कौशल विकास के माध्यम से ग्रामीण भारत का रूपांतरण

क्रॉनिकल निबंध प्रतियोगिता-8 : स्वाती प्रभुदास लोखंडे, औरंगाबाद (महाराष्ट्र)


भारत गांवों का देश है। यहां की अधिकांश आबादी ग्रामीण है, इसलिए ग्रामीण विकास महत्वपूर्ण है। भारत की अधिकांश ग्रामीण आबादी का शिक्षण-प्रशिक्षण तथा कौशल स्तर निम्न पाया जाता है, जो इनकी आर्थिक स्थिति से प्रभावित होता है। गांवों में मौसमी बेरोजगारी, पूर्ण बेराजगारी, अल्प बेरोजगारी आदि पाई जाती हैं। इससे विशेषकर ग्रामीण युवा व बेरोजगार तथा श्रमिक वर्ग प्रभावित होते हैं। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) की वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017-18 में ग्रामीण बेरोजगारी की दर 5.3% पाई गई है।

अतः जब तक बेरोजगार युवाओं को उनकी योग्यता और आवश्यकता के अनुसार काम नहीं मिलेगा, तब तक एक स्वच्छ, सुखी और उन्नत देश के निर्माण की कल्पना करना बेईमानी होगा, इसलिए ग्रामीण विकास के लिए आवश्यक है कि ग्रामीण रोजगार योजनाएं तथा स्वरोजगार सृजन कार्यक्रम संचालित किये जाएं। इसी उद्देश्य के साथ स्वतंत्र भारत में मजदूरों एवं युवा ग्रामीण बेरोजगारों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में समय-समय पर कई रोजगार योजनाओं व कार्यक्रमों को मूर्त रूप दिया गया, जिनमें ग्रामीण मजदूर रोजगार कार्यक्रम, मनरेगा, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना, काम के बदले अनाज कार्यक्रम, स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना, स्टेप योजना, रोशनी योजना, स्टार्टअप इंडिया पहल, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, प्रधानमंत्री युवा रोजगार योजना, प्रधानमंत्री रोजगार लोन सब्सिडी योजना आदि प्रमुख हैं। इन विकासोन्मुखी योजनाओं से देश में ग्रामीण बेरोजगारी की दशा में पहले से सुधार तो आया है, परन्तु अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत अधिक बेरोजगारी है, जिसका प्रमुख कारण है- देश की जनसंख्या का दिनों दिन अत्यधिक तेज गति से बढ़ना। युवा ऊर्जा किसी भी देश के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, प्रशासनिक आदि सभी विकास को गति देने वाली ताकत है। बशर्ते उसे प्रभावी रूप से दिशा तथा गति दी जाए। कौशल विकास निश्चित रूप से इस दिशा में सबसे बड़े साधन के रूप में साबित होगा।

वर्तमान में हमारा देश इस बात को बखूबी समझ गया है, जिसके कारण आज तमाम कौशल विकास से संबंधित योजनाओं को बहुआयामी रूप से आरंभ किया गया है। सरकार द्वारा आरम्भ किए गए स्किल इंडिया मिशन का लक्ष्य रोजगार के योग्य कौशल प्रदान करते हुए रोजगार हेतु तैयार एवं कुशल कार्यबल तैयार कर इस समस्या का समाधान उपलब्ध कराना है। इस मिशन का लक्ष्य वर्ष 2020 तक 40 करोड़ से अधिक लोगों को कौशल प्रदान करना तथा उनकी पसंद के कौशलों का प्रशिक्षण देते हुए उनकी रोजगार संबंधी योग्यता को बढ़ाना है।

समावेशी विकास हेतु जरूरी है कि सभी स्तर पर कुशल मानव संसाधन को बढ़ावा दिया जाए। युवा प्रगति एवं कौशल विकास को अलग-अलग करके देखना उचित नहीं होगा। यदि हमें 21वीं सदी को भारत की सदी बनाना है तो हमें प्रत्येक दशा में अपने देश के ऊर्जावान युवाओं के भीतर कौशलता को जगाना होगा, ताकि हर युवा रोजगार सम्पन्न एवं आत्मनिर्भरता के साथ-साथ सुख-समृद्धि के विकास पथ को प्राप्त कर सके। हर्ष की बात है कि आज हम कौशलता को प्राथमिकता के तौर पर ले रहे हैं। भारत के युवा की उन्नति के लिए यह पहल अत्यंत ही सराहनीय साबित हो रही है।

पिछले 5 वर्षों में कौशल प्रशिक्षण का युवाओं के सशक्तीकरण में अहम योगदान देखने को मिला है, जब स्किल इंडिया मिशन के तहत हर साल 1 करोड़ से अधिक युवाओं को प्रशिक्षण दिया गया, 5000 आईटीआई की स्थापना की गई तथा आईटीआई की क्षमता बढ़ाकर 34.63 लाख हो गई, जो 2015 की तुलना में 85.5% अधिक है।

वहीं प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत 250 से अधिक रोजगार भूमिकाओं में 37 सेक्टरों में अब तक 92 लाख उम्मीदवारों को प्रशिक्षित किया गया। 704 जिलों में मॉडल कौशल केंद्र के तौर पर 720+ पीएम कौशल केंद्र खोले गए। यह एक परिवर्तन की दिशा के रूप में अच्छा कदम माना जा सकता है।

बावजूद अभी भी हमारे सपनों का भारत, जहां युवा आबादी आत्मनिर्भर व रोजगार सम्पन्न हो, अभी पूर्णतया साकार नहीं हो पाया है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि युवा जनसंख्या के मामले में भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा भंडार है, फिर भी भारतीय नियोक्ता कुशल मानव संसाधन की जबरदस्त किल्लत महसूस कर रहे हैं।

इसका मुख्य कारण रोजगार के लिए आवश्यक विशेषज्ञता की कमी है। इसके अलावा हमारे देश की पारंपारिक शिक्षा प्रणाली भी युवाओं के रोजगार में बाधक के रूप में है। भारतीय शिक्षा प्रणाली शानदार मस्तिष्कों को जन्म देती रही है, लेकिन उनमें रोजगार विशेष के लिए कौशल की कमी होती है। अतः जरूरत है सटीक एवं पर्याप्त कौशल विकास व प्रशिक्षण की, जो इस ताकत को तकनीकी रूप से कुशल मानव बल के सबसे बड़े स्रोत में बदल सके। क्योंकि यदि एक भी युवा आत्मनिर्भर-रोजगार सम्पन्न बनने में अक्षम रहता है तो ऐसे में कौशल विकास के लिए शुरू की गई तमाम योजनाएं बेईमानी साबित होंगी।

साथ ही साथ युवाओं को तमाम उपरोक्त योजनाओं से जोड़ने के लिए जरूरी होगा कि व्यापक जनजागरूकता कार्यक्रम आरंभ किये जाएं, ताकि युवाओं की वास्तविक विकास की दिशा-दशा सुनिश्चित की जा सके। इसके अतिरिक्त शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में नवीनीकरण के अलावा कौशल विकास योजना की जानकारी भी पाठ्यक्रमों में सम्मिलित करते हुए विद्यार्थी जीवन से ही रोजगार उन्मुख पाठशाला का भी आयोजन एक सही कदम साबित होगा। क्योंकि यदि देश के भविष्य को उज्ज्वल करना है तो हर युवा के चेहरे पर मुस्कान लानी ही होगी। निष्कर्षतः हमें कौशल विकास के समग्र रणनीतिक क्रियान्वयन के जरिये युवा भारत निर्माण हेतु एक मुहिम भी चलानी होगी तभी कौशल विकास एवं भारत के युवा एक दूसरे के पर्याय बनकर देश के समावेशी विकास का मार्ग प्रशस्त करेंगे।

इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अनेक साधन उपलब्ध हैं और केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा समय-समय पर चलाए गए विभिन्न रोजगार संबद्ध कार्यक्रमों से बड़ी संख्या में ग्रामीणों को लाभ प्राप्त हुआ है, परन्तु आज भी रोजगार के क्षेत्र में गांवों की स्थिति दयनीय ही है। वर्तमान कोरोना काल ने रोजगार सृजन हेतु नई परिस्थितियों को उजागर किया है। इसके लिए स्थानीय स्तर पर टिकाऊ व्यवस्था को अपनाकर ‘वोकल फॉर लोकल’ के मंत्र को भी साकार किया जा सकता है। अतः सरकारी स्तर पर और प्रभावी एवं अधिक लाभप्रद योजनाओं को मूर्त रूप देकर ग्रामीणों की दशा सुधारी जा सकती है। सरकारी सुविधाओं का पूर्ण लाभ प्राप्त करने हेतु ग्रामीणों का शिक्षित होना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए गांवों में रोजगारमूलक शिक्षा का प्रचार-प्रसार जोर-शोर से किया जाना चाहिए।

अन्य सराहनीय प्रविष्टि : विनीत कुमार सिंह, शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश)