वैश्विक चुनौतियां वैश्विक समाधानों की मांग करती हैं

क्रॉनिकल निबंध प्रतियोगिता-2 : अवनीश कुमार शुक्ला (प्रयागराज, उत्तर प्रदेश)


सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी परिवर्तनों ने वैश्विक समुदाय के समक्ष नवीन चुनौतियां प्रस्तुत की हैं, जिन्हें पहचाने बिना हम आगे बढ़ने के बारे में सोच भी नहीं सकते। ये समस्याएं ऐसी हैं, जिन्हें किसी देश की सीमा या सत्ता के अंतर्गत समेटा नहीं जा सकता; जिनका सरोकार कम या अधिक सभी से है।

वैश्विक परिस्थितियों से उपजे माहौल में ही संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई थी। सात दशकों के कार्यकाल में इसके द्वारा वैश्विक चुनौतियों का सामूहिक प्रयास के माध्यम से हल करने का प्रयास किया गया और एक हद तक उनमें सफलता भी मिली। संयुक्त राष्ट्र वैश्विक स्तर पर एक स्थाई तंत्र है, जो अपने विभिन्न अंगों द्वारा कार्य निष्पादित करता है। वर्ष 2015 में इसके द्वारा वर्तमान विश्व की चुनौतियों को सतत विकास लक्ष्यों के माध्यम से 17 बिन्दुओं में चिह्नित किया गया। इनमें गरीबी, भुखमरी, शिक्षा, स्वास्थ, ऊर्जा, आर्थिक वृद्धि व बेहतर रोजगार, बुनियादी समस्याएं, उद्योग व नवाचार, लैंगिक समानता, जल एवं स्वच्छता, असमानता में कमी, संवहनीय शहर, जलवायु कार्यवाही, पारिस्थितिक प्रणालियां, शांति तथा न्याय व भागीदारी शामिल हैं। किन्तु उपरोक्त लक्ष्य मानव विकास को ध्यान में रखकर तैयार चुनौतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जबकि वैश्विक चुनौतियों के स्पष्ट बिंदु इनसे भिन्न भी हैं। जैसेः जलवायु परिवर्तन से उपजी चुनौतियां, ध्वस्त हो रही जैव विविधता, बढ़ती हुई निर्धनता और असमानता, फैल रही नफरत, भू-राजनैतिक तनाव, जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में उत्पादन में तुलनात्मक अन्तर, परमाणु हथियार, अपशिष्ट निपटान, प्रदूषण तथा तकनीक जनित समस्याएं आदि।

उपरोक्त चुनौतियों की पहचान विश्व के ऐसे तनाव बिन्दुओं के रूप में की गई है, जो समकालीन विश्व की शांति एवं स्थिरता के लिए बाधा बनी हुई हैं। इन चुनौतियों का आकार, प्रकार और प्रभाव सार्वभौमिक है। इनका समाधान करने के लिए एकजुट और सार्वभौमिक प्रयास की जरूरत पड़ती है। 2019 के एक अनौपचारिक भाषण के दौरान संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटरेस ने जलवायु परिवर्तन, टिकाऊ आर्थिक विकास और तकनीकी परिवर्तनों को वर्तमान समस्याओं के रूप में संबोधित किया था तथा इनके निराकरण के लिए वैश्विक भागीदारी की अपील की थी।

चुनौतियों को पहचानना एक अलग विषय है तथा उन पर काम करना एक अलग विषय। वैश्विक चुनौतियों के समाधान के लिए अब तक किए गए प्रयासों की समीक्षा आवश्यक प्रतीत होती है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए विशेष समूहों का गठन किया गया तथा इन समूहों के सदस्य देशों के बीच साझेदारी के माध्यम से संयुक्त प्रयासों को प्रोत्साहित किया गया। जैसे- पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) तथा यूएनएफसीसीसी (UNFCCC) का गठन किया गया। इसी प्रकार स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिए डब्ल्यूएचओ, सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), खाद्य सुरक्षा के लिए खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), श्रम मामलों के लिए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) जैसे कई समूहों का गठन किया गया।

हालांकि अनेक मसलों पर संयुक्त राष्ट्र खुद के अधिकार-पत्र में उद्घोषित लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल रहा है। अगर हम इसकी सफलताओं-असफलताओं का विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट होता है कि जहां-जहां इसने सफलता दर्ज की हैं वहां वैश्विक समुदाय ने अपनी भागीदारी के माध्यम से इसमें योगदान दिया है। वहीं जिन मुद्दों पर विश्व समुदाय बंटा हुआ है, उन मुद्दों पर सामान्यतः असफलता हाथ लगी है।

