Question : उन्नीसवीं शताब्दी के प्रथम दो दशकों के दौरान अंग्रेजों ने किस प्रकार महाराष्ट्र में अपना नियन्त्रण स्थापित किया? मराठा चुनौती अंततः विफल क्यों हुई?
(1994)
Answer : मुगल साम्राज्य के खण्डहरों पर मराठों ने अपना साम्राज्य बनाया। उन्हीं परिस्थितियों से अंग्रेजों ने भी लाभ उठाया। दोनों ही अपने-अपने क्षेत्रों में कार्य करते थे। मराठे शेष भारतीय शक्तियों में सबसे शक्तिशाली तथा अंग्रेजी कम्पनी शेष यूरोपीय कम्पनियों में सर्वश्रेष्ठ के रूप में उभर कर सामने आयी।
प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध के प्रथम दौर का कारण मराठों के आपसी झगड़े तथा अंग्रेजों की महत्त्वाकांक्षाएं थीं। रघुनाथ राव से सूरत की सन्धि (1775) करके अंग्रेजों ने महाराष्ट्र ....
Question : ब्रिटिश राज का एक घोर नस्लवादी पक्ष था और वह अन्ततः औपनिवेशिक शोषण का ही पोषक बना।"
(1994)
Answer : सम्पूर्ण ब्रिटिश राजकाल (1765 से 1947) को एक सरसरी निगह से देखा जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि उस राज का एक घोर नस्लवादी पक्ष था। भारतीय को बहुत हीन दृष्टि से देखा जाता था। कार्नवालिस, लिटन एवं कर्जन जैसे वायसराय तो प्रत्येक भारतीय को भ्रष्ट एवं अयोग्य ही मानते थे। भारतीय जनपद सेवा (I.C.S.) में नियुक्ति प्रणाली की व्यवस्था इस तरह की गयी थी कि शायद कोई बिरला भारतीय व्यक्ति ही इस ....
Question : भारत में बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के दौरान व्यावसायिक उद्यम के उद्भव एवं विकास की व्याख्या आप किस प्रकार कीजियेगा?
(1994)
Answer : भारतीय पूंजीपतियों की राजनीतिक स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रकृति और विकास के स्तर से जुड़ी हुई थी। औपनिवेशिक काल में, विशेषतः 20वीं शताब्दी में भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास दूसरे औपनिवेशिक देशों से महत्वपूर्ण अर्थों में भिन्न था। इसी के आधार पर भारतीय पूंजीपतियों की साम्राज्यवाद संबंधी स्थिति की व्याख्या की जा सकती है। इस विकास की संक्षिप्त रूपरेखा इस प्रकार है:
Question : अनेक दृष्टियों से विधवा पुनर्विवाह अधिनियम सती प्रथा की समाप्ति का तार्किक परिणाम था।"
(1994)
Answer : सती प्रथा अर्थात् विधवा स्त्री का अपने पति के शव के साथ पति की चिता में जल जाना। सती प्रथा एक अभिशाप की तरह भारतीय सामाजिक व्यवस्था में सदियों से चली आ रही थी। इस अमानवीय प्रथा के विरुद्ध राजा राममोहन राय जैसे लोगों के सबल एवं गंभीर विरोध से प्रभावित होकर गवर्नर जनरल विलियम बेंटिक ने 1829 में सती प्रथा अर्थात् सती होना, सती होने के लिए प्रेरित करना जैसे कार्यों को गैर-कानूनी घोषित ....
Question : 1857 के विद्रोह के पश्चात् भारत में ब्रिटिश गतिविधियों के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में सतर्कता एवं रूढि़वाद का नया दृष्टिकोण खोजा जा सकता है।"
(1994)
Answer : 1857 के व्रिदोह के कारणों के बारे में समीक्षा करने पर अंग्रेजों ने पाया कि राज्यों को हड़पने की नीति, भारतीयों के सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में हस्तक्षेप करने (1829 की सती प्रथा निषेध कानून एवं 1856 की विधवा पुनर्विवाह कानून), सेना में अवध के सैनिक का अधिक होना, सेना में अंग्रेजी-भारतीय सैनिकों के अनुपात में बहुत अधिक अंतर होना एवं मुस्लिमों की साजिश आदि कारण थे। अतः 1858 से अंग्रेजों ने अपनी गतिविधियों के ....
Question : भारत में बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के दौरान व्यावसायिक उद्यम के उद्भव एवं विकास की व्याख्या आप किस प्रकार कीजियेगा?
(1994)
Answer : भारतीय पूंजीपतियों की राजनीतिक स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रकृति और विकास के स्तर से जुड़ी हुई थी। औपनिवेशिक काल में, विशेषतः 20वीं शताब्दी में भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास दूसरे औपनिवेशिक देशों से महत्वपूर्ण अर्थों में भिन्न था। इसी के आधार पर भारतीय पूंजीपतियों की साम्राज्यवाद संबंधी स्थिति की व्याख्या की जा सकती है। इस विकास की संक्षिप्त रूपरेखा इस प्रकार हैः
Question : फ्कांग्रेस की शक्ति का गौरव-गान करना और लीग की शक्ति को नकारना अंधापन है।"
(1994)
Answer : उपरोक्त वक्तव्य तत्कालीन परिस्थितियों का एक उचित आकलन प्रस्तुत करता है। 1935 के एक्ट के तहत 1937 में हुए आम चुनाव में जहां कांग्रेस को लगभग 6 राज्यों में बहुमत प्राप्त हुआ था, वहीं मुस्लिम लीग को मुसलमानों के 485 आरक्षित स्थानों में से केवल 110 स्थान मिले थे। साथ ही विश्व युद्ध (द्वितीय) की शुरुआत होने पर भारत का इस युद्ध में शामिल होने के ब्रिटिश सरकार के एकतरफा निर्णय के बाद कांग्रेस मंत्रिमंडलों ....
Question : गांधी ने जनान्दोलनों पर अंकुश लगाते हुए भी अपनी लोकप्रियता बनाये रखी। इस विरोधाभास की व्याख्या आप कैसे करेंगे?
(1994)
Answer : भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का 1919-47 का काल गांधी युग के रूप में जाना जाता है। इस युग में महात्मा गांधी ही सबसे प्रमुख नेता थे। उन्होंने भारतीय राजनीति में नयी विचारधारा का सूत्रपात किया। गांधी ने छिपकर षडयन्त्रों की नीति की निन्दा की और अन्याय का स्पष्ट और सामने से विरोध करने का आह्नान दिया। उन्होंने ‘सत्याग्रह’ (सत्य के प्रति आग्रह) अर्थात् सरकार के प्रति अहिंसात्मक असहयोग की नीति अपनाई। गांधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस ....
Question : बंगाल का स्थायी बन्दोबस्त, श्रेष्ठतम मन्तव्यों से प्रारम्भित होने पर भी, एक दुःखद भयंकर भूल का मामला था।"
(1993)
Answer : बंगाल का स्थायी बन्दोबस्त प्रारम्भ करने के पीछे कार्नवालिस का उद्देश्य था, फ्कृषि तथा व्यापार नष्ट हो रहा है, जमींदार तथा खेतिहर मजदूर व किसान दिन-प्रतिदिन और अधिक निर्धन होते जा रहे हैं तथा जाति में केवल साहूकार ही समृद्धिशाली हैं" को खत्म करना। कार्नवालिस के मतानुसार स्थायी बन्दोबस्त के बहुत-से लाभ थे। इनमें से एक था-इससे जमींदारों को न केवल अपनी भूमि के विकास में बल्कि बंजर भूमि को जोतने में भी प्रोत्साहन मिलेगा। ....
Question : ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधीन भारत में किस प्रकार के प्रशासनिक सुधार प्रस्तुत किये गये?
(1993)
Answer : वर्ष 1765 के बाद, क्लाइव के समय ईस्ट इण्डिया कम्पनी एक व्यापारिक संस्था के साथ-साथ एक राजनैतिक संस्था भी बन गयी थी। अपनी राजनैतिक शक्ति को एक मजबूत आधार देने के लिए कम्पनी ने ब्रिटिश पद्धति पर आधारित प्रशासकीय नियमों को लागू किया, जो भारत में पहले से चली आ रही प्रशासकीय पद्धतियों से काफी अलग थे। क्लाइव ने 1765 के बाद यह प्रयास किया कि कम्पनी के अधिकारी भारतीय शासकों से उपहार न लें, ....
