अंतरविषयी एवं तुलनात्मक दृष्टिकोण पर आधारित भारतीय इतिहास
संपादक की कलम से - (February 2023)
प्रिय पाठक,क्रॉनिकल प्रकाशन समूह पिछले 30 वर्षों से सिविल सेवा के उम्मीदवारों को मार्गदर्शन प्रदान कर रहा है। इन तीन दशकों के दौरान, हमारा निरंतर यह प्रयास रहा है कि हम आपको व्यापक, प्रासंगिक और अद्यतन सामग्री प्रदान करें। हमारा एकमात्र उद्देश्य परीक्षा को उत्तीर्ण करने और अपने लक्ष्यों को
सभ्यता का विकास
महाजनपद काल - (February 2023)
छठी शताब्दी ईसापूर्व में लोहे के प्रयोग ने गंगा-घाटी में आर्थिक परिवर्तनों को जन्म दिया तथा कई महाजनपदों का उदय हुआ। प्राचीन भारत के इतिहास में 6ठी शताब्दी ई.पू. को एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल माना जाता है। इस काल को प्रायः आरंभिक राज्यों, नगरों, लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों के
वैदिक सभ्यता - (February 2023)
सिंधु घाटी सभ्यता के पश्चात जिस नवीन सभ्यता का विकास हुआ, उसे ही आर्य सभ्यता अथवा वैदिक सभ्यता के नाम से जाना जाता है। यह मुख्यतः पशुचारण सभ्यता थी, जिसमें कृषि गौण व्यवसाय था। वैदिक संस्कृति को दो भागों में बांटा गया है ऋग्वैदिक संस्कृति (1500 ई.पू.-1000 ई.पू.) उत्तर वैदिक संस्कृति (1000 ई.पू.-600 ई.पू.) ऋग्वैदिक
ताम्र-पाषाणिक सभ्यता - (February 2023)
सिन्धु सभ्यता के नगरीय जीवन के बाद उत्तर भारत के कतिपय क्षेत्रों में पुनः ग्रामीण संस्कृतियां परिलक्षित होती हैं। इन ग्रामीण संस्कृतियों में पाषाण उपकरणों के साथ तांबे के उपकरणों का भी प्रयोग किया गया है। अतः पुरातत्त्वविद् इस संस्कृति को ‘ताम्र-पाषाणिक संस्कृति के नाम से अभिहित करते हैं। ताम्रपाषाण संस्कृतियों ने
सिंधु घाटी सभ्यता - (February 2023)
सिंधु घाटी सभ्यता लगभग 2500 ईस्वी पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग में फैली हुई थी, जो कि वर्तमान में पाकिस्तान तथा पश्चिमी भारत के नाम से जाना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता मिस्र, मेसोपोटामिया, भारत और चीन की चार सबसे बड़ी प्राचीन नगरीय सभ्यताओं से भी अधिक उन्नत थी। भारतीय पुरातत्त्व
पाषाण काल - (February 2023)
पुरा पाषाण काल पुरातत्वविदों ने आरंभिक काल को पुरा पाषण काल कहा है, यह नाम पुरास्थलों से प्राप्त पत्थर के औजारों के महत्व को दर्शाता है। पुरा पाषाण काल को निम्न पुरापाषाण काल, मध्य पुरापाषाण काल तथा उच्च पुरापाषाण काल में विभाजित किया गया है। गंगा, यमुना एवं सिन्धु के कछारी मैदानों में
भारतीय समाज
प्रेस का विकास - (February 2023)
16वीं शताब्दी के पश्चात भारत में प्रेस का विकास शुरू होता है। पुर्तगाली भारत में प्रेस मशीन की स्थापना करने वाले पहले यूरोपीयन थे। अंग्रेजों ने 1684 में भारत में प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की। जेम्स ऑगस्ट्स हिक्की ने 1980 को द बंगाल गजट नाम से भारत का पहला अखबार
शिक्षा का विकास - (February 2023)
भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति में अनौपचारिक तथा औपचारिक दोनों प्रकार के शैक्षणिक केन्द्रों का उल्लेख प्राप्त होता है। औपचारिक शिक्षा मन्दिर, आश्रमों और गुरुकुलों के माध्यम से दी जाती थी, जो उच्च शिक्षा के केन्द्र भी थे। जबकि परिवार, पुरोहित, पण्डित, संन्यासी और त्यौहार प्रसंग आदि के माध्यम
दास प्रथा - (February 2023)
हड़प्पा सभ्यताः इस सभ्यता के कुछ पुरातात्त्विक प्रमाणों की सहायता से विद्वानों ने विचार प्रकट किया है कि उस समय भी दास प्रथा प्रचलित थी। मोहनजोदड़ो में मिले दो-दो कोठरियों में सोलह मकान, जो तत्कालीन लोगों के निम्न जीवन स्तर के प्रमाण हैं, जिन्हें ‘पिगट’ महोदय ने ‘मजदूरों के मकान’ कहा
जन्म-मृत्यु संस्कार - (February 2023)