वर्तमान समय में वैश्विक चुनौतियां अपना स्वरूप बदल चुकी हैं। आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी परिवर्तनों ने वैश्विक समुदाय के समक्ष अभूतपूर्व चुनौतियां प्रस्तुत की हैं। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, जैविक विविधता, आतंकवाद, असमानता, तनावग्रस्त भू-राजनैतिक स्थिति, आर्थिक विकास तथा कोरोना जैसी महामारी इनका उदाहरण हैं। कोरोना वायरस द्वारा उत्पन्न चुनौतियों ने वैश्विक व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है। इस महामारी को रोकने के लिए किए गए विभिन्न प्रयासों के बावजूद इसने सम्पूर्ण विश्व को अपनी चपेट में ले लिया। कोरोना संकट के दौरान विश्व के तमाम देशों, चाहे वे विकसित देश हों या अविकसित, सभी ने इसकी भयावहता को झेला है। अमेरिका, यूरोप जैसे मजबूत अवसंरचना वाले देशों की स्वास्थ्य आपदा से निपटने की व्यवस्थाएं असहाय नजर आईं।

उपरोक्त सन्दर्भों का अध्ययन करने से पता चलता है कि वैश्विक समुदाय द्वारा एक दूसरे के सहयोग तथा भागीदारी के माध्यम से ही ऐसी चुनौतियों से लड़ा जा सकता है। कोविड महामारी के समय भारत जैसे विकासशील देश द्वारा विश्व के अग्रणी और जरूरतमंद देशों को दवाओं और वैक्सीन की आपूर्ति की गई। वहीं अमेरिका जैसे देशों ने स्वास्थ्य संबंधी उपकरणों और वेंटिलेटर्स की आपूर्ति की। विश्व के लगभग सभी देश इस चुनौती से निपटने के लिए एकजुट दिखाई दिए।

इसके विपरीत अफगानिस्तान के मामले में वैश्विक समुदाय की चुप्पी ने वहां की स्थिति को तेजी से खराब किया है। ऐसे ही कुछ अन्य उदाहरण इजराइयल-फिलीस्तीन संकट, ईरान का निशस्त्रीकरण, जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता, आदि हैं, जिनमें वैश्विक सहयोग की आवश्यकता थी।

वर्तमान विश्व की चुनौतियों को रेखांकित करने में प्रमुख बाधाएं इस प्रकार हैं-

  • वैश्विक समुदाय का वैश्विक चुनौतियों के प्रति व्यावसायिक दृष्टिकोण होना। सभी देश न्यूनतम प्रयास में अधिकतम लाभ की अपेक्षा से व्यवहार करते हैं।
  • विभिन्न देशों में बढ़ रहे संरक्षणवादी प्रयासों ने वैश्विक चुनौतियों के समाधान में बाधा पहुंचायी है। जैसे- ट्रम्प शासन द्वारा अमेरिका फर्स्ट जैसी नीतियों के चलते पेरिस समझौते से अलग होना, चीन से मतभेद के चलते विश्व स्वास्थ्य संगठन से अलग होना आदि ने बहुपक्षता और वैश्विक प्रयासों को अत्यधिक चोट पहुंचाई है।
  • द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय मुद्दों पर विश्व का कई खेमों में बंटा होना, जैसे अफगानिस्तान अथवा इजरायल के मुद्दे पर विश्व समुदाय में गतिरोध का होना।
  • वर्तमान वैश्विक संस्थाओं की असफलता भी वैश्विक चुनौतियों के समाधान में बाधा उत्पन्न करती है। जैसे- बदलते विश्व के अनुरूप सुरक्षा परिषद में सुधार का ना होना आदि।

ऐसी मान्यता है कि समस्याओं का समाधान समस्याओं में ही निहित होता है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि वैश्विक समस्याओं का हल वैश्विक समाधान से ही संभव है। वैश्विक समस्याएं वैश्विक समुदाय से संबंधित किसी भी देश की सीमा, सत्ता अथवा सामर्थ्य से बड़ी हैं, जिनका ताजा उदाहरण हमने कोरोना जैसे संकट में देखा है। अतः यह कहा जा सकता है कि वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए हमें वैश्विक एकजुटता, प्रयास और संभावनाओं में हल तलाश करने चाहिए, जो एकमात्र प्रभावी और परखा हुआ विकल्प है।