Question : सामाजिक-धार्मिक सुधार आन्दोलनों ने उन्नीसवीं शताब्दी में स्त्रियों की मुक्ति में किस सीमा तक योगदान दिया?
(1993)
Answer : भारत में स्त्रियों की प्रस्थिति विभिन्न कालों और विभिन्न वर्गों, धर्म और मानव जातीय समूहों में बदलती रही हैं। 19वीं शताब्दी में स्त्रियों से संबंधित बहुत-सी सामाजिक बुराइयां फैली हुई थीं। इनमें से प्रमुख थीं-सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा पुनर्विवाह पर निषेध, बहुविवाह इत्यादि। यही समस्याएं वाद-विवाद का विषय बनी हुई थीं।
19वीं शती में ब्रिटिश काल के दौरान अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार और भारतीयों के बीच पश्चिमी स्वतन्त्र विचारधारा के प्रभाव और ईसाई मिशनरी क्रियाकलापों ....
Question : आजादी के लिए राष्ट्रीय राजनीतिक आन्दोलन, यथा असहयोग और सविनय अवज्ञा आन्दोलन और उनका नेतृत्व कृषकों पर बहुत अधिक निर्भर थे।"
(1993)
Answer : वैसे तो काफी पहले से ही भारतीय किसान धीरे-धीरे अपनी समस्याओं के लिए लामबंद होने लगे थे, लेकिन 1920 से आरम्भ होने होने वाले दशक में बंगाल, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में किसान सभाओं का गठन हुआ। अखिल भारतीय किसान सभा का गठन 1936 में हुआ। आजादी के लिए राष्ट्रीय आन्दोलन, यथा असहयोग और सविनय अवज्ञा आन्दोलन और उनका नेतृत्व कृषकों पर बहुत अधिक निर्भर इसलिए था, क्योंकि प्रथमतः भारतीय जनसंख्या का सबसे बड़ा हिस्सा ....
Question : अतः माउण्टबेटन का कार्य लीग द्वारा मांगे और ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस दोनों के द्वारा स्वीकृत विभाजन के लिये ब्यौरों का निर्धारण और उसका क्रियान्वयन करना मात्र था, और इसे करने के लिये नये वायसराय ने अधिकारपूर्वक आरम्भ किया।"
(1993)
Answer : मुस्लिम लीग ने मंत्रिमण्डलीय शिष्टमण्डल की योजना से अपनी स्वीकृति वापस ले ली और 16 अगस्त, 1946 को ‘सीधी कार्यवाही दिवस’ मनाया। यह सीधी कार्यवाही अंग्रेजों के विरुद्ध पाकिस्तान लेने के लिए नहीं की गयी, अपितु हिन्दुओं के विरुद्ध इसी उद्देश्य से की गयी। परिणामस्वरूप सारे देश में दंगा भड़का। इस विषम स्थिति में कांग्रेस द्वारा गठित अंतरिम सरकार में ना-नुकर के बाद शामिल होकर और वह भी इसे अन्दर से तोड़ने के लिए लीग ....
Question : भारतीय राज्यों की ब्रिटिश इण्डिया के साथ ‘अधीन संघ’ की 1858 से 1905 तक की ब्रिटिश नीति की व्याख्या कीजिये। इस काल में भारत सरकार ने इस नीति का क्रियान्वयन किस प्रकार किया?
(1993)
Answer : भारतीय राज्यों के साथ भारत सरकार के सम्बन्धों के इतिहास में विद्रोह (1857 का) एक महत्वपूर्ण घटना थी। यह बात मानी गयी कि विद्रोह के महत्वपूर्ण कारणों में से एक कारण डलहौजी की वह नीति थी, जिसके अधीन वह किसी न किसी बहाने भारतीय रियासतों को ब्रिटिश राज्य में सामूहिक रूप से मिलाना चाहता था। विद्यमान परिस्थितियों का प्रतिकार करने के लिए यह आवश्यक समझा गया कि भारतीय रियासतों के सम्बन्ध में भारत सरकार की ....
