हिन्दी भाषा और नागरी लिपि का इतिहास
Question : पूर्वी हिन्दी और पश्चिमी हिन्दी की भेदक रेखाएं निर्धारित कीजिए।
(2005)
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Question : ब्रजभाषा की व्याकरणिक विशेषताएं
(2005)
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Question : सिद्धनाथ-साहित्य में प्रारंभिक खड़ी बोली
(2005)
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Question : दक्खिनी हिन्दी के प्रमुख हस्ताक्षर
(2005)
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Question : वाक्य रचना के विभिन्न तत्व
(2004)
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Question : ब्रज अवधी और खड़ी बोली में साम्य और वैषम्य पर प्रकाश डालिए।
(2004)
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Question : ‘हिन्दी भाषा के ऐतिहासिक विकास’ विषय पर निबंध लिखिए।
(2004)
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Question : दक्खिनी हिन्दी के विकास में आदिलशाही शासकों का योगदान।
(2004)
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Question : मध्यकाल में ब्रजभाषा और अवधी का साहित्यिक भाषा के रूप में विकास पर प्रकाश डालिए।
(2003)
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Question : अमीर खुसरो की हिन्दी
(2003)
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Question : हिन्दी भाषा के विकास में व्याकरणिक और शाब्दिक दृष्टि से अपभ्रंश और अवहट्ठ भाषाओं के योगदान पर प्रकाश डालिए।
(2002)
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Question : आदिकालीन हिन्दी भाषा का स्वरूप
(2001)
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Question : दक्खिनी हिन्दीः क्षेत्र और भाषा स्वरूप
(2001)
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Question : अवहट्ठ की विशेषताएं
(2000)
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Question : ब्रजभाषा और अवधी में अंतर
(2000)
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Question : मध्यकाल में काव्यभाषा के रूप में अवधी की शक्ति और सीमा का विवेचन कीजिए।
(2000)
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Question : आधुनिक काल में खड़ी बोली के विकास की एक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
(2000)
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Question : लोकमंगल की अवधारणा को प्रसारित करने में अवधी के योगदान पर प्रकाश डालिए।
(1999)
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हिन्दी भाषा और नागरी लिपि का मानकीकरण
Question : आधुनिक हिन्दी में लिंग व्यवस्था
(2001)
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Question : देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता
(2000)
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Question : देवनागरी लिपि के मानवीकरण के लिए किए गए प्रयत्नों को स्पष्ट करते हुए संगणक यंत्र (कंप्यूटर) एवं आधुनिक दूरसंचार-सुविधाओं को दृष्टि में रखते हुए उसमें आवश्यक सुधारों पर प्रकाश डालिए।
(1999)
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भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में हिन्दी का विकास
Question : राजभाषा और राष्ट्रभाषा का तात्त्विक भेद
(2005)
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Question : हिन्दी भाषा की विकास-यात्र पर एक नातिदीर्घ लेख लिखिए।
(2005)
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Question : राजभाषा के रूप में हिन्दी का स्वरूप
(2004)
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Question : आधुनिक हिन्दीः तकनीकी विकास
(2004)
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Question : राजभाषा, राष्ट्र भाषा व सम्पर्क भाषा
(2003)
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Question : हिन्दी भाषा में लिंग समस्या
(2003)
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Question : राष्ट्रभाषा हिन्दीः
(2002)
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Question : स्वतंत्र्योत्तर भारत में राजभाषा के रूप में हिन्दी का विकास कहां तक सफल हुआ है? चर्चा कीजिए।
(2002)
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Question : वैज्ञानिक और तकनीकी भाषा के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए हिन्दी में पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण को सुलझाने की दिशाएं रेखांकित कीजिए।
(2001)
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Question : संघ की भाषा के रूप में हिन्दी के विकास सूत्र
(2001)
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Question : राष्ट्रभाषा को परिभाषित करते हुए भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी के विकास पर विचार कीजिए।
(2000)
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Question : राजभाषा की संवैधानिक स्थिति पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
(1999)
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हिन्दी की प्रमुख बोलियां और उनका परस्पर संबंध
Question : पूर्वी और पश्चिमी हिन्दी
(2003)
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Question : विभाषा, बोली और भाषा के सबंधों को सोदाहरण स्पष्ट करते हुए हिन्दी की प्रमुख बोलियों का परिचय दीजिए।
(2003)
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Question : भोजपुरी और अवधी में अंतरः
(2002)
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Question : हिन्दी की उपभाषाओं का वर्गीकरण करते हुए किन्हीं दो प्रमुख उपभाषाओं का परिचय दीजिए।
(2002)
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Question : हिन्दी की प्रमुख बोलियों का संक्षिप्त परिचय
(2000)
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Question : बहु-भाषिक स्थिति में संपर्क-भाषा के रूप में हिन्दी की मान्यता पर विचार व्यक्त कीजिए।
(1999)
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नागरी लिपि की प्रमुख विशेषताएं और उसके सुधार के प्रयास तथा मानक हिन्दी का स्वरूप
Question : देवनागरी लिपि के ‘गुण-दोष’ की विवेचना कीजिए।
(2005)
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Question : नागरी लिपि की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए उनमें आपेक्षित सुधारों पर प्रकाश डालिए।
(2004)
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Question : नागरी लिपि में सुधार के विभिन्न प्रस्ताव:
(2002)
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हिन्दी साहित्य के इतिहास-लेखन की परंपरा
Question : हिन्दी साहित्य के इतिहासों का संक्षिप्त परिचय देते हुए बताइए कि आप किस इतिहास ग्रंथ को पूर्णतः समझते हैं और क्यों?
