Question : नागार्जुन को जन कवि क्यों कहा जाता है?
(2008)
Answer : प्रगतिवादी कवियों में नागार्जुन का केंद्रीय स्थान है। उनकी कविताओं का कथ्य एवं शिल्प मानवीय संवेदना के अनुरूप प्रभावोत्पादक है। समकालीनता, यथार्थनिष्ठा, प्रगतिशीलता, मानवीय सहानुभूति व वर्गीय चेतना नागार्जुन की कविताओं का वैचारिक पक्ष है। वे विपन्न मानव के सच्चे साथी हैं। सत्ता व संस्कृति के प्रचलित द्वंद्व में नागार्जुन जनसंस्कृति के पक्ष में दृढ़ता से खड़े होते हैं। डॉ. रामविलास र्श्मा के अनुसार, वे (नागार्जुन) मजदूरों, किसानों और गरीब जनता के समर्थ पक्षधर हैं। ....
Question : माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रूमि इवै पड़ंत।
कहै कबीर गुर ग्यान थैं, एक आधा उबरंत।।
कबीर सूता क्या करे, उठि न रोवै दुक्ख।
जाका बासा गोर मैं, सो क्यूं सोवै सुक्ख।।
(2008)
Answer : प्रसंगः प्रस्तुत मनोरम पद्यांश कबीरदास द्वारा विरचित है, जो कबीर ग्रंथावली में संग्रहित है। कबीर दास जी हिंदी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल के ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं। प्रस्तुत पद्यांश साखी के ‘गुरूदेव कौ अंग’ तथा ‘सुमिरण कौ अंग’ से उद्द्धृत है। इसके पहली पंक्ति में गुरू की महिमा तथा दूसरी पंक्ति में ईश्वर के नाम स्मरण की महत्ता को कबीर ने बताया है।
व्याख्याः भारतीय संत परंपरा में और विशेषतः निर्गुण संतों की ....
Question : हरि है राजनीति पढि़ आए।
समुझी बात कहत मधुकर जो? समाचार कछु पायो?
इक अति चतुर हुते पहिले ही, अरू करि नेह दिखाए।
जानी बुद्धि बड़ी जुवतिन को जोग संदेस पठाए।
भले लोग आगे के सखि री! परहित डोलत धाए।
वे अपने मन फेरि पाइए जे है चलत चुराए।।
ते क्यों नीति करत अपनु जे औरनि रीति छुड़ाए?
राजधर्म सब भए सूर जहं प्रजा न जायं सताए।
(2008)
Answer : संदर्भः गोपियों के पास श्रीकृष्ण ने योग संदेशा भेजा है। इससे अब गोपियों के मन में किसी भी प्रकार की शंका नहीं रह गई कि श्रीकृष्ण राजनीति के एक चतुर खिलाड़ी हैं। प्रस्तुत पद में उनके राजनैतिक दाव-पेंच का संकेत किया गया है।
व्याख्याः (गोपियां आपस में बात कर रही हैं) हे सखियों! जरा देखो तो! श्रीकृष्ण अब राजनीति शास्त्र के ज्ञाता हो गए (मथुरा जाते ही ऐसे छल और कपटपूर्ण व्यवहार करने लगे) क्यों सखियों! ....
Question : क्या कवितावली के उत्तर कांड में तत्कालीन समाज के यथार्थ का भरा पूरा चित्र मिलता है? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
(2008)
Answer : साहित्य और जीवन बहुत गहरे जुड़े होते हैं। साहित्य में जीवन की ही सुख-दुखात्मक अनुभूतियों की अभिव्यक्ति होती है। प्रत्येक युग के साहित्य में युगीन परिस्थितियां किसी न किसी रूप में अभिव्यक्ति पाती है। तुलसी भी अपने युग के एक सजग साहित्यकार थे। उन्होंने अपने युग और युगीन परिस्थितियों को खुली आंखों से देखा था और इस कारण उनकी कृतियों में उनका युग बोलता है और कवितावली में भी तत्कालीन युग के चित्र स्पष्ट एवं ....
Question : बिहारी के काव्य में कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समास शक्ति का कितना सामंजस्य मिलता है। प्रमाण सहित उत्तर दीजिए।
(2008)
Answer : बिहारी ने अपनी भावाभिव्यक्ति का माध्यम दोहे छन्द को बनाया है। दोहा एक मात्रिक छन्द है। इसके चारों चरणों में सब मिलाकर 48 मात्रएं होती हैं। यदि अक्षरों की गणना की जाये तो इसमें कम-से-कम 24 और अधिक से अधिक 46 अक्षर आ सकते हैं। इतने छोटे से छन्द में अपने भावों को प्रकट करने में वही कवि सफल हो सकता है, जो समास-पद्धति में निपुण हो, थोड़े में बहुत कुछ कहने की जिसमें सामर्थ्य ....
Question : हम डूबते हैं आप तो अध के अंधेरे कूप में
हैं किंतु रखना चाहते उनको सती के रूप में
निज दक्षिणांग पुरीष से रखते सदा हम लिप्त हैं,
वामांग में चंदन चढ़ाना चाहते, विक्षिप्त हैं।।(2008)
Answer : संदर्भः प्रस्तुत पद्यांश मैथलीशरण गुप्त कृत भारत-भारती के वर्तमान खंड से उद्धृत है। इस खंड में कवि ने भारत की वर्तमान दयनीय दशा को चित्रित किया है। इस पंक्ति में कवि हमें स्त्रियों के प्रति हमारे व्यवहार को रेखांकित करते हुए बताते हैं कि स्त्रियों की उपेक्षा करके हम अपने पांव पर ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं।
व्याख्याः हम स्वयं तो पाप के अंधेरे कुएं में डूब ही रहे हैं, सब प्रकार के कुकर्म किया करते ....
Question : कितनों को तूने बनाया है गुलाम,
माली कर रखा, सहाया जाड़ा-घाम,
हाथ जिसके तू लगा,
पैर सर रखकर वह पीछे को भागा
औरत की जानिब मैदान यह छोड़कर
तबेले को टट्टू जैसे तोड़कर
शाहों, राजों, अमीरों का रहा प्यारा
तभी साधारणों से तू रहा न्यारा।
(2008)
Answer : संदर्भः ये पंक्तियां कविवर निराला के प्रसिद्ध व्यंग्य कविता- ‘कुकुरमुत्ता’ में से ली गई है। निराला जी की यह कविता उनके ‘नये पत्ते’ नामक काव्य-संग्रह में संकलित है। इस कविता में कवि ने अपने युग की अनेक मान्यताओं और चेतनाओं पर करारा व्यंग्य किया है। छायावादी चेतनाओं, राजनीति, ब्रह्म-संबंधी विचार, पूंजीवाद, सामाजिक वैषम्य आदि सभी पर एक तीखे व्यंग्य का भाव इस लंबी कविता में है। इस पंक्ति में कविवर ने गुलाब के फूल के ....
Question : “अधिक जीवन को जो पाता ही आया विरोध धिक साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध। जानकी! हाय उद्धार प्रिया का हो न सका वह एक और मन रहा राम का जो न थका, जो नहीं जानता दैन्य, नहीं जानता विनय कर गया भेद वह मायावरण प्राप्त कर जय, बुद्धि के दुर्ग पहुंचा विद्युत-गति हतचेतन राम में जगी स्मृति, हुए सजग पा भाव प्रभन।”
(2007)
Answer : प्रसंग प्रस्तुत पंक्ति महाकवि निराला की प्रबंधात्मक रचना राम की शक्ति पूजा से ली गई है। राम जब साधना में लीन थे तो देवी दुर्गा ने साधना हेतु रखे कमल चुरा लेने पर राम निराशा में अपने को धिक्कारने लगते हैं। लेकिन अचानक साधना पूरी करने का उपाय उनके मन में आता है और वे हर्षित हो उठते हैं।
व्याख्याः अपने जीवन को धिक्कारते हुए राम कहने लगे- मेरे इस जीवन को धिक्कार है जो कि ....
Question : “सामंती समाज की जड़ता को तोड़ने का जैसा प्रयास कबीर ने किया वैसा प्रयास कोई दूसरा नहीं कर सका”- इस कथन के आधार पर कबीर के कृतित्व का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
(2007)
Answer : कबीर एक ओर परंपरागत भारतीय समाज की मध्यकालीन अवस्था की उपज थे, तो दूसरी ओर परम्परागत और मध्यकालीनता की सीमाओं को तोड़ने की कोशिश कर अपने अनुकूल एक समाज की कल्पना कर रहे थे।
इसे हम इस प्रकार से भी कह सकते हैं कि कबीर सिर्फ कल्पना नहीं कर रहे थे, बल्कि अपनी कल्पना को साकार करने के लिए संघर्ष भी कर रहे थे। परम्परागत भारतीय समाज जाति-पांति पर आधारित भेद-भाव में पांच श्रेणियों में बांटा ....