Question : बसीन की सन्धि ने अपनी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संक्रियाओं से कम्पनी को भारत का साम्राज्य दिलाया।"
(1993)
Answer : जसवन्त राव होल्कर के पूना पर आक्रमण करने के बाद बाजीराव द्वितीय ने भाग कर बसीन में शरण ली और 31 दिसम्बर, 1802 को अंग्रेजों से एक सन्धि (बसीन की सन्धि) की, जिसके अनुसार पेशवा ने अंग्रेजी संरक्षण स्वीकार कर भारतीय तथा अंग्रेज पदातियों की एक सेना पूना में रखना, विदेशी मामले कम्पनी के अधीन कर देना आदि शर्तों को स्वीकार किया। इसी सन्धि में पेशवा ने गुजरात, ताप्ती तथा नर्मदा के मध्य क्षेत्र तथा ....
Question : भारत में अंग्रेजी भू-राजस्व नीति को रूप प्रदान करने वाले प्रमुख कारकों का परीक्षण कीजिए। उसका भारतीय समाज पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ा था।
(2007)
Answer : प्रारंभ से ही ब्रिटिश कंपनी भारत में भू-राजस्व के अधिकतम संग्रह में विश्वास रखती थी। उस समय कंपनी को वाणिज्य-व्यापार में निवेश, प्रशासनिक खर्च एवं भारत में साम्राज्यवादी प्रसार के लिए अधिकतम राशि की आवश्यकता थी। अतः सारा अधिभार कृषकों पर लाद दिया गया। प्रारंभ से ही ब्रिटिश सरकार का मुख्य बल भू- राजस्व में वृद्धि पर था। 1722 ई॰ में भू-राजस्व की राशि 14 लाख 29 हजार थी, जो 1765 ई. में बढ़ाकर 81 ....
Question : “उन्नीसवीं शताब्दी में जिन बुराइयों ने भारतीय समाज को जंग लगा दिया था, संभवतः वे बुराइयां वो थीं, जिन्होंने उसके नारीत्व को अवरूद्ध कर दिया था।”
(2007)
Answer : कहा जाता है जिस देश में महिलाएं उपेक्षित हों, वह देश या समाज सभ्यता के क्षेत्र में कभी उल्लेखनीय प्रगति नहीं कर सकता। दुर्भाग्य से 19वीं शताब्दी में भारतीय सामाजिक जीवन के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। वैसे तो 19वीं शताब्दी में सामाजिक जीवन में विकृतियां चरम पर थीं। जाति प्रथा, अंधविश्वासों की प्रधानता, अज्ञानता एवं अशिक्षा, सामाजिक-आर्थिक शोषण, धार्मिक-कट्टरता आदि बुराइयों से भारतीय समाज जकड़ी हुई थी। लेकिन महिलाओं की दशा ....
Question : “1857 का विद्रोह अंग्रेजों की उपस्थिति पर ही प्रश्न चिह्न लगाता हुआ प्रतीत होता था। उसने जो नहीं किया, वह था इन परिवर्तनों को उलट देना।”
(2007)
Answer : भारत में ब्रिटिश राज्य के तेजी से विस्तार के बाद भारतीय शासन प्रणाली एवं जीवन के विविध क्षेत्रें में कई परिवर्तन हुए। इन परिवर्तनों ने भारतीय जीवन की परम्परागत शैली को झकझोर दिया तथा समाज के विभिन्न वर्गों एवं समुदायों के बीच हलचल पैदा कर दी। भले ही 1857 के विद्रोह के स्वरूप एवं प्रकृति को लेकर विभिन्न राय हो, लेकिन इतना तय है कि 1857 का विद्रोह भारत में अंग्रेजों की उपस्थिति एवं उनकी ....
Question : उन परिस्थितियों को स्पष्ट कीजिए जिनके परिणाम स्वरूप खिलाफत एवं असहयोग आन्दोलन के बीच संबंध हुआ था। कांग्रेस के लिए क्या यह राजनीतिक समझदारीपूर्ण कदम था?
(2007)
Answer : खिलाफत एवं असहयोग आन्दोलन के साथ ही राष्ट्रीय आन्दोलन का तीसरा चरण शुरू हुआ। इस चरण की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इस चरण में हिन्दू-मुस्लिम सहयोग स्थापित हुआ एवं व्यापक जन आन्दोलन छेड़े गए तथा आन्दोलन को गांधीजी का सशक्त नेतृत्व मिला। खिलाफत एवं असहयोग आन्दोलन के बीच संबंध स्थापित होने की पृष्ठभूमि में कई कारक थे एवं तात्कालिक परिस्थितियों के मांग के अनुरूप दोनों दलों के नेताओ ने निर्णय लिये। यद्यपि खिलाफत ....
Question : “1931 में कराची में कांग्रेस ने पारिभाषित किया कि आम जनता के लिए स्वराज का क्या अर्थ होगा।”
(2007)
Answer : वैसे तो कांग्रेस अपने जन्म से ही जनता के आर्थिक हितों, नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक अधिकारों के लिए लड़ती जा रही थी, लेकिन कराची कांग्रेस पहला अवसर था, जब कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज को वास्तव में पारिभाषित किया और बताया कि जनता के लिए पूर्ण स्वराज का अर्थ क्या है।
वास्तव में कराची कांग्रेस में पारित प्रस्ताव पहली बार भारतीय जनता के लिए उन अधिकारों एवं शक्तियों की वकालत कर रहे थे, जो किसी भी आधुनिक ....
Question : उन परिस्थितियों का परीक्षण कीजिए, जिनके फलस्वरूप तृतीय मैसूर युद्ध हुआ। क्या कार्नवालिस उसको टाल सकता था?
(2006)
Answer : द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध के समय मराठों, निजाम तथा फ्रांसीसियों से हैदरअली ने समझौता कर अरकाट पर विजय प्राप्त कर ली थी तथा हैक्टर मुनरो की सेना को परास्त कर दिया था। इस समय कम्पनी को मराठों तथा मैसूर दोनों से परास्त होना पड़ा था। सर अल्फ्रेड लॉयल ने लिखा है कि 1780 के ग्रीष्मकाल मेंकम्पनी की साख अपने न्यूनतम स्तर पर थी। यद्यपि वारेन हेसि्ंटग्स ने स्थिति को बड़ी मुश्किल से संभाल लिया, तथापि ....
Question : ‘‘न तो सिकन्दर महान और न ही नैपोलियन, आधार के तौर पर पांडीचेरी से शुरू करके और एक ऐसी शक्ति के साथ उलझ कर, जो बंगाल और समुद्र की बागडोर संभाले हुए थी, भारत के साम्राज्य को जीत सकते थे’’।
(2006)
Answer : ऐंग्लो-फ्रेंच प्रतिस्पर्धा में अंततः फ्रांसीसी सेना पराजित हो गई। 1760 ई. में वांडीवाश के स्थान पर सर आयरकूट ने फ्रांसीसियों को बुरी तरह पराजित किया। पाण्डिचेरी, माही तथा जिंजी पर भी अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया तथा भारत से फ्रांसीसियों का पत्ता कट गया। फ्रांस की असफलता के अनेक कारण थे, जैसे- फ्रांसीसियों का यूरोप में उलझना, दोनों देशों की प्रशासनिक भिन्नता आदि। फ्रांसीसी कम्पनी तम्बाकू के एकाधिकार तथा लॉटरियों के सहारे चलती रही। ऐसी ....