(2000)
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हिन्दी साहित्य के प्रमुख काल
Question : सूर की राधा
(2005)
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Question : बिहारी का अर्थगर्भत्व
(2005)
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Question : हिन्दी के आदिकालीन साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षरों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
(2005)
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Question : भक्तिकाल को लोक-जागरण की अभिव्यक्ति क्यों कहते हैं? सतर्क उत्तर दीजिए।
(2005)
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Question : "नवजागरण और छायावाद" विषय पर एक निबंध लिखिए।
(2005)
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Question : कबीर का दर्शनः
(2004)
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Question : सूर-सूर तुलसी और केशवदासः
(2004)
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Question : ‘पृथ्वीराज रासो में श्रृंगार और वीर रस युगीन जीवन-गौरव का प्रतिबिम्ब है।’ समीक्षा कीजिए।
(2004)
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Question : विद्यापति के कृष्ण
(2003)
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Question : जायसी कृत कन्हावतः सांस्कृतिक संगम
(2003)
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Question : केशवदास की रामचन्द्रिका में संवाद योजना
(2003)
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Question : ‘भक्ति साहित्य सचमुच सामाजिक-सांस्कृतिक नवजागरण की उपज है’- इस कथन की समीक्षा कीजिए।
(2003)
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Question : ‘नागार्जुन जनता, धरती और मानव प्रेम के पुजारी है’ अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
(2003)
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Question : मलिक मुहम्मद जायसीः
(2002)
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Question : ‘बिहारी सतसई’ की काव्यगत विशेषताएं:
(2002)
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Question : नयी कविताः
(2002)
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Question : आदिकालीन रासो-साहित्य की प्रमुख विशेषताओं के बारे में एक निबंध लिखिए।
(2002)
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Question : विद्यापति भक्त कवि या श्रृंगारी कवि हैं? विवेचन कीजिए।
(2002)
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Question : "तुलसीदास का ‘रामचरितमानस’ हिन्दी काव्य परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण महाकाव्य माना जाता है"- विचार कीजिए।
(2002)
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Question : जायसी का रहस्यवाद
(2001)
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Question : जनवादी कविता की प्रवृत्तियां
(2001)
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Question : दरबारी वातावरण में विकसित रीतिकाव्य की उपलब्धियां क्या है?
(2001)
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Question : नागार्जुन अथवा मुक्तिबोध की काव्यगत विशेषताएं रेखांकित कीजिए।
(2001)
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Question : सूफी काव्य धारा
(2000)
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Question : घनानन्द की काव्यगत विशेषताएं
(2000)
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Question : नयी कहानी
(2000)
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Question : क्या रीतिकालीन काव्य दरबारी- काव्य होते हुए भी लोकजीवन से जुड़ा हुआ है? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
(2000)
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Question : "भक्ति के आंदोलन की जो लहर दक्षिण से आई, उसी ने उत्तर भारत की परिस्थिति के अनुरूप हिन्दू-मुसलमान दोनों के लिए एक सामान्य भक्तिमार्ग की भावना जगाई।" कथन की समीक्षा कीजिए।
(1999)
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Question : फ्छायावाद के बाद कविता बहुमुखी रूप धारण करने लगती है।" इस कथन के आधार पर छायावादोत्तर हिन्दी कविता की प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
(1999)
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Question : हिन्दी रासक-काव्य
(1999)
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Question : कबीर के राम
(1999)
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कथा साहित्य
Question : हिन्दी के मनोवैज्ञानिक उपन्यासकारः
(2004)
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Question : ‘अज्ञेय की कविताओं का केन्द्रीय भाव मानव व्यक्तित्व की समस्या है।’ सतर्क उत्तर दीजिए।
(2004)
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Question : स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कहानी की गति और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
(2003)
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Question : महिला कथा-साहित्यकार कृष्णा सोबती।
(2001)
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Question : उतर शती की हिन्दी कहानी पर एक समीक्षात्मक अनुशीलन प्रस्तुत कीजिए।
(1999)
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नाटक और रंगमंच
Question : हिन्दी नाटक के उद्गम और विकास पर प्रकाश डालिए।
(2004)
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आलोचना
Question : हिन्दी आलोचना और डा. रामविलास शर्मा
(2005)
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Question : आलोचक रामचंद्र शुक्लः
(2004)
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Question : आलोचक नागेंद्रः
(2002)
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Question : प्रगतिवादी आलोचना का स्वरूप
(2001)
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Question : सैद्धांतिक आलोचना
(2000)
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Question : क्या आचार्य रामचन्द्र शुक्ल रसवादी दृष्टि और लोकमंगल की अवधारणा में समन्वय करने में सफल हुए हैं? युक्ति युक्त उत्तर दीजिए।
(2000)
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Question : आलोचना के क्षेत्र में डा. रामविलास शर्मा के योगदान पर एक विवेचनात्मक निबन्ध लिखिए।
(1999)
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Question : प्रगतिवादी चेतना
(1999)
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हिन्दी गद्य की अन्य विधाएँ
Question : हिन्दी के ललित निबंधकार
(2005)
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Question : हिन्दी में रेखा चित्र और संस्मरण
(2003)
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Question : हिन्दी में ललित निबंध साहित्य का विकास स्पष्ट करते हुए उसमें हजारी प्रसाद द्विवेदी का योगदान स्पष्ट कीजिए?