नवपाषाणकालः इस काल में अंत्येष्ठि संस्कार प्रचलित था। अस्थियों के साथ औजार एवं आभूषण भी रखे जाते थे। समाधि में एक से अधिक व्यक्तियों की अस्थियां रखी जा सकती थीं। ब्रह्मगिरि से इस प्रकार के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। बुर्जहोम में मृतकों के साथ-साथ कुत्तों को भी दफनाए जाने के प्रमाण मिलते
महिलाओं की स्थिति - (February 2023)
सिन्धु घाटी सभ्यताः नारी की अतिसंख्यक मूर्तियों की प्राप्ति से आभास मिलता है कि सिंधु समाज मातृ प्रधान था। मातृ-प्रधान परिवार में नारी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था। मातृ देवी प्रमुख उपास्य थीं। उत्खनन में जितनी मानव आकृतियों के चित्रों की उपलब्धि हुई है, उनमें स्त्रियों के चित्र बहुसंख्यक हैं।अतः
विवाह प्रणाली - (February 2023)
वैदिक कालः मनु समेत अन्य स्मृतिकारों ने तथा गृह्यसूत्रों व पुराणों में 8 प्रकार की विवाह पद्धतियों का उल्लेख है- विवाह के 8 प्रकारों में से प्रथम चार प्रकार (ब्रह्म विवाह, दैव विवाह, आर्ष विवाह व प्रजापत्य विवाह) के विवाह उत्तम कोटि के विवाह माने जाते थे तथा बाद के चार
वेश-भूषा - (February 2023)
पाषाणकालः मध्यपाषाण युग की गुफा चित्रकारियों में कमर परिधानों को दर्शाने वाले उदाहरण प्राप्त हुए हैं।पूर्व पाषाणकालीन मनुष्य अपने शरीर को वृक्षों के पत्तों और छालों तथा पशुओं के चर्म से ढकता था, परन्तु उत्तरकालीन मनुष्य ने वस्त्र निर्माण करना भी सीख लिया था। उसने पौधों के रेशों तथा पशुओं
खान पान - (February 2023)
पुरापाषाणकालीन जीवनः इस काल में मानव पूर्णतया प्रकृतिजीवी था। कृषि कार्यों से अपरिचित होने के कारण वह सहज रूप से उत्पन्न होने वाले फल-फूल और कन्द-मूल, आखेट में मारे गये पशुओं तथा नदियों और झीलों के तटों पर पकड़ी गई मछलियों से ही अपना पेट भरता था। मध्यपाषाणकालः इस काल में मनुष्य
सामाजिक संरचना - (February 2023)
नव पाषाणकालीन जीवनःइस काल में हुए आविष्कारों और परिवर्तनों ने मानव सभ्यता की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। कृषि कार्य, पशुपालन, गृह निर्माण आदि से मनुष्य को अन्य मनुष्यों के सहयोग की भी आवश्यकता पड़ती थी। इस तरह ‘समाज’ का अंकुरण हुआ। कार्य विभाजन एवं आर्थिक कारणों ने समाज को वर्गों और
धर्म एवं दर्शन
सफ़ूी आन्दोलन - (February 2023)
यह इस्लाम का उदारवादी एवं सुधारवादी आन्दोलन था। इसका मानना है कि परमात्मा तथा खलक जीव दोनों एक ही हैं। सूफीवाद एक ऐसा दर्शन है, जो एक ईश्वर में विश्वास करता है और सभी को अपने हिस्से के रूप में देखता है। 12वीं शताब्दी में कई सूफी संत भारत में आए तथा
भक्ति आंदोलन - (February 2023)
भक्ति आंदोलन का आरंभ दक्षिण भारत में सातवीं से 12वीं शताब्दी के मध्य हुआ, जिसके प्रथम प्रचारक शंकराचार्य को माना जाता है। भक्ति आंदोलन के कई संतों ने हिंदू-मुस्लिम एकता पर बल दिया, जिससे इन समुदायों में सहिष्णुता और सद्भाव की स्थापना हुई। भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत रामानुजः ये विशिष्टाद्वैत के प्रतिपादक
धार्मिक व्यवस्था - (February 2023)
हड़प्पा कालीन धार्मिक व्यवस्था हड़प्पा सभ्यता मुख्यतः लौकिक सभ्यता थी, जिसमें धार्मिक तत्व उपस्थित था, परंतु उसका वर्चस्व नहीं था। इस सभ्यता से मंदिर के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं, परन्तु जल पूजा प्रचलित थी। मोहनजोदड़ो से वृहद स्नानागार तथा पुरोहित आवास के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। इससे स्नान के महत्व
प्राचीन भारतीय दर्शन - (February 2023)
प्राचीन भारतीय दर्शन का आरम्भ वेदों से होता है। वेद भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति, साहित्य आदि सभी के मूल स्रोत हैं। वर्तमान में भी धार्मिक एवं सांस्कृतिक कृत्यों के अवसर पर वेद-मंत्रों का गायन होता है। अनेक दर्शन-संप्रदाय वेदों को अपना आधार और प्रमाण मानते हैं। उत्तर वैदिक काल में रचित
