Question : यह तुम नहीं, तुम्हारा स्वार्थ बोल रहा है। स्वार्थ को इतनी छूट देना ठीक नहीं कि वह विवेक को ही खा जाये। अखबारों को तो आजाद रहना ही चाहिए। वे ही तो हमारे कर्मों का, हमारी बातों का असली दर्पण होता है। मेरा तो उसूल है कि दर्पण को धुंधला मत होने दो। हां अपनी छवि देखने का साहस होना चाहिए आदमी में।
(2008)
Answer : प्रसंग- प्रांत के मुख्यमंत्री दा साहब ने सरोहा निर्वाचन क्षेत्र से अपने प्रत्याशी लखन को बनाया है।
लखन कूटनीति में पारंगत न होने के कारण जोरावर द्वारा बिसेसर की हत्या करवाये जाने पर उत्तेजित है तथा चाहता है कि दा साहब मशाल के संपादक को निर्देश दे दें कि वह बिसू हत्याकांड को अधिक तूल न दें। क्योंकि इसका दुष्प्रभाव लखन की विजय में बाधक बनेगा। इस पर दा साहब उसे समझाते हैं कि प्रत्यक्ष हस्तक्षेप ....
Question : भारत दुर्दशा में व्यक्त भारतीय नवजागरण की चिन्ता का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
(2008)
Answer : भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने स्वयं भारतदुर्दशा को देशवात्सलता का नाटक कहा है। आज की शब्दावली में, जो देशप्रेम है, वही भारतेंदु जी की देशवात्सलता है। जैसा उन्होंने कहा है, इसका उद्देश्य देशवासियों में स्वादेशानुराग उत्पन्न करना है। अपने देश के प्रति प्रेम उत्पन्न कर, भारतवर्ष की उन्नति किस प्रकार की जा सकती है, इसके संबंध में उनके विचार बहुत स्पष्ट थे।
अपने लेख जातीय-संगीत, में उन्होंने बतलाया है कि देशप्रम की रचनाओं में किन विषयों को अधार ....
Question : आर्य, रक्तपात शत्रु को पराजित करने का सफल उपाय नहीं। शस्त्र द्वारा शत्रु का बध किया जा सकता है, उसे कुछ काल के लिए वश में किया जा सकता है, परंतु विजय नहीं किया जा सकता। मनुष्य मृत्यु की अपेक्षा पराभव केवल कायरता और प्रतिहिंसा की भावना से ही स्वीकार करता है।
(2008)
Answer : संदर्भः प्रस्तुत पंक्तियां यशपाल कृत ‘दिव्या’ नामक उपन्यास के पृथुसेन और रूद्रधीर खंड से अवतरित की गई है। यह पंक्ति बौद्ध स्थविथु चीवुक का पृथुसेन के प्रति है। मल्लिका के प्रसाद में आयोजित रूद्रधीर के सफल सैनिक अभियान से किसी प्रकार प्राण बचाकर भागते हुए पृथुसेन स्थविर चीवुक की शरण में बुद्धरक्षित संघराम जाता है तथा स्वस्थ होने पर जब पृथुसेन स्थविर चीवुक से बाहर जाने और संग्राम करने की विवशता की बात कहता है ....
Question : जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञान दशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। हृदय के इसी मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी, जो शब्द विधान करती आई है, उसे कविता कहते हैं। इस साधना को हम भावयोग कहते हैं और इसे कर्मयोग और ज्ञान योग के समकक्ष मानते हैं।
(2008)
Answer : संदर्भः प्रस्तुत गद्यांश आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी द्वारा लिखित चिंतामणि भाग-द्वितीय निबंध संग्रह के अंतर्गत ‘कविता क्या है’ निबंध से अवतरित है।
प्रस्तुत अवतरण में शुक्ल जी ने कविता के स्वरूप को दर्शाने का प्रयास किया है।
व्याख्याः निबंधकार का कहना है कि आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञान दशा कहलाती है तो यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि क्या आचार्य शुक्ल आत्मा को बंधनग्रस्त मानते हैं, तभी तो उसकी मुक्ति का प्रश्न उठता है? ज्ञान आत्मा का ....
Question : कविता करना अनंत पुण्य का फल है। इस दुराशा और अनंत उत्कंठा से कवि जीवन व्यतीत करने की इच्छा हुई। संसार के समस्त अभावों को असंतोष कहकर हृदय को धोखा देता रहा। परंतु कैसी विडंबना! लक्ष्मी के लालों का भ्रू-भंग और क्षोभ की ज्वाला के अतिरिक्त मिला क्या? एक काल्पनिक प्रशंसनीय जीवन, जो कि दूसरों की दया में अपना अस्तित्व रखता है।
(2008)
Answer : प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां नाटककार प्रसाद प्रणीत ‘स्कंदगुप्त’ में प्रथम अंक के तीसरे दृश्य से अवतरित की गई है। इन पंक्तियों में मातृगुप्त मार्ग पर चलते हुए कविकर्म पर विचार कर रहा है।
वह एक ओर तो अपने कवि जीवन के संबंध में विचार करता है तो दूसरी ओर जीवन के अभावों पर दृष्टिपात करता है। इसी अंतर्द्वंद्व की स्थिति को प्रस्तुत पंक्तियों में वाणी दी गई है।
व्याख्याः मातृगुप्त मन ही मन विचारता है कि मैंने सोचा ....
Question : ‘मैला आंचल’ के शीर्षक की सार्थकता पर विचार करते हुए इसके प्रतिपाद्य का विवेचन कीजिए और एक आंचलिक उपन्यास के रूप में इसकी सर्जनात्मक उपलब्धियों का संक्षेप में परिचय दीजिए।
(2007)
Answer : ‘मैला आंचल’ उपन्यास के नामकरण पर विचार करने से पहले इसके प्रतिपाद्य पर विचार करना उचित होगा क्योंकि तभी हम शीर्षक की सार्थकता या निरर्थकता की बात कर सकते हैं।
‘मैला आंचल’ का कथ्य एक भारतीय अंचल के नग्न यथार्थ से जुड़ा हुआ है। यह यथार्थ समसामयिक और एकदेशीय भी है तथा शाश्वत और भूमंडलीय भी। गरीबी और गुलामी, अशिक्षा और अंधविश्वास, शोषण और दमन, महामारी और अकाल, जातिवाद और नस्लवाद जैसी चीजें मानव इतिहास में ....
Question : परिवर्तन ही गति है। गति ही जीवन है। अमरता का अर्थ है- अपरिवर्तन, गतिहीनता। देवी, यदि सूर्य जैसे और जहां है, वहीं स्थिर हो जाए? यदि जलवायु जैसे और जहां स्थिर हो जाए सब स्थिर और अपरिवर्तनशील हो जाए तो क्या जीवन काम्य और सुखमय होगा?
(2007)
Answer : संदर्भः प्रस्तुत पंक्ति यशपाल कृत ऐतिहासिक उपन्यास ‘दिव्या’ से लिया गया है। यहां मारिश का कथन रत्नप्रभा के प्रति है। वह कहता है कि परिवर्तन में ही जीवन की सार्थकता है और अमरता तो जड़ता है। अमरता को ब्रह्मवादियों ने सुख माना है, परन्तु अमरता निर्जीव, गति-हीन और जड़ है, जबकि परिवर्तन सजीव और गतिमान है।
व्याख्याः गति का अर्थ है एक समय और एक स्थान से दूसरे समय और स्थान में प्रवेश करना। इसी को ....
