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IAS
ओंकार नाथ
Career Consultant (Observer IAS)
उत्कृष्ट उत्तर लेखन शैली हेतु रणनीति (भाग 2)


उत्तर लेखन शैली में प्रकट होने वाली समस्याएं सामान्य अध्ययन के एक विषय संविधान व राजव्यवस्था से जुड़े अध्याय से भी व्यापक पैमाने पर प्रकट होती हैं। सामान्य अध्ययन से संबंधित विषयों में संविधान व राजव्यवस्था सबसे रोचक, व्यावहारिक के साथ मौलिक ज्ञान और समझ का आकलन करने वाला विषय है। मुख्य परीक्षा के साथ-साथ निबंध लेखन व साक्षात्कार में भी इसकी व्यावहारिक समझ एक निर्णायक भूमिका निभाती है। एक सामान्य विद्यार्थी के व्यावहारिक व प्रशासनिक समझ का पूर्णतया आकलन यह विषय आसानी से कर लेता है। देश के राजनैतिक-प्रशासनिक संरचनाओं से जुड़ा यह विषय विगत दो दशकों से सिविल सेवा मुख्य परीक्षा का सबसे दिलचस्प व विस्तृत आयामों को अपने अंदर समेटने वाला प्रसंग बना हुआ है। हमेशा नए-नए प्रश्नों के बनने व उनके परीक्षा में पूछे जाने की संभावना बनी रहती है।

प्रश्न बनते कैसे हैं?

संविधान व राजव्यवस्था से जुड़े विषय से परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों के संदर्भ में पहली समस्या निरंतर बनने वाले नए प्रश्नों को लेकर होती है। जो अभ्यर्थी नियमित समाचार-पत्र, पत्रिकाओं का अध्ययन करते हैं उन्हें तो प्रश्नों की प्रकृति समझ में आती है, किन्तु नए अभ्यर्थी अपने पुस्तकीय ज्ञान को देश की व्यावहारिक परिस्थितियों से तुलना कर एक सहज, सरल और प्रशासनिक दृष्टिकोण अपने अंदर बनाने और उसी अनुरूप उत्तर लिखने की शैली को विकसित करने में असफल हो जाते हैं।

वास्तव में संविधान व राजव्यवस्था से जुड़े मुद्दों को समझने के लिए देश की व्यावहारिक राजनैतिक-प्रशासनिक परिस्थितियों की वास्तविकता व उलझनों को समझना आवश्यक है। बिना इसे जाने, न प्रश्न के उत्तर को लिखा जा सकता है न निबंध या साक्षात्कार में विवादित प्रश्नों का व्यावहारिक उत्तर दिया जा सकता है।

इस तथ्य को विस्तार से समझने के लिए दो विशेष मुद्दों से जुड़े विशेष पहलुओं को परीक्षा प्रणाली के पैटर्न से जोड़कर देखने में वैचारिक स्पष्टता सामने आएगी। उदाहरण के लिए संविधान के अंतर्गत एक विषय, केन्द्र-राज्य संबंध है। संविधान में इनका स्पष्ट विभाजन श्रेणीकरण, शक्तियां सब कुछ परिभाषित है। किन्तु यह भी सच है कि केन्द्र व राज्य समय-समय पर इनकी सीमाओं का अतिक्रमण करते रहे हैं। पूर्व में राजमन्नार समिति (1969), सरकारिया आयोग (1983), पुंछी आयोग (2007) की रिपोर्ट में केन्द्र-राज्य संबंधों को सुधारने की पहल की गई।

अस्सी के दशक में जिस प्रकार प्रबल केन्द्रीकरण जैसी समस्या पनपी वैसी परिस्थितियों की आशंका आज फिर इस समय भी व्यक्त की जा रही है। केन्द्र द्वारा जीएसटी को लागू करना, राज्यों की आपत्ति, वित्त आयोग की सिफारिशों पर राज्यों द्वारा विरोध करना, केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के क्रियाकलापों को राज्य विशेष द्वारा न पालन करना, नए कृषि कानून के कुछ प्रावधानों को राज्यों से पूछे या सलाह लिए बिना पूरे भारत में लागू करने की कोशिशें, केन्द्र-राज्य के अच्छे संबंधों का प्रतीक सहकारी संघवाद की अवधारणा का कमजोर पड़ना जैसी कई नई प्रवृत्तियां सामने आ रही हैं। भारत के दो राज्यों ने तो संविधान के प्रावधानों का हवाला देते हुए उच्चतम न्यायालय में अपील भी कर दी कि केन्द्र अपनी संवैधानिक सीमा का अतिक्रमण कर रहा है।

इन परिस्थितियों में सिविल सेवा की तैयारी में लगे परीक्षार्थी से उम्मीद की जाती है कि सर्वप्रथम वे केन्द्र-राज्य संबंधों के संवैधानिक प्रावधानों को जानें, इसके साथ वह उसके व्यावहारिक पहलुओं को देखें, समझें, उनका विश्लेषण करें कि यह उचित है या अनुचित। संविधान द्वारा निर्मित प्रावधान या दायरे में ये सभी केन्द्र व राज्य के आपसी संबंध सही तरीके से गतिमान हो रहे हैं अथवा नहीं, इसकी भी वास्तविक समझ एक परीक्षार्थी में है या नहीं, इसकी मांग संघ लोक सेवा आयोग अपनी परीक्षा में कर रहा है।

इसी तरह असम में लागू एन-आर-सी- से उत्पन्न जो भी परिस्थितियां पनपीं उससे अन्य राज्यों की राजनीति, प्रशासन और विचारधारा प्रभावित हो रही है। केन्द्र के इस प्रयास का विरोध राज्यों के द्वारा किया जा रहा है। देश के एक अल्पसंख्यक समुदाय का असहज होना, नागरिकता कानून का विरोध व इसके औचित्य, पश्चिम एशियाई देशों से प्रभावित होते रिश्तें जैसे विविध पहलुओं पर पिछले वर्षों में कई प्रश्न पूछे जा चुके हैं। यद्यपि बेहद विवादास्पद माने गए विषयों पर प्रश्न पूछने की परंपरा कम ही रही है।

किन्तु साक्षात्कार के स्तर पर प्रश्न पूछने की न कोई सीमा होती है न कोई विशेष दायरा। इस परिवेश में एक नए या पुराने परीक्षार्थी से उम्मीद यही रखी जाती है कि वह संविधान व राजव्यवस्था से जुड़े सभी तथ्यात्मक पुस्तकीय ज्ञान की जानकारी तो रखे ही, इसके अतिरिक्त देश जिन परिस्थितियों का सामना कर रहा है संविधान की दृष्टि से वह उचित है अथवा नहीं, इस विषय का भी एक संतुलित व सारगर्भित एप्रोच बनाए। इस विशेष मौलिक समझ की मांग आज यह परीक्षा प्रणाली कर रही है।

वर्तमान की केन्द्र सरकार की विचारधारा (राष्ट्रवाद) के कई आयाम हैं, इसकी परिभाषा-व्याख्या व व्यावहारिकता को सरलीकृत करने में भी कई समस्याएं हैं। विपक्ष की राजनीति का मिटता स्तर राजनैतिक दलों की गुटबंदी, देश के वास्तविक मुद्दों को उलझाना, गुमराह करने आदि के दृश्य संसद के अंदर और बाहर सत्ता पक्ष व विपक्ष दोनों स्तरों पर प्रकट हो रहे हैं।

विचारधारा के स्तर पर अब तक प्रचलित संविधान में शामिल कई प्रावधानों में पंथनिरपेक्षता, समाजवादी मॉडल, सामाजिक न्याय, मिली-जुली संस्कृति, भाईचारा, सांप्रदायिक सद्भाव, सामाजिक सहिष्णुता-असिहष्णुता, पंचशील, गुटनिरपेक्षता, आइडिया ऑफ न्यू इंडिया, राष्ट्र के नागरिकों का मौलिक कर्त्तव्य, राज्य का कल्याणकारी स्वरूप जैसी कई राजनैतिक शब्दावलियों के अर्थ बदलते जा रहे हैं। पहले पाठ्यपुस्तकों में प्रचलित जानी-समझी गई अवधारणाएं कई रूपों में प्रकट होती जा रही है। ऐसे कई प्रसंग हैं जो देश की राजनीति में गतिमान हैं और इनका संबंध संविधान व राजव्यवस्था से प्रत्यक्षतः जुड़ा है।

उत्तर लिखने की समस्या

इन सभी परिस्थितियों का जानना, समझना, व्यावहारिक-वास्तविक परिस्थितियों का आकलन कर एक प्रशासनिक उत्तर लिखना सबसे बड़ी चुनौती अभ्यर्थियों के सामने आती जा रही है। विगत कुछ वर्षों के प्रश्न पत्र को उठाकर देखे तो एक सामान्य विद्यार्थी प्रश्नों को पढ़कर बुरी तरह दिग-भ्रमित और मानसिक उलझन में उलझ कर रह जा रहा है।

नागरिकता कानून के विरोध का औचित्य, रोहिंग्या समस्या, जम्मू-कश्मीर की उलझती राजनीति, मीडिया का पूर्वाग्रहपूर्ण स्वरूप से ऐसे-ऐसे प्रश्न पूछे जा रहे हैं जिनको समझना-समझाना, उत्तर लिखना, शब्द सीमा का पालन करना सबसे बड़ी चुनौती है। सामान्य अध्ययन में परीक्षार्थियों का प्राप्तांक इसका जीवंत उदाहरण है।

एप्रोच को बदलें

संविधान व राजव्यवस्था के अध्याय में अभ्यर्थियों को अध्ययन एप्रोच बदलने की आवश्यकता है। एनसीईआरटी और एम- लक्ष्मीकांत जैसी परंपरागत अध्ययन सामग्री के अतिरिक्त देश में गतिमान राजनैतिक-संवैधानिक संस्थाओं के क्रियाकलाप पर एक प्रशासनिक समझ बनाना और उन्हें उत्तर लिखने में प्रयोग करने की शैली विकसित करनी होगी। इस चार्ट को देखें, इसमें परंपरागत प्रश्नों के अतिरिक्त, बदलती परिस्थितियों पर किस तरह एक सामान्य अभ्यर्थी को अपना अध्ययन-लेखन विकसित करना है यह समझाने की कोशिश की गई है-

पाठ्यक्रम परंपरागत प्रश्न परिवर्तित पाठ्यक्रम पर बनते प्रश्न
उद्देशिका उद्देशिका का महत्व शामिल नए शब्दों की व्याख्या, उद्देश्य, औचित्य (120 शब्द)
संघ व राज्य क्षेत्र राज्य निर्माण प्रक्रिया केंद्र शासित प्रदेशों की आवश्यकता, वर्तमान नीति में परिवर्तन (120 शब्द)
राज्य निर्माण राज्य निर्माण प्रक्रिया विशेष राज्यों के प्रावधान का औचित्य (120 शब्द) पूर्वोत्तर राज्यों में इनर लाइन परमिट की आवश्यकता व अपरिहार्यता (120 शब्द) जम्मू-कश्मीर की वर्तमान स्थिति (120 शब्द)
नागरिकता नागरिकता के संवैधानिक प्रावधान
  • नागरिकता संशोधन विधेयक पर विरोध का औचित्य (120/250 शब्द)
  • एन-पी-आर- की आवश्यकता (50/120 शब्द)
  • एन-आर-सी- के अंतर्विरोध व अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं (120 शब्द)
प्रकारमहत्व
  • आरक्षण नीति पर नए न्यायिक निर्णयों का विश्लेषण (120 शब्द)
  • निजता का उल्लंघन व संरक्षण की आवश्यकता (120 शब्द)
  • सूचना के अधिकार के 15 वर्षों की उपलब्धियां, आवश्यक सुझाव, सुशासन में योगदान (120/250 शब्द)
  • UAPA (गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) कानून
  • सरकारी गोपनीयता कानून की आवश्यकता (120 शब्द)
  • अल्पसंख्यक राजनीति के अन्तर्विरोध (120 शब्द)
  • धर्मनिरपेक्षता-अल्पसंख्यकवाद पर राष्ट्रवाद का प्रभाव (120 शब्द)
  • असहिष्णुता बनाम मौलिक अधिकार (120 शब्द)
राज्य के नीति निदेशक तत्व
  • महत्व
  • उपयोगिता
  • मूल अधिकारों से तुलना
  • समान नागरिक संहिता की आवश्यकता, औचित्य, अन्तर्विरोध व राजनैतिक प्रभाव
  • गौ-वध निषेध व व्यावहारिक भारतीय राजनीति (120 शब्द)
केंद्र-राज्य संबंध
  • संवैधानिक प्रावधान
  • वित्तीय संबंध व समस्याएं
  • सहकारी संघवाद (120/250 शब्द)
  • राष्ट्रवाद बनाम समाजवाद (उ- प्र- के संदर्भ में 120 शब्द)
  • राष्ट्रवाद बनाम सामाजिक न्याय (बिहार के संदर्भ में 120 शब्द)
  • क्षेत्रीय राजनीति-धर्मनिरपेक्षता व राष्ट्रवाद संबंधी विचारधारा में अंतर्विरोध व वर्तमान स्थिति (250 शब्द)
  • केंद्रीयकरण व राज्यों की क्षेत्रीयता के मध्य वर्तमान में उठा अंतर्विरोध (120 /250 शब्द)
  • राज्यों की राजनीति में राष्ट्रवाद संबंधी केंद्र की विचारधारा व राजनैतिक गतिविधियों का प्रभाव (120/250 शब्द)
राज्य विधान मंडल
  • राज्यपाल की शक्तियां व विवाद
राज्यपालों की सक्रियता के वर्तमान उदाहरण, रिपोर्ट, पूर्व की समितियों की रिपोर्ट व इनके अपेक्षित प्रभाव (120/250 शब्द)