(2001)
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Question : रेखाचित्र: स्वरूप
(1999)
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खंड-क
Question : जोग ठगौरी ब्रज न बिकैहै!
.......................................
सूरदास प्रभु गुनहिं छाडि़कै को निर्गुन निरवैहै?
(2005)
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Question : ‘भ्रमर गीत सार’ के दार्शनिक पक्ष की विवेचना करते हुए उसके काव्यगत महत्व की समीक्षा कीजिए।
(2005)
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Question : चढ़ा अषाढ़ गगन घन गाजा,
........मोहि प्रिय बिनु केा आदर देई।
(2005)
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Question : रूपक तत्व की दृष्टि से ‘कामायनी’ का विवेचन करते हुए उसके उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
(2005)
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Question : बैठे मारुति देखते राम-चरणारविन्द
..........................................................
दक्षिण करतल पर वाम चरण, कपिवर गद्गद्।
(2005)
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Question : ‘कुकुरमुत्ता’ के सन्दर्भ में निराला की प्रगतिशील चेतना पर प्रकाश डालिए।
(2005)
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Question : कहेउ राम बियोग तब सीता।
मो कहुँ सकल भए बिपरीता।।
नव तरू किसलय मनहुं कृसानू।
कालनिसा सम निसि ससि भानू।।
कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा।
बारिद तपत तेल जनु बरिसा।।
जे हित रहे करत तेइ पीरा।
उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा।।
(2004)
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Question : सूफी दर्शन के संदर्भ में ‘पप्रावत’ की प्रेमाभिव्यंजना का विश्लेषण प्रस्तुत कीजिए।
(2004)
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Question : खेलन सिखए, अलि, भलैं चतुर अहेरी मार।
कानन-चारी नैन-मृग नागर नरनु सिकार।।
रससिंगार-मंजनु किए, कंजनु भंजनु दैन।
अंजनु रंजनु हूं बिना खंजनु गंजनु, नैन।।
(2004)
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Question : नवजागरण के मूलभूत तत्वों की अभिव्यक्ति ‘भारत-भारती’ में किस प्रकार हुई है? समीक्षा कीजिए।
(2004)
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Question : ‘कामायनी’ का समरसता संदेश वर्तमान जीवन स्थितियों में कहां प्रासंगिक है? तर्क सहित बतलाइए।
(2004)
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Question : अबे, सुन बे गुलाब,
भूल मत जो पाई खुशबु, रंगोआब,
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट,
डाल पर इतरात है केपीटलिस्ट!
कितनों को तूने बनाया है गुलाम,
माली कर रक्खा, सहाय जाड़ा-घाम।
(2004)
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Question : किन्तु, गहरी बावड़ी
की भीतरी दीवार पर
तिरछी गिरी रवि-रश्मि
के उड़ते हुए परमाणु, जब
तल तक पहुंचते हैं कभी
तब ब्रह्मराक्षस समझता है, सूर्य ने
झुककर ‘नमस्ते’ कर दिया।
(2004)
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Question : मेरे जाति पांति, न चहां काहू की जाति पांति,
मेरे कोऊ काम को, न हौं काहू के काम को।
लोक परलोक रघुनाथ ही के हाथ सब,
भारी है भरोसो तुलसी के एक नामको।
अति ही अयाने उपखानो नहिं बूझैं लोग,
‘साद्र ही को गात, गोत होत है गुलाम को।’
(2003)
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Question : ‘नागमती-वियोग खंड’ के आधार पर जायसी की काव्य-कला के विविध पक्षों का विवेचन कीजिए।
(2003)
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Question : यद्यपि हताहत गात में कुछ सांस अब भी आ रही,
पर सोच पूर्वापर दशा मुंह से निकलता है, यही
जिसकी अलौकिक कीर्ति से उज्ज्वल हुई सारी नहीं,
था जो जगत का मुकुट, है क्या हाय! यह भारत वही,
अब कमल क्या, जल तक नहीं, सरमध्य केवल पंक है,
वह राज, राज कुबेर अब हा! रंक का भी रंक है।
(2003)
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Question : ‘राम की शक्ति-पूजा’ के आधार पर निराला के चरित्र-चित्रण कला की विशेषताएं स्पष्ट कीजिए।
(2003)
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Question : श्रेय नहीं कुछ मेराः
मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में
वीणा के माध्यम से अपने को मैंने
सब कुछ को सौंप दिया था
सुना आप ने जो वह मेरा नहीं,
न वीणा का थाः
वह तो सबकुछ ही लथता थी-
महाशून्य
वह महामौन
अविभाज्य, अनाप्त, अद्रवित, अप्रमेय
जो शब्दहीन
सब में गाता है।
(2003)
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Question : ‘ब्रह्मराक्षस’ कविता की संवेदनागत तथा शिल्पगत विशेषताओं का विश्लेषण कीजिए।
(2003)
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Question : वर्तमान सामाजिक संदर्भों में कबीर के काव्य की प्रासंगिकता पर विचार कीजिए।
(2002)
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Question : चढ़ा असाढ़ गगन घन गाजा।
साजा बिरह दुंद दल बाजा।
धूम स्याम धौरे घन धाए।
सेत धुजा बगु पांति देखाए।
खरग बीज चमकै चहुं ओरा।
बुंद बान बरिसै घन घोरा।
अद्रा लाग बीज भुइं लेई।
मोहि पिय बिनु को आदर देई।
(2002)
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Question : अंग-अंग नग जगमगत, दीपसिखा-सी देह।
दिया बढ़ाएं हूं रहै, बड़ौ उज्यारौ गेह।।
पत्र ही तिथि पाइयै, वा घर के चहूं पास।
नितप्रति पून्यौईं रहै, आनन-ओप उजास।।
(2002)
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Question : ‘कामायनी’ में चित्रित मानव सभ्यता के विकास की विभिन्न स्थितियों और समस्याओं का विवेचन कीजिए।
(2002)
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Question : चुराता न्याय जो, रण को बुलाता भी वही है,
युधिष्ठिर! स्वत्व की अन्वेषणा पालक नहीं है।
नरक उनके लिए, जो पाप को स्वीकारते हैं,
न उनके हेतु जो रण में उसे ललकारते हैं।
(2002)
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Question : ‘असाध्य वीणा’ को केंद्र में रखकर अज्ञेय की रचना दृष्टि और जीवन-दर्शन का निरूपण कीजिए।
(2002)
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Question : दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआं उठा आंगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आंखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पांखे कई दिनों के बाद।
(2002)
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Question : बिरहा बुरहा जिनि कहां, बिरहा है सुलितान।
जिसघर बिरहा न संचरे, सो घर सदा मशान।।
इस तन का दीवा करो, बाती मल्यू जीव।
लोहो सीचो तेल ज्यूं, कबमुख देखौ पीव।।
(2001)
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Question : निर्गुन कौन देस को बासी?
मधुकर! हॅसि समुसाय, सौंह दै बूसति सांच, न हांसी।।
को है जनक, जननि को कहियत, कौन नारि, को दासी?
कौन बरन, भेस है कैसो केहि रस कै अभिलाषी।
पावैगो पुनि कियो आपनो जो रे! कहैगो गांसी।
सुनत मौन ह्नै रह्यो सो सूर सबै मति मासी।।
(2001)
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Question : सुंदरकांड के आधार पर गोस्वामी तुलसीदास के काव्य सौष्ठव का सोदाहरण विवेचन कीजिए।
(2001)
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Question : महानृत्य का विषम सम, अरी
अखिल स्पंदनों की तू माप,
तेरी ही विभूति बनती है
सृष्टि सदा होकर अभिशाप।
अंधकार के अट्टहास-सी,
मुखरित सतत् चिरंतन सत्य,
छिपी सृष्टि के कण-कण में तू,
यह सुन्दर रहस्य है नित्य।
(2001)
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Question : ‘राम की शक्ति पूजा’ और ‘कुकरमुत्ता’ की संवेदना की भिन्नता को रंखांकित करते हुए निराला की शैलीगत विशेषताओं का विश्लेषण कीजिए।
(2001)
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Question : पर उस स्पन्दित सन्नाटे में
मौन प्रियंवद साध रहा था वीणा
नहीं स्वयं अपने को शोध रहा था।
सघन निबिड़ में अपने को
सौप रहा था उसी किरीटी-तरू को।
कौन प्रियंवद है कि दंभ कर
इस अभिमंत्रित कारूवाद्य के सम्मुख आवे?
(2001)
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Question : नागार्जुन की काव्य संवेदना और भाषा शैली की सोदाहरण समीक्षा कीजिए।
(2001)
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Question : ‘कबीर शास्त्रीय ज्ञान की अपेक्षा अनुभव ज्ञान को अधिक महत्व देते थे।’ इस मत की समीक्षा कीजिए।
(2000)
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Question : राम नाम बिनु गिरा न सोहा।
देखु बिचारि त्यागि मद मोहा।।
बसन हीन नहिं सोह सुरारी।
सब भूषण भूषित बर नारी।।
राम बिमुख संपत्ति प्रभुताई।
जाइ रही पाई बिनु पाईं।।
सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं।
बरिष गएं पुनित तबहिं सुखाही।।
(2000)
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Question : "पद्मावत एक उत्कृष्ट प्रेम काव्य है।" इस मत की सतर्क व्याख्या करें।
(2000)
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Question : मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ।
जा तन की सोई परै, स्यामु हरित-दुति होइ।।
कहत, नटत, रीझत, खिसत, मिलत, खिलज, लजियात।
भरे भन में करत हैं, नैंननु ही सब बात।।
नहिं परागु नहि मधुर मधु नहिं विकासु इहि काल।
अली कलि ही सौ वंध्यौ, आगे कौन हवाल।।
(2000)
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Question : यह पुण्य भूमि प्रसिद्ध है कि इसके निवासी ‘आर्य’ हैं, विद्या, कला-कौशल सबके जो प्रथम आचार्य हैं। संतान उनकी आज यद्यपि हम अधोगति में पड़े, पर चित्र उनकी उच्चता के आज भी आज भी कुछ है खड़े।
(2000)
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Question : छायावाद की प्रमुख विशेषताओं के आधार पर कामायनी का मूल्यांकन कीजिए।
(2000)
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Question : विजन-वन-बल्लरी पर
सोती थी सुहाग-भरी स्नेह-स्वप्न-मग्न
अमल-कोमल-तनु तरुणी-जुही की कली,
दृग बंद किये, शिथिल, पत्रंक में,
वासंती निशार्थी,
विरह विधुर-प्रिया-संग छोड़
किसी दूर देश में था पवन
जिसे कहते हैं मलयानिल।
(2000)
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Question : अग्नि जो लागी नीर मैं, कंदू जलिया झारि।
उतर दषिण के पंडिता, रहे विचारि विचारि।।
दौ लागी साइक जल्या, पंषी बैठे आइ।
दाधी देह न पालवै, सतगुर गया लगाइ।।
समंदर लागी आगि, नदिया जल कोइला भई।
देखि कबीरा जागि, मंछी रूषां चढि़ गई।
(1999)
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Question : ‘कबीर एक ओर तो अद्वैतवाद के समर्थक हैं और दूसरी ओर भगवद्भक्ति के द्वंद्व स्तंभ’, समीक्षा कीजिए।
(1999)
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Question : ऊधो! प्रीति न मरन विचारै।
प्रीति पतंग जरै पावक परि, जरत अंग नहि टारैं।।
प्रीति परेवा उड़त गगन चढि़, गिरत न आप सम्हारै।
प्रीति मधुप केतकी कुसुम वसि कंटक आवु प्रहारै।।
प्रीति जानु जैसे पय पानी, जानि अपनपौ जारै।
प्रीति कुरंग नाद रस लुब्धक, तानि-तानि सर मारै।।
प्रीति जान जननी सुत कारन, को न अपन पो हारै।
सूर स्याम सौ प्रीति गोपिन की, कहु कैसे निरूवारै।।
(1999)
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Question : भ्रमरगीत में अभिव्यक्त सूर की भक्ति भावना का सांगोपांग विवेचन कीजिए।
(1999)
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Question : स्वारथु नाथ फिरें सबही की
किये रजाइ कोटि विधि नीका।
यह स्वारथ परमारथ सास
सकल सुकृत फल सुगति सिंगारू।
देव एक विनती सुनि मोरी
उचित होई तस करन वहोरी।
तिलक समाज साजि सबु आना
करिअ सुफल प्रभु जौ मनु आना।
सानुग पढइअ मोहि बन, कीजिअ सबहि सनाथ
नतरू फेरि अहि बंधु, दोउ नाथ चलौ मैं साथ।
(1999)
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Question : ‘कवितावली को आप मुक्तक रचना मानते हैं या प्रबंध रचना।’ सप्रमाण अपने मत का समर्थन कीजिए।
(1999)
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Question : ‘नारी केवल माता है और इसके उपरांत वह जो कुछ है, वह सब मातृत्व का उपक्रम मात्र। मातृत्व संसार की सबसे बड़ी साधना, सबसे बड़ी तपस्या, सबसे बड़ा त्याग और सबसे महान विजय है। एक शब्द में उसे लय कहूंगा- जीवन का, व्यक्तित्व का और नारीत्व का भी।’
(1999)
