जलवायु प्रत्यास्थ कृषि खाद्य असुरक्षा से निपटने के लिए आवश्यक
वैश्विक स्तर पर जलवायु एवं मौसम परिवर्तनशील हो रहा है, कभी अतिवृष्टि तो कभी अनावृष्टि; कभी अत्यधिक ठंड तो कभी भीषण गर्मी। यह जलवायवीय अनिश्चितता संपूर्ण मानव समुदाय के समझ विभिन्न चुनौतियां उत्पन्न कर रहे है| ऐसे में सर्वाधिक विकराल समस्या जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली खाद्य असुरक्षा की है। परिवर्तनशील जलवायु को देखते हुए अब कृषि क्षेत्र में भी परिवर्तन वर्तमान समय की मांग है। ऐसे में ‘जलवायु प्रत्यास्थ कृषि’ (Climate Resilient Agriculture) जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाले खाद्य असुरक्षा के संकट का एक समाधान हो सकती है।
- भारत विश्व की 5वीं बड़ी अर्थव्यवस्था है और जलवायु ....
क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |
पूर्व सदस्य? लॉग इन करें
वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |
संबंधित सामग्री
- 1 भारत की पाण्डुलिपि धरोहर प्राचीन ज्ञान का अमूल्य भंडार - संपादकीय डेस्क
- 2 ब्लू इकॉनमी व सतत समुद्री प्रगति भारत का दृष्टिकोण एवं रणनीति - आलोक सिंह
- 3 सतत मृदा प्रबंधन खाद्य सुरक्षा, जलवायु और जीवन का आधार - आलोक सिंह
- 4 माइक्रोप्लास्टिक संकट : मानव स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिक तंत्र के लिए अदृश्य खतरा
- 5 भारत के परिवहन क्षेत्र का विकार्बनीकरण
- 6 ब्रिक्स एवं वैश्विक दक्षिण - आलोक सिंह
- 7 भारत की दुर्लभ भू-संपदा का समुचित दोहन: एक रणनीतिक अनिवार्यता - नुपुर जोशी
- 8 प्रौद्योगिकीय आत्मनिर्भरता: भारत की भावी संवृद्धि का एक प्रमुख स्तंभ - संपादकीय डेस्क
- 9 कृत्रिम बुद्धिमत्ता का पर्यावरणीय प्रभाव : नवाचार और धारणीयता का संतुलन
- 10 भारत की वैश्विक रणनीतिक साझेदारियां