शहरी मध्य वर्ग, भारत के रूपांतरण की कुंजी है

क्रॉनिकल निबंध प्रतियोगिता-4 : नुपुर कुमारी, देवघर (झारखंड)


भारतीय अर्थव्यवस्था अब गरीबी के लबादे से निकलकर तेजी से मध्य वर्ग की आबादी की ओर शिरकत कर रही है। इस शिरकत की बानगी हमें भारतीय विज्ञापनों, सिनेमा, ओटीटी प्लेटफॉर्म ही नहीं बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी साफ नजर आएगी। अपने-अपने तरीके से सभी बाजार शहरी मध्य वर्ग को लुभाते नजर आएंगे। ऐसा हो भी क्यों न, वर्ष 2017 के नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2025-26 तक भारत में मध्य वर्ग की आबादी वर्ष 2015-16 के स्तर से दोगुनी से अधिक बढ़कर 547 मिलियन व्यक्ति (113.8 मिलियन परिवार) होने की संभावना है। ऐसे में आज तेजी से बढ़ता विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का यह डिजिटल इंडिया, मध्य वर्ग की आकांक्षाओं पर मजबूती से सवार होकर अपनी किस्मत संवार रहा है।

यूं तो भारतीय राजनीतिक परिदृश्य, वैश्विक परिदृश्यों से अलग रहे हैं, परन्तु जिस तरह से अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में उच्च और मध्यम वर्ग के लोग राजनीति के प्रति सर्वाधिक मुखर रहे हैं, वह मुखरता अब भारत में गरीब-कमजोर वर्ग के लोगों में भी नजर आ रही है। शायद यही कारण है कि अब राजनीति में इस शहरी मध्य वर्ग कि सक्रियता बढ़ी है, जबकि एक दशक पहले तक शहरी मध्य वर्ग भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ी भूमिका निभाकर भी राजनीतिक चर्चा का विषय नहीं बन पाते थे। आज का शहरी मध्य वर्ग न केवल आर्थिक रूप से भारत के विकास के पहिये को आगे बढ़ा रहा है, बल्कि इसने 2014 और 2019 के आम चुनाव में भी अपनी महती भूमिका निभाकर राजनीतिक हलकों में परिवर्तन की लहर दौड़ाई है। भारतीय शहरी मध्य वर्ग अब मूकदर्शक नहीं, बल्कि परिवर्तन की नई इबारत लिख रहा है। यह अपनी क्रय शक्ति के दम पर वैश्विक ताकतों को भारत की ओर लुभाने की क्षमता रखता है तथा एक प्रवासी भारतीय के रूप में दूसरे देशों के साथ भारतीय कूटनीतिक रिश्तों को भी मजबूती प्रदान कर रहा है, साथ ही नई तकनीक, नई अर्थव्यवस्था, सूचना-संचार क्रांति का वाहक भी बन रहा है।

अर्थव्यवस्थाओं के उत्थान में किस वर्ग की भूमिका कितनी है, इस पर अक्सर विवाद होते रहते हैं। साम्यवादी विचारधारा जहां कामकाजी वर्ग को आर्थिक विकास का श्रेय देती है, वहीं अर्थशास्त्र में मध्य वर्ग को आर्थिक विकास का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। इसी संदर्भ में कई आर्थिक इतिहासकार जैसे डेविड लैंड्स तो यह तक मानते हैं कि 18वीं सदी में इंग्लैण्ड में जो औद्योगिक क्रांति आई उसका कारण इंग्लैंड का शहरी मध्य वर्ग रहा। उनका कहना है कि कामकाजी वर्ग आर्थिक क्षेत्र में इतना बड़ा परिवर्तन नहीं ला पाया और मध्य वर्ग के प्रयासों से ही यह क्रांति आई, इसका कारण यह है कि-

  • कामकाजी वर्ग की तुलना में शहरी मध्य वर्ग में बचत की प्रवृत्ति होती है, जो निवेश का काम करती है।
  • शहरी मध्य वर्ग, कामकाजी वर्ग की तरह केवल अपनी सामान्य जरूरतों पर पैसे खर्च नहीं करता, बल्कि मानव पूंजी बनाने का भी प्रयास करता है, जैसे शिक्षा व स्वास्थ्य पर वह कहीं ज्यादा खर्च करता है।
  • शहरी मध्य वर्ग उच्च गुणवत्ता के लिए अधिक खर्च करने को तैयार रहता है। उसकी इस बढ़ी हुई मांग से गुणवत्तापरक उत्पादों का बाजार बनता है, जो उद्योगों को बढ़ावा देता है।

भारत के संदर्भ में क्या डेविड लैंड्स की बात सही हो सकती है? क्या सच में भारतीय मध्य वर्ग 21वीं सदी के भारत में विज्ञान-तकनीक की बदौलत नई औद्योगिक क्रांति के माध्यम से भारत को विकसित देशों के समकक्ष खड़ा कर सकता है? ऐसे कई सवाल भारतीय परिवेश में उठते रहते हैं। इन सवालों के जवाब जानने से पहले सबसे जरूरी यह जानना है कि आिखर यह शहरी मध्य वर्ग है कौन?

नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च, शहरी मध्यम वर्ग को ऐसे परिवारों के रूप में परिभाषित करता है, जिनकी वार्षिक आय वर्ष 2001-02 के मूल्यों के आधार पर प्रतिवर्ष 2-10 लाख के मध्य हो और जो शहर में निवास कर रहे हों। यह श्रेणी गरीबी रेखा से ऊपर है और इसके पास व्यय करने हेतु पर्याप्त राशि है।

भारत का शहरी मध्य वर्ग नई औद्योगिक क्रांति का वाहक बनेगा या नहीं, इससे पहले यह जानना रोचक है कि भारत में शहरी वर्ग का उदय भी अपने आप में एक क्रांति ही है। 1990 के दशक में जब देश में एलपीजी सुधारों की शुरुआत हुई, एक नए वर्ग, शहरी मध्य वर्ग ने भारतीय अर्थव्यवस्था में अपनी भूमिका में विस्तार करना शुरू किया। इस दौरान देश में आई सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्रांति इसी वर्ग की देन रही। इसने भारत को आईटी हब के रूप में स्थापित किया। 1999 में Y2K संकट की सम्भावना के दौरान भारतीय आईटी पेशेवरों ने पूरी दुनिया में अपने ज्ञान का लोहा मनवाया और देश के बड़े-बड़े शहरों में ही नहीं विदेशों में भी अपने पंख फैलाए। इस नए परिवर्तन ने भारत की सूरत बदल दी। इस परिवर्तन को ऐसे समझा जा सकता है-

  • क्रय शक्ति क्षमता (पीपीपी) के आधार पर 1985 में जहां भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी 844 डॉलर थी, वहीं वर्ष 2020 में यह बढ़कर 6,461 डॉलर हो गई। ऐसे में भारतीयों की इस बढ़ती क्रय क्षमता ने कई मल्टीनेशनल कंपनियों को भारत की ओर खींचा, तो वहीं भारतीय उद्योगपतियों को भी बड़ा घरेलू बाजार मिला, जिससे देश के आर्थिक विकास में लगातार इजाफा हुआ।
  • पीपीपी के आधार पर आज भारत इंग्लैंड, फ्रांस, जापान जैसे देशों को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। वहीं जीडीपी के आधार पर भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इससे वैश्विक मंचों पर भी भारत की पहचान और भूमिका में विस्तार हुआ है।
  • पिछले कई वर्षों से भारत विश्व में सर्वाधिक रेमिटेंस प्राप्त करने वाले देशों में पहले स्थान पर कायम है। विश्व बैंक के वर्ष 2021 के आंकड़ों के अनुसार भारत को विभिन्न देशों से रेमिटेंस के रूप में 87 बिलियन डॉलर प्राप्त हुए, जो कि सर्वाधिक है। इस आय का सबसे बड़ा स्रोत वही भारतीय शहरी मध्य वर्ग है, जिसके पारिवारिक सदस्य विदेशों में भारत का डंका बजा रहे हैं।
  • कोरोना की मार से जब दुनिया की तमाम अर्थव्यवस्थाएं पूरी तरह से उबर भी नहीं पाई थीं, उस वक्त यह भारतीय मध्य वर्ग दिवाली के दौरान जी खोलकर खर्च कर रहा था। अिखल भारतीय व्यापारी परिसंघ (CAIT) के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2021 में दिवाली में लगभग 1.25 लाख करोड़ की बिक्री हुई। इसमें आधे से ज्यादा हिस्सा शहरी मध्य वर्ग का रहा।
  • एकमात्र दिवाली की खरीदारी पर ही जब मध्य वर्ग ने चीन का बहिष्कार किया, तो इससे चीन को लगभग 50,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इससे समझा जा सकता है कि आत्मनिर्भर भारत में इस वर्ग के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

सामान्यतः भारतीय आर्थिक परिदृश्य तुलनात्मक रूप से दूसरे देशों से अलग नजर आता है, क्योंकि दूसरे देशों में जहां विनिर्माण क्षेत्र ने उन्हें आर्थिक महाशक्ति बनाया वहीं भारत के संदर्भ में यह काम सेवा क्षेत्र कर रहा है। लेकिन एक बात साफ है कि भारत में इस सेवा क्रांति का जनक वही शहरी मध्य वर्ग है जो इंग्लैंड में आई आद्योगिक क्रांति का वाहक बना था। भारत में मध्य वर्ग को भारत के रूपांतरण की कुंजी मानने के पीछे का तर्क वर्ष 2017-18 में अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी और एस्थर डफलो के विश्लेषण से समझा जा सकता है जो इंग्लैंड के संदर्भ में डेविड लैंड्स से एकदम मेल खाता है। ऐसे में यह कहने में कोई दोराय नहीं है कि भारत का मध्यवर्ग उसी क्रांति का वाहक बन सकता है, जिस क्रांति का वाहक 18वीं सदी में इंग्लैंड का मध्य वर्ग बना था।