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Question : यह क्या मधुर स्वप्न सी झिलमिल
सदय हृदय में अधिक अधीर;
व्याकुलता सी व्यक्त हो रही
आशा बन कर प्राण समीर।
यह कितनी स्पृहणीय बन गई
मधुर जागरण सी छविमान;
स्मिति की लहरों सी उठती है
नाच रही ज्यों मधुमय तान।
(1999)
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Question : कामायनी में अभिव्यक्त आनंदवाद और समरसता का सोदाहरण विवेचन कीजिए।
(1999)
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Question : एक-एक वस्तु या एक-एक प्राणाग्नि-बम है
ये परमास्त्र है, प्रक्षेपास्त्र है, यम है।
शून्याकाश में से होते हुए वे
अरे, अरि पर ही टूटे पड़े अनिवार।
यह कथा नहीं है, यह सब सच है, हां भई।
कहीं आग लग गयी, कहीं गोली चल गयी।
(1999)
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खंड-ख
Question : इन रूपों और व्यापारों के सामने ……….. और ज्ञानयोग के समकक्ष मानते हैं।
(2005)
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Question : रामचन्द्र शुक्ल अथवा कुबेरनाथ राय की निबन्ध कला पर प्रकाश डालिए।
(2005)
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Question : "जीवन के संघर्ष में उसे सदैव हार हुई ………उसे प्राणों की तरह बचा रहा था।"
(2005)
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Question : औपन्यासिक-कला की दृष्टि से ‘गोदान’ उपन्यास की समीक्षा कीजिए।
(2005)
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Question : शिल्प एवं विषय की दृष्टि से स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कहानी पर प्रकाश डालिए।
(2005)
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Question : "आचार्य, कुलवधू का आसन ………… उसे भोग करने वाले पराक्रमी पुरुष का सम्मान है।"
(2005)
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Question : ‘भारत दुर्दशा’ में प्रतिबिम्बित तत्कालीन भारत की परिस्थितियों और उन्हें लेकर लेखक की चिंताओं का विवेचन कीजिए।
(2004)
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Question : कविता ही मनुष्य के हृदय को स्वार्थ-संबंधों के संकुचित मंडल से ऊपर उठाकर लोक-सामान्य भाव-भूमि पर ले जाती है, जहां जगत की नाना गतियों में मार्मिक स्वरूप का साक्षात्कार और शुद्ध अनुभूतियों का संचार होता है। इस भूमि पर पहुंचे हुए मनुष्य को कुछ काल के लिए अपना पता नहीं रहता। वह अपनी सत्ता को लोकसत्ता में लीन किए रहता है।
(2004)
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Question : तू जो बात नहीं समझती, उसमें टांग क्यों अड़ाती है भाई! मेरी लाठी दे दे और अपना काम देख। यह इसी मिलते-जुलते रहने का परसाद है कि अब तक जान बची हुई है, नहीं कहीं पता लगता कि किधर गये। गांव में इतने आदमी तो हैं, किस पर बेदखली नहीं आयी, किस पर कुड़की नहीं आयी। जब दूसरे के पांवों तले अपनी गर्दन दबी हुई है, तो उन पांवों को सहलाने में ही कुशल है।
(2004)
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Question : अपने उपन्यास एवं कहानियों में प्रेमचंद की बुनियादी चिंताएं अपने समय की भी हैं भविष्य की भी हैं। इस विचार से आप कहां तक सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
(2004)
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Question : विजय का क्षणिक उल्लास हृदय की भूख मिटा देगा? कभी नहीं। वीरों का भी क्या ही व्यवसाय है, क्या ही उन्मत्त भावना है। चक्रपालित! संसार में जो सबसे महान है, वह क्या है? त्याग! त्याग का ही दूसरा नाम महत्व है। प्राणों का मोह त्याग करना वीरता का रहस्य है।
(2004)
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Question : ऐतिहासिक उपन्यास लिखने के पीछे यशपाल की विशेष रचना-दृष्टि रही है; दिव्या के आधार पर उक्त विशेष रचना-दृष्टि की आलोचना कीजिए।
(2004)
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Question : यह तो सुकुल बाबू ही हैं कि टिक हुए हैं। केवल टिके हुए ही नहीं, सबको ठिकाने लेकर टिके हुए हैं। पर मन बेहद क्षुब्ध हो गया है उनका। उन्हें खुद लगने लगा कि राजनीति गुण्डागर्दी के निकट चली गई है। जिस देश में देवतुल्य राजनेताओं की परंपरा रही हो, वहां राजनीति का ऐसा पतन!