प्रशासनिक विकास
लोक सेवा का विकास - (February 2023)
लोक सेवा और लोक सेवा प्रणाली की भारत में शुरुआत पहली बार ब्रिटिश शासकों द्वारा ईस्ट इंडिया के शासनकाल 17वीं शताब्दी के दौरान हुई थी। जैसे-जैसे कंपनी के नियंत्रण क्षेत्र का विस्तार हुआ, इसके साथ ही प्रशासनिक कार्य के लिए लोक सेवा का भी विकास होता गया। लॉर्ड वारेन
भूमि मापन प्रणाली - (February 2023)
मौर्य कालः चंद्रगुप्त मौर्य काल में भी माप तथा नापतौल के लिए अच्छी प्रकार से परिभाषित पद्धति का प्रयोग किया जाता था।राज्य के द्वारा माप के भारों (बाटों) एवं तुला (तराजू) की सत्यता सत्यापित करने की परम्परा थी। उस काल की प्रणाली के अनुसार भार की सबसे छोटी इकाई एक
भू-राजस्व प्रणाली - (February 2023)
भारतीय इतिहास में भू-राजस्व तथा कर प्रणाली का व्यवस्थित रूप मौर्य साम्राज्य की स्थापना से अस्तित्व में आता है। इससे पहले हड़प्पा और वैदिक काल में व्यवस्थित भू-राजस्व और कर प्रणाली का पता नहीं चलता है। सैद्धांतिक रूप से प्रारंभ में जंगल साफ करके उसे कृषि योग्य बनाने वाला ही भू-खण्ड का
गुप्तचर व्यवस्था - (February 2023)
वैदिक कालः ऋगवेद में गुप्तचर के बारे में विस्तार से बताया गया है। अथर्ववेद में जल के देवता वरुण को सहस्रनेत्र कहा गया है, अर्थात वरुण के सहस्रों (हजारों) गुप्तचर थे। गुप्तचर ही राजा के नेत्र होते थे। स्त्री गुप्तचरों की परंपरा वैदिक काल में ही आरंभ हो गई थी।
विभिन्न कालों में मुख्य अधिकारी - (February 2023)
ऋग्वैदिक कालीन प्रमुख अधिकारी स्पशः गुप्तचर कुलपतिः परिवार का मुखिया विशपतिः विश का प्रधान ब्राजपतिः चारागाह का अधिकारी सेनानीः सेना का नेतृत्व करने वाला ग्रामिणीः ग्राम का प्रधान/युद्ध में ग्राम का नेतृत्व करने वाला उत्तरवैदिक कालीन अधिकारी सूतः राजा का सारथी प्रतिहारीः द्वारपाल संग्रहित्रीः कोषाध्यक्ष भागदुधः कर संग्रहकर्त्ता अक्षवापः पासे के खेल में राजा का सहयोगी पालागलः राजा का मित्र/संदेशवाहक गोविकर्तनः शिकार में राजा
न्यायिक व्यवस्था - (February 2023)
वैदिक कालः इस काल में अदालतों को सभा कहा जाता था। वे एक या एक से अधिक गांवों के विवादों का निपटारा अपने स्तर पर कर देती थीं। राजधानी में दो तरह की अदालतें होती थीं। राजा की अदालत सबसे बड़ी होती थी।राजा के नीचे भी एक न्यायालय होता था,
नगरीय प्रशासन - (February 2023)
भारत में प्रशासनिक प्रणाली का विकास हड़प्पा सभ्यता से आरंभ होता है। आरंभिक मानव केवल खाद्य संग्राहक ही था। इस समय स्थाई जीवन का विकास नहीं हुआ था। नवपाषाण काल में स्थाई जीवन आरंभ हुआ, फिर भी इस काल में प्रशासनिक तत्व अनुपस्थित था। सिन्धु घाटी सभ्यताः सिन्धु घाटी सभ्यता में सर्वप्रथम
स्थानीय प्रशासन - (February 2023)
ऋग्वैदिक कालः इस काल में सभा, समिति और गण तथा विदथ जैसी परिषदों का उल्लेख मिलता है, जिसका मुख्य कार्य सैनिक एवं धार्मिक था। सभा श्रेष्ठ एवं अभिजात लोगों की संस्था थी तथा समिति सामान्य जन की प्रतिनिधि सभा थी, जिसे राजा की नियुक्ति और पद्च्युति का अधिकार था। विदथ आर्यों की
आर्थिक प्रणाली का विकास
प्रमुख बंदरगाह - (February 2023)
सिन्धु घाटी सभ्यताः इस काल के लोथल, रंगपुर, प्रभास पाटन (सोमनाथ), बालाकोट, सुत्कागेंडोर एवं सुरकाकोह महत्वपूर्ण बन्दरगाह थे। लोथल एक ज्वारीय बन्दरगाह था। मेसोपोटामिया के प्रवेश के लिए प्रमुख बंदरगाह ‘उर’ था। मौर्य कालः इस युग के प्रमुख तटीय बंदरगाह भड़ौच, काठियावाड़, सोपारा और ताम्रलिप्ति आदि थे। विदेशी व्यापार के लिए इस काल
व्यापार मार्ग - (February 2023)
सिन्धु घाटी सभ्यताः इस काल में व्यापार जल एवं स्थल दोनों मार्गों से होता था।हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो व्यापार के भी प्रसिद्ध केन्द्र थे। दोनों नगर परस्पर व्यापारिक मार्गों द्वारा जुड़े हुए थे। यहां के व्यापारी मुख्यतः जलीय मार्ग से ही व्यापार किया करते थे। यद्यपि स्थलीय मार्ग अज्ञात नहीं थे।
मुद्रद्रा एवं सिक्का - (February 2023)
मुद्रा एवं सिक्कों में अपने समय का सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक इतिहास छिपा रहता है। भारत में सिक्कों का इतिहास लगभग 2,700 वर्ष पुराना है। हड़प्पा काल एवं वैदिक काल में सिक्कों का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं प्राप्त होता है। हड़प्पा काल के लोग व्यापार में धातु सिक्कों का प्रयोग नहीं करते थे
घरेलू एवं विदेशी व्यापार - (February 2023)
सिन्धु घाटी सभ्यताः यहां के लोगों ने व्यापार में भी गहरी रुचि ली। उनका आन्तरिक एवं बाह्य व्यापार दोनों ही समुन्नत दशा में था।वस्तुतः बड़े पैमाने पर व्यापार के बिना सैंधव नगरों का विकास सम्भव ही नहीं था। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो व्यापार के भी प्रसिद्ध केन्द्र थे। दोनों नगर परस्पर
औद्योगिक विकास - (February 2023)
सिंधु घाटी सभ्यताः इस काल के लोग उद्योग एवं व्यापार में भी रुचि लेते थे। इस सभ्यता में अनेक प्रकार के उद्योगों का विकास हो गया था, जो इनके विज्ञान एवं तकनीकी की उन्नति को दर्शाता है। सुक्कुर एवं रोजदी में पत्थर के उपकरण बनाने के कारखाने के साक्ष्य मिले
आधुनिक भारत में कृषि का व्यावसायीकरण - (February 2023)
भारतीय कृषि का व्यावसायीकरण 1813 के बाद शुरू हुआ, जब इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति का तेजी से प्रसार हो रहा था। कृषि के व्यावसायीकरण से केवल उन कृषि उत्पादों का उत्पादन हुआ, जिनकी या तो ब्रिटिश उद्योगों को आवश्यकता थी या यूरोपीय या अमेरिकी बाजार में अंग्रेजों को नकद वाणिज्यिक लाभ
भारत में कला का विकास
रंगमंच (Theater) - (February 2023)
रंगमंच का विकास सर्वप्रथम भारत में ही हुआ। ऋग्वेद के कतिपय सूत्रों में यम और यमी, पुरुरवा एवं उर्वशी आदि के कुछ संवाद हैं। भरत मुनि कृत नाट्यशास्त्र भारतीय रंगमंच पर प्रकाश डालने वाला सर्वप्रथम कृति है। नाट्यशास्त्र में मंडप कोटि की नाट्य शालाओं का उल्लेख मिलता है। अन्य संस्कृत ग्रंथों में
भारत की प्रमुख स्थानीय युद्ध कलाएं - (February 2023)
भारत की विभिन्न संस्कृतियों में प्राचीन समय से ही युद्ध कलाएं प्रचलित रही हैं। भारत में विद्यमान कुछ महत्वपूर्ण युद्व कलाएं निम्नलिखित हैः कलारीपयट्टू ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी ईस्वी के दौरान केरल में हुई थी। वर्तमान में यह केरल और तमिलनाडु
नृत्य कला - (February 2023)
ऋगवेद के अनेक श्लोकों में नृत्या शब्द का प्रयोग हुआ है। यजुर्वेद में भी नृत्य संबंधी सामग्री प्रचुर मात्र में उपलब्ध है। नृत्य को उस युग में व्यायाम के रूप में माना गया था। शरीर को अरोग्य रखने के लिये नृत्यकला का प्रयोग किया जाता था। पुराणों में भी नृत्य संबंधी
संगीत कला - (February 2023)
भारत में प्रागैतिहासिक काल से ही संगीत की समृद्ध परम्परा रही है। सिंधु घाटी की सभ्यता में संगीत माना जाता है कि संगीत का प्रारम्भ सिंधु घाटी की सभ्यता के काल में हुआ, जिसका साक्ष्य हमे नृत्य बाला की मुद्रा में कांस्य मूर्ति एवं नृत्य, नाटक और संगीत के देवता की
चित्रकला - (February 2023)
भारत में चित्रकला का इतिहास बहुत पुराना रहा है। पाषाण काल में ही मानव ने गुफा चित्रण करना शुरू कर दिया था। पाषाण कालीन चित्रकला भीमबेटका क्षेत्रों में कंदराओं और गुफाओं में मानव चित्रण के प्रमाण मिले हैं। इन चित्रों में शिकार, शिकार करते मानव समूहों, स्त्रियों तथा पशु-पक्षियों आदि को दीवारों
मूर्तिकला - (February 2023)