Question : आदिम हल और बैल-शक्ति के द्वारा चलाई जा रही कृषि और सरल उपकरणों के द्वारा चलाए जा रहे हस्तशिल्पों पर आधारित आत्मनिर्भर गांव ही ब्रिटिश-पूर्व भारतीय अर्थ-व्यवस्था का एक बुनियादी अभिलक्षण था।
(2006)
Answer : औपनिवेशिक काल से पूर्व भारतीय अर्थवस्था प्रमुख रूप से कृषिजन्य अर्थव्यवस्था थी। तत्कालीन ग्रामीण कृषि का मुख्य उद्देश्य गांव के उपभोग के लिए उत्पादन करना था। भारतीय ग्राम अपने आप में छोटे संसार की तरह काम करते थे। भारतीय ग्राम-अर्थव्यवस्था का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष यह था कि ग्रामों में आत्मनिर्भर तथा आत्मशासी समुदाय रहते थे। नमक तथा लोहे के अतिरिक्त इस आत्मनिर्वाही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बाह्य जगत से कुछ अधिक नहीं लेना होता था। इस ....
Question : भारतीय कृषि के वाणिज्यीकरण से आप क्या समझते हैं? उसके परिणामों पर चर्चा कीजिए।
(2006)
Answer : कृषि वाणिज्यीकरण में कई बातें शामिल होती हैं जैसे- नई नकदी फसलों का प्रचलन, ग्रामीण समृद्धि, कृषकों के स्तर में विभेद, कृषि अधिशेष में वृद्धि आदि। परन्तु भारतीय किसानों के लिए यह एक थोपी गई प्रक्रिया थी। यह एक विदेशी कम्पनी द्वारा प्रेरित तथा साम्राज्यवादी हितों की पूर्ति से जुड़ा हुआ था। कृषि का वाणिज्यीकरण भारत में किसी नई घटना को नहीं बताता है, परन्तु औपनिवेशिक काल में इसका स्वरूप नया था। ईस्ट इंडिया कम्पनी ....
Question : ‘जब तक लाखों-लाखों लोग भूख और अज्ञान का जीवन जीते रहेंगे, मैं प्रत्येक व्यक्ति को देशद्रोही मानता हूं, जो उनकी बदौलत शिक्षा तो पा गया है लेकिन जो उनकी ओर तनिक भी ध्यान नहीं देता है’।
(2006)
Answer : विवेकानन्द के सामाजिक, धार्मिक तथा आध्यात्मिक विचारों की आत्मा मानवतावाद थी। मैं समाजवादी हूं’ नामक अपनी पुस्तक में भारत के उच्च वर्ग से अपने पद और सुविधाओं का परित्याग करते हुए निम्नवर्ग के साथ हिल-मिल जाने का उन्हाेंने आह्वान किया। स्वामी विवेकानन्द के अनुसार गरीबों तथा पददलितों के परिश्रम से ही उच्च वर्गों के लोग शिक्षा पाते हैं। अतः शिक्षित वर्ग के लोगों का यह दायित्व है कि भारत के लाखों गरीब तथा अशिक्षित लोगों ....
Question : कांग्रेस के बीच वाम स्कंध के उद्भव के कारण बताइए। उसने कांग्रेस के कार्यक्रम एवं नीति को किस सीमा तक प्रभावित किया था?
(2006)
Answer : आरंभ में भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का लक्ष्य केवल राजनीतिक स्वतंत्रता था, परन्तु बीसवीं सदी के दूसरे दशक में सामाजिक तथा आर्थिक स्वतंत्रता की मांगें जोर पकड़ने लगी। फलतः कांग्रेस के अंदर एक शक्तिशाली वामपंथ का उदय हुआ। वामपंथी कांग्रेस के साथ रहते हुए भी अलग ढंग से सरकार का विरोध करते थे। वाम स्कंध के उद्भव में अनेक परिस्थितियां सहायक सिद्ध हुईं। प्रथम विश्व युद्ध के बाद देश की बिगड़ती आर्थिक स्थिति, औपनिवेशिक शासन द्वारा ....
Question : “ किसी कवि व दार्शनिक द्वारा अपने देशवासियों के रूप को भाग्य देने में ऐसे चमत्कार कर देने का मानव-जाति के इतिहास में कोई अन्य उदाहरण नहीं है।” (मो॰ इकबाल के सन्दर्भ में)
(2006)
Answer : मोहम्मद इकबाल उर्दू के प्रख्यात शायर एवं दार्शनिक थे। मोहम्मद इकबाल उन प्रारंभिक मुस्लिम राष्ट्रवादियों में थे जिन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता के महत्व को समझा एवं ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एकजुट होकर संघर्ष के आह्वान को प्रेरित किया।
मोहम्मद इकबाल ने अपनी रचनाओं के माध्यम से न केवल जन सामान्य में राष्ट्रीय चेतना की भावना को जागृत किया, बल्कि आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्तों से जनता को प्रशिक्षित कराने की दिशा में भी उनका योगदान उल्लेखनीय रहा।
उन्होंने अपनी रचनाओं ....
