तक पर्याप्त सुधार दर्ज किया गया है।
  • 6 महीने से कम उम्र के बच्चों को विशेष रूप से स्तनपान करानेमें 54.9% (NFHS-4) से 63.7% तक का तेज सुधार हुआ।

जीके फ़ैक्ट

  • ‘समग्र गर्भनिरोधक प्रसार दर’ अखिल भारतीय स्तर पर और पंजाब को छोड़कर लगभग सभी चरण- II राज्यों/ केंद्र- शासित प्रदेशों में 54% से बढ़कर 67% हो गई है।

प्रश्नोत्तर-सार

देश की कार्बन सिंक की क्षमता

  • फरवरी 2021 में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) को सौंपी गई भारत की तीसरी द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट के अनुसार, ‘भूमि उपयोग, भूमि-उपयोग परिवर्तन और वानिकी’ (Land Use, Land-use Change and Forestry: LULUCF) क्षेत्र एक शुद्ध कार्बन सिंक था और 2016 में CO2 के समतुल्य 307.82 मिलियन टन मात्रा पृथक्कृत की गई थी।
  • 2015-16 से 2019-20 के दौरान विभिन्न वनीकरण और वृक्षारोपण कार्यक्रमों के माध्यम से राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों द्वारा सामूहिक रूप से औसतन 1.79 मिलियन हेक्टेयर वार्षिक वनीकरण हासिल किया गया है। भारत सरकार ने 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से CO2 के समतुल्य 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन सिंक सृजित करने की दिशा में कई पहल की हैं। भारत ने 2030 तक ‘भूमि अवक्रमण निष्प्रभाविता’ (land degradation neutrality) और 26 मिलियन हेक्टेयर अवक्रमित भूमि की बहाली के लिए भी प्रतिबद्धता की है। इससे वनों और जैव विविधता को संरक्षित करने और कार्बन सिंक में वृद्धि करने में मदद मिलेगी।

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी