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यूपीएससी | IAS | पीसीएस मेंटर
About Faculty
With profound experience of over 10 years and has been benefitting UPSC CSE aspirants since 2009.He has been associated with Chanakya IAS (Delhi), Unique Shiksha (Delhi) , Centre for career counseling ,Kashmir University,CSB (Hyderabad),Visiting faculty for Geography in HPU (shimla) and is currently associated with Samkalp (R K Puram , Delhi. The faculty is known for his unique pedogogy, emphasising on concept visualizations,doubt clearance, and correlation between Paper 1 and paper 2 which enhances the credibility of answers. He has played a vital role in success stories of many candidates with Geography optional with successful candidates every year. So grab the opportunity to learn the concepts of Geography in the simplest way and boost your confidence.
About Faculty
B.Tech (IIT R), MTech (IITD), Former Assistant Director At GOI,Teaching in civil services for past 5 years. Presently associated With Dhyeya IAS, Unacademy, Apti Plus Academy, Prep School for Civil services.
साक्षात्कार
सामान्य प्रश्न ,ट्रिप्स और ट्रिक
आईएएस परीक्षा में यदि सफल होना है, तो पहली एवं सबसे प्राथमिक शर्त तो यही है कि आपको अपने बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिये अर्थात ‘अपनी क्षमता मूल्यांकन का सूक्ष्म परीक्षण’ (Diagnosing self assessment abilities)।’ जानकारी जुटाने से लेकर सफल होने तक के तीन चरण हैं। वस्तुतः ये चरण ठीक उसी तरह हैं जिस तरह एक डॉक्टर किसी मरीज के साथ करता है। ये चरण हैं-
1. केस स्टडी
2. निदान या डायग्नोसिस
3. इलाज या ट्रीटमेंट।
केस स्टडी से तात्पर्य है कि आपको अपने बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिये। यह ‘खुद को जानों’ वाला चरण है। खुद को जानने से मतलब है ‘आत्मकथा’ लेखक की तरह अपनी सारी सच्चाइयाें को निष्पक्ष एवं बेबाकी से बयां कर देना और कुछ भी नहीं छिपाना। यह अपनी क्षमता का परीक्षण के समान है। तात्पर्य यह कि आपको अपनी सारी अच्छाइयों एवं कमजोरियों का ज्ञान एवं एहसास होना चाहिये। यहां अच्छाइयों एवं कमजोरियों का संबंध आईएएस परीक्षा के संदर्भ में हैं। इसके लिए खुद का अध्ययन या सूक्ष्म परीक्षण आवश्यक है। अपनी कमजोरियों या निर्बल पक्षों को जानना इतना आसान भी नहीं है। इसके लिए अपने बारे में सारी सूचनाएं संग्रह करनी होगी और सिविल सेवा परीक्षा की आवश्यकताओं से उसका तालमेल बिठाना होगा। यह तभी संभव है जब आप परीक्षा एवं उसके प्रत्येक चरण की बारीकियों से आप सुपरिचित हों।
दूसरा चरण है डायग्नोसिस या निदान की। यही सबसे महत्वपूर्ण चरण है। डायग्नोसिस या निदान का मतलब होता है ‘समस्या को जानना’। चिकित्सा की भाषा में यह इसे ‘रोग की पहचान’ है और आईएएस परीक्षा की भाषा में ‘निर्बल पक्षों’ का पूरा ज्ञान। इस बिंदु तक पहुंचने में प्रथम चरण में जुटायी गयी सूचनाएं कार्य करती है। जब आप खुद का निष्पक्ष मूल्यांकन कर लेते हैं तब आपके पास आपका सारा खाका सामने होता है जिसके बल पर आप जान जाते हैं कि आपकी समस्या क्या है और आपको करना क्या है?
