ग्रेटर मालदीव रिज का विवर्तनिक विकास

फरवरी 2022 के एक अध्ययन के अनुसार एक भारतीय शोधकर्ता ने ‘ग्रेटर मालदीव रिज’ (Greater Maldive Ridge) के विवर्तनिक विकास (Tectonic evolution) और प्रकृति का पता लगाया है।

महत्वपूर्ण तथ्य: पश्चिमी हिंद महासागर में स्थित ग्रेटर मालदीव रिज की उत्पत्ति कई वर्षों से वैज्ञानिक बहस का केंद्र रहा है।

  • यह अध्ययन मूल गोंडवानालैंड के टूटने को समझने में मदद कर सकता है, जिसके कारण महाद्वीपों के वर्तमान विन्यास और हिंद महासागर में महासागरीय घाटियों का निर्माण हुआ।
  • मालदीव रिज एक एसिस्मिक रिज (aseismic ridge) है, जो भूकंप गतिविधियों से जुड़ा नहीं है। भारत के दक्षिण-पश्चिम में पश्चिमी हिंद महासागर में स्थित इस रिज की अच्छी तरह से जांच नहीं की गई है।
  • एसिस्मिक रिज की संरचना और भूगतिकी की जानकारी प्राप्त करना काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह महासागरीय घाटियों के विकास को समझने के लिए काफी अहम जानकारी प्रदान करता है।
  • यह अध्ययन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के एक स्वायत्त संस्थान 'भारतीय भू-चुंबकत्व संस्थान, मुंबई द्वारा किया गया।
  • टीम ने पाया कि मोहो (Moho), मालदीव रिज खंड के ऊपर गहरा है और डीप सी चैनल क्षेत्र (DSC) में दक्षिण की ओर उथला है।
  • शोध से पता चलता है कि 'मालदीव रिज' का निर्माण मिड-ओशनिक रिज (Mid-Oceanic Ridge) के करीब हो सकता है।
  • इस बीच DSC क्षेत्र एक लंबी रूपांतरित फॉल्ट के अधीन था। इसने पिघलने में बाधा पैदा की और प्लम-रिज संपर्क (Plume-ridge interaction) के दौरान चागोस व मालदीव रिज के बीच की खाई का निर्माण हुआ।

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ताप-नाभिकीय संलयन प्रौद्योगिकियां

फरवरी 2022 में, ऑक्सफोर्डशायर, यूनाइटेड किंगडम में संयुक्त यूरोपीय टोरस (JET) संलयन प्रयोग ने ताप-नाभिकीय संलयन (thermonuclear fusion) से 59 मेगाजूल ऊर्जा का उत्पादन किया है।

  • ताप-नाभिकीय संलयन वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा हाइड्रोजन परमाणु संयोजन में सूर्य के अंदर हीलियम का निर्माण करते हैं और अपार ऊर्जा विमुक्त करते हैं। सामान्यतया, ये परमाणु संलयित नहीं हो सकते। लेकिन तीव्र दबाव और घने आंतरिक भाग (कोर) के साथ सूर्य के केंद्र में भीषण गर्मी में, हाइड्रोजन का प्लाज्मा एक दूसरे के साथ मिलकर हीलियम बनाता है, जिससे प्रकाश और ऊष्मा के रूप में विशाल ऊर्जा निकलती है। इस प्रक्रिया को 'टोकामक' (tokamaks) जैसे संलयन रिएक्टरों में निष्पादित किया जा रहा है। टोकामक की अवधारणा सबसे पहले सोवियत भौतिकविदों इगोर टैम और आंद्रेई सखारोव ने दी थी। टोकामक एक मशीन है, जो चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग करके झुलसा देने वाले प्लाज्मा को सीमित करती है, इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक भाषा में ‘टोरस’ नाम से जाना जाता है। विखंडन रिएक्टरों के विपरीत, 'टोकमक' (tokamaks) जैसे संलयन रिएक्टर रेडियोधर्मी रिसाव के खतरे पैदा नहीं करते हैं। ताप-नाभिकीय संलयन से ऊर्जा का दोहन आज एक वैश्विक सहयोगात्मक प्रयास है।

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