Question : नाटकीय तत्वों के आलोक में ‘अषाढ़ का एक दिन’ आपको किन-किन बिन्दुओं पर आकृष्ट करता है? तर्कपुष्ट ढंग से अपना अभिमत प्रकट कीजिए।
(2007)
Answer : अषाढ़ का एक दिन नाटककार मोहन राकेश का ख्यातिस्तंभ है। इस नाटक में राकेश ने पौर्वात्य एवं पाश्चात्य दोनों ही नाट्य तत्वों का समावेश किया है। जहां भारतीय आचार्यों द्वारा निरुपित वस्तु, रस एवं नेता- ये तीन तत्व उसमें दिखायी देंगे, अरस्तु द्वारा प्रतिपादित त्रसदी को स्थान दिए जाने के कारण उसमें पाश्चात्य काव्यशास्त्रियों द्वारा निर्धारित-कथावस्तु, पात्र एवं चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, देश काल एवं वातावरण, भाषा-शैली, उद्देश्य और अभिनय को भी उसमें स्थान मिला है। इस ....
Question : जब स्वजन लोग अपने शील-शिष्टाचार का पालन करें: आत्मसमर्पण, सहानुभूति, सत्यपथ का अवलंबन करें, तो दुर्दिन का साहस नहीं कि उस कुटुम्ब की ओर आंख उठाकर देखे। इसलिए इस कठोर समय में भगवान की स्निग्ध करूणा का शीतल ध्यान कर।
(2007)
Answer : प्रसंगः प्रस्तुत गद्यांश स्वर्गीय जयशंकर प्रसाद की ऐतिहासिक नाट्य कृति स्कन्दगुप्त के दूसरे अंक के चतुर्थ दृश्य से उद्धृत है। यह देवकी का रामा के प्रति कथन है, जब रामा को इस षड्यंत्र का पता चलता है कि उसका प्रेमी शर्वनाग धन की लालच में फंस कर स्कंदगुप्त की माता देवकी की हत्या करेगा, तो रामा बन्दीगृह में जाकर देवकी को अपने प्रेमी की कृतघ्नता और निकट भविष्य में होने वाली हत्या का संकेत देती ....
Question : हिन्दी निबंध यात्र में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की विशिष्ट पहचान को सतर्क रेखांकित कीजिए।
(2007)
Answer : साहित्यिक रूप की दृष्टि से हिन्दी में निबंध का जन्म और विकास आधुनिक युग की देन है। आधुनिक काल में राष्ट्रीय जागरण, नई सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी निबंध का आरंभ हुआ। नवजागरण की चेतना ने हमारी मानसिकता को परिवर्तित कर हमारे बोध और संवेदना आधुनिक बनाया। नई तकनीक विकास से मुद्रण यंत्रें का प्रचलन प्रारंभ हुआ।
जिससे पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन तथा अंग्रेजी साहित्य से संपर्क में वृद्धि हुई। इस सब कारणों से ....
Question : प्रिय का चिन्तन हम आंख मूंदें हुए, संसार को भुलाकर करते हैं: पर श्रद्धेय का चिंतन हम आंख खोले हुए, संसार का कुछ अंश सामने रखकर करते हैं। यदि प्रेम स्वप्न है, तो श्रद्धा जागरण है। प्रेम प्रिया को अपने लिए और अपने को प्रिय के लिए संसार से अलग करना चाहता है। प्रेम में केवल दो पक्ष होते हैं, श्रद्धा में तीन। प्रेम में कोई मध्यस्थ नहीं, पर श्रद्धा में मध्यस्थ अपेक्षित है। प्रेमी और प्रिय के बीच कोई और वस्तु अनिवार्य नहीं, पर श्रद्धालु और श्रद्धेय के बीच कोई वस्तु चाहिए।
(2007)
Answer : प्रसंगः प्रस्तुत गद्यांश आचार्य शुक्ल के निबंध रचना श्रद्धा-भक्ति से लिया गया है। आचार्य शुक्ल मनोविकार पर ‘युग्मक’ रूप में भी विचार करते हैं और भाव-विशेष के विविध रूप-भेदों पर भी। भाव-विशेष के रूप-भेदों में से तारतम्य प्रदर्शित करते हुए द्वन्द्वात्मक रीति से उनके वैशिष्ट्य का निरूपण करते हैं। इस पंक्ति में वे श्रद्धा और प्रेम में द्वन्द्वात्मक रीति से भाव के वैशिष्ट्य का निरूपण करते हुए वे श्रद्धा के सामाजिक महत्व को रेखांकित करते ....
Question : जो केवल अपने विलास या शरीर सुख की सामग्री ही प्रकृति में ढूंढ़ा करते हैं, उनमें उस रागात्मक सत्व की कमी है, जो व्यक्त सत्ता मात्र के साथ एकता की अनुमति में लीन करके सताएं एक ही परम भाव के अंतर्भूत हैं। अतः बुद्धि की क्रिया से हमारा ज्ञान जिस अद्वैव भूमि पर पहुंचता है, उसी भूमि तक हमारा भावात्मक हृदय भी इस सत्व-रस के प्रभाव से पहुंचता है। इस प्रकार अंत में जाकर दोनों पथों की वृत्तियों का समन्वय हो जाता है।
(2006)
Answer : प्रस्तुत अवतरण आचार्य रामचन्द्र शुक्ल रचित निबंध कविता क्या है, से ली गई है। कविता क्या है, शुक्ल जी के निबंध संग्रह चिंतामणि में संकलित है। आचार्य शुक्ल ने कविता का स्वरूप समझाने के लिए सबसे पहले वासना का विचार किया है, फिर सभ्यता के बढ़ते आवरण का उसके प्रसार सीमा का, सृष्टि में मार्मिक तथ्यों के संकेतों का ‘शुक्ल जी के बिम्बों में वैसी कसावट होती है, जैसे रूई की बंधी गांठ में। यदि ....
Question : ‘मैं यद्यपि तुम्हारे जीवन में नहीं रही, परन्तु तुम मेरे जीवन में सदा वर्तमान रहे हो, मैंने कभी तुम्हें अपने पास से हटने नहीं दिया। तुम रचना करते रहे और मै समझती रही कि मैं सार्थक हूं, मेरे जीवन की भी कुछ उपलब्धि है-जो भाव तुम थे वह कोई नहीं हो सका, मैंने अपने भाव के कोष्ठ को रिक्त नहीं होने दिया। परंतु मेरे आभाव की पीड़ा का अनुमान लगा सकते हो?’
(2006)
Answer : प्रस्तुत पंक्तियां स्व॰ मोहन राकेश द्वारा लिखित नाटक आषाढ़ का एक दिन के तृतीय अंक से लिया गया है। कालिदास के विषय में मातुल यह सूचना देता है कि कश्मीर में शासन-भार संभालने के उपरांत कुछ ही वर्षों में वहां उपद्रवी शक्तियों के सिर उठाने के कारण कालिदास को शासन का परित्याग करना पड़ा और लोगों का तो यहां तक कहना है कि कालिदास ने संन्यास ग्रहण कर लिया है और वह काशी चला गया ....
Question : क्या इतिहास और कल्पना के सुंन्दर योग को प्रसाद की नाट्य कलागत विशेषताओं में सर्वोपरि विशेषता माना जा सकता हैं? स्कंदगुप्त के संदर्भं में तर्कसम्मत विवेचन कीजिए।
(2006)
Answer : प्रसाद भारतीय इतिहास के अच्छे अध्येता थे और साहित्य के सर्जक भी। उन्होंने वैदिक काल से लेकर आधुनिक युग तक पूरे भारतीय इतिहास का गहरा मंथन किया था। इस अध्ययन से अर्जित तथ्यों को ऐसे नाट्य साहित्य में रूपांतरित किया जो हिन्दी नाट्येतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय बन गया है। प्रसाद हिन्दी के पहले नाटककार हैं, जिन्होंने अपने प्रमुख नाटकों में इतिहास की तथ्यात्मकता पर भी ध्यान दिया और सृजनात्मक कल्पना का भी समुचित उपयोग ....
Question : ‘शरीर नश्वर और अस्थायी है? देवी अमरता चाहती हो? अच्छा कहो, अपने चारों ओर जितने पदार्थ तुम देख पाती हो, उनमें से कितने सदा एक रूप, एक रस, एक गंध रहते हैं? जिसे तुम नाश कहती हो, वह केवल परिवर्तन है। अमरता का अर्थ है अपरिवर्तन। कल्पना करो, संसार में कोई भी परिवर्तन न हो? उस संसार में सुख और आकर्षण होगा?
(2006)
Answer : प्रस्तुत पंक्ति यशपाल कृत उपन्यास दिव्या से ली गई है। यहां चार्वाकी विचारधारा के पोषक मारिश का कथन रत्नप्रभा के प्रति है। मारिश इस लोक के भोग को ही सार्थक बतलाकर उसके हृदय को परलोक और अमरता की कामना से मुक्त करता है। उसके अनुसार, जिस स्थूल, प्रत्यक्ष जगत् और शरीर का अनुभव मानव मात्र करता है, उसे असत्य और अयथार्थ नहीं कहा जा सकता।
परलोक, ब्रह्म और जीवात्मा की जो कल्पना ब्रह्मवादियों की है, वह ....
Question : रामचन्द्र शुक्ल अथवा कुबेरनाथ राय की निबन्ध कला पर प्रकाश डालिए।
(2005)
Answer : आचार्य शुक्ल के रचना कर्म के विश्लेषण-विवेचन से एक प्रश्न हमारे समक्ष यह उभरता है कि चिनतामणि में संग्रहीत निबन्धों के प्रणयन में आचार्य शुक्ल का अभीष्ट क्या है? इनके मूल उद्देश्यों में पहला तो यही था कि इनके माध्यम से समुचित वैज्ञानिक पृष्ठभूमि, पूर्व प्रकृति, जीवन और जगत् तथा व्यक्ति और समाज से सैद्धान्तिक एवं व्यवहारिक स्तर पर साहित्य के विषय में ‘सारगर्भित मौलिक चिन्तन’ और स्वानुभूत सत्य की प्रस्तुति की जाय। आचार्य शुक्ल ....
Question : इन रूपों और व्यापारों के सामने ……….. और ज्ञानयोग के समकक्ष मानते हैं।
(2005)
Answer : प्रसंग एवं सन्दर्भः उपरोक्त गद्यांश आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा रचित ‘चिन्तामणि’ भाग-1 से संकलित निबन्धों में "कविता क्या है?" शीर्षक निबन्ध से लिया गया है। मनोविकार विषयक निबन्धों के अनन्तर आचार्य शुक्ल द्वारा साहित्यिक भावभूमि के विषयों का विवेचन, उनके साहित्यालोचना की रुचि का परिचायक है। ‘कविता क्या है?’ निबन्ध में आचार्य शुक्ल ने प्रथम अवतरण में ही कविता में भावज्ञ की दशा के विश्लेषण का कार्य किया है।
व्याख्याः ‘कविता क्या है?’ इस सन्दर्भ की ....
Question : "जीवन के संघर्ष में उसे सदैव हार हुई ………उसे प्राणों की तरह बचा रहा था।"
(2005)
Answer : प्रसंग एवं सन्दर्भः कालजयी उपन्यास ‘गोदान’ के अंतिम खण्ड से चयनित यह अवतरण होरी के जीवन की करुण गाथा का सारांश है। यह वह स्थान है, जहां होरी द्वारा शुरू में कहे गए फ्साठ तक पहुंचने ही न पाऐंगे धनिया…." वाक्य का तार्किक अंत शुरू होता है। गोदान के इस खण्ड तक आते-आते सब कुछ ठीक होता जाता सा लगता है परन्तु सच्चाई यहीं है कि कथानायक जीवन के रणक्षेत्र में हारा महीप होता जा ....
Question : औपन्यासिक-कला की दृष्टि से ‘गोदान’ उपन्यास की समीक्षा कीजिए।
(2005)
Answer : ‘गोदान’ प्रेमचन्द की सबसे प्रौढ़ रचना है- किन अर्थों में? प्रेमचन्द ने 1900 ई. के लगभग उपन्यास लेखन प्रारम्भ किया था और उनका अन्तिम उपन्यास ‘गोदान’ 1936 में प्रकाशित हुआ था। निसर्गजात रूप में इनके बीच की रचनाओं में औपन्यासिक कला का सतत विकास दिखाई देता है। उनकी अन्तिम पूर्ण रचना में प्रेमचन्द की औपन्यासिक कला ही नहीं पूर्ण विषयवस्तु भी पूर्णोत्कर्ष पर पहुंची। गोदान अपने पूरे अर्थों में राजनैतिक मूल्यों से प्रभावित समाज का ....
Question : शिल्प एवं विषय की दृष्टि से स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कहानी पर प्रकाश डालिए।
(2005)
Answer : कविता और कहानी प्रेमचन्दोत्तर काल की केन्द्रीय विधाएं रही हैं। तमाम साहित्यिक आन्दोलनों में फलती-फूलती इन विधाओं के संबंध में बहुत सारी बहसों, गोष्ठियों एवं पत्र-पत्रिकाओं के विशेषांकों का सम्पादन हुआ। इसका मुख्य कारण यह था कि इन दोनों ने समकालीनता को गहरे अर्थ में रेखांकित करने का प्रयास किया, जीवन की जटिलताओं को उनकी समग्रता में आंकने की कोशिश की गयी। साठ के दशक तक इन कहानियों को नई-कविता के वजन पर नई-कहानी कहा ....
Question : "आचार्य, कुलवधू का आसन ………… उसे भोग करने वाले पराक्रमी पुरुष का सम्मान है।"
(2005)
Answer : प्रसंग एवं सन्दर्भः उपरोक्त अवतरण ‘यशपाल’ रचित ऐतिहासिक कल्पना प्रसूत उपन्यास ‘दिव्या’ से लिया गया है। यशपाल ने कला के अनुराग से ऐतिहासिक पृष्ठभूमि केा अपनी कल्पना से यर्थाथ का रंग देने का प्रयत्न किया है। अतीत का मंथन हम भविष्य का संकेत पाने के लिए करते हैं। उपरोक्त अवतरण, जो दिव्या के सबसे अंतिम खंड ‘दिव्या’ खण्ड से लिया गया है। वहां सम्भ्रान्त कथा नायिका अपने सर्वाधिक करुण कथा अन्त की ओर है। साकल ....
Question : विजय का क्षणिक उल्लास हृदय की भूख मिटा देगा? कभी नहीं। वीरों का भी क्या ही व्यवसाय है, क्या ही उन्मत्त भावना है। चक्रपालित! संसार में जो सबसे महान है, वह क्या है? त्याग! त्याग का ही दूसरा नाम महत्व है। प्राणों का मोह त्याग करना वीरता का रहस्य है।
(2004)
Answer : प्रस्तुत पंक्तियां जयशंकर प्रसाद द्वारा विरचित नाटक ‘स्कन्दगुप्त’ के द्वितीय अंक के प्रथम दृश्य से ली गई है। विजया ने देवसेना के समक्ष स्वीकार किया है कि उसका हृदय स्कन्दगुप्त के सामने कुछ मधुर हुआ है। वे दोनों चली जाती हैं। इस कथन में सकन्दगुप्त विजय के संबंध में अपनी भावनाएं अभिव्यक्त कर रहा है। वह चक्रपालित से कहता है।
हम लोग सैनिक हैं, हम लोग विजयश्री प्राप्त कर लेते हैं, किंतु इस विजय से प्राप्त ....
Question : यह तो सुकुल बाबू ही हैं कि टिक हुए हैं। केवल टिके हुए ही नहीं, सबको ठिकाने लेकर टिके हुए हैं। पर मन बेहद क्षुब्ध हो गया है उनका। उन्हें खुद लगने लगा कि राजनीति गुण्डागर्दी के निकट चली गई है। जिस देश में देवतुल्य राजनेताओं की परंपरा रही हो, वहां राजनीति का ऐसा पतन!
(2004)
Answer : प्रस्तुत गद्यांश महाभोज से ली गई है। मन्नु भंडारी महाभोज की लेखिका हैं। समकालीन उपन्यासकारों में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। महाभोज एक समकालीन उपन्यास है, जो वर्तमान समाज की विदूषताओं को ध्यान में रख कर लिखा गया है। प्रस्तुत उद्धरण लेखिका का है, इससे कथा के मुख्य पात्र सुकुल बाबू के व्यक्तित्व पर प्रकाश पड़ता है।
वर्तमान समय के राजनीति में अपराधियों की बढ़ती भूमिका के परिप्रेक्ष्य में लेखिका ने रोचक एवं व्यंग्यात्मक शैली में ....
Question : ऐतिहासिक उपन्यास लिखने के पीछे यशपाल की विशेष रचना-दृष्टि रही है; दिव्या के आधार पर उक्त विशेष रचना-दृष्टि की आलोचना कीजिए।
(2004)
Answer : यशपाल सामाजिक यथार्थ की परंपरा के लेखक हैं। यशपाल स्वाधीनता-संग्राम में क्रांतिकारी संगठन के अग्रणी योद्धा थे, राजनीतिक दृष्टि से मार्क्सवाद और समाजवाद से प्रतिबद्ध थे। यही कारण है कि वे समकालीन जीवन के अनुभवों को अपनी रचनाओं में बेधड़क कुशलतापूर्वक व्यक्त करते रहे हैं। ऐसे रचनाकार की दृष्टि भविष्य पर होती है और वह वर्तमान में संघर्ष करता है। समाज को बदलने और नया समाज रचने की दृष्टि से यह उल्लेखनीय है कि कोई ....
Question : ‘भारत दुर्दशा’ में प्रतिबिम्बित तत्कालीन भारत की परिस्थितियों और उन्हें लेकर लेखक की चिंताओं का विवेचन कीजिए।
(2004)
Answer : भारतेंदु हरिश्चंद्र हिन्दी भाषा के प्रथम रचनाकार हैं-जिन्होंने उन्नीसवीं शताब्दी के भारत की बहुविध परिस्थितियों का अतिव्यापक, सघहन और विश्लेषणात्मक अध्ययन किया। उनके निष्कर्ष तीक्ष्ण मेधाशक्ति और गंभीर विश्लेषण क्षमता से उपजे थे। इसी कारण भारतेंदु समस्या को मात्र सतह से छूते हुए नहीं निकल जाते, बल्कि उसे संपूर्ण परिपार्श्व में उभारते हैं, साथ ही समाधान भी प्रस्तुत करते हैं। समाधान भी ऐसा कि जिससे राष्ट्र और समाज सशक्त हो सके।
‘भारत-दुर्दशा’ का मूल विषय ही ....
Question : तू जो बात नहीं समझती, उसमें टांग क्यों अड़ाती है भाई! मेरी लाठी दे दे और अपना काम देख। यह इसी मिलते-जुलते रहने का परसाद है कि अब तक जान बची हुई है, नहीं कहीं पता लगता कि किधर गये। गांव में इतने आदमी तो हैं, किस पर बेदखली नहीं आयी, किस पर कुड़की नहीं आयी। जब दूसरे के पांवों तले अपनी गर्दन दबी हुई है, तो उन पांवों को सहलाने में ही कुशल है।
(2004)
Answer : प्रस्तुत गद्यांश ‘गोदान’ उपन्यास का है। कथा सम्राट प्रेमचंद इस उपन्यास के लेखक हैं। प्रेमचंद हिन्दी साहित्य इतिहास के अग्रणी उपन्यासकार हैं तथा ‘गोदान’ हिन्दी साहित्य की प्रतिनिधि कृति। प्रस्तुत वाक्यांश होरी, जो कथा का नायक है, द्वारा कही गई है, जिसे धनिया, जो उसकी पत्नी है, कही गई। यह प्रसंग उस समय का है जब होरी जमींदार के पास जाने वाला है और धनिया उसक पास जाने से रोकती है।
होरी अपनी पत्नी धनिया को ....
Question : अपने उपन्यास एवं कहानियों में प्रेमचंद की बुनियादी चिंताएं अपने समय की भी हैं भविष्य की भी हैं। इस विचार से आप कहां तक सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
(2004)
Answer : सिर्फ सतह पर दीखने वाली सच्चाई का ही नाम यथार्थ नहीं है। यथार्थ केवल चित्रण की भंगिमा को ही नहीं कहते, यथार्थ तो व्यक्ति और समाज, जीवन और संदर्भ के द्वन्द्वात्मक संबंध का आकलन है। यह अनावश्यक और आवश्यक का प्रतिनिधिक चित्रण है। प्रेमचंद की कहानियां एवं उपन्यास यथार्थवाद के क्रमिक विकास को रेखंकित करती हैं। उसमें हमारी तत्कालीन जीवंत परंपरा की तमाम विशेषताएं समाहित हैं। प्रेमचंद के उपन्यासों एवं कहानियों में कथावस्तु, विचार और ....
Question : कविता ही मनुष्य के हृदय को स्वार्थ-संबंधों के संकुचित मंडल से ऊपर उठाकर लोक-सामान्य भाव-भूमि पर ले जाती है, जहां जगत की नाना गतियों में मार्मिक स्वरूप का साक्षात्कार और शुद्ध अनुभूतियों का संचार होता है। इस भूमि पर पहुंचे हुए मनुष्य को कुछ काल के लिए अपना पता नहीं रहता। वह अपनी सत्ता को लोकसत्ता में लीन किए रहता है।
(2004)
Answer : प्रस्तुत गद्यांश आचार्य रामचंद्र शुक्ल कृत चिंतामणि के ‘कविता क्या है?’ निबंध से उद्धृत है। आचार्य शुक्ल हिन्दी साहित्य के इतिहास में प्रतिनिधि निबंधाकार के रूप में स्थापित है। ‘कविता क्या है?’ निबंध एक बहुचर्चित निबंध है। इसमें कविता का स्वरूप समझाने के लिए सबसे पहले वासना का विचार किया गया है, तथा सभ्यता के बढ़ते आवरण का, फिर उसकी प्रसार सीमा का, फिर सृष्टि में मार्मिक तथ्य के संकेतों का। प्रस्तुत पंक्तियां कविता में ....
Question : शिल्प एवं भाषा शैली की दृष्टि से ‘गोदान’ और ‘मैला आंचल’ कर तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
(2003)
Answer : हिन्दी आलोचना में उपन्यास शिल्प की अवधारणा को लेकर बहुत अस्पष्टता है। कुछ आलोचक ‘शिल्प’ का प्रयोग ‘कला’ के अर्थ में करते हैं और कुछ शैली के अर्थ में, कुछ दोनों को मिला देते हैं। वस्तुतः शिल्प शैली और कला दोनों से संबद्ध होने पर भी अपनी प्रकृति में उनसे भिन्न और विशिष्ट होता है। उपन्यास का शिल्प उसके कथा संसार की बनावट में निहित चातूर्य का नाम है। उपन्यास शिल्प की दो अत्यंत प्रचलित ....
Question : "बिगड़ने वाली बात को सभी पहले से जान लेते हैं, जिनके पास बल है, उसे नहीं होने देते, जो कमजोर है उसे धोखा कहकर छिपाते हैं....... बाबू को सब मालूम हो गया था, पर अच्छे घर-वर के लिए जो चाहिए वह बाबू कहां से लाते। इसमें तुम तो एक बहाना बन गये, तुम्हारा क्या कसूर है इसमें......."
(2003)
Answer : संदर्भ-प्रसंगः प्रस्तुत अवतरण ‘एक दुनिया समानांतर’ कहानी संग्रह के अंतर्गत कहानीकार शिव प्रसाद सिंह द्वारा लिखित कहानी ‘नन्हों’ से उद्धृत है। इस कहानी-संग्रह के संपादक राजेन्द्र यादव हैं। प्रस्तुत अवतरण कहानी के नायिका ‘नन्हों’ द्वारा राम सुभग को कही गई है।
व्याख्याः यह संसार की नियति है कि बिगड़ने वाली बात सभी जान लेते हैं, लेकिन इसका प्रभाव अलग-अलग वर्ग में अलग-अलग पड़ता है। बलवान व्यक्ति इसे होने ही नहीं देता, जो कमजोर होते हैं, वो ....
Question : जीवन की स्थिति समय में है और समय प्रवाह है। प्रवाह में साधु-असाधु, प्रिय-अप्रिय सभी कुछ आता है। प्रवाह का यह क्रम ही सृष्टि और प्रकृति की नित्यता है। जीवन के प्रवाह में एक समय असाधु, अप्रिय अनुभव आया। इसलिए उस प्रवाह से विरक्त होकर जीवन की तृष्णा को तृप्त न करना केवल हठ है।
(2003)
Answer : संदर्भ एवं प्रसंगः प्रस्तुत गद्यावतरण कल्पना प्रसूत, ऐतिहासिक उपन्यास ‘दिव्या’ के ‘अंशुमाला’ भाग से उद्धृत है। ‘दिव्या’ प्रसिद्ध उपन्यासकार यशपाल की उत्कृष्ठ कृति है। हिन्दी साहित्य में यशपाल अत्यन्त लोकप्रिय लेखक के रूप में प्रतिष्ठित हैं। प्रस्तुत अवतरण मारिथ, जो सागल का श्रेष्ठ मूर्तिकार है। का अंशुमाला यानि दिव्या के प्रति कथन है। अंशुमाला से मारिथ कहता है कि भद्रे। समस्या का समाधान हुए बिना दुविधा का अन्त नहीं होता, तब अंशुमाला कहती है कि ....
Question : जीवन यथार्थ के अंकन के परिप्रेक्ष्य में प्रेमचंद की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
(2003)
Answer : सिर्फ सतह पर दिखने वाली सच्चाई का ही नाम यथार्थ नहीं है। यथार्थ केवल चित्रण की भंगिमा को ही नहीं कहते, यथार्थ तो व्यक्ति और समाज, जीवन और संदर्भ के द्वंद्वात्मक संबंध का आकलन है। यह अनावश्यक और आवश्यक का प्रतिनिधिक चित्रण है। प्रेमचंद की कहानियां यथार्थवाद के क्रमिक विकास को रखांकित करती हैं। उसमें हमारी तत्कालीन जीवंत परंपरा की तमाम विशेषताएं समाहित हैं। प्रेमचंद की कहानियों में कथावस्तु, विचार और संरचना का एक सचेत ....
Question : केवल असाधारणत्व की रुचि सच्ची सहृदयता की पहचान नहीं है। शोभा और सौंदर्य की भावना के साथ जिनमें मनुष्य जाति के, उस समय के पुराने सहचरों की वंश परम्परागत स्मृति वासना के रूप में बची हुई है, जब वह प्रकृति के खुले क्षेत्र में विचरती थी, वे ही पूरे सहृदय भावुक कहे जा सकते हैं।
(2003)
Answer : संदर्भ एवं प्रसंगः प्रस्तुत अवतरण सुप्रसिद्ध आलोचक एवं निबंधकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के निबंध संग्रह ‘चिन्तामणि’ भाग एक के निबंध ‘कविता क्या है?’ निबंध से उद्धृत है। इस अवतरण में निबंधकार शुक्ल जी ने ‘कविता और सृष्टि प्रचार’ की व्याख्या की है। कहा है कि असाधारणत्व की ओर रुचि रखना ही सहृदयता की पहचान नहीं है।
व्याख्याः हृदय पर नित्य प्रभाव रखने वाले रूपों और व्यापारों की भावना को सामने लाकर कविता बाह्य प्रकृति के साथ ....
Question : ‘स्कंदगुप्त’ के आधार पर प्रसाद की इतिहास दृष्टि का विवेचन करते हुए उनकी नाट्य-कला की विशिष्टताओं का विश्लेषण कीजिए।
(2003)
Answer : जयश्ंकर प्रसाद का ‘स्कंदगुप्त’ हिन्दी नाट्य साहित्य की क्लासिक कृति है। क्लासिक कृति वह होती है, जिसका महत्व सर्वस्वीकृत हो जाता है। स्कन्द गुप्त का महत्व इस बात से प्रभावित हो जाता है कि गत सात दशकों से भी अधिक समय से यह विश्वविद्यालयों में अध्ययन-अध्यापन का विषय बना हुआ है। हिन्दी नाट्येतिहास एवं प्रसाद साहित्य पर प्रकाशित प्रबंधो-समीक्षा ग्रन्थों में इसकी चर्चा बार-बार होती रही है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने बहुत पहले अपने इतिहास ....
Question : ‘---- तुम्हारे दुःख की बात भी जानती हूं। फिर भी मुझे अपराध का अनुभव नहीं होता। मैंने भावना में एक भावना का वरण किया है। मेरे लिए वह संबंध और सब संबंधों से बड़ा है। मैं वास्तव में अपनी भावना से प्रेम करती हूं, जो पवित्र है, कोमल है, अनश्वर है।’
(2003)
Answer : संदर्भ एवं प्रसंगः प्रस्तुत गद्यावतरण प्रसिद्ध नाटककार मोहन राकेश द्वारा विरचित ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक से उद्धृत है। ‘आषाढ़ का एक दिन’ मोहन राकेश का पहला और सर्वोत्तम नाटक ही नहीं, आज के हिन्दी नाटक की पहली महत्वपूर्ण उपलब्धि भी है। यह नाटक मोहन राकेश को हिन्दी के शीर्षस्थ नाटककारो में प्रतिष्ठित करता है और हिन्दी नाटक और रंगमंच को भारतीय नाटकों और रंगमंच को समकक्ष लाता है।
व्याख्याः इस नाटक के प्रारंभ में वर्षा ....
Question : राष्ट्रनीति दार्शनिकता और कल्पना का लोक नहीं है। इस कठोर प्रत्यक्षवाद की समस्या बड़ी कठिन होती है। गुप्त साम्राज्य की उत्तरोत्तर वृद्धि के साथ उसका दायित्व भी बढ़ गया है, पर उस बोझ को उठाने के लिए गुप्तकुल के शासक प्रस्तुत नहीं, क्योंकि साम्राज्य लक्ष्मी को वे अब अनायास और अवश्य अपनी शरण आने वाली वस्तु समझने लगे हैं।
(2002)
Answer : संदर्भ एवं प्रसंगः प्रस्तुत पंक्तियां जयशंकर द्वारा प्रणीत स्कंद गुप्त नाटक के प्रथम अंक के प्रथम दृश्य से उद्घृत हैं। इन पंक्तियों में मगध का महानायक पर्णदत्त युवराज स्कंदगुप्त के सम्मुख राष्ट्रनीति को वहन करने की शक्ति और उत्तरदायित्व की व्याख्या कर रहा है। इसी विचारधारा को यहां वाणी दी गई है।
व्याख्याः मगध के महानायक पर्णदत राष्ट्रनीति को वहन करने की क्षमता और उत्तरदायित्व की स्पष्ट व्याख्या करते हुए कहते हैं कि राष्ट्रनीति दर्शन और ....
Question : मालती बाहर से तितली है, भीतर से मधुमक्खी। उसके जीवन में हंसी ही हंसी नहीं है, केवल गुड़ खाकर कौन जी सकता है और जिए भी तो वह कोई सुखी जीवन न होगा। वह हंसती है, इसलिए कि उसे इसके भी दाम मिलते हैं।
(2002)
Answer : संदर्भ एवं प्रसंगः प्रस्तुत गद्यांश उपन्यास सम्राट प्रेमचंद द्वारा रचित प्रसिद्ध उपन्यास ‘गोदान’ से उद्धृत है। प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के प्रतिनिधि उपन्यासकार हैं, साथ ही ‘गोदान’ भी। इस गद्यांश में प्रेमचंद ने मालती के आंतरिक और बाहृय गुणों की ओर लक्षित किया है।
व्याख्याः प्रेमचंद जी ने मालती के वाह्य गुण और आंतरिक गुणों को तितली और मधुमक्खी के द्वारा स्पष्ट करने की कोशिश की है। मालती तितली सदृश है यह तितली उसके वाह्य गुण को ....
Question : ‘दिव्या’ के औपन्यासिक प्रतिमानों का विश्लेषण करते हुए यशपाल के ऐतिहासिक बोध के दार्शनिक आधार की समीक्षा कीजिए।
(2002)
Answer : प्रो. नलिन विलोचन शर्मा ने ‘हिन्दी उपन्यास’ शीर्षक अपने लेख में लिखा था कि प्रेमचंद हिन्दी उपन्यास के वह शिखर है जिसके दोनों ओर ढ़लान है। जब यह लेख लिख गया था, तब यह धारणा सही थी, लेकिन आज लगभग साठ वर्षों के बाद हिन्दी उपन्यास की महान उपलब्धियों को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि इस शिखर के प्रेमचंदोत्तर पक्ष में अनेक शिखर उग आये हैं, जो प्रेमचंद की ऊंचाई का मुकाबला ....
Question : कवि की दृष्टि तो सौन्दर्य की ओर जाती है, चाहे वह जहां हो- वस्तुओं के रूप-रंग में अथवा मनुष्य के मन, वचन और कर्म में। उत्कर्ष साधना के लिए, प्रभाव की वृद्धि के लिए, कवि लोग कई प्रकार के सौन्दर्यों का मेल भी किया करते हैं।
(2002)
Answer : प्रसंग एवं संदर्भः प्रस्तुत गद्यांश आलोचक प्रवर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा सुविरचित ‘चिन्तामणि’ प्रथम भाग से संग्रहित निबंध के ‘कविता क्या है’ निबंध से उद्धृत है। प्रस्तुत गद्यांश में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी का कहना है कि कवि की मूल दृष्टि सौन्दर्यपरक होती है। वह सौन्दर्य किसी वस्तु के रूपरंग में अथवा मनुष्य के मन, वचन और कर्म में होता है।
व्याख्याः कला के साथ काव्य को जोड़ने से ‘सौन्दर्य’ के साथ ही काव्य जुड़ा रह ....
Question : सुकुल बाबू ने खड़े होकर ही इस चुनाव को इतना महत्वपूर्ण बना दिया है। सीट केवल एक, पर पूरे मंत्रिमंडल के लिए जैसे- एकदम निर्णायक! यही कारण है कि आज हर घटना को इस सीट से जोड़कर देखा-परखा जा रहा है। वरना और दिन होते तो क्या बिसू और बिसू की मौत!
(2002)
Answer : प्रसंग एवं संदर्भः ये पंक्तियां मन्नू भंडारी के राजनीतिक उपन्यास ‘महाभोज’ से उद्धृत की गई है। इसमें घटना अथवा व्यक्ति की अपेक्षा अवसर को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। सरोहा निर्वाचन क्षेत्र में कुछ समय पूर्व अग्निकांड होने पर न केवल धन-संपत्ति की हानि हुई अपितु अनेक हरिजन जीवित ही जला दिए गए थे और इस पर कोई विशेष कार्यवाही नहीं की गई। पर उपचुनाव निकट होने पर गांव के सामान्य हरिजन बिसेसर की हत्या ....
Question : ललित निबंध की सांस्कृतिक एवं मानवीय पक्षधरता के परिप्रेक्ष्य में कुबेरनाथ राय के ललित निबंध लेखन की समीक्षा कीजिए।
(2002)
Answer : हिंदी निबंध आधुनिक गद्यकाल की एक प्रमुख विधा है। इस संदर्भ में कहा गया है कि ‘गद्यं कविनां निकषं’ अर्थात यदि गद्य कवियों की कसौटी है, तो निबंध गद्य की कसौटी है। हिन्दी निबंध का उदय नवजागरण युग की देन है। उस समय निबंध तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे। जिनमें साधारण सामयिक विषयों, आन्दोलनों और समाचारों की चर्चा होती थी। इनमें बौद्धिक और वैज्ञानिकता के साथ-साथ व्यक्तिगत विचार प्रमुख हेाते थे। बाद में द्विवेदी ....
Question : भारतीय ग्रामों के यथार्थ की दृष्टि से ‘गोदान’ और ‘मैला आंचल’ का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
(2002)
Answer : भारतीय उपन्यास की अपनी खास स्वायत्त पहचान निर्धारित करने में जिन उपन्यास लेखकों की कृतियों से विशेष प्रेरणा मिली है, उनमें प्रेमचंद और रेणुजी अन्यतम हैं। भारतीय उपन्यास की भारतीयता को ठीक-ठीक पारिभाषित करने के लिए जो प्रमुख स्थापनाएं की गयी हैं, उनमें ‘गोदान’ और ‘मैला आंचल’ प्रमुख हैं। ‘गोदान’ और ‘मैला आंचल’ दोनों हमारे देश के तीसरे दशक से लेकर पांचवे दशक तक की सांस्कृतिक आलोचना है। सामाजिक यथार्थ की आंच से तपे ये ....
Question : महराज वेदांत ने बड़ा ही उपकार किया। सब हिन्दू ब्रह्म हो गए। किसी को इतिकर्त्तव्यता बाकी ही न रही। ज्ञानी बनकर ईश्वर से विमुख हुए, रुक्ष हुए, अभिमानी हुये और इसी से स्नेह शून्य हो गए। जब स्नेह ही नहीं तब देशोद्धार का प्रयत्न कहां? बस जयशंकर की।
(2001)
Answer : संदर्भः प्रस्तुत गद्यांश भारतेन्दु हरिशचन्द्र कृत ‘भारत दुर्दशा’ नाटक के तृतीय अंक से उधृत है। भारत की दुर्गति में अनेक कारकों का सक्रिय योगदान रहा। इन कारकों को भारतेन्दु ने अपनी रंग परिकल्पना से पात्रों का रूप दिया। आलस्य, मदिरा, अज्ञान, रोग आदि ऐसे ही पात्र है। सत्यानाश फौजदार और भारत दुर्दैव भी भारत के पतन के कारणों के घनीभूत रूप हैं। सत्यानाश फौजदार नामक पात्र द्वारा भारतेन्दु भारत के पतन के आन्तरिक कारणों में ....