तीसर चरण है इलाज या ट्रीटमेंट की। एक बार समस्या या निर्बल पक्षों को जानने के पश्चात उसके समाधान की प्रक्रिया आरंभ होती है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक डॉक्टर किसी मरीज की बीमारी जानने के पश्चात उसका इलाज आरंभ करता है। जब आप सिविल सेवा परीक्षा की सारी प्रक्रियाओं एवं आवश्यकताओं से सुपरिचित हो जाते हैं तो आपका बल उन कमजोरियों को दूर करने की होती है या होनी चाहिये जिसे दूर किये बिना सिविल सेवा परीक्षा में सफल होना कठिन होता है।
अतएव उपर्युक्त तीनों प्रक्रिया का सार यही है कि परीक्षा में शामिल होने से पूर्व खुद की क्षमता का सूक्ष्म स्तर पर संपूर्ण निष्पक्ष मूल्यांकन जरूरी है। यह मूल्यांकन संभव है पर खुद से खुद का निष्पक्ष मूल्यांकन आसान भी नहीं है। आपको भीड़ से अलग करने में आपके गुरु/मार्गदर्शक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वे अंधकार मार्ग में प्रकाश दिखाने का कार्य करते हैं। जिस तरह कोई व्यक्ति अपने इलाज के लिए क्लिनिक में डॉक्टर के पास जाता है ठीक उसी प्रकार सिविल सेवा परीक्षा रूपी महासागर को सफलता पूर्वक तैरकर पार करने के लिए गुरू के मार्गदर्शन रूपी नैया की भी जरूरत होती है। उन्हें पूर्व में कई शिष्यों को महासागर पार कराने का अनुभव जो होता है। जाहिर है कि शिक्षक या मार्गदर्शक न केवल आपका सटीक आकलन करने में सफल होते हैं वरन् आपका मूल्यांकन कर कमजोर पक्षों को दूर करने का इलाज भी बताते हैं और उस प्रक्रिया में शामिल होते हैं। यदि आपने खुद की क्षमता का सटीक मूल्यांकन कर लिया तो फिर आईएएस परीक्षा में प्रथम प्रयास में ही सफल होना असंभव नहीं रह जाता। हिंदी माध्यम के छात्र यहीं गलती कर बैठते हैं। ‘क्रॉनिकल आईएएस अकेडमी’ आज उसी गुरु या सफल मार्गदर्शक की भूमिका में है, जहां आपकी गलती करने की संभावना को शून्य कर देता है।
संघ लोक सेवा आयोग के आंकड़ें बताते हैं कि सिविल सेवा परीक्षा में अंतिम रूप से चयनित छात्रों में 150 से अधिक अपने प्रथम प्रयास में ही सफल हो गये जो कि कुल सफल छात्रों का 15.8 प्रतिशत है। यह आंकड़ा कमोवेश एक समान ही रहता है। ये आंकड़ें यह दर्शाते हैं देश की कठिनतम परीक्षा होने के बावजूद इसमें सफल होना और वह भी प्रथम प्रयास में कठीन भले हो पर असंभव तो नहीं ही है। आखिर ऐसा क्यों होता है कि केवल 15 प्रतिशत प्रत्याशी ही अपने प्रथम प्रयास में सफल होते हैं और शेष को कई प्रयासों की जरूरत पड़ती है तथा कई तो सारे प्रयासों के बावजूद भी सफलता का स्वाद नहीं चख पाते? आखिरकार शेष 85 प्रतिशत सफल छात्रों को तो एक से अधिक प्रयासों की जरूरत पड़ जाती है। दूसरी ओर, यूपीएससी के आंकड़ों की एक सच्चाई यह भी है कि इसमें अंतिम रूप से सफल होने वाले छात्रों की प्रतिशतता काफी कम होती है, लगभग 0.004 प्रतिशत। हिंदी माध्यम में तो आंकड़े और भी चौकाने वाले हैं। अंतिम सफल छात्रों में हिंदी माध्यम का आंकड़ा तो आजकल 100 भी पार नहीं कर पा रहा है।आखिर ऐसा क्यों है?
वस्तुतः आईएएस परीक्षा में पहली बार शामिल होने वाले छात्रों में अधिकांश संख्या वैसे होते हैं जो महज दिखाने के लिए ही आईएएस परीक्षा के लिए आवेदन करते हैं और उसमें शामिल होते हैं। कई छात्र ऐसे भी होते हैं जो परीक्षा को समझने के लिए इसमें प्रवेश लेते हैं। यहां, इन पर चर्चा करना हमारा उद्देश्य नहीं, क्योंकि न तो वे परीक्षा के प्रति गंभीर होते हैं और न आपको उन्हें गंभीरता से लेने की जरूरत है और न हम यहां उन्हें गंभीरता से ले रहे हैं। पर आईएएस परीक्षा में पहली बार शामिल होने वाले बहुत सारे छात्र गंभीर भी होते हैं और उन सभी की तमन्ना भी होती है कि पहली बार में ही आईएएस बन जायें। भला कौन ऐसा नहीं चाहेगा, पर चाहने से क्या होता है? सच तो यही है कि कुल सफल छात्रों में 15 प्रतिशत ही प्रथम प्रयासी होते हैं शेष लगभग 85 प्रतिशत को दोबारा, तिबारा कमर कसने की जरूरत होती है। पर यहां विचारणीय विषय यह है कि आखिरकार प्रथम प्रयास में सफल होने वाले उन 15 प्रतिशत छात्रों में ऐसा क्या है जो उन्हें शेष से अलग कर देता है और असंभव को संभव बना देते हैं? या फिर बहुसंख्यक छात्र अपने सारे प्रयास गंवाने के बावजूद सफलता का स्वाद नहीं चख पाते हैं? ऐसे छात्रों की भी कमी नहीं है जो प्रारंभिकी से पहले ही मुख्य परीक्षा की तैयारी तो कर लेते हैं परंतु उनके कोचिंग नोट्स खुलते ही नहीं, अर्थात उन्हें कभी भी मुख्य परीक्षा देने का मौका मिलता ही नहीं। वहीं जो 15000 छात्र मुख्य परीक्षा देते हैं उनमें महज 2500 ही साक्षात्कार तक पहुंचते हैं और इनमें भी लगभग 1000 ही अंतिम रूप से सफल होते हैं। अर्थात इस पूरी प्रक्रिया में 4 लाख छात्र बाहर हो जाते हैं और 1000 से 1200 ही मसूरी की प्रशासनिक प्रशिक्षण यात्रा पर जा पाते हैं। इनमें भी हाल के वर्षों में हिंदी माध्यम के सफल छात्रों की संख्या तो काफी कम हो गयी है।
यदि 4 लाख की बात न करें तो कम से कम यह तो मानना ही पड़ेगा कि इनमें से 1 लाख तो गंभीर होते ही हैं जो सिविल सेवक बनने के प्रति गंभीर होते हैं। सच कहा जाये तो इन सभी 1 लाख गंभीर छात्रों में सिविल सेवक बनने की कमोवेश क्षमता होती है और वे बन भी सकते हैं। हिंदी माध्यम के छात्रों पर भी यही लागू होता है। लेकिन कुछ तो ऐसी बात है जिसके कारण हिंदी माध्यम के छात्र अंग्रेजी माध्यम के छात्रों के समान सफल नहीं होते, हालांकि क्षमता के मामले में उनमें कोई कमी नहीं होती। यहां तक कि वे मेहनत भी अधिक करते हैं। इसके बावजूद वे अधिक सफल नहीं हो पाते। कुछ हद तक यूपीएससी की प्रणाली को हम दोष दे सकते हैं पर उसे सुधारना न तो आपके हाथ में है और न ही यह विषय आपके डोमेन में आता है।
• अंतिम चयन व रैंक निर्धारण करने के लिए मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार के अंकों को जोड़ा जाता है। इस प्रकार उम्मीदवारों द्वारा मुख्य परीक्षा (लिखित परीक्षा) तथा साक्षात्कार में प्राप्त किए गए अंकों के आधार पर उनके रैंक का निर्धारण किया जाता है।
• उम्मीदवारों को विभिन्न सेवाओं का आबंटन परीक्षा में उनके रैंकों तथा विभिन्न सेवाओं और पदों के लिए उनके द्वारा दिए गए वरीयता क्रम को ध्यान में रखते हुए किया जाता है।
• प्रतिक्षा सूची- आजकल संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवा परीक्षा के अंतिम परिणाम के पश्चात एक प्रतिक्षा सूची भी निकालती है। जो सफल छात्र सेवा ज्वाइन नहीं करते हैं या बाद में छोड़ देते हैं उनकी जगह प्रतिक्षा सूची से छात्रों को सेवा में ज्वाइन करने के लिए बुलाया जाता है।
• जो उम्मीदवार मुख्य परीक्षा के लिखित भाग में आयोग के विवेकानुसार निर्धारित न्यूनतम अर्हक अंक प्राप्त करते हैं उन्हें साक्षात्कार हेतु आमंत्रित किया जाता है।
• साक्षात्कार कुल 275 अंकों का होता है। इसमें कोई न्यूनतम क्वालीफाइंग मार्क्स नहीं होता।
• साक्षात्कार के लिए बुलाए जाने वाले उम्मीदवारों की संख्या कुल रिक्तियों की संख्या से लगभग दुगनी होती है, अर्थात पदों की संख्या 1000 है तो साक्षात्कार के लिए 2000 से अधिक छात्र बुलाये जाते हैं।
वैकल्पिक विषय के चयन और उनकी तैयारी के लिए अभ्यार्थियों को निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए-
1. अभ्यर्थियों को वैकल्पिक विषय के चयन में विशेष सावधानी रखनी चाहिए। अभ्यर्थी जब यूपीएससी की तैयारी आरंभ करते हैं तो अधिकतर वैकल्पिक विषय के चयन में दो ट्रेंडों का सर्वाधिक पालन करते हैं, प्रथम-अपने एकेडमिक विषयों में से किसी का चयन करना। द्वितीय- किसी सीनियर या कोंचिग संस्थान के अध्यापक के सलाह के अनुसार चयन। लेकिन ये दोनों ट्रेंड आत्माघाती हो सकता है क्योकि इनमें से किसी भी तरीके में अभ्यर्थी के रूचि विशेष की तरफ ध्यान दिया गया हो, ये नहीं कहा जा सकता। अतः अभ्यर्थी को वैकल्पिक विषय का चयन करते समय अपनी विशेष रूचि का ध्यान रखना चाहिए। भले ही वह विषय अपने शैक्षिक एकेडमिक का हो, किसी की सलाह से चयन किया गया हो या इनसे भिन्न ही क्यों न हो।
2. विषय के चयन के पश्चात् अभ्यर्थी को कुछ प्रमाणिक पुस्तकों का चयन करना चाहिए। साथ ही वैसे लेखकों की पुस्तकों का ही चयन करें जो तटस्थ लेखन करते हों। वैसे अब अभ्यर्थियों को पुस्तकों का अंबार लगाने की आवश्यक्ता नहीं है क्योंकि पूर्व की भांति प्रारंभिक परीक्षा के लिए अत्यधिक तथ्यों के संग्रह की आवश्यक्ता नहीं रह गयी है।
3. वैकल्पिक विषय की पढ़ाई सामान्य अध्ययन की भांति नियमित रूप से प्रतिदिन करनी चाहिए। ऐसा न हो कि वैकल्पिक विषय की पढ़ाई वैकल्पिक तरीके से ही हो।
4. वैकल्पिक विषय का भी नियमित लेखन कार्य करना चाहिए क्योंकि परीक्षा में बिना लेखन अभ्यास के विचारों को शब्दों का रूप देना कठिन होता है।
5. अभ्यर्थियों को स्वयं का नोट्स बना लेना चाहिए ताकि परीक्षा के समय जल्दी से जल्दी सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को दोहराया जा सकें।
जब से यूपीएससी ने वर्ष 2013 के मुख्य परीक्षा के लिए नये प्रारूप व पाठ्यक्रम को घोषित किया, तब से यूपीएससी के विशेषज्ञों में सामान्य अध्ययन एवं वैकल्पिक विषय की महत्ता को लेकर विभिन्न मत सामने आ रहे हैं। कोई सामान्य अध्ययन को चयन में सर्वेसर्वा मान रहा है तो दूसरा पक्ष इस मत को अस्वीकार भी कर रहा है। अतः यहाँ मुख्य समस्या चयन में ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर है कि सामान्य अध्ययन ज्यादा महत्वपूर्ण होगा या वैकल्पिक विषय?
- हम पहले नये और पुराने प्रारूप में दोनों के अंकों का मुख्य परीक्षा में भारांश (weightage) को देखते हैं। सामान्य अध्ययन के पुराने प्रारूप में दो पश्न-पत्र होते थे। दोनों प्रश्न-पत्र 300-300 अंकों के होते थे। सामान्य अध्ययन के 600 अंकों का मुख्य परीक्षा के अंकों में कुल 26% का भारांश होता था। नये प्रारूप में सामान्य अध्ययन के चार प्रश्न-पत्र होते हैं। सभी प्रश्न-पत्र 250-250 अंकाें के साथ कुल 1000 अंकों के होते हैं। नये प्रारूप में सामान्य अध्ययन के अंकों का भारांश 49.5% हो गया है।
- पुराने प्रारूप में दो वैकल्पिक विषय होते थे। दोनों वैकल्पिक विषय 600-600 अंकों के थे और 300-300 अंकों के दो-दो प्रश्न-पत्रों में बंटे होते थे। लेकिन नये प्रारूप में एक ही वैकल्पिक विषय को शामिल किया गया है, जो कुल 500 अंकों के साथ 250-250 अंकों के दो प्रश्न-पत्रों में बंटा हुआ है। नये प्रारूप में वैकल्पिक विषय का कुल भारांश 24.5% रह गया है।
- नये संदर्भ में मुख्य परीक्षा में अधिक महत्वपूर्ण कौन होगा या 1000 अंकों के सामान्य अध्ययन के सामने 500 अंकों के वैकल्पिक विषय की स्थिति क्या होगी? इसके लिए हमें पूर्व वर्षों में मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन और वैकल्पिक विषय में प्राप्त हुए औसत अंकाें के ट्रेंड को भी समझना आवश्यक है। वर्ष 2011 और 2012 के पूर्व तक साक्षात्कार देने वाले अभ्यार्थियों को वैकल्पिक विषयों में औसत 50% तक अंक प्राप्त हुए थे जबकि वर्ष 2011 और वर्ष 2012 में वैकल्पिक विषय के औसत अंकों में कमी आयी और यह 40-50% के बीच रहा। सामान्य अध्ययन में वर्ष 2008 से पूर्व औसत अंक 50% के आस-पास रहते थे, लेकिन वर्ष 2008 से अभ्यार्थियों के सामान्य अध्ययन के औसत अंकों में लगातार गिरावट हो रही है और वर्ष 2012 में औसतन 25-35% के बीच रहा। इसी प्रकार इन वर्षों में साक्षात्कार हेतु सफल अभ्यर्थियों के न्यूनतम् कट ऑफ अंकों में भी गिरावट जारी है, जो कि वर्ष 2013 में 750 अंकों के आस-पास रहा।
