आर्थिक समीक्षा 2021-22

केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी, 2022 को संसद में आर्थिक समीक्षा 2021-22 पेश की। इस वर्ष की आर्थिक समीक्षा का मूल विषय ‘त्वरित दृष्टिकोण’ (Agile approach)है, जिसे कोविड-19 महामारी की स्थिति में भारत के आर्थिक क्रियाकलाप के माध्यम से कार्यान्वित किया गया है।

1. अर्थव्यवस्था की स्थिति
  • 2020-21 में 7.3% की गिरावट के बाद 2021-22 में भारतीय अर्थव्यवस्था के 9.2% (पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार) बढ़ने का अनुमान है। 2022-23 में रियल टर्म जीडीपी की विकास दर 8.8.5% रहने का अनुमान है।
  • आर्थिक सुधारों को समर्थन देने के लिए आने वाले साल में वित्तीय प्रणाली के साथ निजी क्षेत्र के निवेश में बढ़ोतरी की संभावना है।
  • 2022-23 के लिए यह अनुमान विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक की क्रमशः 8.7% और 7.5% रियल जीडीपी विकास की संभावना के अनुरूप है।
  • आईएमएफ के ताजा विश्व आर्थिक परिदृश्य अनुमान के तहत, 2021-22 और 2022-23 में भारत की रियल जीडीपी विकास दर 9% और 2023-24 में 7.1% रहने की संभावना है, जिससे भारत अगले तीन साल तक दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था बनी रहेगी।
  • 2021-22 में कृषि और संबंधित क्षेत्रें में 3.9% उद्योग में 11.8% और सेवा क्षेत्र में 8.2% की वृद्धि का अनुमान है।
  • मांग (Demand side) की बात करें तो 2021-22 में खपत 7.0%, सकल स्थायी पूंजी निर्माण 15%, निर्यात 16.5% और आयात 29.4% की दर से बढ़ने का अनुमान है।
  • बृहद आर्थिक स्थायित्व संकेतकों से पता चलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2022-23 की चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है।
  • उच्च विदेशी मुद्रा भंडार, टिकाऊ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और निर्यात में वृद्धि के संयोजन से 2022-23 में वैश्विक स्तर पर तरलता में संभावित कमी के खिलाफ पर्याप्त समर्थन देने में सहायता मिलेगी।
  • 2020-21 में लागू पूर्ण लॉकडाउन की तुलना में ‘दूसरी लहर’का आर्थिक प्रभाव कम रहा, हालांकि इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव काफी गंभीर (more severe) था।
  • भारत सरकार की विशेष प्रतिक्रिया में समाज के कमजोर तबकों और कारोबारी क्षेत्र को प्रभावित होने से बचाने के लिए सुरक्षा जाल तैयार करने, विकास दर को गति देने के लिए पूंजीगत व्यय में खासी बढ़ोतरी और टिकाऊ दीर्घकालिक विस्तार के लिए आपूर्ति के क्षेत्र में सुधार शामिल रहे।
  • सरकार की लचीली और बहुस्तरीय प्रतिक्रिया आंशिक रूप से ‘त्वरित’रूपरेखा (Agile framework) पर आधारित है, जिसमें बेहद अनिश्चिता के माहौल में खामियों को दूर करने पर जोर दिया गया और 80 हाई फ्रीक्वेंसी इंडीकेटर्स (High Frequency Indicators) का इस्तेमाल किया गया।
2. राजकोषीय घटनाक्रम (Fiscal Developments)
  • 2021-22 बजट अनुमान (2020-21 के अनंतिम आंकड़ों की तुलना में) 9.6% की अनुमानित वृद्धि की तुलना में अप्रैल-नवम्बर, 2021 के दौरान केन्द्र सरकार की राजस्व प्राप्तियां 67.2% तक बढ़ गईं।
  • सालाना आधार पर अप्रैल-नवम्बर, 2021 के दौरान सकल कर-राजस्व में 50% से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई। यह 2019-20 के महामारी से पहले के स्तरों की तुलना में भी बेहतर प्रदर्शन है।
  • अप्रैल-नवम्बर, 2021 के दौरान बुनियादी ढांचे से जुड़े क्षेत्रें पर जोर के साथ पूंजी व्यय में सालाना आधार पर 13.5% की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
  • टिकाऊ राजस्व संग्रह और एक लक्षित व्यय नीति से अप्रैल-नवम्बर, 2021 के दौरान राजकोषीय घाटे को बजट अनुमान के 46.2% के स्तर पर सीमित रखने में सफलता मिली।
  • कोविड-19 के चलते उधारी बढ़ने के साथ 2020-21 में केन्द्र सरकार का कर्ज बढ़कर जीडीपी का 59.3% हो गया, जो 2019-20 में जीडीपी के 49.1% के स्तर पर था। हालांकि अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ इसमें गिरावट आने का अनुमान है।
3. वैदेशिक क्षेत्र (External Sectors)
  • भारत के वाणिज्यिक निर्यात एवं आयात ने दमदार वापसी की और चालू वित्त वर्ष के दौरान यह कोविड से पहले के स्तरों से ज्यादा हो गया।
  • पर्यटन से कमजोर राजस्व के बावजूद प्राप्तियों और भुगतान के महामारी से पहले के स्तरों पर पहुंचने के साथ सकल सेवाओं (Net sevices) में अच्छी बढ़ोतरी दर्ज की गई।
  • विदेशी निवेश में निरंतर बढ़ोतरी, सकल बाह्य वाणिज्यिक उधारी व बैंकिंग पूंजी में सुधार और अतिरिक्त विशेष निकासी अधिकार (एसडीआर) आवंटन के दम पर 2021-22 की पहली छमाही में सकल पूंजी प्रवाह बढ़कर 65-6 बिलियन डॉलर हो गया।
  • सितम्बर 2021 के अंत तक एक साल पहले के 556-8 बिलियन डॉलर की तुलना में भारत का वैदेशिक कर्ज बढ़कर 593-1 बिलियन डॉलर हो गया। इससे आईएमएफ द्वारा अतिरिक्त एसडीआर आवंटन के साथ ही ज्यादा वाणिज्यिक उधारी के संकेत मिलते हैं।
  • 2021-22 की पहली छमाही में विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन डॉलर से ऊपर निकल गया और यह 31 दिसम्बर, 2021 तक 633-6 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुंच गया।
  • नवम्बर 2021 के अंत तक चीन, जापान और स्विट्जरलैंड के बाद भारत चौथा सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडार वाला देश था।
4. मौद्रिक प्रबंधन और वित्तीय मध्यस्थता (Monetary Management and Financial Intermediation)

प्रणाली में तरलता अधिशेष

  • 2021-22 में रेपो दर 4% पर बनी रही।
  • भारतीय रिजर्व बैंक ने और अधिक तरलता प्रदान करने के लिए जी-सेक अधिग्रहण कार्यक्रम (G-Sec Acquisition Programme) तथा विशेष दीर्घकालिक रेपो संचालन (Long-Term Repo Operations) जैसे विभिन्न कदम उठाए हैं।

वाणिज्यिक बैंकिंग प्रणाली द्वारा अच्छी तरह महामारी के आर्थिक झटके को दूर कर दिया गया

  • 2021-22 में वार्षिक आधार पर ऋण वृद्धि अप्रैल 2021 के 5.3% से बढ़कर 31 दिसंबर, 2021 तक 9.2% रही।
  • अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) का सकल अनुत्पादक अग्रिम अनुपात (Gross Non-Performing Advances ratio) 2017-18 अंत के 11.2% से घटकर सितंबर 2021 के अंत में 6.9% हो गया।
  • समान अवधि के दौरान शुद्ध अनुत्पादक अग्रिम अनुपात (Net Non-Performing Advances ratio) 6% से घटकर 2.2% हो गया।
  • अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का पूंजी-जोखिम भारांक परिसंपत्ति अनुपात (Capital to risk-weighted asset ratio) 2013-14 के 13% से बढ़कर सितंबर 2021 के अंत में 16.54% रहा।
  • सितंबर 2021 में समाप्त होने वाली अवधि के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए परिसंपत्तियों पर रिटर्न और इक्विविटी पर रिटर्न सकारात्मक बना रहा।

पूंजी बाजारों के लिए असाधारण वर्ष

  • अप्रैल-नवंबर, 2021 में 75 प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) से 89,066 करोड़ रुपये उगाहे गए, जो पिछले एक दशक के किसी भी वर्ष में सबसे अधिक है।
  • प्रमुख उभरती बाजार अर्थव्यवस्था में भारतीय बाजारों ने अप्रैल-दिसंबर, 2021 में समकक्ष बाजारों से अच्छा प्रदर्शन किया।
5. कीमतें और मुद्रास्फीति (Prices and Inflation)

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-संयुक्त मुद्रास्फीति

  • औसत हेडलाइन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-संयुक्त मुद्रास्फीति 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) में सुधरकर 5-2% हुई, जबकि 2020-21 की इसी अवधि में यह 6.6% थी।
  • खुदरा स्फीति में गिरावट खाद्य मुद्रास्फीति में सुधार के कारण आई।
  • 2021-22 (अप्रैल से दिसंबर) में औसत खाद्य मुद्रास्फीति 2.9% के निम्न स्तर पर रही, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 9.1% थी।
  • वर्ष के दौरान प्रभावी आपूर्ति प्रबंधन ने अधिकतर आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित रखा।
  • दालों और खाद्य तेलों में मूल्य वृद्धि नियंत्रित करने के लिए सक्रिय कदम उठाए गए।
  • केंद्रीय उत्पाद शुल्क में कमी और बाद में अधिकांश राज्यों द्वारा मूल्य वर्धित कर (VAT) में कटौती से पेट्रोल और डीजल की कीमतों को कम करने में मदद मिली।

थोक मूल्य सूचकांक (WPI) पर आधारित थोक मुद्रास्फीति

  • थोक मूल्य सूचकांक (WPI) पर आधारित थोक मुद्रास्फीति 2021-22 (अप्रैल से दिसंबर) के दौरान 12.5% बढ़ी। ऐसा इन कारणों से हुआ- पिछले वर्ष में निम्न आधार, आर्थिक गतिविधियों में तेजी, कच्चे तेल और अन्य आयातित वस्तुओं की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तेज वृद्धि और उच्च माल ढुलाई लागत।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-संयुक्त (सीपीआई-सी) मुद्रास्फीति तथा थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित थोक मुद्रास्फीति के बीच अंतर

  • मई 2020 में यह अंतर शीर्ष 9.6% अंक पर रहा। लेकिन इस वर्ष खुदरा मुद्रास्फीति के दिसंबर 2021 के थोक मुद्रास्फीति से 8% अंक नीचे आने से इस अंतर में उलटफेर हुआ।
  • अंतर इन कारणों से हुआ था- आधार प्रभाव (base effect) के कारण अंतर, दो सूचकांकों के दायरे और कवरेज में अंतर, मूल्य संग्रह, कवर की गई वस्तुएं, कमोडिटी (वस्तु) भार में अंतर और आयातित कच्चे मालों की कीमत ज्यादा होने के कारण डब्ल्यूपीआई आधारित मुद्रास्फीति का संवेदी हो जाना।
  • डब्ल्यूपीआई में आधार प्रभाव की क्रमिक समाप्ति से सीपीआई-सी तथा डब्ल्यूपीआई में अंतर कम होने की आशा है।
6. संधारणीय विकास और जलवायु परिवर्तन (Sustainable Development and Climate Change)
  • नीति आयोग एसडीजी इंडिया सूचकांक तथा डैशबोर्ड पर भारत का समग्र स्कोर 2020-21 में सुधरकर 66 हो गया, जबकि यह 2019-20 में 60 तथा 2018-19 में 57 था।
  • फ्रंट रनर्स (65-99 स्कोर) की संख्या 2020-21 में बढ़कर 22 राज्यों तथा केन्द्र-शासित प्रदेशों तक हो गई, जो संख्या 2019-20 में 10 थी।
  • नीति आयोग पूर्वोत्तर क्षेत्र जिला एसडीजी सूचकांक 2021-22 में पूर्वोत्तर भारत में 64 जिले फ्रंट रनर्स तथा 39 जिले परफॉर्मर रहे।
  • भारत, विश्व में दसवां सबसे बड़ा वन क्षेत्र वाला देश है।
  • 2010 से 2020 के दौरान वन क्षेत्र वृद्धि के मामले में 2020 में भारत का विश्व में तीसरा स्थान रहा।
  • वर्ष 2020 में भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 24% वनों से आच्छादित रहा, जो विश्व के कुल वन क्षेत्र का 2% है।
  • अगस्त, 2021 में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2021 अधिसूचित किए गए, जिसका उद्देश्य 2022 तक सिंगल यूज प्लास्टिक को समाप्त करना है।
  • प्लास्टिक पैकेजिंग के लिए विस्तारित उत्पादक दायित्व पर प्रारूप विनियमन अधिसूचित किया गया है।
  • गंगा तथा उसकी सहायक नदियों के तटों पर अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों की अनुपालन स्थिति 2017 के 39% से सुधर कर 2020 में 81% हो गई।
  • उत्सर्जित अपशिष्ट में 2017 के 349-13 मिलियन लीटर दैनिक (एमएलडी) से 2020 में 280-20 मिलियन लीटर दैनिक (एमएलडी) की कमी आई है।
  • प्रधानमंत्री ने नवंबर 2021 में ग्लास्गो में आयोजित 26वें पक्षकार सम्मेलन (COP-26) के राष्ट्रीय वक्तव्य के हिस्से के रूप में उत्सर्जन मे कमी लाने के लिए 2030 तक प्राप्त किए जाने वाले महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की घोषणा की।
  • प्रधानमंत्री ने एक शब्द ‘लाइफ’यानी पर्यावरण के लिए जीवनशैली (Lifestyle for Environment: LIFE) प्रारंभ करने की आवश्यकता महसूस करते हुए बिना सोचे-समझे तथा विनाशकारी खपत (mindless and destructive consumption) के बदले सोचपूर्ण तथा विचारपूर्वक उपयोग (mindful and deliberate utilçation) करने का आग्रह किया है।
7. कृषि और खाद्य प्रबंधन (Agriculture and Food Management)
  • पिछले दो वर्षों में कृषि क्षेत्र ने तेजी से वृद्धि का अनुभव किया है। कृषि क्षेत्र के सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) के देश के सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में महत्वपूर्ण 18.8% (2021-22) के योगदान के साथ कृषि क्षेत्र ने वर्ष 2020-21 में 3.6% की वृद्धि और 2021-22 में 3.9% की वृद्धि दर्ज की है।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नीति का उपयोग फसल विविधिकरण को प्रोत्साहित करने के लिए किया जा रहा है।
  • 2014 की स्थिति आकलन सर्वेक्षण (Situation Assessment Survey) रिपोर्ट की तुलना में नवीनतम स्थिति आकलन सर्वेक्षण में फसल उत्पादन से शुद्ध प्राप्तियों (Net receipts) में 22.6% की वृद्धि हुई।
  • पशुपालन, डेयरी तथा मत्स्यपालन सहित संबंधित क्षेत्र तेजी से उच्च वृद्धि वाले क्षेत्र (high growth sector) के रूप में तथा कृषि क्षेत्र में सम्पूर्ण वृद्धि के प्रमुख प्रेरक के रूप में उभर रहे हैं।