निर्वाचन व मताधिकार (निर्वाचन आयोग)

  • उपयोगिता
  • भूमिका
  • महत्व
  • परिसीमन आयोग की आवश्यकता, महत्व, प्रभाव औचित्य (120/250 शब्द)
  • चुनाव सुधारों पर निर्वाचन आयोग (120/250 शब्द)
  • राइट टू रिकाल व्यवस्था का प्रभाव-औचित्य (100/120 शब्द)
न्यायपालिका
  • शक्तियां
  • न्यायिक सक्रियता
  • संविधान संरक्षण में भूमिका
  • न्यायिक पुनरीक्षण व न्यायिक सक्रियतावाद (120 शब्द)
  • न्यायिक समस्याएं, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (120 शब्द)
  • न्यायपालिका की अवमानना (120 शब्द)
लोकतंत्र व मीडिया
  • मीडिया की भूमिका दायित्व
  • पक्षपातपूर्ण मीडिया के आसन्न खतरे (120 शब्द)
  • लोकतंत्र-सुशासन में मीडिया की भूमिका (120 शब्द)
  • फेक-न्यूज व लोकतंत्र (120 शब्द)
विचारधारा व राजनीति
  • दबाव समूह की भूमिका
  • क्षेत्रीयता का प्रभाव
  • राजनीतिक विचारधारा में राष्ट्रवाद व उसके राष्ट्रीय क्षेत्रीय-वैदेशिक प्रभाव (120 /250 शब्द)
  • राष्ट्रवाद संबंधी विचारधारा का धर्मनिरपेक्षता व समाजवाद पर प्रभाव (120/250 शब्द)
  • ब्रेक्रिग इंडिया फोर्सेज संबंधी अवधारणा का मूल्यांकन (120 शब्द)
  • समाजवाद-सामाजिक न्याय-पंथनिरपेक्षता संबंधी अवधारणा का प्रभाव, क्रिया-प्रतिक्रिया (120 /250 शब्द)
संसद
  • उपयोगिता
  • भूमिका
  • महत्व
  • विपक्ष की वर्तमान भूमिका (120 शब्द)
  • विपक्ष की राजनैतिक क्रियाकलाप और वर्तमान के कुछ संवैधानिक परिवर्तन (120/250 शब्द)

ऐसे दर्जनों प्रसंग हैं, जो देश की वर्तमान व्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं और इनके सिविल सेवा के मुख्य परीक्षा समेत साक्षात्कार में हर परीक्षार्थी से पूछे जाने की संभावना सदैव बनी रहती है।

भविष्य की राह

नए व पुराने अभ्यार्थियों के लिए यह आवश्यक है कि इन सभी मुद्दों को जानें, समझें, समाचार-पत्रें के स्तंभों का सावधानी से अध्ययन करें, अपने विशेष राजनैतिक-सामाजिक रुझानों-पूर्वाग्रहों से निकलें, सच्चाई व वास्तविकता से ज्यादा प्रशासनिक उत्तर में लिखे जाने वाले संतुलित उत्तर की महत्ता को समझें। इसके साथ-साथ सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल के स्तंभ जो इस परिवर्तन को विगत कई वर्षों से प्रस्तुत करते जा रहे हैं। अपने अध्ययन व लेखन में प्रयोग करें। (क्रमशः)

Expert Advice

Editorial Team

Civil Services Chronicle

D P Vajpayee

Director Delhi Institute For Administrative Services (DIAS)

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