- अब हम बात करते हैं रणनीति की। विगत वर्षों में सामान्य अध्ययन के अंकों का औसत प्राप्तांक तथा मुख्य परीक्षा के कुल अंकों का भारांश भले ही कम था। लेकिन वर्तमान प्रारूप और पाठ्यक्रम में सामान्य अध्ययन की महत्ता और मुख्य परीक्षा के अंकों के भारांश में विशेष स्थिति को नकारा नहीं जा सकता। यदि निबंध और साक्षात्कार में सामान्य अध्ययन के सहयोग की महत्ता को भी जोड़ा जाये तो इसकी स्थिति और भी सशक्त हो जाती है। यदि इन सभी को समेकित किया जाये तो इसका भारांश 75% तक हो जाता है । इससे यह तो स्पष्ट है कि यूपीएससी परीक्षा के अंतिम चयन में सामान्य अध्ययन की विशेष स्थिति है लेकिन हम अब भी वैकल्पिक विषय की महत्ता को नकार नहीं सकते। यह सही है कि अब एक ही वैकल्पिक विषय है जो 500 अंकों के साथ 24.5% भारांश ही रखता है, लेकिन जब हम वैकल्पिक विषयों में विगत वर्षों में प्राप्त होने वाले प्राप्तांकों तथा इन प्राप्तांकों का कटऑफ में औसत भारांश देखें तो इसकी महत्ता स्वतः स्पष्ट हो जायेगी।
जैसा कि ऊपर की व्याख्या में देख चुके हैं कि विगत कई वर्षों से सामान्य अध्ययन, वैकल्पिक विषय तथा कटऑफ अंकों में लगातार गिरावट आ रही है लेकिन इसमें यह ध्यान देने की बात है कि वैकल्पिक विषय के प्राप्तांकों की औसत गिरावट सामान्य अध्ययन तथा कटऑफ अंकों के गिरावट से कम है अर्थात अंतिम परीक्षा परिणाम तक (वर्ष 2012) वैकल्पिक विषय के कुल प्राप्तांकों का औसत प्रतिशत कटऑफ अंकों में अभी भी प्रासंगिक है और जिस प्रकार से वर्ष 2013 व 2014 के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन के प्रश्न-पत्र में प्रश्न आ रहे हैं, इससे अभी भी इसके प्रासंगिक बने रहने की पूर्ण सम्भावना है। दूसरी तरफ सामान्य अध्ययन का पाठ्यक्रम अत्यन्त विस्तृत है। आईएएस टॉपर्स तक को सामान्य अध्ययन के पत्रों में 70 अंक लाते देखा गया है और इसके बावजूद वे न केवल सफल हुए वरन् टॉप 10 में स्थान बनाने में सफल रहे। इसके पीछे वैकल्पिक विषयों के अंकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वैसे भी मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन के पत्रों में जिस विश्लेषणात्मक तरीके से प्रश्न पूछे जा रहे हैं, उन सबका जवाब देना छात्रों के लिए मुश्किल हो रहा है। प्रश्नों की संख्या भी 20 से 25 होती है। इन सभी कारणों से वैकल्पिक विषय अभी भी महत्ता बनाये हुये है। किसी के लिए भी सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पर समान रूप से विशेषज्ञता हासिल करना थोड़ा कठिन प्रतीत होता है जबकि वैकल्पिक विषय का पाठ्यक्रम सामान्य अध्ययन के पाठ्यक्रम से सीमित है। साथ ही अधिकांश अभ्यर्थी का वैकल्पिक विषय उनके अकेडमिक विषय से ही संबंधित होता है। इससे वे कम से कम इस विषय से पूर्णतः अनभिज्ञ तो नहीं होते। यदि वे इस विषय में थोड़ा ज्यादा प्रयास करें तो इसके विशेषज्ञ भी बन सकते हैं।
वैकल्पिक विषय की महत्ता प्राप्त हो सकने वाले प्राप्तांक और इन प्राप्तांकों के कुल कटऑफ अंकों में प्रतिशत की अधिकता से भी देखा जा सकता है। कहने का मतलब यह है कि नये प्रारूप में वैकल्पिक विषय पर भी पूर्ण ध्यान दिया जाये तो कम से कम प्राप्ताकों के लगभग एक तिहाई अंकों की ओर से तो निश्चिन्त रहा ही जा सकता है।
मुख्य परीक्षा में एक वैकल्पिक विषय का चयन करना पड़ता है। इस विषय का चुनाव निम्नलिखित विषयों में से करना होता है-
1- कृषि विज्ञान
2- पशुपालन एवं पशु चिकित्सा विज्ञान
3- नृविज्ञान
4- वनस्पति विज्ञान
5- रसायन विज्ञान
6- सिविल इंजीनियरी
7- वाणिज्य शास्त्र तथा लेखा विधि
8- अर्थशास्त्र
9- विद्युत इंजीनियरी
10- भूगोल
11- भू-विज्ञान
12- इतिहास
13- विधि
14- प्रबंधन
15- गणित
16- यांत्रिक इंजीनियरी
17- चिकित्सा विज्ञान
18- दर्शन शास्त्र
19- भौतिकी
20- राजनीति विज्ञान तथा अन्तर्राष्ट्रीय संबंध
21- मनोविज्ञान
22- लोक प्रशासन
23- समाज शास्त्र
24- सांख्यिकी
25- प्राणि विज्ञान
26- निम्नलिखित भाषाओं में से किसी एक भाषा का साहित्यः असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उडिया, पंजाबी, संस्कृत, संताली, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू और अंग्रेजी।
मुख्य परीक्षा में निम्नलिखित प्रश्नपत्र होते हैं_
अर्हक प्रश्नपत्र
प्रश्न पत्र कः संविधान की आठवीं अनसूूची में सम्मिलित भाषाओं में से उम्मीदवारों द्वारा चुनी गई कोई एक भारतीय भाषा। कुल अंकः 300
प्रश्न पत्र खः अंग्रेजी, कुल अंकः 300
-उपर्युक्त दोनों प्रश्नपत्रें में न्यूनतम अंक लाना अनिवार्य है, इनमें न्यूनतम अंक नहीं लाने पर शेष पत्रें की उत्तर पुस्तिका नहीं जांची जाती। पर इनके अंक मेरिट तैयार करने में नहीं जोड़े जाते।
मेरिट को निर्धारित करने वाले पत्र
प्रश्न पत्र-1ः निबंध, कुल अंकः 250
प्रश्न पत्र-2ः सामान्य अध्ययन 1 (भारतीय विरासत और संस्कृति, विश्व का इतिहास एवं भूगोल और समाज) कुल अंकः 250
प्रश्न पत्र-3ः सामान्य अध्ययन 2 (शासन व्यवस्था, संविधान, शासन-प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध), कुल अंक-250
प्रश्न पत्र-4ः सामान्य अध्ययन 3 (प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन), कुल अंक-250,
प्रश्न पत्र-5ः सामान्य अध्ययन 4 (नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा और अभिरूचि), कुल अंक-250
प्रश्न पत्र-6ः वैकल्पिक विषय प्रथम पत्र, कुल अंक-250
प्रश्न पत्र-7ः वैकल्पिक विषय द्वितीय पत्र, कुल अंक-250
लिखित कुल अंकः 1750
साक्षात्कारः 275 अंक
कुल योगः 2025
सामान्य अध्ययन प्रथम (प्रश्न पत्र द्वितीय), कुल अंक-250
(भारतीय विरासत और संस्कृति, विश्व का इतिहास एवं भूगोल और समाज):
- भारतीय संस्कृति के तहत प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला रूपों, साहित्य एवं वास्तुकला के मुख्य पहलुओं से प्रश्न पूछे जाएंगे।
- 18वीं शताब्दी के मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएं, व्यक्तित्व, मुद्दे।
- स्वतंत्रता संघर्ष : इसके विभिन्न चरण तथा देश के विभिन्न हिस्सों का योगदान तथा योगदान देने वाले व्यक्ति।
- स्वतंत्रता के पश्चात देश के अंदर एकीकरण व पुनर्गठन।
- विश्व का इतिहास में 18वीं शताब्दी की घटनाएं जैसे;औद्योगिक क्रांति, विश्व युद्ध, राष्ट्रीय सीमाओं का पुनःअंकन, औपनिवेशीकरण, विऔपनिवेशीकरण, साम्यवाद, पूंजीवाद, समाजवाद जैसे राजनीतिक दर्शन और उनके रूप तथा समाज पर उनका प्रभाव।
- भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएं, भारत की विविधता,
- महिलाओं तथा महिला संगठनों की भूमिका, जनसंख्या व संबंधित मुद्दे, गरीबी व विकास मुद्दे, शहरीकरणः समस्याएं व निदान।
- भारतीय समाज पर भूमंडलीकरण का प्रभाव।
- सामाजिक सशक्तीकरण, सांप्रदायिकता क्षेत्रवाद व धर्मनिरपेक्षतावाद।
- विश्व की भौतिक भूगोल की मुख्य विशेषताएं।
- पूरे विश्व में मुख्य प्राकृतिक संसाधनों का वितरण (दक्षिण एशिया एवं भारतीय उपमहाद्वीप सहित)_ विश्व के विभिन्न हिस्सों में (भारत सहित) प्राथमिक, द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रक उद्योगों की अवस्थिति के लिए उत्तरदायी कारक।
- भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय गतिविधियां, चक्रवात इत्यादि जैसे मुख्य भौगोलिक घटनाएं, भौगोलिक विशेषताएं एवं उनकी अवस्थिति-आकस्मिक भौगोलिक पहलुओं (जलीय निकाय और हिम शीर्ष) तथा वनस्पती व प्राणी समूहों में परिवर्तन व इन परिवर्तनों का प्रभाव।
सामान्य अध्ययन द्वितीय (प्रश्न पत्र तृतीय), कुल अंक-250
(शासन व्यवस्था, संविधान, शासन-प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध):
- भारतीय संविधान-ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएं, संशोधन, महत्वपूर्ण प्रावधान व मूल ढ़ांचा।
- संघ एवं राज्यों का कार्य व उत्तरदायित्व, संघीय ढ़ांचा से संबंधित मुद्दे एवं चुनौतियां, स्थानीय स्तर तक शक्ति व वित्त का हस्तांतरण व उसकी चुनौतियां।
- विभिन्न घटकों के बीच शक्ति का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र व संस्थान।
- भारतीय सांविधानिक योजना का अन्य देशों के साथ तुलना।
- संसद् व राज्य विधायिकाएं : संरचना, कार्य, कार्यों का संचालन, शक्ति व विशेषाधिकार तथा इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।
