समान नागरिक संहिता: आवश्यकता एवं व्यवहार्यता
हाल ही में भारत के 22वें विधि आयोग द्वारा समान नागरिक संहिता (UCC) के संबंध में देश की आम जनता एवं मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों से सुझाव आमंत्रित किये गए।
- अवगत करा दें कि पूर्ववर्ती 21वें विधि आयोग द्वारा इस विषय की समीक्षा की गई थी तथा अगस्त 2018 में जारी परामर्श पत्र में कहा गया था कि समान नागरिक संहिता, ‘फिलहाल न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है।’
 - यद्यपि वर्तमान सन्दर्भ में सरकार का यह कहना है कि 21वें विधि आयोग द्वारा इस संबंध में सिर्फ ‘परामर्श पत्र’ जारी किया था; कोई रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई थी। इसीलिये ....
 
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मुख्य विशेष
- 1 पारंपरिक ज्ञान प्रणाली
 - 2 कृषि का नारीकरण
 - 3 क्षेत्रवाद की चुनौती : सांस्कृतिक मुखरता और असमान क्षेत्रीय विकास
 - 4 ग्रामीण महिलाएं: आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में महत्व
 - 5 वैश्वीकरण के सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक प्रभाव
 - 6 सामाजिक मूल्यों पर बढ़ती सांप्रदायिकता का प्रभाव
 - 7 भारतीय मीडिया में लैंगिक रूढ़िबद्धता
 - 8 महिलाओं के लिए स्वामित्व का अधिकार: मुद्दे एवं समाधान
 - 9 पॉपुलेशन एजिंग: चुनौतियां एवं सामाजिक निहितार्थ
 - 10 महिलाओं की श्रम बल में घटती भागीदारी: कारण एवं सुझाव
 - 11 भारत में आंतरिक प्रवासन
 - 12 परंपरागत जनजातीय समाज पर भूमंडलीकरण के प्रभाव
 - 13 भारत में बढ़ती असमानता : कारण एवं निवारण
 - 14 भारतीय धर्मनिरपेक्षता की विशिष्टता
 - 15 शहरीकरण: महिलाओं का सशक्तीकरण एवं चुनौतियां
 - 16 भारतीय मीडिया में लैंगिक रूढ़िवादिता
 - 17 सामाजिक सामंजस्य पर सांप्रदायिकता की चुनौतियां और निहितार्थ
 - 18 जाति आधारित जनगणना: सामाजिक निहितार्थ
 - 19 वैश्वीकरण: भारतीय समाज पर सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव
 - 20 आधुनिक भारतीय समाज की परिवर्तनशील गत्यात्मकता
 - 21 बलात् विस्थापन: कारण एवं समाधान
 - 22 धर्मांतरण एवं भारतीय समाज
 - 23 ग्रामीण क्षेत्रों में खेलों को पुनर्जीवित करना
 - 24 भारत में सहकारिता का महत्व
 - 25 शहरीकरण के सामाजिक परिणाम
 - 26 भारत में अल्पसंख्यक: चुनौतियां और सुरक्षा उपाय
 - 27 राष्ट्रवाद बनाम क्षेत्रवाद
 