(2004)
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Question : ‘---- तुम्हारे दुःख की बात भी जानती हूं। फिर भी मुझे अपराध का अनुभव नहीं होता। मैंने भावना में एक भावना का वरण किया है। मेरे लिए वह संबंध और सब संबंधों से बड़ा है। मैं वास्तव में अपनी भावना से प्रेम करती हूं, जो पवित्र है, कोमल है, अनश्वर है।’
(2003)
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Question : केवल असाधारणत्व की रुचि सच्ची सहृदयता की पहचान नहीं है। शोभा और सौंदर्य की भावना के साथ जिनमें मनुष्य जाति के, उस समय के पुराने सहचरों की वंश परम्परागत स्मृति वासना के रूप में बची हुई है, जब वह प्रकृति के खुले क्षेत्र में विचरती थी, वे ही पूरे सहृदय भावुक कहे जा सकते हैं।
(2003)
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Question : शिल्प एवं भाषा शैली की दृष्टि से ‘गोदान’ और ‘मैला आंचल’ कर तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
(2003)
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Question : जीवन यथार्थ के अंकन के परिप्रेक्ष्य में प्रेमचंद की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
(2003)
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Question : ‘स्कंदगुप्त’ के आधार पर प्रसाद की इतिहास दृष्टि का विवेचन करते हुए उनकी नाट्य-कला की विशिष्टताओं का विश्लेषण कीजिए।
(2003)
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Question : जीवन की स्थिति समय में है और समय प्रवाह है। प्रवाह में साधु-असाधु, प्रिय-अप्रिय सभी कुछ आता है। प्रवाह का यह क्रम ही सृष्टि और प्रकृति की नित्यता है। जीवन के प्रवाह में एक समय असाधु, अप्रिय अनुभव आया। इसलिए उस प्रवाह से विरक्त होकर जीवन की तृष्णा को तृप्त न करना केवल हठ है।
(2003)
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Question : "बिगड़ने वाली बात को सभी पहले से जान लेते हैं, जिनके पास बल है, उसे नहीं होने देते, जो कमजोर है उसे धोखा कहकर छिपाते हैं....... बाबू को सब मालूम हो गया था, पर अच्छे घर-वर के लिए जो चाहिए वह बाबू कहां से लाते। इसमें तुम तो एक बहाना बन गये, तुम्हारा क्या कसूर है इसमें......."
(2003)
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Question : कवि की दृष्टि तो सौन्दर्य की ओर जाती है, चाहे वह जहां हो- वस्तुओं के रूप-रंग में अथवा मनुष्य के मन, वचन और कर्म में। उत्कर्ष साधना के लिए, प्रभाव की वृद्धि के लिए, कवि लोग कई प्रकार के सौन्दर्यों का मेल भी किया करते हैं।
(2002)
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Question : ललित निबंध की सांस्कृतिक एवं मानवीय पक्षधरता के परिप्रेक्ष्य में कुबेरनाथ राय के ललित निबंध लेखन की समीक्षा कीजिए।
(2002)
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Question : मालती बाहर से तितली है, भीतर से मधुमक्खी। उसके जीवन में हंसी ही हंसी नहीं है, केवल गुड़ खाकर कौन जी सकता है और जिए भी तो वह कोई सुखी जीवन न होगा। वह हंसती है, इसलिए कि उसे इसके भी दाम मिलते हैं।
(2002)
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Question : भारतीय ग्रामों के यथार्थ की दृष्टि से ‘गोदान’ और ‘मैला आंचल’ का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
(2002)
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Question : राष्ट्रनीति दार्शनिकता और कल्पना का लोक नहीं है। इस कठोर प्रत्यक्षवाद की समस्या बड़ी कठिन होती है। गुप्त साम्राज्य की उत्तरोत्तर वृद्धि के साथ उसका दायित्व भी बढ़ गया है, पर उस बोझ को उठाने के लिए गुप्तकुल के शासक प्रस्तुत नहीं, क्योंकि साम्राज्य लक्ष्मी को वे अब अनायास और अवश्य अपनी शरण आने वाली वस्तु समझने लगे हैं।
(2002)
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Question : ‘दिव्या’ के औपन्यासिक प्रतिमानों का विश्लेषण करते हुए यशपाल के ऐतिहासिक बोध के दार्शनिक आधार की समीक्षा कीजिए।
(2002)
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Question : सुकुल बाबू ने खड़े होकर ही इस चुनाव को इतना महत्वपूर्ण बना दिया है। सीट केवल एक, पर पूरे मंत्रिमंडल के लिए जैसे- एकदम निर्णायक! यही कारण है कि आज हर घटना को इस सीट से जोड़कर देखा-परखा जा रहा है। वरना और दिन होते तो क्या बिसू और बिसू की मौत!