Question : ‘कामायनी’ को जयशंकर प्रसाद की अन्यतम काव्यकृति क्यों कहा जाता है? सतर्क और सोदाहरण अपने मत का उपस्थापन कीजिए।’
(2007)
Answer : ‘कामायनी’ छायावाद की सर्वोत्कृष्ट रचना है। इसका निर्माण छायावाद की पौढ़ वेला में हुआ है और यह छायावाद के प्रवर्तक महाकवि जयशंकर प्रसाद की गहन अनुभूति एवं उन्नत अभिव्यक्ति की साकार प्रतिमा है। इसी कारण इसमें छायावाद की संपूर्ण उन्नत और श्रेष्ठ प्रवृत्तियों का मिलना नितांत स्वाभाविक है। देखा जाय तो कामायनी महाकाव्य ही छायावाद की प्रतिनिधि रचना है। प्रसाद ने जीवन के जिन संदर्भों को लेकर कामायनी का प्रणय किया है, वे अत्यंत व्यापक ....
Question : श्रेय नहीं कुछ मेरा मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में- वीणा के माध्यम से अपने को मैंने सब कुछ को सौंप दिया था- सुना अपने जो वह मेरा नहीं न वीणा का थाः वह तो सब कुछ की तथता थी महाशून्य वह महामौन अविभाज्य, अनाप्त, अद्रवित, अप्रमेय, जो शब्दहीन सब में गाता है।”
(2007)
Answer : प्रसंगः प्रस्तुत पद्यांश प्रयोगवादी महाकवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय की रचना ‘आंगन के पार द्वार’ काव्य संग्रह के ‘असाध्य वीणा’ कविता से है। आधुनिक साहित्य में मानवीय व्यक्तिगत और उसकी सर्जनात्मकता की सबसे गहरी और सार्थक चिंता अज्ञेय के कृतित्व में मिलती है।
सृजन के रहस्य की आत्मदान के रूप में व्याख्या रचनाकार ने ‘असाध्य वीणा’ में की है। इस पद के माध्यम से अज्ञेय की सृजनशीलता के रहस्य का उद्घाटन कर रहे हैं। यह प्रियवंद ....
Question : “फूलमरै पै मरै न बासूय्- इस कथन के आधार पर जायसी की प्रेम-व्यंजना के महत्व का आंकलन कीजिए।
(2007)
Answer : जायसी ने अपने पद्मावत में प्रेम के नए दृष्टिकोण की स्थापना का प्रयास किया है। इसमें लौकिक प्रेम और ईश्वरीय प्रेम को मिलाने का प्रयास किया गया है। इसमें प्रेम को एक सामाजिक मूल्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी भक्त कवि ने अपने ईश्वरीय प्रेम से संतुष्ट होने से मना कर दिया और मानव से प्रेम ही ईश्वरीय प्रेम माना है। जायसी कहते हैं:
“मानस प्रेम ....
Question : कहेहू तें कछु दुख घटि होई। काहि कहौं यह जानन कोई।।
तत्व प्रेम कर मम अरू तोरा। जानत प्रिया एकु मनु मोरा।।
सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं। जानु प्रीति रसु एतनेहि माहीं।।
प्रभु संदेसु सुनत बैदेही। मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही।।
(2007)
Answer : प्रसंगः प्रस्तुत पंक्तियां गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड से उद्धत है। यह प्रसंग उस समय का है जब राम के दूत के रूप में हनुमान जी लंका के अशोक वाटिका पहुंचते हैं और सीता जी को अपना परिचय देकर भगवान श्री राम के संदेश सीता माता को सुनाते हैं। इस पंक्ति में हनुमान जी राम के वियोग-दशा का वर्णन करते हुए कहते हैं:
व्याख्याः विरह-वेदना का उल्लेख करने पर वह कुछ कम हो जाती है, ....
Question : मैं ब्रह्मराक्षस का सजल-उर-शिष्य होना चाहता जिससे कि उसका वह अधूरा कार्य उसकी वेदना का स्रोत संगत पूर्ण निष्कर्षों तलक पहुंचा सकूं।
(2007)
Answer : प्रसंगः प्रस्तुत पंक्तियां कविवर मुक्तिबोध के काव्य-संकलन ‘चांद का मुंह टेढ़ा है’ में संकलित ‘ब्रह्मराक्षस’ नामक कविता की अन्तिम पंक्तियों से उद्धृत है। स्वर्गीय मुक्तिबोध की यह लंबी कविता एक प्रकार का मिथ कही जा सकती है। इसमें उन्होंने परंपरागत धारणाओं के सड़े-गले अन्तराल में से जीवन के जीवन्त तत्व बटोरने का साहसिक सफल प्रयास किया है। ब्रह्मराक्षस उस अनवरत प्रयास का प्रतीक लगता है जो सदियों के मटमैले कुहासों को धोकर जीवन को निखारने ....
Question : निराला अपने समय की आवश्यकतानुसार प्रसंग का चयन, प्रसंग का विस्तार तथा प्रसंग की व्याख्या करते थे। क्या निराला की यह विशेषता राम की शक्ति पूजा में भी दृष्टिगोचर होती हैं? युक्तियुक्त विवेचन कीजिए।
(2006)
Answer : ‘राम की शक्ति-पूजा की रचना कविवर निराला ने सन् 1936 में किया था। यह काल हमारे सांस्कृतिक और राष्ट्रीय संघर्षों का काल था।
इस संघर्ष में निराशा के अनेक क्षण, अनेक प्रकार के भय, विषम उतार-चढ़ाव आ रहे थे। निराला ने अपने समय की चुनौतियों और खुद के द्वन्द्व-संघर्ष की समर्थ को राम-कथा के एक खास अंश को लेकर प्रस्तुत की है। इसमें संदेह नहीं कि ‘राम की शक्ति पूजा’ के सारे चरित्र राम, लक्ष्मण, हनुमान, ....
Question : अंबर कुंजां कुरलियां, गरजि भरे सब ताल।
जिनि षै गोबिंद बीछुटे, तिनके कौण हवाल।।
चकवी बिछुटी रैणि की, आई मिली परभाति।
जे जन बिछुटे राम जूं, ते दिन मिले ने राति।।
(2006)
Answer : प्रस्तुत पंक्ति कबीरदास की रचना ‘विरह कौ अंग’ से उद्धृत है। प्रेम की परिपूर्णता एवं परिपक्वता के लिए विरह आवश्यक माना गया हैं। विरह के द्वारा ही आत्मा परमात्मा की ओर और भी दृढ़ता के साथ उन्मुख होती है।
इसीलिए प्रत्येक की शाखा के भक्ति-काव्य में, चाहे वह सगुण का उपासक हो चाहे निर्गुण का, विरह का विधान किया गया है। इस अंग में कबीर ने भी परमात्मा के प्रभाव में और उसके दर्शन करने की ....
Question : ब्रह्मराक्षस की प्रतीकात्मकता पर प्रकाश डालते हुए समझाइए कि इस कविता की भाषा तथा शिल्प कहां तक कवि की संवेदना के अनुकूल हैं?
(2006)
Answer : ब्रह्मराक्षस मुक्तिबोध की एक फैण्टेसी रचना है। हिन्दी काव्य साहित्य में यह शिल्प मुक्तिबोध की अपनी खोज है, जो उन्होंने पश्चिम के मनोविश्लेषणवादी उपन्यासों से लिया है। मुक्तिबोध के पहले यह किसी को ज्ञात नहीं था कि मन की गुत्थियों का आख्यान करने वाली फैण्टेसी प्रविधि में ठोस सामाजिक सत्यों की भी अभिव्यक्ति हो सकती है। मुक्तिबोध फैण्टेसी की शर्तों का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि इसके माध्यम से वस्तु पक्ष नेपथ्य में चला ....
Question : बिन गोपाल बैरनि भई कुंजै।
तब ये लता लगति अति सीतल,
अब भइं विषम ज्वाल की पुंजैं
वृधा बहति जमुना, खत्र बोलत,
यथा कमल फूलै, अलि गुंजैं।
पवन पानि घनसार संजीवनि,
दधिसुत किरन भानु भइं भुंजै।
ए, ऊधो, कहियों माधव सो बिरह,
कदन करि मारत लुंजै।
सूरदास प्रभु को मग जोवत,
आंखियां बरन ज्यों गुंजै।
(2006)
Answer : इसमें प्रकृति का उद्दीपन विभाव से चित्रण किया गया है। संयोग से गोपियों को प्रकृति की जो वस्तुएं अच्छी लगती थीं आज श्रीकृष्ण के बिना (वियोगावस्था में) वे सब काटने को दौड़ती हैं। गोपियां परिस्थिति-जन्य इस विषमता का उल्लेख उद्धव से कर रहीं है और उन्हें बता रही हैं कि श्री कृष्ण से जाकर कह देना कि उन्हें देखते-देखते गोपियों की आंखें गुंजा की भांति लाल हो गई हैं। दर्शनातुर गोपियों की मनः स्थिति का ....