भारतीय मूर्तिकला आरम्भ से ही यथार्थ रूप लिए हुए हैं। भारतीय मूर्तियों में पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं से लेकर असंख्य देवी देवताओं को चित्रित किया गया है। पाषाण काल में भी मनुष्य अपने पाषाण उपकरणों को कुशलतापूर्वक काट-छांटकर या दबाव तकनीक द्वारा आकार देता था, परंतु भारत में मूर्तिकला अपने वास्तविक रूप
भित्ति चित्र - (February 2023)
भित्ति चित्र का अर्थ है, ऐसा चित्र जो दीवार पर बनाया गया हो। इनकी शुरुआत नव-प्रस्तर मानव के उन प्रयासों के साथ हुई, जब उसने गुफाओं की दीवारों पर प्राकृतिक रंगों से अपने जीवन से जुड़े चित्र बनाए। भारतीय भित्ति-चित्रों का इतिहास 2वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 8 वीं-10वीं शताब्दी ईस्वी
प्राचीन भारत में मृदभांड - (February 2023)
भारत में चौपानीमांडो से संसार में मृदभांड के प्रयोग के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। हड़प्पा काल के मृदभांड भारत में मृदभांड हड़प्पा काल से ही प्राप्त होने शुरू हो जाते हैं। इस काल में मिले मृदभांड को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है- सादे मृदभांड और चित्रित मृदभांड।
स्थापत्य का विकास
अभिलेख-शिलालेख-स्तंभलेख - (February 2023)
अशोक के अभिलेख अपने शासनकाल में चट्टानों और पत्थर के स्तंभों पर अशोक ने कई नैतिक, धार्मिक और राजकीय शिक्षा देते हुए लेख खुदवाए थे, जिन्हें अशोक के अभिलेख या अशोक के शिलालेख कहा जाता है। जेम्स प्रिसेंप ने प्रथम बार ब्राह्मी लिपि को सफलतापूर्वक पढ़ा। टील पेंथर ने अशोक का
मुगल कालीन स्थापत्य - (February 2023)
उत्तर भारत में दिल्ली सल्तनत के पश्चात मुगलों ने शासन किया था। मुगल काल को ‘द्वितीय क्लासिकल युग’ कहा जाता है। इस काल में पहली बार आकार एवं अलंकरण की विविधता का प्रयोग निर्माण के लिए पत्थर के लावा प्लास्टर एवं पच्चीकारी या पित्रडड्ढूरा का प्रयेाग किया गया। मुगलकालीन स्थापत्य
दिल्ली सल्तनतकालीन स्थापत्य - (February 2023)
सल्तनत काल में स्थापत्य कला के क्षेत्र में जिस शैली का विकास हुआ, वह भारतीय तथा इस्लामी शैलियों का सम्मिश्रण थी। इसलिए इस शैली को ‘इण्डो इस्लामिक’ शैली कहा गया। कुछ विद्वानों ने इसे ‘इण्डो-सरसेनिक’ शैली कहा है। फर्ग्यूसन महोदय ने इसे पठान शैली कहा है, किन्तु यह वास्तव में भारतीय
पल्लव, चालुक्य एवं चोल स्थापत्य - (February 2023)
पल्लवपल्लवों ने वास्तुकला को कन्दरा कला तथा काष्ठकला से मुक्त किया। चट्टानों को काटकर मंदिर बनाने की प्रक्रिया पल्लवों के काल में आरम्भ हुई। पल्लव कला को चार भागों में बांटा गया है- महेंद्र वर्मन शैलीः इस शैली में मंदिर मंडप आकार के होते थे, जिनके बरामदे स्तम्भ युक्त हैं। इन्हीं के समय
मंदिर निर्माण शैली - (February 2023)
भारत में मंदिर निर्माण की प्रक्रिया का आरंभ मौर्य काल से ही शुरू हो गया था, किंतु आगे चलकर उसमें सुधार हुआ और गुप्त काल में मंदिरों की विशेषताओं में वृद्धि देखी जाती है। भारत में मंदिरों का निर्माण मुख्यतः तीन शैलियों में किया जाता था, जो निम्नलिखित हैं- नागर शैली यह शैली
चैत्य, विहार एवं स्तूप - (February 2023)
बौद्ध और जैन दोनों ही धर्मों में पूजा-अर्चना के लिए चैत्य, विहारों एवं स्तूप का निर्माण किया जाता था। चैत्य एक प्रकार का पूजा कक्ष होता था, विहार निवास कक्ष और स्तूप बौद्ध प्रार्थना स्थल होता था। शवदाह के पश्चात् बचे हुए अवशेषों को भूमि में दबाकर उनके ऊपर जो समाधियां
गुहा स्थापत्य - (February 2023)
भारत की गुहा कला शैली अभूतपूर्व समृद्धि तथा विविधता से परिपूर्ण है। भारत में सर्वप्रथम मानव निर्मित गुफाओं का निर्माण दूसरी शताब्दी ई.पू. के आसपास हुआ माना जाता था। एक ओर भीमबेटका जैसी गुफाओं की विशेषता दैनिक जीवन के विषयों पर आधारित चित्रकारियां हैं; वहीं दूसरी ओर मौर्योत्तरकालीन गुहा स्थापत्य कला रीति-रिवाजों