- कार्यपालिका व न्यायपालिका की संरचना, संगठन एवं कार्य, सरकार के मंत्रलय व विभाग,दबाव समूह एवं औपचारिक/अनौपचारिक संगठन तथा शासन प्रणाली में उनकी भूमिका।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएं।
- विभिन्न सांविधानिक पदों पर नियुक्तियां, विविध सांविधानिक निकायों की शक्तियां, कार्य एवं उत्तरदायित्व।
- सांविधिक, विनियामक व विविध अर्द्ध- न्यायिक निकाय।
- सरकारी नीतियां एवं विभिन्न क्षेत्रकों में विकास हेतु हस्तक्षेप तथा उनके अभिकल्पन व क्रियान्वयन से उत्पन्न मुद्दे।
- विकास प्रक्रियाएं एवं विकास उद्योग : एनजीओ, स्वयं सहायता समूह, विविध समूह एवं संगठनों, दानकर्त्ता, चैरिटी, संस्थागत व विभिन्न हिस्सेदारियों की भूमिका,
- केंद्र व राज्य द्वारा आबादी के अति संवेदनशील वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएं तथा इन वर्गों की बेहतरी व सुरक्षा के लिए गठित तंत्र, कानून, संस्थाएं एवं निकाय।
- स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधन से जुड़े सामाजिक क्षेत्रक/सेवाओं के विकास व प्रबंधन से जुड़े मुद्दे।
- गरीबी व भूखमरी से जुड़े मुद्दे।
- शासन, पारदर्शिता व उत्तरदायित्व से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे, ई-शासनः अभिक्रियाएं, आदर्श, सफलता, सीमाएं व क्षमता, सिटिजन चार्टर, पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व एवं अन्य उपाय।
- लोकतंत्र में सिविल सेवा की भूमिका।
- भारत एवं इसके पड़ोसी देशों के साथ संबंध।
- भारत से जुड़े एवं/या भारत के हित को प्रभावित करने वाले द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह व समझौते।
- भारतीय हित में विकसित एवं विकासशील देशों की नीतियों व राजनीति का प्रभाव, इंडियन डायस्पोरा।
- महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संस्थान, एजेंसी एवं मंच : उनका गठन एवं मैंडेट।
सामान्य अध्ययन तृतीय (प्रश्न पत्र चतुर्थ), कुल अंक-250
(प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन):
- भारतीय अर्थव्यवस्था एवं आयोजना से संबंधित मुद्दे, संसाधनों की लामबंदी, संवृद्धि, विकास एवं रोजगार।
- समावेशी विकास एवं इससे संबंधित मुद्दे।
- सरकारी बजट।
- प्रमुख फसलें : देश के विभिन्न हिस्सों में फसल पैटर्न, सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली-भंडारण, परिवहन एवं कृषि उपज विपणन व इससे संबंधित मुद्दे और बाधाएं, किसानों की सहायता में ई-प्रौद्योगिकी।
- प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि सब्सिडी एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित मुद्दे, सार्वजनिक वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्यप्रणाली, सीमाएं, सुधार, खाद्य सुरक्षा एवं बफर स्टॉक से संबंधित मुद्दे, प्रौद्योगिकी मिशन, पशुपालन व्यवसाय।
6. खाद्य प्रसंस्करण एवं भारत में इससे संबंधित उद्योग-संभावनाएं एवं महत्व, अवस्थिति, ऊपरी एवं निचले तबकों की बुनियादी जरूरतें, आपूर्ति शृंखला प्रबंधन।
7. भारत में भूमि सुधार।
8. उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन और औद्योगिक वृद्धि पर उनके प्रभाव।
9. अवसंरचनाः ऊर्जा, पत्तन, सड़कें, रेलवे आदि।
10. निवेश मॉडल।
11. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी-वैकासिक घटनाक्रम एवं उनके प्रयोग तथा दैनिक जीवन में इनका प्रभाव।
12. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारतीय उपलब्धियां, प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण एवं नव प्रौद्योगिकी का विकास।
13. सूचना प्रौद्योगिकी (IT), अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-तकनीक, जैव-प्रौद्योगिकी एवं बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) से संबंधित मुद्दों पर जागरूकता।
14. संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन।