Question : ‘रामचरितमानस’ के ‘सुंदरकांड’ तथा ‘कवितावली’ के उत्तरकांड के आधार पर तुलसीदास की भक्तिभावना का स्वरूप विशद कीजिए।
(2006)
Answer : तुलसी मूलतः एक भक्त कवि थे। तुलसी की भक्ति-भावना का विश्लेषण करने से पूर्व यह समझ लेना आवश्यक है कि तुलसी पहले एक भक्त हैं और बाद में कुछ और। कदाचित इसी कारण उनके सारे ही ग्रंथ भक्ति रस से आपूरित हैं।
कवितावली भी तुलसी की अन्य कृतियों की तरह एक भक्तिपरक ग्रंथ है, जैसे रामचरित मानस, पर कवितावली की रचना चारणों की शैली में हुई है। भक्ति के दो स्वरूप मिलते हैं- (1) वैदिक भक्ति ....
Question : ‘‘न्यायोचित सुख सुलभ नहीं
जब तक मानव-मानव को
चैन कहां धरती पर, तब तक
शांति कहां इस भाव को
जब तक मनुज-मनुज का यह
सुख भाग नहीं सम होगा,
शक्ति न होगा कोलाहल
संघर्ष नहीं कम होगा।’
(2006)
Answer : प्रस्तुत पंक्तियां रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित ‘कुरूक्षेत्र’ के सप्तम सर्ग से उद्धत हैं। इसमें कवि ने भीष्म पितामह के माध्यम से विश्वशांति अथवा जीवन में समता व अमरता के मार्ग का प्रतिपादन किया है। इस पंक्ति में भीष्म पितामह धर्मराज को समझाते हुए कह रहे हैं कि जब तक प्रत्येक मनुष्य को न्याय संगत अधिकार नहीं प्राप्त होगे, जब तक पृथ्वी का रस, वायु की शीतलता, सूर्य का प्रकाश, सुखोपभोग की सामग्री पर बिना ....
Question : विषमता की पीड़ा से व्यस्त
हो रहा स्तंभित विश्व महान,
यही दुख-सुख विकास का सत्य
यही भूमा का मधुमय दान।
नित्य समरसता का अधिकार,
उमड़ता कारण जलधि समान,
व्यथा में नीली लहरों बीच
बिखरते सुख मणि द्युतिमान।(2006)
Answer : प्रस्तुत पंक्ति जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘कामायनी’ केश्रद्धा सर्ग से उद्धृत है। इस पंत्तिफ़ में श्रद्धा मनु सम्मुख स्पष्ट करती है कि दुःख और सुख के अत्यन्त निकट सम्बन्ध है, और दुख के बिना सुख का कोई अस्तित्व ही नहीं है। यह संसार ही वास्तव में दुःख और सुख की विषमता का परिणाम है क्योंकि यहां कभी सृष्टि होती है तो कभी उसका विनाश होता है।
इसी प्रकार की विषमताओं के साथ यह महान संसार निरंतर ....
Question : बैठे मारुति देखते राम-चरणारविन्द
..........................................................
दक्षिण करतल पर वाम चरण, कपिवर गद्गद्।
(2005)
Answer : प्रसंग एवं सन्दर्भः प्रस्तुत पद्यांश ‘राम की शक्ति पूजा’ के तीसरे महत्वपूर्ण चरण से चयनित है। यहां यह खण्ड अवान्तर कथा की पृष्ठभूमि सा प्रतीत होता है, जब वे भगवान श्री राम को खोये हुए और अचानक भावुक देखकर सप्ताकाश पर सहसा आक्रमण कर देते हैं। मां अंजना से प्रबोध पाकर उसी स्थान पर लौट आते हैं, जहां वे स्थूल रूप में विद्यमान थे। निराला के द्वारा इस प्रसंग की अवधारणा की समीक्षकों ने अपने-अपने ....
Question : ‘कुकुरमुत्ता’ के सन्दर्भ में निराला की प्रगतिशील चेतना पर प्रकाश डालिए।
(2005)
Answer : ‘कुकुरमुत्ता’ एक संश्लिष्ट रचना है। प्रगीत और प्रबन्ध की परम्परा की व्यवस्था से भिन्न एक विलक्षण सृजन। निराला मात्र निश्च्छल भावुक नहीं हैं। वे ‘जूही की कली’ लिख सकते हैं, तो ‘बादल राग’ भी। ‘कुकुरमुत्ता’ की तो संवेदना एवं सत्य ही निराली है। निराला विचार व्यवस्था की रूढि़ से टकराते हैं, उसे तोड़ते हैं और फिर एक नई रचना संभव करते हैं। इस प्रक्रिया में उनका शाश्वत् व्यवस्था विद्रोह एवं प्रगतिधर्मी चेतना सदा सक्रिय रही ....
Question : रूपक तत्व की दृष्टि से ‘कामायनी’ का विवेचन करते हुए उसके उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
(2005)
Answer : कामायनी के औदात्य को समझने की तमामतर पद्धतियों में एक पद्धति उस पर रूपक तत्व का आरोपण कर उसी दृष्टिकोण से उसकी व्याख्या की रही है। महाकाव्य के रचना शिल्प के रूप में, ऐतिहासिक इतिवृत्त के रूप में, दार्शनिक रचना जैसे रूपों में व्याख्या करके तमाम समीक्षकों ने ‘कामायनी’ के यथासम्भव सभी पदचापों को सुनने का कार्य किया है। ऐतिहासिक इतिवृत्त या स्थूल घटनाक्रम के मानक पर, मनु एक धृष्ट नायक के रूप में अवतरित ....
Question : जोग ठगौरी ब्रज न बिकैहै!
.......................................
सूरदास प्रभु गुनहिं छाडि़कै को निर्गुन निरवैहै?
(2005)
Answer : प्रसंग एवं सन्दर्भः इसमें उद्धव का गोपियों ने व्यंग्य गर्भित शैली में उपहास किया है। गोपियों के द्वारा उद्धव के ज्ञान के प्रति कटाक्ष करते हुए यह कहा जाता है कि उनका यह ज्ञान यहां ब्रज में कोई भी ग्रहण करने वाला नहीं है। गोपियां नन्दगांव की निवासिनी होने में गर्व की अनुभूति करती हैं। चूंकि श्रीकृष्ण ने इसी गांव में गोपियों के साथ नाना प्रकार की लीलाऐं रचीं थीं, इसलिए वे मथुरा से आए ....
Question : ‘भ्रमर गीत सार’ के दार्शनिक पक्ष की विवेचना करते हुए उसके काव्यगत महत्व की समीक्षा कीजिए।
(2005)
Answer : भारतीय धर्मसाधना के तीन अंग हैं- ज्ञान, कर्म एवं उपासना। ज्ञान, कर्म और उपासना में ज्ञान, क्रिया और भावना की स्वीकृति है। उपासना में भावना ही मूल तत्व है और भावना की उदात्त अवस्था ही ‘भक्ति’ है। वैष्णव धर्म दर्शन के मूल गीता के छठे से ग्यारहवें अध्याय तक मुख्यतः भक्ति दर्शन का प्रतिपादन है। उपनिषदों के ‘निवृत्तिपरक ज्ञानमार्ग’ एवं ‘कर्मपरक ज्ञानमार्ग’ से श्रद्धा समन्वित भक्ति का प्रस्थान बिन्दु गीता के चित्त की एकाग्रता, परमतत्व ....
Question : चढ़ा अषाढ़ गगन घन गाजा,
........मोहि प्रिय बिनु केा आदर देई।
(2005)
Answer : प्रसंग एवं सन्दर्भः उपरोक्त पद्यांश जायसी के ‘पद्मावत’ के फ्नागमती वियोग खण्ड" से चयनित है। नागमती वियोग वर्णन से कवि अपनी सम्पूर्ण भावनाओं के साथ प्रोषित पतिका नागमती के विरह का विशद् चित्रण करता है। रत्नसेन के योगी होकर चले जाने के बाद नागमती वियोग के अथाह सागर में गोते लगाते हुए आषाढ़ महीने के आने पर अपनी अवस्था इस रूप में पाती है, जैसे विरह ने दल सजाकर दुन्दुभी बजाते हुए आक्रमण कर दिया ....
Question : अबे, सुन बे गुलाब,
भूल मत जो पाई खुशबु, रंगोआब,
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट,
डाल पर इतरात है केपीटलिस्ट!
