इंडस आईओटी किट

केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय में राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने 18 अक्टूबर, 2021 को सीडैक, बैंगलोर (Centre for Development of Advanced Computing: CDAC) में एकल बोर्ड आईओटी डेवलपमेंट प्लेटफॉर्म ‘इंडस आईओटी किट’ [Innovation Development Upskilling (INDUS) Internet of Things (IoT) Kit] लॉन्च की।

महत्वपूर्ण तथ्यः क्रेडिट कार्ड के आकार की CDAC द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित यह किट, 6 सेंसर, एक्चुएटर्स (प्रवर्तक या गति देने वाला), कनेक्टिविटी और डिबगर इंटरफेस (debugger intefraces) से सुसज्जित है।

  • कॉम्पैक्ट और ले जाने में आसान (पोर्टेबल) आईओटी किट ड्रोन सहित कई एप्लीकेशन की एक श्रृंखला में स्थानीय और स्मार्ट सॉल्युशन के विकास को सुविधाजनक बनाएगी।
  • इसकी कीमत सिर्फ 2,500 रुपये प्रति यूनिट है और यह जल्द ही जीईएम (Government e- MarketPlace: GeM) पोर्टल पर उपलब्ध होगा। सी-डैक वाणिज्यिक उत्पादन के लिए इस तकनीक को स्टार्टअप्स को हस्तांतरित करने का भी इच्छुक है।

इन्हें भी जानें

मृत क्षेत्र

सम्पूर्ण ग्रह में जल निकाय धीरे-धीरे ‘मृत क्षेत्रों’ या डेड जोन (Dead Zones) में बदल रहे हैं। उर्वरकों में उपयोग किया जाने वाला रासायनिक रूप से संश्लेषित नाइट्रोजन (chemically synthesized nitrogen) महासागरों, नदियों और झीलों को ‘मृत’ बना रहा है।

  • मृत क्षेत्र जल निकायों में ऐसे क्षेत्र हैं, जहां जलीय जीव ऑक्सीजन की कमी के चलते जीवित नहीं रह सकते हैं। खेतों और कृषि भूमि में उपयोग किए जाने वाले उर्वरक जल निकायों में चले जाते हैं तो वे शैवाल के विकास को उत्प्रेरित करते हैं। जल निकायों में पोषक तत्वों की अधिकता सुपोषण या ‘यूट्रोफिकेशन’ (eutrophication) मृत क्षेत्रों के निर्माण का प्रमुख कारण है। अतिरिक्त नाइट्रोजन और फास्फोरस थोड़े समय में शैवाल के अतिवृद्धि का कारण बनते हैं, जिसे शैवाल प्रस्फुटन (Algal blooms) भी कहा जाता है। जब शैवाल मर जाते हैं तो वे जल निकाय के तल में बैक्टीरिया के लिए एक समृद्ध खाद्य स्रोत प्रदान करते हैं, जो विघटित होने पर आसपास के पानी से घुलित ऑक्सीजन का उपभोग करते हैं, जिससे समुद्री जीवों से आपूर्ति कम हो जाती है। अनुमानों के अनुसार लगभग 10% या अधिक महासागर अब मृत क्षेत्र हैं। इस साल मैक्सिको की खाड़ी का मृत क्षेत्र अब तक का सबसे बड़ा मृत क्षेत्र दर्ज किया गया, जो लगभग 16,400 वर्ग किलोमीटर में फैला था।

इस माह के चर्चित संस्थान एवं संगठन

केंद्रीय नींबू वर्गीय फल अनुसंधान संस्थान

साइट्रस (नींबू वर्गीय फल) और इसके मूल्य वर्धित उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए, कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) ने 11 अक्टूबर, 2021 को केंद्रीय नींबू वर्गीय फल अनुसंधान संस्थान, नागपुर (Central Citrus Research Institute: ICAR-CCRI) के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं।

  • केंद्रीय नींबू वर्गीय फल अनुसंधान संस्थान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तहत एक शोध संस्थान है। 29 जुलाई, 1985 को तत्कालीन रक्षा मंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव द्वारा औपचारिक रूप से केंद्रीय साइट्रस अनुसंधान स्टेशन की आधारशिला रखी गई थी। इस केंद्र की शुरुआत 29 नवंबर, 1985 को भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर के एक उप-केंद्र के रूप में की गई थी। अप्रैल 1986 में केंद्रीय साइट्रस अनुसंधान स्टेशन को स्वतंत्र ‘केंद्रीय नींबू वर्गीय फल अनुसंधान संस्थान’ के रूप में अपग्रेड किया गया था। यह नागपुर में स्थित है। इसका मुख्य कार्य फसल सुधार, सतत उत्पादकता, फसल संरक्षण और साइट्रस के उपयोग पर बुनियादी, रणनीतिक और अनुप्रयुक्त अनुसंधान करना तथा साइट्रस पर आनुवंशिक संसाधनों और वैज्ञानिक जानकारी का संग्रह करना है।
जैव संसाधन और स्थायी विकास संस्थान

केंद्रीय मंत्री- डॉ. जितेंद्र सिंह ने पूर्वोत्तर क्षेत्र की समग्र समृद्धि के लिए फसल, फल और पादप अनुसंधान में जैव प्रौद्योगिकी विभाग की परियोजनाओं की समीक्षा करने के लिए इंफाल के जैव-संसाधन और सतत विकास संस्थान (Institute of Bio-resources and Sustainable Development: IBSD) का दौरा किया।

  • जीव विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी के आधुनिक उपकरणों के अनुप्रयोग के माध्यम से देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र के समृद्ध जैव संसाधनों का विकास और उपयोग करने के उद्देश्य से 2001 में इंफाल, मणिपुर में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) द्वारा जैव-संसाधन और सतत विकास संस्थान की स्थापना की गई थी। यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रलय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग का एक स्वायत्त संस्थान है। इसके अनुसंधान के क्षेत्र जीव विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी, कृषि विज्ञान तथा चिकित्सा विज्ञान हैं। IBSD के निदेशक प्रो. पुलक कुमार मुखर्जी हैं।

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी