‘प्राचीन मंदिर स्थापत्य कला तत्कालीन भारतीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों को प्रदर्शित करती थी’। इस कथन पर टिप्पणी कीजिये।

उत्तर: प्राचीन काल से भारतीय मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं था बल्कि लोगों के सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन का केंद्र भी था। मंदिर स्थापत्य कला के विकास के साथ ही इनमें भारतीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का भी समावेशन होने लगा| इसके प्रमाण द्रविड़, नागर एवं वेसर सभी स्थापत्य शैली के अंतर्गत निर्मित मंदिरों में देख सकते हैं|

  • पंचायतन शैली के बने मंदिरों में एक मुख्य देवता के चारो ओर चार अन्य देवी एवं देवताओं की मूर्तियों को निर्मित किया जाता है इसके साथ ही इनकी पूजा भी की जाती है| एक मुख्य देवता/देवी के साथ अन्य देवता/देवी ....
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