कितनों को तूने बनाया है गुलाम,
माली कर रक्खा, सहाय जाड़ा-घाम।
(2004)
Answer : संदर्भः प्रस्तुत पंक्तियां सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कृत ‘कुकुरमुत्ता’ से ली गयी हैं। ‘कुकुरमुत्ता’ एक संश्लिष्ट संरचना है। प्रगति और प्रबंध की पारंपरिक व्यवस्था से भिन्न एक विलक्षण स्थापत्य। निराला मात्र निश्छल भावुक नहीं हैं, उनके पास विचार हैं। उनके विचार, व्यवस्था की रूढि़ से टकराते हैं, उसे तोड़ते और एक नवीन रचना करते हैं। इन नवीन रचनाओं में कुकुरमुत्ता भी एक है। निराला वस्तुतः युगान्तर लाना चाहते हैं। उनके इस प्रयास की एक परवर्ती कड़ी ....
Question : खेलन सिखए, अलि, भलैं चतुर अहेरी मार।
कानन-चारी नैन-मृग नागर नरनु सिकार।।
रससिंगार-मंजनु किए, कंजनु भंजनु दैन।
अंजनु रंजनु हूं बिना खंजनु गंजनु, नैन।।
(2004)
Answer : संदर्भः प्रस्तुत पंक्तियां बिहारीकृत बिहारी सतसई से ली गई हैं। बिहारी हिन्दी साहित्य के प्रतिनिधि कवि हैं। प्रस्तुत दोहों में नायिका की अंतरंगिनी सखी उसके नेत्रों द्वारा नायक के घायल होने का वृतांत उससे , परिहासात्मक वाक्य में कहती है। वहां चातुरी से नायक का नाम नहीं लेती, प्रत्युत घायल होने वाले के निमित्त बहुवचन ‘नागर नरनु’ पद प्रयुक्त करके सामान्यतः कहती है कि तेरे नेत्रों से प्रवीण नरों का शिकार होता है। वह सोचती ....
Question : किन्तु, गहरी बावड़ी
की भीतरी दीवार पर
तिरछी गिरी रवि-रश्मि
के उड़ते हुए परमाणु, जब
तल तक पहुंचते हैं कभी
तब ब्रह्मराक्षस समझता है, सूर्य ने
झुककर ‘नमस्ते’ कर दिया।
(2004)
Answer : संदर्भः प्रस्तुत पंक्तियां ‘ब्रह्मराक्षस’ कविता से ली गई हैं। इस लम्बी कविता के कवि मुक्तिबोध हैं। स्वर्गीय मुक्तिबोध की ‘ब्रह्मराक्षस’ लम्बी कविता एक प्रकार की मिथक कही जा सकती है। इसमें उन्होंने परंपरागत धारणाओं के सड़े-गले अंतराल में से जीवन के जीवंत तत्व बटोरने का साहसिक सफल प्रयास किया है। ब्रह्मराक्षस उस अनवरत प्रयास का प्रतीक है, जो सदियों से मटमैले कुहासों को धोकर जीवन को निखारने का प्रयास है, पर अन्य धारणाएं उसके प्रयासों ....
Question : सूफी दर्शन के संदर्भ में ‘पप्रावत’ की प्रेमाभिव्यंजना का विश्लेषण प्रस्तुत कीजिए।
(2004)
Answer : हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल को स्वर्णयुग की संज्ञा दी गई है। जायसी कृत ‘पप्रावत’ इसी भक्तिकाल की प्रतिनिधि काव्य रचना है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार ‘साहित्य जनता के चितवृत्ति का प्रतिबिंब है।’ किसी भी काव्य रचना के सृजन की व्याख्या करता है।
भक्तिकाल में साधारण जनता ‘राम और रहीम’ की एकता मान चुकी थी। साधुओं और फकीरों को दोनों दीन के लोग आदर और सम्मान की दृष्टि से देखते थे। साधु और फकीर ....
Question : कहेउ राम बियोग तब सीता।
मो कहुँ सकल भए बिपरीता।।
नव तरू किसलय मनहुं कृसानू।
कालनिसा सम निसि ससि भानू।।
कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा।
बारिद तपत तेल जनु बरिसा।।
जे हित रहे करत तेइ पीरा।
उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा।।
(2004)
Answer : संदर्भः प्रस्तुत चौपाई गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस के सुन्दरकांड की है। रामचरित मानस हिन्दी साहित्य की ही नहीं विश्वसाहित्य की अद्वितीय निधि है। इसी कारण गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी साहित्य के सबसे ऊंचे पायदान पर विराजमान हैं। प्रस्तुत चौपाई में रामभक्त हनुमान सीता जी के समक्ष राम के वियोग का वर्णन कर रहे हैं। यह कार्य लंकानगरी के अशोक वाटिका में संपन्न हो रहा है, जहां रावण ने अपहरण कर सीता जी को रखा ....
Question : नवजागरण के मूलभूत तत्वों की अभिव्यक्ति ‘भारत-भारती’ में किस प्रकार हुई है? समीक्षा कीजिए।
(2004)
Answer : हिन्दी साहित्य के इतिहास में मैथिलीशरण गुप्त को द्विवेदी युग का सर्वश्रेष्ठ रचनाकार माना जाता है। खड़ी बोली कविता को लोकप्रिय बनाने में उनका योगदान असाधारण है। मैथिलीशरण गुप्त की महत्ता इस बात में है कि व्यापक आलोचकीय अनिच्छा के बावजूद वे आधुनिक काल के एक बड़े कवि हैं। उनकी लोकप्रियता के पीछे कई कारण बताये जाते हैं-जैसे सीधी-सरल भाषा, पौराणिक कथानकों का चुनाव, गृहस्थ जीवन की महिमा का आख्यान, व्यापक हिन्दु नैतिक मूल्यों का ....
Question : ‘कामायनी’ का समरसता संदेश वर्तमान जीवन स्थितियों में कहां प्रासंगिक है? तर्क सहित बतलाइए।
(2004)
Answer : कामायनी आधुनिक हिन्दी साहित्य की सर्वोत्तम कृति है। जयशंकर प्रसाद ने जीवन के जिन संदर्भों को लेकर कामायनी का प्रणयन किया है, वे अत्यंत व्यापक एवं मोहक हैं। हिन्दी-साहित्य जगत में तुलसी के रामचरितमानस के पश्चात् कामायनी में कविता को मानवीय संवेदनाओं के नये आयाम उपलब्ध हुए हैं। सत् और चित् के शाश्वत गुणों से संचालित मानवता में आनंद उपलब्ध करने की जो चिरंतर पुकार उठती है, इस काव्य में ध्वनित हुई है। अंतर्जगत् और ....
Question : मेरे जाति पांति, न चहां काहू की जाति पांति,
मेरे कोऊ काम को, न हौं काहू के काम को।
लोक परलोक रघुनाथ ही के हाथ सब,
भारी है भरोसो तुलसी के एक नामको।
अति ही अयाने उपखानो नहिं बूझैं लोग,
‘साद्र ही को गात, गोत होत है गुलाम को।’
(2003)
Answer : संदर्भ-प्रसंगः उपर्युक्त पदावली लोकनायक तुलसीदास विरचित ‘कवितावली’ के ‘उत्तरकांड’ से उद्धृत है। भक्तिकाल हिन्दी काव्य का स्वर्णयुग कहा जाता है और तुलसी उसके दीप्तिमान नक्षत्र। प्रस्तुत पद में तुलसीदास ने ‘राम’ नाम की महिमा का बखान किया है। राम की भक्ति दास्य भाव से भक्त कवि गोस्वामी तुलसीदास कर रहे हैं।
व्याख्याः तुलसीदास अपने को राम के सेवक के अतिरिक्त और कुछ नहीं मानते। इसलिए वे कहते हैं, मेरी न कोई जाति है और न में ....
Question : ‘ब्रह्मराक्षस’ कविता की संवेदनागत तथा शिल्पगत विशेषताओं का विश्लेषण कीजिए।
(2003)
Answer : ब्रह्मराक्षस मुक्तिबोध की सर्वाधिक प्रसिद्ध कविताओं में से एक है। ब्रह्मराक्षस मुक्तिबोध का एक प्रिय प्रतीक है, जिसका प्रयोग उन्होंने न केवल अपनी कविताओं में बल्कि कहीं-कहीं कहानियों तथा विचारपरक रचनाओं में भी किया है। इस कविता में ब्रह्मराक्षस का स्वरूप रहस्यात्मक है और अर्थ के स्तर पर वह अर्थ उद्घाटित और अर्थ आच्छादित है। ब्रह्मराक्षस के प्रतीकत्व को लेकर कई विवाद हैं। प्रथम, ब्रह्मराक्षस मुक्तिबोध का भोक्ता स्व है। स्व का अर्थ है वह ....
Question : यद्यपि हताहत गात में कुछ सांस अब भी आ रही,
पर सोच पूर्वापर दशा मुंह से निकलता है, यही
जिसकी अलौकिक कीर्ति से उज्ज्वल हुई सारी नहीं,
था जो जगत का मुकुट, है क्या हाय! यह भारत वही,
अब कमल क्या, जल तक नहीं, सरमध्य केवल पंक है,
वह राज, राज कुबेर अब हा! रंक का भी रंक है।
(2003)
Answer : संदर्भ-प्रसंगः प्रस्तुत पद राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा रचित ‘भारत-भारती’ के ‘वर्तमान खण्ड’ का प्रारंभिक पद्य है। गुप्त जी ने ‘अतीत खंड’ में भारत के अतीत गौरव एवं मानवीय मूल्यों का वर्णन किया, लेकिन इस खंड में अपने समय के भारत का यथार्थ चित्रण किया है। गुप्त जी ने अपने समय के भारत का वर्णन करते हैं:
व्याख्याः कवि गुप्त जी कहते हैं कि इस भरे हुए भारत की सांसे अभी तक चल ही रही हैं ....
Question : ‘नागमती-वियोग खंड’ के आधार पर जायसी की काव्य-कला के विविध पक्षों का विवेचन कीजिए।
(2003)
Answer : हिन्दी साहित्य में भक्तिकालीन काव्यधारा की प्रेमाश्रयी शाखा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। उनका ‘पद्मावत’ तो हिन्दी साहित्य का अमर कीर्ति स्तंभ है। इसके अंदर भी ‘नागमती-वियोग खंड’ अमूल्य निधि है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल की स्पष्ट धारणा है कि- फ्नागमती का विरह वर्णन हिन्दी साहित्य में एक अद्वितीय वस्तु है।" नागमती का विरह वर्णन बेहद रमणीय, मार्मिक एवं विस्तृत है। नागमती रत्नसेन के पद्मावती की खोज में सिंहल द्वीप ....
Question : श्रेय नहीं कुछ मेराः
मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में
वीणा के माध्यम से अपने को मैंने
सब कुछ को सौंप दिया था
सुना आप ने जो वह मेरा नहीं,
न वीणा का थाः
वह तो सबकुछ ही लथता थी-
महाशून्य
वह महामौन
अविभाज्य, अनाप्त, अद्रवित, अप्रमेय
जो शब्दहीन
सब में गाता है।
(2003)
Answer : संदर्भ-प्रसंगः प्रस्तुत पद्यांश प्रयोगवादी महाकवि सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय द्वारा विरचित ‘आंगन के पार द्वार’ काव्य-संग्रह के ‘असाध्य वीणा’ कविता से है। आधुनिक साहित्य में मानवीय व्यक्तित्व और उसकी सर्जनात्मकता की सबसे गहरी और सार्थक चिंता अज्ञेय के कृतित्व में मिलती है। सृजन के रहस्य की आत्मदान के रूप में व्याख्या, रचनाकार ने ‘असाध्य वीणा’ में की है। इस पद के माध्यम से अज्ञेय जी सृजनशीलता के रहस्य का उद्घाटन कर रहे हैं। यह प्रियवंद ....
Question : ‘राम की शक्ति-पूजा’ के आधार पर निराला के चरित्र-चित्रण कला की विशेषताएं स्पष्ट कीजिए।
(2003)
Answer : ‘राम की शक्ति-पूजा’ निराला के जीवन के समग्र औदात्य को अभि-व्यंजित करने वाली हिन्दी-साहित्य की एक महत्तम उपलब्धि है। इसे उनकी कीर्ति का आधार-स्तंभ स्वीकार किया जाता है। यह एक वृहतर कविता है, जो अपने अंतराल में प्रबंधात्मकता और महाकाव्यात्मक औदात्य लिए हुए है। यह कविवर निराला की प्राणवत्ता की परिचायक तो है ही, उनकी सृजन कुशलता औैर निराला की क्षमता को भी रूपाकार प्रदान करने वाली है। छायावादी काव्य की चरम परिणति इस काव्य ....
Question : ‘कामायनी’ में चित्रित मानव सभ्यता के विकास की विभिन्न स्थितियों और समस्याओं का विवेचन कीजिए।
(2002)
Answer : ‘कामायनी’ का प्रस्थान बिंदु वस्तुत काव्य रचना की एक मूल्य व्यवस्था से दूसरी रचना मूल्य व्यवस्था में प्रवेश का सूचक है। इसमें न सिर्फ मुक्तकों वाली एक भाव स्थिति के बजाय मनुष्य और परिस्थिति के घात-प्रतिघात से बनने वाली कथात्मक घटना क्रम है वरन् इस महाकाव्य की शुरुआत श्रृंगार के बजाय चिंता से होती है। यह चिंता वास्तव में पहले के काव्य और भद्र समाज में निहित एक मूल्य-व्यवस्था को लेकर है, जिसमें नित्य निर्बाध ....
Question : चुराता न्याय जो, रण को बुलाता भी वही है,
युधिष्ठिर! स्वत्व की अन्वेषणा पालक नहीं है।
नरक उनके लिए, जो पाप को स्वीकारते हैं,
न उनके हेतु जो रण में उसे ललकारते हैं।
(2002)
Answer : संदर्भ-प्रसंगः प्रस्तुत अवतरण राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा विरचित ‘कुरूक्षेत्र’ के चतुर्थ सर्ग से उघृत है। इस पद्यांश में भीष्म पितामह युधिष्ठिर को युद्ध, उसके मूल कारण एवं पाप और पुण्य आदि प्रश्नों का समाधान करते हुए कहते हैं कि-
व्याख्याः जो व्यक्ति न्याय छीनता है, अत्याचार करता है, दूसरे का अधिकार लूटता है, वस्तुतः वही युद्ध का मूल कारण होता है। अपने अधिकारों को प्राप्त करना कोई पाप नहीं होता। जो सत्य और न्याय के ....
Question : ‘असाध्य वीणा’ को केंद्र में रखकर अज्ञेय की रचना दृष्टि और जीवन-दर्शन का निरूपण कीजिए।
(2002)
Answer : असाध्य वीणा की कथा का आधार जापान में प्रचलित एक लोक कथा है जो ‘ओकाफुरा’ की पुस्तक ‘द बुक ऑफ टी’ में ^Taming of the harp* के नाम से संकलित की गई है। इस कथानुसार ‘एक जादूगर ने ‘किरी’ नामक एक विशाल वृक्ष से वीणा बनायी। चीन के सम्राट ने इस वीणा को संभालकर रखा और वह चाहता था कि इसे कोई बजाए। कई कलावंताें के प्रयास के बाद भी इसको कोई भी बजा नहीं ....
Question : अंग-अंग नग जगमगत, दीपसिखा-सी देह।
दिया बढ़ाएं हूं रहै, बड़ौ उज्यारौ गेह।।
पत्र ही तिथि पाइयै, वा घर के चहूं पास।
नितप्रति पून्यौईं रहै, आनन-ओप उजास।।
(2002)
Answer : संदर्भ-प्रसंगः प्रस्तुत अवतरण बिहारी सतसई से ली गई है। इसकी रचना बिहारी कवि ने की है, जो हिन्दी साहित्य के रीतिकाल के प्रमुख कवि हैं। प्रस्तुत अवतरण में नायिका की सखी, नायिका की छवि प्रशंसा नायक से करती है, साथ ही उसके मुख की प्रशंसा भी करती है।
व्याख्याः उस नायिका की दीपशिखा सी चमकने वाली देह के द्वारा अंग पर धारण किए हुए आभूषणों के नग सदा जगमगाते रहते हैं, इसीलिए उसके घर में दीपक ....
Question : वर्तमान सामाजिक संदर्भों में कबीर के काव्य की प्रासंगिकता पर विचार कीजिए।
(2002)
Answer : कबीर का व्यक्तित्व न केवल हिन्दी संत कवियों में अपितु पूरे हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। हिन्दी साहित्य के लगभग बारह सौ वर्षों के इतिहास में तुलसीदास को छोड़कर इतना प्रभावशाली और महिमामंडित व्यक्तित्व दूसरे कवि का नहीं है। वह हिन्दुओं के लिए ‘वैष्णव भक्त’, मुसलमानों के लिए ‘पीर’ सिक्खों के लिए ‘भगत’ कबीर पंथियों के लिए ‘अवतार’ आधुनिक राष्ट्रवादियों के लिए ‘हिन्दू-मुस्लिम-ऐक्य विधायक’ और ‘समाज सुधारक’ नव वेदांतियों के लिए ‘मानवधर्म-प्रवर्तक’, प्रगतिशील तत्वों की ....
Question : चढ़ा असाढ़ गगन घन गाजा।
साजा बिरह दुंद दल बाजा।
धूम स्याम धौरे घन धाए।
सेत धुजा बगु पांति देखाए।
खरग बीज चमकै चहुं ओरा।
बुंद बान बरिसै घन घोरा।
अद्रा लाग बीज भुइं लेई।
मोहि पिय बिनु को आदर देई।
(2002)
Answer : संदर्भ-प्रसंगः प्रस्तुत पद्यांश प्रसिद्ध कवि मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत प्रबंधकाव्य के नागमती वियोग खंड से उघृत है। कवि ने नागमती के विरह विरह वर्णन को मार्मिक बनाने के लिए बारह मासे का सहारा लिया है। प्रत्येक ऋतु का प्रभाव विरहिणी पर मार्मिक पड़ता है। जायसी ने इस बारह मासे का प्रारंभ आषाढ़ माह से किया है।
व्याख्याः आषाढ़ मास में बादलों ने गरजना आरंभ कर दिया। इसी मास में विरह का दुख भी अधिक ....
Question : दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआं उठा आंगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आंखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पांखे कई दिनों के बाद।
(2002)
Answer : संदर्भ-प्रसंगः प्रस्तुत अवतरण प्रगतिवादी कवि नागार्जुन द्वारा लिखी गई ‘अकाल और जिसके बाद’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। यह कविता आठ पंक्तियों की छोटी कविता है। प्रस्तुत अवतरण इसकी अंतिम चार पंक्तियां हैं। इस कविता के माध्यम से कवि ने अकाल की प्रचंड विभीषिका का चित्रण किया है। अकाल के हटने का चित्र भी अकाल की विभिषिका को चित्रित करता है।
व्याख्याः कवि चित्रत्मक शैली में कई दिनों के बाद घर के अंदर अनाज के दाने ....
Question : बिरहा बुरहा जिनि कहां, बिरहा है सुलितान।
जिसघर बिरहा न संचरे, सो घर सदा मशान।।
इस तन का दीवा करो, बाती मल्यू जीव।
लोहो सीचो तेल ज्यूं, कबमुख देखौ पीव।।
(2001)
Answer : संदर्भ-प्रसंगः प्रस्तुत मनोरम पद्यांश कबीरदास द्वारा विरचित है, जो कबीर ग्रंथावली में संग्रहित है। कबीरदास जी हिन्दी साहित्य के इतिहास में ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रतिनिधि कवि है। प्रस्तुत साखी ‘विरह कौ अंग’ से उधृत है। कबीरदास विरह की महिमा का गुणगान कर रहे हैं। कवि विरह को आत्मा से परमात्मा के मिलन का माध्यम बताया है।
व्याख्याः सूफी कवियों ने प्रेम की सार्थकता वियोग में मानी है। उसके मिलन का लक्ष्य तो जीवनोपरान्त है। इहलौकिक जीवन ....
Question : सुंदरकांड के आधार पर गोस्वामी तुलसीदास के काव्य सौष्ठव का सोदाहरण विवेचन कीजिए।
(2001)
Answer : गोस्वामी तुलसीदास के काव्य की प्रमुख विशेषता है- प्रतिपाद्य विषय और प्रतिपादन शैली का उत्कृष्ट समन्वय। उन्होंने जहां एक ओर अत्यंत विशाल फलक पर भावयोजना की अभिकल्पना की हैं, वहीं उसे अत्यंत निपुणता के साथ सजाया-संवारा भी है। वस्तुतः उनकी वाणी एक ऐसे समाधिस्थ चित्र की अभिव्यक्ति है, जिसमें भारतीय दर्शन, धर्म और कला का अद्भुत सामंजस्य है। उसमें ‘कांतासम्मित उपदेश’ के साथ ही ‘सद्यः परिनिवृत्ति’ की क्षमता है। भाव पक्ष की दृष्टि से अकेला ....
Question : निर्गुन कौन देस को बासी?
मधुकर! हॅसि समुसाय, सौंह दै बूसति सांच, न हांसी।।
को है जनक, जननि को कहियत, कौन नारि, को दासी?
कौन बरन, भेस है कैसो केहि रस कै अभिलाषी।
पावैगो पुनि कियो आपनो जो रे! कहैगो गांसी।
सुनत मौन ह्नै रह्यो सो सूर सबै मति मासी।।
(2001)
Answer : संदर्भ एवं प्रसंग: प्रस्तुत पद महाकवि सूरदास द्वारा विरचित ‘भ्रमर गीत’ नामक काव्य-संग्रह से उधृत है। प्रस्तुत पद सूर की व्यंग्य गर्भित शैली का एक उत्कृष्ट नमूना है। इसमें गोपियां उद्धव के निर्गुण ब्रह्म का उपहास कर रही हैं और अतिशय व्यंग्यात्मक ढंग से वे निर्गुण ब्रह्म का परिचय पूछ रही है। यह उद्धव-प्रति गोपियों का कथन है।
व्याख्याः हे उद्धव, भला हमें यह तो बताइए कि तुम्हारा वह निर्गुण ब्रह्म किस देश का निवासी है, ....
Question : नागार्जुन की काव्य संवेदना और भाषा शैली की सोदाहरण समीक्षा कीजिए।
(2001)
Answer : जीवन और जगत की व्याख्या करने में साहित्य की केंद्रीय भूमिका रही है। समय-समय पर जो विविध सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक परिवर्तन होते रहे हैं, उन्हें आगे बढ़ाने का उत्प्रेरक साहित्य ही है। आधुनिक काल में भारतेन्दु, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचंद, निराला, प्रसाद व पंत जैसे रचनाकारों ने अपने समय के समाज को सोद्देश्य दिशा प्रदान की। ‘नागार्जुन’ इसी परम्परा की महत्वपूर्ण कड़ी हैं। नागार्जुन का साहित्य संघर्षशील मानवता के सुख-दुखों की सचेतन ....
Question : पर उस स्पन्दित सन्नाटे में
मौन प्रियंवद साध रहा था वीणा
नहीं स्वयं अपने को शोध रहा था।
सघन निबिड़ में अपने को
सौप रहा था उसी किरीटी-तरू को।
कौन प्रियंवद है कि दंभ कर
इस अभिमंत्रित कारूवाद्य के सम्मुख आवे?
(2001)
Answer : संदर्भ एवं प्रसंगः प्रस्तुत मनोरम पद्यांश प्रयोगवादी महाकवि अज्ञेय द्वारा विरचित ‘आंगन के पार द्वार’ काव्य संग्रह के ‘असाध्यवीणा’ कविता से उधृत है। प्रस्तुत अवतरण कविता सृजन की प्रक्रिया को व्याख्यायित करती है और इस संबंध में कुछ महत्वपूर्ण धारणाएं व्यक्त करती है।
व्याख्याः एक राजा के पास वज्रकीर्ति द्वारा निर्मित एक ऐसी वीणा थी, जिसे कोई बजा नहीं पाता था। अंततः उसके निमंत्रण पर एक बार प्रियंवद केशकंबली नामक एक साधक उनकी सभा में उपस्थित ....
Question : ‘राम की शक्ति पूजा’ और ‘कुकरमुत्ता’ की संवेदना की भिन्नता को रंखांकित करते हुए निराला की शैलीगत विशेषताओं का विश्लेषण कीजिए।
(2001)
Answer : निराला जी छायावादी काव्य युग के प्रमुख आधार स्तंभ रहे हैं। काव्य का मूल तत्व संवेदना ही है। छायावादी युग में कविवर निराला ने ‘राम की शक्तिपूजा’ जैसे काव्य का सृजन किया, उसमें तो सर्वतोभावेन काव्य में संवेदना ही सर्वथा प्रमुख बनकर रह गया था। समूचे छायावादी युग का काव्य अन्तः बाह्य सभी दृष्टि से संवेदन युक्त है। इस तथ्य को सभी मुक्त भाव से स्वीकार करते हैं। अपनी उदात्त संवेदना के कारण ही ‘राम ....
Question : महानृत्य का विषम सम, अरी
अखिल स्पंदनों की तू माप,
तेरी ही विभूति बनती है
सृष्टि सदा होकर अभिशाप।
अंधकार के अट्टहास-सी,
मुखरित सतत् चिरंतन सत्य,
छिपी सृष्टि के कण-कण में तू,
यह सुन्दर रहस्य है नित्य।
(2001)
Answer : संदर्भ एवं प्रसंगः जयशंकर प्रसाद का कालजयी महाकाव्य ‘कामायनी’ के चिंता सर्ग से उधृत प्रस्तुत पंक्तियों में मनु मृत्यु के सत्य को उद्घाटित करते हैं।
व्याख्याः मनु मृत्यु को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे मृत्यु! तू संसार में होने वाले विनाशकारी तांडव नृत्य का वह भयंकर पद-चाप है, जहां पहुंचते ही जीवन की संपूर्ण लय समाप्त हो जाती है, और फिर जीवन के एक नए ताल का आरम्भ हो जात है अर्थात् मृत्यु तेरे ....
Question : "पद्मावत एक उत्कृष्ट प्रेम काव्य है।" इस मत की सतर्क व्याख्या करें।
(2000)
Answer : हिन्दी साहित्य में भक्तिकालीन काव्यधारा की प्रेमाश्रयी शाखा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है, उनका ‘पद्मावत’ हिन्दी साहित्य का अमर कीर्ति स्तंभ है। जायसी का काव्य लौकिक और अलौकिक, शारीरिक और सूक्ष्म तथा सूफी मत प्रेम-भावना की सजीव और सरस अभिव्यक्ति है और इसीलिए वह सहृदयों के विशेष रूप से प्रेम-भाजन है।
पद्मावत की आख्यायिका एक प्रेम कहानी है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने पद्मावत के प्रेम पद्धति को इस प्रकार बताया ....
Question : विजन-वन-बल्लरी पर
सोती थी सुहाग-भरी स्नेह-स्वप्न-मग्न
अमल-कोमल-तनु तरुणी-जुही की कली,
दृग बंद किये, शिथिल, पत्रंक में,
वासंती निशार्थी,
विरह विधुर-प्रिया-संग छोड़
किसी दूर देश में था पवन
जिसे कहते हैं मलयानिल।
(2000)
Answer : संदर्भ एवं प्रसंगः प्रस्तुत पद्यावतरण निरालाकृत ‘राग-विराग’ के ‘जुही की कली’ से उद्धृत है। इस कविता में वसंत के आगमन और नायिका के उन्मुक्त प्रणय भावना की सादृश्यता है।
व्याख्याः सूने वन में उगी, विकसित लता पर पत्तों की गोदी में प्रेम की मधुर कल्पनाओं में डूबी, निर्मल-कोमल शरीर वाली पतली कमर वाली युवती के समान पूर्ण विकसित जुही की कली अपनी आंख बंद किए अर्थात् उन खिले रूप में, शिथिल शरीर से अर्थात् खिलने की ....
Question : ‘कबीर शास्त्रीय ज्ञान की अपेक्षा अनुभव ज्ञान को अधिक महत्व देते थे।’ इस मत की समीक्षा कीजिए।
(2000)
Answer : साहित्यकार साहित्य की रचना समाज में रहकर करता है, इसलिए यह स्वाभाविक है कि साहित्य पर उसके अपने व्यक्तित्व के साथ-साथ अपने समय की स्थितियों का प्रभाव पड़ेगा। कबीर का समय पंद्रहवीं शताब्दी का मध्यकाल है। यह समय प्रत्येक दृष्टि से उथल-पुथल का समय था। साहित्य और जीवन का अविच्छिन्न संबंध है। कवि समाज को प्रभावित करता है और उससे प्रेरणा भी ग्रहण करता है। तत्कालीन समाज दूषित मूल्यों पर आधारित था, जहां विलासिता का ....
Question : राम नाम बिनु गिरा न सोहा।
देखु बिचारि त्यागि मद मोहा।।
बसन हीन नहिं सोह सुरारी।
सब भूषण भूषित बर नारी।।
राम बिमुख संपत्ति प्रभुताई।
जाइ रही पाई बिनु पाईं।।
सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं।
बरिष गएं पुनित तबहिं सुखाही।।
(2000)
Answer : संदर्भ-प्रसंगः प्रस्तुत पद्यांश गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस के ‘सुंदरकांड’ से उधृत है। मेघनाथ द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करने पर हनुमान जी मूर्च्छित हो गये तो उन्हें नागपाश में बांध कर रावण के पास ले गया। हनुमान जी को देखकर रावण दुर्वचन कहकर खूब हंसा। इस पर हनुमान ने राम नाम की महिमा का बखान करते हुए, ये बातें कहीं।
व्याख्याः राम नाम के बिना वाणी की शोभा नहीं है अर्थात् भगवत भक्ति के बिना जीवन निरर्थक ....
Question : यह पुण्य भूमि प्रसिद्ध है कि इसके निवासी ‘आर्य’ हैं, विद्या, कला-कौशल सबके जो प्रथम आचार्य हैं। संतान उनकी आज यद्यपि हम अधोगति में पड़े, पर चित्र उनकी उच्चता के आज भी आज भी कुछ है खड़े।
(2000)
Answer : संदर्भ-प्रसंगः प्रस्तुत पद्यांश कविवर मैथिलीशरण गुप्त प्रणीत ‘भारत-भारती’ के ‘अतीत खंड’ के अंतर्गत ‘भारत वर्ष की श्रेष्ठता’ शीर्षक से उद्धृत है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में गुप्त जी को द्विवेदी युग का सर्वश्रेष्ठ रचनाकार माना जाता है। द्विवेदी युग का साहित्य मूलतः भारतीय नवजागरण की चेतना से स्पंदित साहित्य है। गुप्त जी द्वारा प्रणीत भारत-भारती आधुनिक हिन्दी कविता का गौरव ग्रंथ है, जिसके द्वारा कवि ने संपूर्ण हिन्दी प्रदेश में नवजागरण एवं राष्ट्रीयता के मूल्यों ....
Question : छायावाद की प्रमुख विशेषताओं के आधार पर कामायनी का मूल्यांकन कीजिए।
(2000)
Answer : कामायनी छायावाद की सर्वोत्कृष्ट रचना है। इसका निर्माण छायावाद की प्रौढ़ वेला में हुआ है और यह छायावाद के प्रवर्तक महाकवि जयशंकर प्रसाद की गहन अनुभूति एवं उन्नत अभिव्यक्ति की साकार प्रतिमा है।
इसी कारण इसमें छायावाद की संपूर्ण उन्नत और श्रेष्ठ प्रवृत्तियों का मिलना नितांत स्वाभाविक है। देखा जाय तो कामायनी महाकाव्य ही छायावाद की प्रतिनिधि रचना है। जयशंकर प्रसाद ने जीवन के जिन संदर्भों को लेकर कामायनी का प्रणयन किया है, वे अत्यंत व्यापक ....
Question : मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ।
जा तन की सोई परै, स्यामु हरित-दुति होइ।।
कहत, नटत, रीझत, खिसत, मिलत, खिलज, लजियात।
भरे भन में करत हैं, नैंननु ही सब बात।।
नहिं परागु नहि मधुर मधु नहिं विकासु इहि काल।
अली कलि ही सौ वंध्यौ, आगे कौन हवाल।।
(2000)
Answer : संदर्भ-प्रसंगः प्रस्तुत दोहा बिहारी कृत बिहारी सतसई से उद्धृत है। प्रथम दोहे में बिहारी ने अपनी सतसई की निर्विघ्न समाप्ति की कामना से कवि, इस मंगला चरण रूप में दोहे में, श्री राधिकाजी से सांसारिक बाधा दूर करने की प्रार्थना करते हैं। दूसरे दोहे में, नायक और नायिका की चतुरता का वर्णन कोई सखी अपनी सखी से कर रही है। तीसरा दोहा, नवविवाहिता पत्नी के प्रेम में डूबकर अपने कर्त्तव्यों को भूल जाने वाले महाराज ....
Question : ‘नारी केवल माता है और इसके उपरांत वह जो कुछ है, वह सब मातृत्व का उपक्रम मात्र। मातृत्व संसार की सबसे बड़ी साधना, सबसे बड़ी तपस्या, सबसे बड़ा त्याग और सबसे महान विजय है। एक शब्द में उसे लय कहूंगा- जीवन का, व्यक्तित्व का और नारीत्व का भी।’
(1999)
Answer : संदर्भ एवं प्रसंगः प्रस्तुत गद्यांश प्रेमचंद के महाकाव्यात्मक उपन्यास गोदान से उद्धृत है। यह कथन मिस्टर बी मेहता का है जो रायसाहब अमरपाल सिंह के सहपाठी तथा यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक हैं।
व्याख्याः कहा यह जाता है कि नारी आदर्श का उपर्युक्त कथन प्रेमचंद का नारी संबंधी आदर्श भी है और उन्होंने अपने कथित प्रवक्ता मेहता साहब से कहलवाया है। मेहता की दृष्टि में नारी आदर्श का सजीव उदाहरण गोविन्दी है, जो अपना संपूर्ण समय ....
Question : अग्नि जो लागी नीर मैं, कंदू जलिया झारि।
उतर दषिण के पंडिता, रहे विचारि विचारि।।
दौ लागी साइक जल्या, पंषी बैठे आइ।
दाधी देह न पालवै, सतगुर गया लगाइ।।
समंदर लागी आगि, नदिया जल कोइला भई।
देखि कबीरा जागि, मंछी रूषां चढि़ गई।
(1999)
Answer : संदर्भ-प्रसंगः उपर्युक्त पद्यांश कबीर की साखी ‘ग्यान बिरह को अंग’ से उद्धृत है। इसमें कबीर ने उलटवासी के माध्यम से अपने भीतर परमात्मा से मिलने की विरह रूपी जो आग लगी है, उसको अभिव्यक्त किया है।
व्याख्याः कबीर कहते हैं कि उनके मानस रूपी नीर या जल में विरह की आग लग चुकी है, जिसके फलस्वरूप उसमें निहित विकार या वासना रूपी कीचड़ पूर्णतया जलकर भस्म हो चुका है। कीचड़ के जलने में एक व्यंजना यह ....