  • 2019-20 में समाप्त होने वाले पिछले पांच वर्षों में पशुधन क्षेत्र 8.15% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (Compound annual growth rate) पर बढ़ा रहा है।
  • पशुधन क्षेत्र कृषि परिवारों के समूहों में आय का एक स्थिर स्रोत रहा है, जिसका उनकी औसत मासिक आय में लगभग 15% का योगदान है।
  • अवसंरचना विकास, रियायती परिवहन तथा सूक्ष्म खाद्य उद्यमों (micro food enterprises) के औपचारीकरण के लिए समर्थन जैसे विभिन्न उपायों के माध्यम से सरकार खाद्य प्रसंस्करण को सहायता देती है। भारत विश्व के सबसे बड़े खाद्य प्रबंधन कार्यक्रमों में से एक को चलाता है।
  • सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से खाद्य सुरक्षा नेटवर्क कवरेज का और अधिक विस्तार किया है।
8. उद्योग एवं अवसंरचना (Industry and Infrastructure)
  • अप्रैल-नवम्बर, 2021 के दौरान औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) बढ़कर 17.4% (वर्ष दर वर्ष) हो गया। यह अप्रैल-नवम्बर, 2020 में (-)15.3% था।
  • भारतीय रेलवे के लिए पूंजीगत व्यय 2009-2014 के दौरान 45,980 करोड़ रुपये के वार्षिक औसत से बढ़कर 2020-21 में 155,181 करोड़ रुपये हो गया और 2021-22 में इसे 215,058 करोड़ रुपये तक बढ़ाने का बजट रखा गया है, इस प्रकार इसमें 2014 के स्तर की तुलना में पांच गुना बढ़ोतरी हुई है।
  • वर्ष 2020-21 में प्रतिदिन सड़क निर्माण की सीमा को बढ़ाकर 36.5 किलोमीटर प्रतिदिन कर दिया गया है, जो 2019-20 में 28 किलोमीटर प्रतिदिन थी, इस प्रकार इसमें 30.4% की बढ़ोतरी दर्ज हुई है।
  • बड़े कॉरपोरेट के बिक्री अनुपात से निवल लाभ (Net profit to sales ratio of large corporates) वर्ष 2021-22 की जुलाई-सितम्बर तिमाही में महामारी के बावजूद 10.6% के सर्वकालिक उच्चस्तर पर पहुंच गया है। (आरबीआई अध्ययन)
  • उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के शुभारंभ से लेनदेन लागत घटाने और व्यापार को आसान बनाने के कार्य में सुधार लाने के उपायों के साथ-साथ डिजिटल और वस्तुगत दोनों बुनियादी ढांचे को बढ़ावा मिला है, जिससे आर्थिक सुधार की गति में मदद मिलेगी।
9. सेवाएं (Services)
  • 2021-22 की जुलाई-सितंबर तिमाही में सेवाओं का सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) महामारी-पूर्व स्तर को पार कर गया_ हालाँकि, व्यापार, परिवहन आदि जैसे संपर्क गहन क्षेत्रें का जीवीए अभी भी पूर्व-महामारी स्तर से नीचे है।
  • समग्र सेवा क्षेत्र जीवीए में 2021-22 में 8.2% की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।
  • अप्रैल-दिसम्बर, 2021 के दौरान रेल मालभाड़ा ने पूर्व-महामारी स्तर को पार कर लिया है, जबकि हवाई मालभाड़ा और बंदरगाह यातायात लगभग अपने पूर्व-महामारी स्तरों तक पहुंच गये हैं।
  • वर्ष 2021-22 की पहली छमाही के दौरान सेवा क्षेत्र ने 16.7 बिलियन डॉलर से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्राप्त किया, जो भारत में कुल एफडीआई प्रवाह का लगभग 54% है।
  • आईटी-बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट’सेवा राजस्व 2020-21 में 194 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुंच गया। इस अवधि के दौरान इस क्षेत्र में 1-38 लाख कर्मचारी शामिल किए गए।
  • प्रमुख सरकारी सुधारों में आईटी-बीपीओ क्षेत्र में टेलिकॉम विनियमों को हटाना और निजी क्षेत्र के दिग्गजों के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र को खोलना शामिल है।
  • सेवा निर्यात ने 2020-21 की जनवरी-मार्च तिमाही में पूर्व-महामारी स्तर को पार कर लिया और इसमें 2021-22 की पहली छमाही में 21.6% की वृद्धि हुई। सॉफ्रटवेयर और आईटी सेवा निर्यात के लिए वैश्विक मांग से इसमें मजबूती आई है।
  • भारत अमेरिका और चीन के बाद विश्व में तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम बन गया है। नये मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप्स की संख्या 2021-22 में बढ़कर 14 हजार से अधिक हो गई है, जो 2016-17 में केवल 733 थी।
