शिक्षा का सही उद्देश्य तथ्यों का नहीं बल्कि मूल्यों का ज्ञान होना है

क्रॉनिकल निबंध प्रतियोगिता-1 : विजेता- अदिति श्रीवास्तव (झलवा, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश)


एक बार एक शिक्षक बच्चों को क्रोध न करने की शिक्षा दे रहे थे। उन्होंने बच्चों को लिखवाया- ‘‘क्रोध मत कर’’ और यह पाठ याद करके आने को कहा। अगले दिन सभी बच्चों ने यह पाठ सुना दिया परन्तु एक छात्र ने इसे नहीं सुनाया। तीन-चार दिन तक उसने ऐसा ही किया। अंततः शिक्षक ने क्रोधित होकर उस छात्र को पीटना शुरू कर दिया, किन्तु वह बालक पीटे जाने के बाद भी मुस्कुरा रहा था। शिक्षक के पूछने पर कि वह पीटे जाने के बावजूद क्यों मुस्कुरा रहा है, बालक ने बड़े ही सहज मन से उत्तर दिया- ‘‘गुरुजी! क्योंकि अब मैंने आपका दिया हुआ पाठ सीख लिया है।’

इस कहानी में बालक ने शब्दों को रटने के बजाए शिक्षा के मूल्य को आत्मसात किया और उसे अपने चरित्र में गठित किया। यही वास्तविक शिक्षा की संज्ञा है।

शिक्षा का यदि शाब्दिक अर्थ देखा जाए तो यह ‘‘सीखने व सिखाने की क्रिया' पर आधारित है किन्तु व्यापक अर्थों में यह किसी भी समाज में निरन्तर चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके कुछ उद्देश्य होते हैं और जिनसे मनुष्य की आन्तरिक शक्तियों एवं व्यवहार का विकास होता है। शिक्षा के मूल उद्देश्य की पूर्ति में ‘मूल्य’ सहायक भूमिका निभाते हैं, जिनसे तात्पर्य ऐसे मापदण्डों से है, जिनके आधार पर व्यक्ति या समाज किसी कार्य को नैतिक अथवा अनैतिक ठहराता है।

मूल्य आधारित शिक्षा हमें एक बेहतर इंसान बना सकती है और जीवन के सर्वाेच्च लक्ष्य को प्राप्त करने में भी सहायक होती है। मूल्यों का विकास व्यक्ति में परिवार, शिक्षण संस्थाओं, समाज, मित्र व अनुभव द्वारा होता है। पेशेवर ज्ञान हमारे पेशे के कौशल को ही विकसित करता है और इस तरह की शिक्षा की आवश्यकता व महत्व भी है परन्तु मूल्य आधारित शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति स्वयं को निर्देशित करते हुए जीवन की चुनौतियों को स्वीकार करने में सक्षम होता है। मूल्य आधारित शिक्षा व्यक्ति में नैतिकता, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा आदि गुणों का निर्माण करती है। हमारे इतिहास और पौराणिक कथाओं ने भी हमें मूल्य आधारित शिक्षा दी है। उदाहरणार्थ- फ्सर्वधर्म समभावय्, फ्वसुधैव कुटुम्बकम्य्, फ्सर्वे भवन्तु सुिखनःय् आदि अवधारणाएं हमारी प्राचीन सभ्यता की ही देन हैं।

किन्तु यहां प्रश्न यह उठता है कि क्या मूल्य आधारित शिक्षा हमारे वर्तमान समाज में भी विद्यमान है अथवा नहीं? आए दिन समाचार पत्र में शोषण, बलात्कार, चोरी-डकैती, हत्या आदि की खबरें इसी ओर संकेत करती हैं कि हम अपने मूल्यों को खोते जा रहे हैं। साइबर क्राइम, परमाणु हमले एवं आतंकवाद जैसे अपराधों में तो उच्च शिक्षित व्यक्ति भी संलिप्त पाए गए हैं। कई प्रशासनिक अधिकारियों की भी गलत कार्यों में लिप्त रहने की खबरें अक्सर उजागर होती रहती हैं, जो कहीं न कहीं उनके अन्दर मूल्यों की कमी को दर्शाता है। इससे स्पष्ट होता है कि मात्र शिक्षा अर्जित कर लेने से व्यक्ति का चरित्र निर्माण नहीं हो सकता।

शिक्षा में मूल्यों की कमी के कारण विभिन्न समस्याएं सृजित हुई हैं। सामाजिक समस्याओं के अंतर्गत समाज में भेदभाव व ऊंच-नीच आदि के विकास का कारण मूल्य विहीन शिक्षा ही है। इसके कारण विभिन्न धार्मिक संगठनों, जातिगत समूहों में टकराव होता है।

मूल्य विहीन शिक्षा, अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान पहुंचाती है। जैसे प्रारंभ में उदारवादी मॉडल ने केवल उत्पादन बढ़ाया, सामाजिक क्षेत्र में निवेश नहीं किया, जिससे धीरे-धीरे यह मॉडल विफल हो गया एवं ‘कीन्स’ द्वारा जब इसे मानवीय रूप के साथ प्रदर्शित किया गया तब यह आगे बढ़ पाया। इसके अलावा अर्थव्यवस्था को गति देने के क्रम में मानव ने प्राकृतिक संसाधनों का तर्कसंगत दोहन नहीं किया। बढ़ते तकनीकी विकास, प्लास्टिक उपयोग व विभिन्न प्रकार के प्रदूषण के चलते पृथ्वी इस तरह दूषित हो गयी है कि अब मानव अस्तित्व पर ही संकट बन आया है। कोरोना महामारी भी इसी की परिणति है, जिसकी वजह से अब तक लाखों लोग जान गवां चुके हैं।

वर्तमान समय में मानव ही मानव का दुश्मन बन गया है और वह अर्जित ज्ञान का उपयोग स्वार्थ पूर्ति हेतु कर रहा है। मनुष्य ने जैविक तथा परमाणु हथियार बनाए और अपने ही जीवन को संकटापन्न कर लिया। वहीं विभिन्न आतंकवादी संगठन धर्म की संकीर्ण व्याख्या कर युवाओं का ब्रेन वॉश करके उन्हें इस दलदल में खींच रहे हैं।

वर्तमान समय में सूचना तकनीकी का जितनी तीव्रता से विकास हुआ है, इसने एक आभासी विश्व का निर्माण किया है। इस आभासी विश्व में सूचना तकनीकी का दुरुपयोग घृणा फैलाने, गलत सूचना को तेजी से प्रसारित करने में हो रहा है। अतः हम कह सकते हैं कि वर्तमान सदी में शिक्षा के माध्यम से मूल्यों का विकास अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि वैश्विक परिवर्तन का सबसे ताकतवर हथियार शिक्षा ही है। मूल्य आधारित शिक्षा किसी भी समाज एवं राष्ट्र को किसी भी प्रकार की बुराई, हिंसा, भ्रष्टाचार तथा उत्पीड़न के खिलाफ आधार प्रदान करती है।

सरकार द्वारा भी इस दिशा में उचित प्रयास किए गए हैं। जैसे, नई शिक्षा नीति-2020 के माध्यम से सरकार ने बच्चों में ज्ञान के साथ-साथ स्किल व मूल्य संवर्धन पर भी बल दिया है। प्रशासनिक अधिकारियों में मूल्यों व नैतिकता के विकास हेतु यू-पी-एस-सी- जैसी संस्था ने अपने पाठड्ढक्रम में ‘नैतिकता व सत्यनिष्ठा’ जैसे विषय को समाहित किया है।

निश्चित रूप से हमने बहुत-सी पुस्तकें पढ़ी हैं, परीक्षाएं पास की हैं तथा शिक्षा ने हमें बहुत-सी उपाधियां व आजीविका के साधन उपलब्ध कराए हैं। अर्थात् रोजगार वाली शिक्षा में तो हम सफल हुए हैं, किन्तु इस सत्य को भी नकारा नहीं जा सकता कि आज हम काम करने की मशीन बन चुके हैं और इन सब में ‘मानवता’ कहीं पीछे छूट गई है। हमारी संवेदना दिन-प्रतिदिन मरती जा रही है, जिसका एक उदाहरण हम इस कोविड महामारी के दौर में लोगों द्वारा की जा रही आवश्यक दवाओं व ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर आदि की जमाखोरी व कालाबाजारी के रूप में देख सकते हैं। हमारे पास आज अपार भौतिक सम्पदा, आर्थिक समृद्धि तो है परन्तु हमारी हमारे मूल्यों की जड़ें खोखली होती जा रही हैं। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ व ‘सत्यमेव जयते’ जैसे आदर्श बस किताबों में ही देखने को मिल रहे हैं। व्यक्ति शिक्षित होते हुए भी अशिक्षित जैसा आचरण कर रहा है। समाज में दंगा, स्वार्थ, अराजकता, घृणा, द्वेष, ईर्ष्या का प्रसार हो रहा है जो व्यक्ति, राष्ट्र व समाज के सर्वांगीण विकास में अत्यन्त घातक है। अतः आवश्यक है कि शिक्षा में ऐसे मूल्यों का समावेशन किया जाए कि शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति मूल्यवादी भावनाओं से सम्पोषित होकर प्राचीन भारतीय आदर्शवादी मूल्यों का आधुनिकता के साथ समन्वय करते हुए आगे बढ़े।