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास
पारंपरिक चिकित्सा - (February 2023)
पारम्परिक चिकित्सा मानव पीढ़ियों द्वारा विकसित वे ज्ञान प्रणालियां होती हैं, जिनका प्रयोग आधुनिक चिकित्सा प्रणाली से भिन्न तरीके से शारीरिक व मानसिक रोगों की पहचान, रोकथाम, निवारण और इलाज करने के लिए किया जाता है। भारत में इसे अक्सर प्रथाओं और उपचारों जैसे कि योग, आयुर्वेद, सिद्ध के रूप
खगोल विज्ञान - (February 2023)
भारतीय खगोल विज्ञान का इतिहास चार हजार साल से अधिक पुराना है। भारतीय खगोल विज्ञान की शुरुआती जड़ें सिंधु घाटी सभ्यता या उससे पहले की अवधि की हो सकती है। वैदिक युग में खगोल विज्ञान भारतीय खगोल विज्ञान के इतिहास के कुछ शुरुआती संदर्भ ‘ऋग्वेद’ में पाए जा सकते हैं। प्राचीन भारतीय
गणित एवं ज्यामिति - (February 2023)
ज्यामिति ज्यामिति के बारे में सर्वप्रथम जानकारी भीमबेटका की गुफाओं से प्राप्त चित्रों से होता है। यहां से प्राप्त रेखांकित मानवाकृति तत्कालीन समय में ज्यामिति के उपयोग को दर्शाती है। हड़प्पा सभ्यताः ज्यामिति का ज्ञान हडप्पाकालीन संस्कृति के लोगों को भी था। हड़प्पा काल की नगर योजना से पता चलता है कि उस
प्राचीन काल में शल्य चिकित्सा एवं आयुर्वेद - (February 2023)
भारतीय चिकित्सा पद्धति के विषय में सर्वप्रथम लिखित ज्ञान ‘अथर्ववेद’ में मिलता है। आयुर्वेद में धन्वंतरि संप्रदाय और सुश्रुत संप्रदाय शल्य चिकित्सा के प्रतीक माने जाते हैं। वैदिक काल वैदिक काल में वैदिक पुजारी पूजा-पाठ के साथ-साथ आयुर्वेद चिकित्सा के माध्यम से वैद्य का काम भी किया करते थे। उस काल
सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन
ब्रिटिश कालीन रूढ़िगत प्रथा उन्मूलक कानून - (February 2023)
बंगाल सती विनियमन, 1829 इसे गवर्नर-जनरल की काउंसिल द्वारा पारित किया गया था। यह ब्रिटिश भारत में सती प्रथा पर रोक लगाने से सम्बंधित प्रथम विनियम था। पारित करने में योगदानः इस विनियम को पारित करने में तत्कालीन गवर्नर-जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक एवं राजा राममोहन राय का विशेष योगदान है। प्रावधानः सती
धार्मिक सुधार आंदोलन - (February 2023)
आर्य समाज एवं शुद्धि आंदोलन आर्य समाजः 1875 में दयानंद सरस्वती ने बंबई में आर्य समाज की स्थापना की थी। इसका उद्देश्य देश में व्याप्त धार्मिक और सामाजिक बुराइयों को दूर कर वैदिक धर्म की पुनः स्थापना करना था। दयानंद सरस्वती एक ईश्वर में विश्वास करते थे तथा इनके द्वारा ‘वेदों की ओर
प्रमुख समाज सुधारक एवं उनके कार्य - (February 2023)
19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारतीय समाज कठोर जातिगत बंधनों में जकड़ा हुआ था। ईस्ट इण्डिया कम्पनी की पाश्चात्य शिक्षा पद्धति से आधुनिक तत्कालीन युवा मन चिन्तनशील हो उठा तथा सभी लोग इस विषय पर सोचने के लिए मजबूर हुए। पाश्चात्य शिक्षा से प्रभावित लोगों ने हिन्दू सामाजिक रचना, धर्म, रीति-रिवाज
विद्रोह एवं आंदोलन
स्वतंत्रता संघर्ष की क्रांतिकारी गतिविधियां - (February 2023)
क्रांतिकारी आंदोलन का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था, लेकिन कालांतर में इसका प्रधान केन्द्र बंगाल बन गया। भारत के अन्य प्रांतों तथा विदेशों में भी भारतीय क्रांतिकारी सक्रिय थे। बंगाल में क्रांतिकारी आन्दोलन बंगाल के क्रांतिकारी नेता बरीन्द्र कुमार घोष और भूपेन्द्र नाथ दत्त थे। इन दोनों ने युगांतर तथा संध्या नामक
प्रमुख राष्ट्रीय आंदोलन - (February 2023)
स्वदेशी आन्दोलन बंगाल विभाजनः 20 जुलाई, 1905 को तत्कालीन वाइसराय लार्ड कर्जन के द्वारा बंगाल विभाजन का आज्ञापत्र जारी किया गया था। यह अंग्रेजों की ‘फूट डालो और शासन करो’ वाली नीति का ही एक अंग था। एक मुस्लिम बहुल प्रान्त का सृजन करने के उद्देश्य से ही भारत के बंगाल