Question : ‘कबीर एक ओर तो अद्वैतवाद के समर्थक हैं और दूसरी ओर भगवद्भक्ति के द्वंद्व स्तंभ’, समीक्षा कीजिए।
(1999)
Answer : कबीरदास की भक्ति अथवा साधना पद्धति में सभी पद्धतियों का सामंजस्य दिखता है। जहां उनमें अद्वैतवाद के तत्व प्राप्त होते हैं वहीं भगवद्भक्ति के तत्व भी। वस्तुतः वे किसी एक पद्धति से जुड़कर चिपके रहने में विश्वास नहीं करते थे। वे दोनों पद्धतियों से तत्व लेते हैं, पर राह अपनी बनाते हैं।
कबीर के ब्रह्म, माया एवं जगत् संबंधी विचारों में अद्वैतवाद का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। अद्वैतवादी दर्शन के मुताबिक ही कबीरदास जी के ....
Question : ऊधो! प्रीति न मरन विचारै।
प्रीति पतंग जरै पावक परि, जरत अंग नहि टारैं।।
प्रीति परेवा उड़त गगन चढि़, गिरत न आप सम्हारै।
प्रीति मधुप केतकी कुसुम वसि कंटक आवु प्रहारै।।
प्रीति जानु जैसे पय पानी, जानि अपनपौ जारै।
प्रीति कुरंग नाद रस लुब्धक, तानि-तानि सर मारै।।
प्रीति जान जननी सुत कारन, को न अपन पो हारै।
सूर स्याम सौ प्रीति गोपिन की, कहु कैसे निरूवारै।।
(1999)
Answer : संदर्भ एवं प्रसंगः प्रस्तुत पद्यांश सूरदास विरचित सूरसागर के भ्रमरगीत सार से उद्धृत है। राग सा रंग में रचित इस पद में सूर की गोपियां मथुरा से कृष्ण का संदेश लेकर आए उद्धव को यह बता रही हैं कि प्रेम के मार्ग एक बार अपना लेने के पश्चात् कोई भी मृत्यु की परवाह नहीं करता। इसके लिए गोपियों की कई दृष्टांत भी उसके समक्ष प्रस्तुत करती हैं।
व्याख्याः गोपियां कहती हैं कि है उद्धव मृत्यु का ....
Question : भ्रमरगीत में अभिव्यक्त सूर की भक्ति भावना का सांगोपांग विवेचन कीजिए।
(1999)
Answer : परंपरागत भक्ति के दो प्रकार हैं- गौणी तथा परा। गौणी भक्ति सामान्य जनों की भक्ति है। परा से तात्पर्य है- आध्यात्मिक या श्रेष्ठ। अनुकूल भाव से ईश्वर का स्मरण ही पराभक्ति है। गौणी भक्ति के भी दो भेद हैं- वैधी और रागानुगा। विधि-विधान पूर्वक की गयी भक्ति को वैधी भक्ति कहा गया है। जबकि रागानुगा प्रेममय भक्ति है। कामरूपा तथा संबंधरूपा रागानुगा भक्ति के दो प्रकार हैं। भ्रमरगीत में गोपियों की जिस भक्ति का उद्घाटन ....
Question : यह क्या मधुर स्वप्न सी झिलमिल
सदय हृदय में अधिक अधीर;
व्याकुलता सी व्यक्त हो रही
आशा बन कर प्राण समीर।
यह कितनी स्पृहणीय बन गई
मधुर जागरण सी छविमान;
स्मिति की लहरों सी उठती है
नाच रही ज्यों मधुमय तान।
(1999)
Answer : संदर्भ एवं प्रसंगः उपर्युक्त पद्यांश छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद के महाकाव्य कामायनी के आशा सर्ग से उद्धृत है। महाप्रलय के पश्चात् सब कुछ खाने के कारण चिंतामग्न मनु को विराट् शक्ति का ज्ञान होने के फलस्वरूप हृदय में जीवन के प्रति आशा का संचार होता है। इसकी अभिव्यक्ति करते हुए वे कहते हैं कि जिस तुच्छ सुख के नष्ट हो जाने के कारण जीवन को उपेक्षा भरी नजर से देख रहे थे, उसी हृदय में ....
Question : कामायनी में अभिव्यक्त आनंदवाद और समरसता का सोदाहरण विवेचन कीजिए।
(1999)
Answer : कामायनी अभिव्यक्त जीवन दर्शन का मूल उद्देश्य आनंदवाद की स्थिति या आनंदवाद की प्राप्ति है। आनंदवाद से तात्पर्य है मानव या मनु के मन की आनंद साधना। चूंकि कामायनी की सर्वप्रमुख घटना है, मनु की मानसरोवर की यात्र, जिसका तात्पर्य है मानव मन की आनंद साधना। इस आनंदवाद की प्राप्ति समरसता से ही हो सकती थी। समरसता अर्थात् अभेद की स्थिति। अभेद की स्थिति से तात्पर्य है भाव-वृत्ति, ज्ञान-वृत्ति और कर्म-वृत्ति। इन तीनों में पृथक्ता ....
Question : स्वारथु नाथ फिरें सबही की
किये रजाइ कोटि विधि नीका।
यह स्वारथ परमारथ सास
सकल सुकृत फल सुगति सिंगारू।
देव एक विनती सुनि मोरी
उचित होई तस करन वहोरी।
तिलक समाज साजि सबु आना
करिअ सुफल प्रभु जौ मनु आना।
सानुग पढइअ मोहि बन, कीजिअ सबहि सनाथ
नतरू फेरि अहि बंधु, दोउ नाथ चलौ मैं साथ।
(1999)
Answer : सन्दर्भ एवं प्रसंगः प्रस्तुत पंक्यिां भक्त कवि तुलसीदास द्वारा विरचित महाकाव्य रामचरित मानस के अयोध्याकांड से उधृत है। राम जब अपना गृह छोड़कर वनवास चले जाते हैं, तब भरत सहित पूरा परिवार उन्हें लेने वन में आते हैं और कई प्रकार से मनाने का यत्न करते हैं। उपर्युक्त पंक्तियों में भरत ने अपनी आत्मग्लानि को व्यक्त करते हुए स्वयं वन में रहने की इच्छा व्यक्त की है।
व्याख्याः भरत, राम से कहते हैं कि हे नाथ! ....
Question : ‘कवितावली को आप मुक्तक रचना मानते हैं या प्रबंध रचना।’ सप्रमाण अपने मत का समर्थन कीजिए।
(1999)
Answer : काव्यशास्त्र में तीन प्रकार के काव्यों का उल्लेख मिलता है। प्रबंध काव्य, निबंध काव्य और मुक्तक काव्य। प्रबंध काव्य में कथा की एक सुव्यवस्थित योजना रहती है। इसमें पूर्वापर संबंध का निर्वाह आवश्यक होता है अर्थात् प्रत्येक सर्ग अथवा कांड कथात्मकता की दृष्टि से एक-दूसरे से संबंद्ध होता है। इसके अलावा एक सर्ग की पंक्ति आगामी सर्ग की शुरुआत से जुड़ी होती है। साथ ही प्रबंध काव्य में नायक, प्रतिनायक, नायिका तथा अन्य सहायक पात्रों ....
Question : एक-एक वस्तु या एक-एक प्राणाग्नि-बम है
ये परमास्त्र है, प्रक्षेपास्त्र है, यम है।
शून्याकाश में से होते हुए वे
अरे, अरि पर ही टूटे पड़े अनिवार।
यह कथा नहीं है, यह सब सच है, हां भई।
कहीं आग लग गयी, कहीं गोली चल गयी।
(1999)
Answer : संदर्भ एवं प्रसंगः प्रस्तुत पंक्तियां गजानन माधव मुक्तिबोध विरचित ‘अंधेरे में’ शीषर्क लंबी कविता से उद्धृत है। स्वप्न कथा शैली में इन पंक्तियों में कवि के अंतःस्तल में क्रांति का फैंटेसी गढ़ा गया है।
व्याख्याः पंक्तियों के द्वारा कवि ने कहना चाहा है कि जब शोषण के खिलाफ वैश्विक एकता बन जाती है, तब सत्ता का ध्वंस किस अस्त्र से किया जाये, यह मायने नहीं रखता। यहां उपयोग की एक-एक वस्तु ही विध्वंसक औजार के रूप ....