  • 44 भारतीय स्टार्ट-अप्स ने 2021 में यूनिकॉर्न दर्जा हासिल किया इससे यूनिकॉर्न स्टार्ट-अप्स की कुल संख्या 83 हो गई है और इनमें से अधिकांश सेवा क्षेत्र में हैं।
10. सामाजिक अवसंरचना, रोजगार और मानव विकास (Social Infrastructure, Employment and Human Development)
  • 16 जनवरी, 2022 तक कोविड-19 टीके की 156.76 करोड़ खुराक दी जा चुकी हैं।
  • अर्थव्यवस्था में सुधार से रोजगार संकेतक (employment indicators) वर्ष 2020-21 की अंतिम तिमाही के दौरान वापस पूर्व-महामारी स्तर पर आ गए हैं।
  • मार्च 2021 तक प्राप्त तिमाही आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार महामारी के कारण प्रभावित शहरी क्षेत्र में रोजगार लगभग पूर्व महामारी स्तर तक वापस आ गये हैं।
  • कर्मचारी भविष्य निधि संगठन आंकड़ों के अनुसार दूसरी कोविड लहर के दौरान रोजगारों का औपचारीकरण जारी रहा। कोविड की पहली लहर की तुलना में रोजगारों के औपचारीकरण पर कोविड का प्रतिकूल प्रभाव कम रहा है।
  • 2020-21 की तुलना में वर्ष 2021-22 में सामाजिक सेवा क्षेत्र के व्यय आवंटन में 9.8% की वृद्धि दर्ज की गई।
  • सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में केंद्र और राज्यों द्वारा सामाजिक सेवाओं (स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य) पर व्यय 2014-15 में 6.2% से बढ़कर 2021-22 (बजट अनुमान) में 8.6% हो गया।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 2019-21 में घटकर 2 हो गई, जो 2015-16 में 2.2 थी।
  • शिशु मृत्यु दर (आईएमआर), पांच साल से कम शिशुओं की मृत्यु दर में कमी हुई है और अस्पतालों/प्रसव केन्द्रों में शिशुओं के जन्म में 2015-16 की तुलना में 2019-21 में सुधार हुआ है।
  • अगस्त 2019 में जल जीवन मिशन के आरंभ होने के बाद से 5.5 करोड़ से अधिक घरों को नल जल आपूर्ति उपलब्ध कराई गई है।
  • जल जीवन मिशन के तहत 83 जिले ‘हर घर जल’जिले बन गए हैं।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार बेहतर स्वच्छता सुविधा का उपयोग करने वाले घरों की आबादी 2015-16 के 48.5% से बढ़कर 2019-21 में 70.2% हो गई।
  • महामारी के दौरान ग्रामीण क्षेत्रें में असंगठित श्रम के लिए बफर उपलब्ध कराने हेतु महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमएनआरईजीएस) के लिए निधियों का अधिक आवंटन।
11. उपग्रह तथा मानचित्रण द्वारा विकास की निगरानी (Tracking Development through Satellite Images and Cartography)
  • इस वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण का एक महत्वपूर्ण विषय आर्थिक गतिविधि एवं विकास पर नजर रखने के लिए आंकड़ों तथा सूचना के नए रूपों का उपयोग है। लंबी अवधि के विकास पर नजर रखने, तुलना करने और दर्शाने के लिए भू-स्थानिक आंकड़े और मानचित्रण तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है।
  • 2012 और 2021 के बीच भारत के रात्रि-समय चमक (Light-time luminosity) संबंधी आंकड़ों की तुलना की गई है।
  • भारत में राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क के विस्तार को भी दर्शाया गया है। भारत का राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क अगस्त 2021 तक बढ़कर 1,40,152 किलोमीटर हो गया है, जो कि अगस्त, 2011 में 71,772 किलोमीटर था।
  • 2016 और 2021 के बीच भारत में संचालित हवाई अड्डों की संख्या की तुलना की गई है। देश में संचालित हवाई अड्डों (उड़ान योजना-पूर्व) की संख्या दिसम्बर 2021 तक बढ़कर 130 हो गई, जो कि नवम्बर, 2016 में 62 थी।
  • आर्थिक गतिविधियों और विकास पर नजर रखने के लिए शहरों के मेट्रो-रेल नेटवर्क का भी प्रयोग किया जा सकता है।
  • सर्वेक्षण में वार्षिक जल भंडारण, विभिन्न शहरों के जनसंख्या घनत्व, खरीफ फसल चक्र और बंजर भूमि के पुनर्नियोजन (Wasteland redeployment) की भी तुलना की गई है।

आर्थिक परिदृश्य