15. आपदा एवं आपदा प्रबंधन।
16. विकास एवं अतिवाद (Extremism) के प्रसार के बीच संबंध।
17. आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौतियां पैदा करने में बाह्य एवं गैर-राज्यों की भूमिका।
18. संचार नेटवर्क से आंतरिक सुरक्षा को चुनौतियां, आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों में मीडिया एवं सोशल नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा संबंधी मूल अवधारणाएं, मनी-लांडरिंग व इसकी रोकथाम।
19. सुरक्षा चुनौतियां एवं सीमावर्ती क्षेत्रों में उनका प्रबंधन - आतंकवाद का संगठित अपराध के साथ संबंध।
20. विभिन्न सुरक्षा बल एवं एजेंसी तथा उनके जनादेश।
सामान्य अध्ययन चतुर्थ (प्रश्न पत्र पंचम) , कुल अंक-250
(नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा और अभिरुचि)
- नीतिशास्त्र व मानवीय सह-संबंध : मानवीय क्रियाकलापों में नीतिशास्त्र का सार तत्व, इसके निर्धारक तत्व व नैतिकता के प्रभाव, नीतिशास्त्र के आयाम, निजी व सार्वजनिक संबंधों में नीतिशास्त्र, मानवीय मूल्यः महान नेताओं, सुधारकों, प्रशासकों के जीवन व शिक्षाओं से शिक्षा मूल्य विकसित करने में परिवार, समाज व शैक्षिक संस्थाओं की भूमिका,
- अभिवृत्तिः सारांश, संरचना, वृत्ति, विचार व व्यवहार के साथ इसका संबंध व प्रभाव, नैतिक व राजनीतिक अभिवृत्ति, सामाजिक प्रभाव व अनुनय,
- सिविल सेवा के लिए अभिरूचि एवं बुनियादी मूल्यः सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता एवं गैर पक्षपाती, वस्तुनिष्ठता, लोक सेवा के प्रति समर्पन, कमजोर वर्गों के प्रति सहानुभूति, सहिष्णुता तथा संवेदना,
- भावनात्मक समझ (बुद्धि) : अवधारणाएं तथा प्रशासन व शासन में उनकी उपयोगिता व अभिक्रियाएं।
- भारत एवं विश्व के नैतिक विचारकों व दार्शनिकों का योगदान।
- लोक प्रशासन में लोक/सिविल सेवा मूल्य एवं नीतिशास्त्र : स्थिति एवं समस्याएं,सरकारी एवं निजी संस्थानों में नैतिक चिंताएं एवं दुविधाएं,नैतिक निर्देशन के स्रोत के रूप में विधि, नियम, विनयम एवं अंतःकरण, उत्तरदायित्व एवं नैतिक शासन, शासन में नैतिक व आचारिक मूल्य सुदृढि़करण, अंतरराष्ट्रीय संबंधों व वित्तीयन में नैतिक मुद्दे,कॉरपोरेट गवर्नेंस ।
- शाासन में नैतिकताः लोक सेवा की अवधारणा, शासन व नैतिकता का दार्शनिक आधार सूचना का आदान-प्रदान व सरकार में हिस्सेदारी, सूचना व अधिकार, नैतिक संहिता, आचार संहिता, सिटिजन चार्टर, कार्य संस्कृति, सेवा प्रदान करने की गुणवत्ता, सार्वजनिक निधि का उपयोग, भ्रष्टाचार की चुनौतियां।
- उपर्युक्त मुद्दों पर केस स्टडी।
प्रारंभिक परीक्षा में दो अनिवार्य प्रश्न पत्र होते हैं जिसमें प्रत्येक प्रश्न पत्र 200 अंकों का होता है। अनिवार्य का मतलब यह कि आपको दोनों पत्रें की परीक्षा में शामिल होना होगा।
- दोनों ही प्रश्न-पत्र वस्तुनिष्ठ (बहुविकल्पीय) प्रकार के होते हैं।
- प्रश्न-पत्र हिन्दी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में तैयार किए जाते हैं।
- प्रारंभिक परीक्षा का दूसरा प्रश्न पत्र केवल क्वालीफाइंग नेचर का होता है। इसमें न्यूनतम 33% अंक लाना अनिवार्य है तभी आपका रिजल्ट घोषित हो सकता है। प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम केवल सामान्य अध्ययन-प्रथम पत्र में प्राप्त अंकों के आधार पर घोषित किया जाता है।
- प्रारंभिक परीक्षा में निगेटिव मार्किंग भी होती है। अर्थात वस्तुनिष्ठ प्रकार के प्रश्न पत्रों में उम्मीदवार द्वारा दिए गए गलत उत्तरों के लिए दंड (ऋणात्मक अंक) दिया जायेगा। किसी प्रश्न का उत्तर गलत होने पर उस प्रश्न को आवंटित अंक में से एक तिहाई (1/33) अंक काटे जाएंगे। यदि कोई छात्र किसी प्रश्न का एक से अधिक उत्तर देता है तो उसे गलत उत्तर माना जाएगा। यदि किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया जाता है तो उस प्रश्न के लिए कोई अंक नहीं काटे जाएंगे।