जनजातीय आंदोलन - (February 2023)
कोल विद्रोह (1831-32) यह विद्रोह 1831 में छोटानागपुर में हुआ था। इस विद्रोह का प्रमुख कारण कोल आदिवासियों की जमीन गैर-आदिवासियों को दे देना था। इस आंदोलन के प्रमुख नेता बुद्धो भगत थे। इस विद्रोह का स्वरूप आर्थिक व राजनैतिक था। यह विद्रोह मुख्य रूप से रांची, हजारीबाग, पलामू, मानभूम और सिंह भूमि
किसान आंदोलन - (February 2023)
ब्रिटिश की औपनिवेशिक नीति के तहत विभिन्न आर्थिक, सामाजिक एवं प्रशासनिक नीतियों ने भारत में किसान समूह को व्यापक तौर पर प्रभावित किया। इसके परिणामस्वरूप कृषकों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आन्दोलन किया। किसानों पर होने वाले अत्याचार, अवैध करारोपण, अवैतनिक श्रम, उच्च लगान, मनमानी बेदखली एवं भू-राजस्व आदि के कारण
संवैधानिक विकास
1947 का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम - (February 2023)
इस अधिनियम ने भारत को एक स्वतंत्र और संप्रभु राज्य घोषित किया। वायसराय भारत और प्रांतीय राज्यपालों को संवैधानिक के रूप में नामित किया गया। इसने संविधान सभा को दोहरे कार्य (संविधान और विधायी) सौंपे और इस डोमिनियन विधायिका को एक संप्रभु निकाय घोषित
1935 का भारत सरकार अधिनियम - (February 2023)
इसमें प्रांतों और रियासतों को इकाइयों के रूप में शामिल करके एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना के लिए प्रावधान किया गया था, हालांकि यह संघ कभी अस्तित्व में नहीं आया। इसमें संघीय सूची, प्रांतीय सूची और समवर्ती सूची बनाई गई। अवशिष्ट शक्तियां गवर्नर-जनरल में निहित थीं। अधिनियम ने प्रांतों
1919 का भारत सरकार अधिनियम - (February 2023)
इसे मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार के नाम से भी जाना जाता है। इसके माध्यम से केंद्रीय विषयों का सीमांकन किया गया और उन्हें प्रांतीय विषयों से अलग किया गया। प्रांतीय विषयों में द्वैध शासन की योजना और ‘द्वैध शासन’ की शुरुआत की गई थी। आरक्षित विषयों पर राज्यपाल विधान परिषद के प्रति
1909 का भारतीय परिषद अधिनियम - (February 2023)
इसे मॉर्ले-मिंटो सुधार के रूप में भी जाना जाता है। इसने विधान परिषदों के लिए प्रत्यक्ष चुनाव की शुरुआत की। इसने सेंट्रल लेजिस्लेटिव काउंसिल का नाम बदलकर इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल कर दिया। केंद्रीय विधान परिषद के सदस्यों की संख्या 16 से बढ़ाकर 60 कर दी गई। ‘पृथक निर्वाचक मंडल’ की
1892 का भारत परिषद अधिनियम - (February 2023)
इसके माध्यम से अप्रत्यक्ष चुनाव की शुरुआत की गई और विधान परिषदों का आकार बढ़ाया गया। विधान परिषदों के कार्यों का विस्तार किया और उन्हें बजट पर चर्चा करने तथा कार्यपालिका से प्रश्नों को संबोधित करने की शक्ति प्रदान की
1861 का भारतीय परिषद अधिनियम - (February 2023)
इसने वायसराय की कार्यकारी और विधायी परिषद जैसी संस्थाओं में पहली बार भारतीय प्रतिनिधित्व की शुरुआत की, जिसके माध्यम से 3 भारतीयों ने विधान परिषद में प्रवेश किया। केंद्र और प्रांतों में विधान परिषदों की स्थापना की गई। वायसराय की कार्यकारी परिषद में विधायी कार्यों का संचालन करते समय गैर-आधिकारिक
1858 का भारत सरकार अधिनियम - (February 2023)
इसके माध्यम से कंपनी के शासन को भारत में क्राउन के शासन द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था। इसके तहत भारत में बोर्ड ऑफ कंट्रोल और कोर्ट ऑफ डायरेक्टर को समाप्त कर दिया गया। अतः द्वैध शासन समाप्त हो गया। ब्रिटिश साम्राज्ञी की ओर से भारतीय प्रशासन का संचालन राज्य सचिव
1853 का चार्टर अधिनियम - (February 2023)
इसके माध्यम से गवर्नर-जनरल की परिषद के विधायी और कार्यकारी कार्यों को अलग कर दिया गया। इस अधिनयम के अंतर्गत पहली बार भारतीय केंद्रीय विधान परिषद् में स्थानीय प्रतिनिधित्व प्रारंभ किया गया था। केंद्रीय विधान परिषद में 6 सदस्य को शामिल किया गया। छः में से चार सदस्य मद्रास,
1833 का चार्टर अधिनियम - (February 2023)
इसके माध्यम से बंगाल के गवर्नर-जनरल को भारत का गवर्नर-जनरल कहा जाने लगा। भारत के प्रथम गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक बने। यह अधिनियम ब्रिटिश भारत में केंद्रीकरण की दिशा में अंतिम कदम था। अधिनियम के रूप में भारत के लिए एक केंद्रीय विधायिका की शुरुआत ने बंबई और मद्रास
1813 का चार्टर अधिनियम - (February 2023)
इसके माध्यम से कंपनी का भारतीय व्यापार पर एकाधिकार समाप्त कर दिया गया। ईसाई धर्म प्रचारकों को भारत में धर्म प्रचार करने की अनुमति प्रदान की गई। सभी ब्रिटिश व्यापारियों को भारत से व्यापार करने की छूट प्रदान कर दी गई। कंपनी की आय से भारतीयों की शिक्षा
1784 का पिट्स इंडिया एक्ट - (February 2023)
इस एक्ट के अंतर्गत भारत में कंपनी के अधीन क्षेत्र को पहली बार ब्रिटिश आधिपत्य का क्षेत्र कहा गया। इस अधिनियम के माध्यम से ब्रिटिश सरकार का कंपनी के कार्यों और प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण हो गया। इसके द्वारा बोर्ड ऑफ कण्ट्रोल की स्थापना की गयी, जिसके माध्यम से
1773 का रेग्युलेटिंग एक्ट - (February 2023)
इस अधिनियम के माध्यम से ब्रिटिश सरकार द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने की दिशा में प्रथम प्रयास किया गया था। इसके द्वारा बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जनरल बना दिया गया। मद्रास तथा बम्बई के गवर्नर बंगाल के गवर्नर के अधीन रखा
तालिकावार परीक्षोपयोगी तथ्य
प्रमुख साहित्यिक कृतियां एवं समाचार पत्र - (February 2023)
समाचार पत्र एवं साहित्यिक कृतियां रचनाकार महाभाष्य पतंजलि मुद्राराक्षस विशाखदत्त मालविकाग्निमित्रम्, अभिज्ञानशाकुन्तलम, विक्रमोर्यवशियम्र एवं रघुवंशम कालिदास राजतरंगणी कल्हण
प्रमुख युद्ध एवं संधि - (February 2023)
महत्वपूर्ण युद्ध विवरण कलिंग का युद्ध (261 ईसा पूर्व) अशोक ने अपने साम्राज्य में विस्तार एवं दक्षिण-पूर्वी देशों से सम्बन्ध बनाने हेतु कलिंग का युद्ध किया था। यह 261 ईसा पूर्व में अशोक के शासन के 8वें वर्ष
समिति, आयोग एवं प्रस्ताव - (February 2023)
समिति, आयोग एवं प्रस्ताव महत्वपूर्ण विवरण लॉटरी समिति (1817) इसने कलकत्ता में नगर नियोजन के कार्य में सरकार की सहायता की। इस समिति ने सार्वजनिक लॉटरी के माध्यम से शहर में सुधार के लिए धन जुटाया था। लॉटरी समिति ने कलकत्ता को एक व्यापक तस्वीर प्रदान करने के लिए एक नए शहर के नक्शे का
गवर्नर जनरल एवं वायसराय तथा उनके कार्य - (February 2023)
गवर्नर जनरल एवं वायसराय महत्वपूर्ण कार्य एवं कार्यकाल के दौरान महत्वपूर्ण गतिविधियां वॉरेन हेस्टिंग्स (1773-1785) यह बंगाल के प्रथम गवर्नर जनरल था। इसके समय में रेग्युलेटिंग एक्ट के तहत 1774 में कलकत्ता में उच्च न्यायालय की स्थापना की गयी।
कांग्रेस के महत्वपूर्ण अधिवेशन - (February 2023)
सत्र वर्ष, स्थान और अध्यक्ष महत्वपूर्ण विवरण 1 1885 बॉम्बे, डब्ल्यू. सी. बनर्जी गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन आयोजित हुआ था। इसमें कांग्रेस ने 9 प्रस्ताव पारित किये, जिनमें ब्रिटिश नीतियों
आधुनिक भारत में विभिन्न संगठन एवं उनके नेता - (February 2023)
प्रमुख संगठन महत्वपूर्ण विवरण लैंडहोल्डर्स सोसायटी इसे जमींदारी एसोसिएशन के नाम से भी जाना जाता है, जिसे आधुनिक भारत का पहला राजनीतिक संघ माना जाता है। इसे औपचारिक रूप से मार्च 1838 में कलकत्ता में शुरू किया गया था। इसकी स्थापना बिहार बंगाल तथा उड़ीसा के जमींदारों के हितों की रक्षा के लिए की