(2002)
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Question : महराज वेदांत ने बड़ा ही उपकार किया। सब हिन्दू ब्रह्म हो गए। किसी को इतिकर्त्तव्यता बाकी ही न रही। ज्ञानी बनकर ईश्वर से विमुख हुए, रुक्ष हुए, अभिमानी हुये और इसी से स्नेह शून्य हो गए। जब स्नेह ही नहीं तब देशोद्धार का प्रयत्न कहां? बस जयशंकर की।
(2001)
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Question : ‘आषाढ़ का एक दिन’ शीर्षक की सार्थकता पर विचार करते हुए उसकी आधुनिक प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए।
(2001)
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Question : जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की यह मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। हृदय के इसी मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी, जो शब्द विधान करती आई है, उसे कविता कहते हैं। इस साधना को हम भावयोग कहते हैं और इसे कर्मयोग और ज्ञान योग का समकक्ष मानते हैं।
(2001)
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Question : गोदान में प्रस्तुत गांव और शहर की कथाओं के संबंध पर विचार कीजिए एवं उपन्यास के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
(2001)
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Question : उत्पीडि़त होकर भी वह शरण पाये हैं। अशरण हो तो वह कहां जायेंगी। वर्षा में गृह विहीन स्तम्भ की ओट पाने का ही यत्न करता है--। उसके नेत्र भींग गये और वह मौन हो गई। सोचा- प्रतुल और अंजना भी उसके दुर्भाग्य का रहस्य जानते हैं, इसीलिए स्थूल बंधनों का उपयोग करना आवश्यक नहीं समझते। स्थूल बंधनों से कहीं अधिक दृढ़, परिस्थिति के सूक्ष्म अदृश्य बंधन ही उसे बांधे हैं।
(2001)
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Question : नीलकमल की तरह कोमल और आर्द्र, वायु की तरह हल्का और स्वप्न की तरह चित्रमय! मैं चाहती थी उसे अपने में भर लूं और आंखें मूंद लूं। मेरा तो शरीर भी निचुड़ रहा है मां। कितना पानी इन वस्त्रें ने पिया है। ओह! शीत की चुभन के बाद उष्णता का यह स्पर्श।
(2000)
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Question : ‘चिन्तामणि’ भाग एक के निबंधों के आधार पर रामचंद्र शुक्ल का निबंध कला की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
(2000)
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Question : कहते हैं, पर्वत शोभा निकेतन होते हैं। फिर हिमालय का तो कहना ही क्या? पूर्व और ऊपर समुद्र महाद्वीप और रत्नाकर दोनों को दोनों भुजाओं से थामता हुआ हिमालय ‘पृथ्वी का मानदंड’ कहा जाय तो गलत क्या है? कालिदास ने ऐसा ही कहा था।
(2000)
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Question : सच्चा आनंद, सच्ची शांति केवल सेवाव्रत में है। वही अधिकार का स्रोत है, वही शक्ति का उद्गम है। सेवा ही वह सीमेंट है, जो दम्पती को जीवन पर्यन्त स्नेह और साहचर्य में जोड़े रख सकता है, जिस पर बड़े-बड़े आघातों का भी कोई असर नहीं होता। जहां सेवा का अभाव है, वहीं विवाह विच्छेद है, परित्याग है, अविश्वास है।
(2000)
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Question : कवित्व वर्णमय चित्र है, जो स्वर्गीय भावपूर्ण संगीत भाषा करता है। अंधकार का आलोक, असत् का सत् से, जड़ का चेतन से और बाह्य जगत् का अंतर्जगत् से संबंध कौन कराती है? कविता ही न।
(2000)
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Question : ‘मैला आंचल’ उपन्यास में आंचलिक जीवन के साथ व्यापक राष्ट्रीय संदर्भों का भी बड़ा जीवंत चित्रण हुआ है। इस मत का सतर्क मूल्यांकन कीजिए।
(2000)
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Question : राजेन्द्र यादव द्वारा संपादित कहानी संग्रह ‘एक-दुनिया समानांतर’ में से आप किस कहानी को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं? कहानी कला के आधार पर अपने मत का सप्रमाण विवेचन कीजिए।
(2000)
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Question : भारतेन्दु हरिश्चंद ने ‘अंधेर नगरी’ में लोक नाट्य की गहराई चेतना को बिना विस्मृत किए नवीन नाटयशास्त्रीय गुणवत्ता का समावेश किया है।’ इस कथन की समीक्षा कीजिए।
(1999)
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Question : भाव या मनोविकार क्या हैं? रामचंद्र शुक्ल ने उनका वर्गीकरण किस रूप में किया है? ‘चिंतामणि’ में संग्रहीत भाव या मनोविकार से संबंधित निबंधों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
(1999)
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Question : ‘शेखरः एक जीवन’ हिंदी में कथा वस्तु, शैली-शिल्प तथा भाव-बोध के स्तर पर अपना विशिष्ट स्थान रखती है’ समीक्षा कीजिए।
(1999)
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Question : क्या आप ‘गोदान’ को राष्ट्रीय प्रतिनिधि उपन्यास की संज्ञा से विभूषित कर सकते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
(1999)
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Question : ‘चंद्रगुप्त नाटक में निरूपित इतिहास तत्व’ विषय पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
(1999)
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