Question : जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की यह मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। हृदय के इसी मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी, जो शब्द विधान करती आई है, उसे कविता कहते हैं। इस साधना को हम भावयोग कहते हैं और इसे कर्मयोग और ज्ञान योग का समकक्ष मानते हैं।
(2001)
Answer : संदर्भः प्रस्तुत गद्यांश आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी द्वारा लिखित ‘चिंतामणि भाग-1’ निबंध संग्रह के अंतर्गत ‘कविताम्या है’ निबंध से उधृत है। प्रस्तुत अवतरण में शुक्ल जी कविता के स्वरूप को दर्शाने का प्रयास किये हैं।
व्याख्याः निबंधकार का कहना है कि ‘आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञान दशा कहलाती है’ तो यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि क्या आचार्य शुक्ल आत्मा को बंधनग्रस्त मानते हैं, तभी तो उसकी मुक्ति का प्रश्न उठता है? ज्ञान आत्मा का स्वरूप ....
Question : ‘आषाढ़ का एक दिन’ शीर्षक की सार्थकता पर विचार करते हुए उसकी आधुनिक प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए।
(2001)
Answer : कालिदास के ‘आषाढ़स्य प्रथम दिवसे’ के मूल काव्य-नाट्य बिंब पर ‘आषाढ़ का एक दिन’ की रचना हुई। मोहन राकेश ने कहा है कि ‘आषाढ़ का एक दिन’ के वह तीन चरित्र भी पहले से मन में स्पष्ट थे। ‘मेघदूत’ पढ़ते हुए मुझे लगा करता था कि कहानी निर्वासित यक्ष की उतनी नहीं है जितनी स्वयं अपनी आत्मा से निर्वासित उस कवि की, जिसने अपनी ही एक अपराध-अनुभूति को इस परिकल्पना में ढाल दिया। उस अपराध ....
Question : उत्पीडि़त होकर भी वह शरण पाये हैं। अशरण हो तो वह कहां जायेंगी। वर्षा में गृह विहीन स्तम्भ की ओट पाने का ही यत्न करता है--। उसके नेत्र भींग गये और वह मौन हो गई। सोचा- प्रतुल और अंजना भी उसके दुर्भाग्य का रहस्य जानते हैं, इसीलिए स्थूल बंधनों का उपयोग करना आवश्यक नहीं समझते। स्थूल बंधनों से कहीं अधिक दृढ़, परिस्थिति के सूक्ष्म अदृश्य बंधन ही उसे बांधे हैं।
(2001)
Answer : संदर्भ एवं प्रसंगः प्रस्तुत गद्यांश यशपाल द्वारा रचित ‘दिव्या’ नामक उपन्यास से उधृत है। दास-व्यवसायी प्रतुल ‘दिव्या’ को मगध में एक दूसरे दास व्यापारी भूधर के हाथों बेच देता है। दिव्या समझती थी कि प्रतुल की सहृदयता केवल उसे मद्र की सीमा से सुरक्षित पार ले जाने तक है। मद्र की सीमा के परे दासत्व और उत्पीड़न का पाश उसकी प्रतीक्षारत है। वह मौन रहकर इस उत्पीड़न को सह लेती है। असुरक्षा और सामाजिक कलंक ....
Question : गोदान में प्रस्तुत गांव और शहर की कथाओं के संबंध पर विचार कीजिए एवं उपन्यास के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
(2001)
Answer : गोदान के दोहरे कथा पर आलोचकों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। शांतिप्रिय द्विवेदी को ग्राम कथा के इतर सारे प्रसंग क्षेपक लगते हैं। डा. गुलाब राय के अनुसार ‘गोदान के गांव के चित्र अधिकारिक रूप से तथा शहर के चित्र प्रासंगिक रूप से आए हैं।’ नलिन विलोचन शर्मा ने इसका उत्तर देते हुए लिखा है ‘नदी के दो तट असंबद्ध दिखते हैं, पर वे वस्तुतः असंबद्ध नहीं रहते, उन्हीं के बीच जलधारा बहती है। ....
Question : कहते हैं, पर्वत शोभा निकेतन होते हैं। फिर हिमालय का तो कहना ही क्या? पूर्व और ऊपर समुद्र महाद्वीप और रत्नाकर दोनों को दोनों भुजाओं से थामता हुआ हिमालय ‘पृथ्वी का मानदंड’ कहा जाय तो गलत क्या है? कालिदास ने ऐसा ही कहा था।
(2000)
Answer : संदर्भ एवं प्रसंगः प्रस्तुत गद्यावतरण ‘निबंध निलय’ में संकलित हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘कुटज’ से उद्घृत है। डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी नाम और रूप की विवेचना करते हुए नाम की महत्ता का प्रतिपादन करते हैं। नाम के ज्ञान के बिना किसी वस्तु का पूर्ण ज्ञान संभव नहीं है।
व्याख्याः पर्वत श्रृंखलाओं की दर्शनीयता मनोलुभावन एवं मनोहारी तो हुआ ही करती हैं। हिमालय तो सर्वश्रेष्ठ ऊंचाई प्राप्त पर्वत श्रृंखला है, तो फिर इसकी मनोहारी छवि का ....
Question : राजेन्द्र यादव द्वारा संपादित कहानी संग्रह ‘एक-दुनिया समानांतर’ में से आप किस कहानी को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं? कहानी कला के आधार पर अपने मत का सप्रमाण विवेचन कीजिए।
(2000)
Answer : राजेन्द्र यादव द्वारा संपादित कहानी संग्रह ‘एक दुनिया समानांतर’ में से हम धर्मवीर भारती की कहानी ‘गुल की बन्नों’ को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। जो अपनी विषय वस्तु और संवेदना से हमारे हृदय को तार-तार कर देती है। हिन्दी साहित्य में इतना अधिक मर्मस्पर्शी कहानी काफी कम ही देखने को मिलती है। साथ ही साथ भारती जी ने इस कहानी को कहानी कला के आधार पर भी रचे हैं। जिससे कहानी में काफी कसाव और प्रौढ़ता ....
Question : ‘चिन्तामणि’ भाग एक के निबंधों के आधार पर रामचंद्र शुक्ल का निबंध कला की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
(2000)
Answer : किसी भी कला रूप के लिए कोई सामान्य, सार्वकालिक या सार्वभौम आदर्श अथवा प्रतिमान निर्धारित नहीं किया जा सकता। फिर भी, विवेचन की सुविधा के लिए एक आधार खड़ा कर लिया जाता है। इसी दृष्टि से निबंध विधा का आधारभूत ढ़ांचा खड़ा करने वाले उसके कतिपय मूल विधायक तत्वों और लक्षणों का निर्धारण कर लिया गया है। इन्हीं मूल तत्वों और लक्षणों के आधार पर निबंध कला का विवेचन किया जाता है। ये विधायक तत्व ....
Question : ‘मैला आंचल’ उपन्यास में आंचलिक जीवन के साथ व्यापक राष्ट्रीय संदर्भों का भी बड़ा जीवंत चित्रण हुआ है। इस मत का सतर्क मूल्यांकन कीजिए।
(2000)
Answer : ‘मैला आंचल’ में व्यक्त जीवन के द्वंद्व एक भारतीय अंचल के नग्न यथार्थ से जुड़ा हुआ है। यह यथार्थ समसामयिक और एकदेशीय भी है तथा शाश्वत और भूमंडलीय भी। इस कृति का समय पटल सन् 1942 के अगस्त आंदोलन में उपनिवेशीय यंत्रणा और जनगण के संत्रस की पूर्व दीप्ति के एक मुख बंध के बाद सन् 1946 में शुरू होता है। सन् 1947 में स्वराज के उत्सवों को समेटते हुए सन् 1948 में महात्मा गांधी ....
Question : कवित्व वर्णमय चित्र है, जो स्वर्गीय भावपूर्ण संगीत भाषा करता है। अंधकार का आलोक, असत् का सत् से, जड़ का चेतन से और बाह्य जगत् का अंतर्जगत् से संबंध कौन कराती है? कविता ही न।
(2000)
Answer : संदर्भ एवं प्रसंगः प्रस्तुत गद्यावतरण जयशंकर प्रसाद के ऐतिहासिक नाटक ‘स्कंदगुप्त’ के प्रथम अंक के ‘तृतीय दृश्य’ से उद्धृत है। काव्य कर्त्ता कालिदास के रूप में अभिनेता मातृ गुप्त मुगदल से कविता एवं कवि के अस्तित्व के विभिन्न पहलुओं को उकरते हुए इन पंक्तियो को कहा है।
व्याख्याः मातृगुप्त कवि और कविता के मर्म की व्याख्या करते हुए कहता है कि कविता करने से अनन्य सुख का बोध होता है। संसार के समस्त अभावों को असंतोष ....
Question : नीलकमल की तरह कोमल और आर्द्र, वायु की तरह हल्का और स्वप्न की तरह चित्रमय! मैं चाहती थी उसे अपने में भर लूं और आंखें मूंद लूं। मेरा तो शरीर भी निचुड़ रहा है मां। कितना पानी इन वस्त्रें ने पिया है। ओह! शीत की चुभन के बाद उष्णता का यह स्पर्श।
(2000)
Answer : संदर्भ एवं प्रसंगः प्रस्तुत गद्यांश मोहन राकेश द्वारा लिखित ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक के प्रथम अंक से उद्धृत है। प्रस्तुत अवतरण में नाटककार ने मल्लिका के मनोवृत्ति पर प्रकाश डाला है तथा उसके कोमल इच्छाओं का वर्णन किया है। मल्लिका अपनी मां अम्बिका से यह कहती है।
व्याख्याः मल्लिका दक्षिण से उड़कर आती बगुलों की पंक्तियों को देखने हेतु घर से बाहर निकल जाती है। आषाढ़ के पहले दिन के घनघोर बारिस में उसका अंग-अंग ....
Question : सच्चा आनंद, सच्ची शांति केवल सेवाव्रत में है। वही अधिकार का स्रोत है, वही शक्ति का उद्गम है। सेवा ही वह सीमेंट है, जो दम्पती को जीवन पर्यन्त स्नेह और साहचर्य में जोड़े रख सकता है, जिस पर बड़े-बड़े आघातों का भी कोई असर नहीं होता। जहां सेवा का अभाव है, वहीं विवाह विच्छेद है, परित्याग है, अविश्वास है।
(2000)
Answer : संदर्भ एवं प्रसंगः प्रस्तुत गद्य खंड उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की विश्वविख्यात कृति ‘गोदान’ से उद्धृत है। यह कथन ग्रामेतर कथा से है। प्रेमचंद के भारी विषयक मान्यताओं के प्रतीक को मेहता के द्वारा उपन्यासकार ने प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत अवतरण प्रो. मेहता द्वारा कही गई है, जो संगोष्ठी में कही गई।
व्याख्याः मेहता कहता है कि आज के भौतिकवादी युग में जो नारी उन्मुक्तमय प्रेम दिखाती है, वह वासनामय से ओत-प्रोत होती है। इसलिए स्त्रियों को ....
Question : ‘शेखरः एक जीवन’ हिंदी में कथा वस्तु, शैली-शिल्प तथा भाव-बोध के स्तर पर अपना विशिष्ट स्थान रखती है’ समीक्षा कीजिए।
(1999)
Answer : ‘शेखरः एक जीवन’ हिन्दी उपन्यास में कथावस्तु शैली तथा भावबोध की दृष्टि से अथवा विशिष्ट स्थान रखती है। अज्ञेय से पूर्व प्रेमचंद ने अपने उपन्यासों में व्यक्ति के स्थान पर समाज को विषय बनाया। प्रेमचंद ने उस समाज को अपने उपन्यासों का प्रतिपाद्य बनाया। जो अनेक व्यक्तियों से बनता है। उस व्यक्ति को नहीं, जिसमें समाज निहित रहता है। अज्ञेय ने अपने इस उपन्यास में व्यक्ति को उपन्यास का विषय बनाया। इसमें शेखर नामक काल्पनिक ....
Question : भाव या मनोविकार क्या हैं? रामचंद्र शुक्ल ने उनका वर्गीकरण किस रूप में किया है? ‘चिंतामणि’ में संग्रहीत भाव या मनोविकार से संबंधित निबंधों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
(1999)
Answer : भाव या मनोविकार मूल अनुभूतियों के जटिल रूप हैं। मन में किसी वस्तु या घटना के साक्षात्कार से उत्पन्न अवस्था, सत्ता या अस्तित्व ही भाव है। जब किसी चीज से हम प्रतिकृत होते हैं, तब मन की वृत्ति नही रह पाती। शुक्ल जी कहते हैं ‘अनुभूति के द्वंद्व से ही प्राणी के जीवन का आरंभ होता है।’ जिसे संसार का सर्वोत्तम प्राणी होने का गौरव प्राप्त है। वह मनुष्य भी केवल एक जोड़ी अनुभूति लेकर ....
Question : ‘चंद्रगुप्त नाटक में निरूपित इतिहास तत्व’ विषय पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
(1999)
Answer : जयशंकर प्रसाद ने अपने अधिकांश रचनाओं, विशेषतया नाटकों को अतीत की पृष्ठभूमि पर ही सृजित किया है। चंद्रगुप्त नाटक भी इसमें शामिल है। इनके द्वारा नाटक में इतिहास तत्व लेने का मतलब कतई नहीं कि उसे ज्यों का त्यों उठाकर रच दिया है या फिर गड़े-मुर्दे को उखाड़ा है। वस्तुतः इसका उद्देश्य ऐतिहासिक आख्यान और चरित्रों को वर्तमान की कसौटी पर कसने के लिए व्यापक संवेदनात्मक एवं सामाजिक दृष्टिकोण और समझ का होना आवश्यक है, ....
Question : क्या आप ‘गोदान’ को राष्ट्रीय प्रतिनिधि उपन्यास की संज्ञा से विभूषित कर सकते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
(1999)
Answer : ‘हम राज नहीं चाहते, भोग-विलास नहीं चाहते, खाली मोटा-झोटा पहनना और मोटा-झोटा खाना और मरजाद के साथ रहना चाहते हैं और वह नहीं सधता’, गोदान का नायक होरी का यह कथन, केवल होरी तक सीमित न होकर संपूर्ण भारतीय किसान की चाहत और उसकी स्थिति की है। आज भले ही कृषि पर निर्भरता कम हो गयी हो, फिर भी तमाम विकास के बावजूद 70 प्रतिशत आवादी कृषि पर ही निर्भर है। स्वतंत्रता से पूर्व यह ....
Question : भारतेन्दु हरिश्चंद ने ‘अंधेर नगरी’ में लोक नाट्य की गहराई चेतना को बिना विस्मृत किए नवीन नाटयशास्त्रीय गुणवत्ता का समावेश किया है।’ इस कथन की समीक्षा कीजिए।
(1999)
Answer : भरतेन्दु हरिश्चंद ने जनजीवन से जुड़ने के लिए लोकनाट्य की शैली को सर्वाधिक महत्व दिया। अंधेर नगरी तो जनजीवन का ही नाटक है, इसलिए इसकी प्रस्तुति में लोकनाट्य की शैली का मिलन अस्वाभाविक नहीं है। नाटक में संगीत और संवाद सीधे जनता से उठाये गये हैं। भारतेंदु ने लोकवार्ता पर आधारित नाटक की भाषा को लोक जीवन की भाषा के निकट रचा है। इसमें बोलचाल की जो शब्दावली प्रयुक्त हुई है, उसने नाटक को बोधगम्य ....