Question : ‘मैने महसूस किया कि यदि हमने विभाजन को स्वीकार नहीं किया, तो भारत अनेक टुकड़ों में बंट जाएगा और पूरी तरह से नष्ट हो जाएगा’।
(2006)
Answer : मुस्लिम लीग की साम्प्रदायिकता तथा पार्थक्य की नीति के चलते अंततः भारत का विभाजन अपरिहार्य हो गया। लीग की नीति के प्रतिक्रियास्वरूप हिंदू साम्प्रदायिक तत्वों का भी प्रभाव बढ़ गया। भारत की अखंडता में विश्वास रखने वाली कांग्रेस ने विभाजन को स्वीकार कर लिया।
गांधीजी ने भी विभाजन को मौन स्वीकृति दे दी। इसी के साथ भारतीय इतिहास में एक यक्ष प्रश्न खड़ा हो गया कि क्या भारत का विभाजन रोका जा सकता था? कांग्रेस मुस्लिम ....
Question : “बड़े कौशल और श्रेष्ठ कूटनीति के साथ एवं अनुनय और दबाब दोनों का इस्तेमाल करते हुए सरदार वल्लभ भाई पटेल सैकड़ों देशी राज्यों को भारतीय संघ में विलयन करने में सफल हुए।” चर्चा कीजिए।
(2006)
Answer : सर्वोच्चता की आसन्न समाप्ति ने रजवाड़ों के भविष्य के प्रश्न को अत्यंत महत्वपूर्ण बना दिया था। कुछ अधिक महत्वाकांक्षी शासक या उनके दीवान (जैसा कि हैदराबाद, भोपाल या त्रवणकोर में) ऐसी स्वतंत्रता का स्वप्न देख रहे थे, जिसमें वे पहले की भांति स्वेच्छाचारी बने रहे। इस समय इन देशी रियासतों की संख्या लगभग 554 थी। 3 जून, 1947 को तब एक बहुत ही जटिल परिस्थिति उत्पन्न हो गई, जब वायसराय ने घोषणा की कि 15 ....
Question : कुल मिलाकर, तब मेरा यह निष्कर्ष है कि बेसीन की संधि विवेकपूर्ण, उचित एवं नीति सम्मत कार्रवाई थी।
(2005)
Answer : बेसीन की संधि पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेजों के साथ किया था। यह संधि मराठों के आपसी झगड़ों का परिणाम था। जब नाना फड़नवीस की 1800 ई. में मृत्यु हो गई तो नाना के नियंत्रण से मुक्त हुए पेशवा बाजीराव ने अपना घिनौना रूप दर्शाया। उसने अपनी स्थिति को बनाये रखने के लिए मराठा सरदारों में झगड़े करवाए तथा षड्यंत्र रचे। इस झगड़े में वह स्वयं भी उलझ गया। दौलत राव सिंधिया तथा जसवंत राव ....
Question : ‘इसका मूल स्वरूप जो कुछ भी रहा हो, यह (1857 का विद्रोह) शीघ्र ही भारत में ब्रिटिश शक्ति को चुनौती का प्रतीक बन गया।
(2005)
Answer : 1857 ई. में यह विद्रोह सैनिकों द्वारा आरंभ किया गया था, अतः कुछ अंग्रेज लेखकों ट्रेविलियन,जान लारेंस, सीले आदि ने इसे सैनिक विद्रोह की संज्ञा दे दी। इसी तरह कुछ अन्य इतिहासकारों ने इस विद्रोह को ‘इसाईयों के विरुद्ध धर्म युद्ध’, ‘पूर्वी और पश्चिमी सभ्यता का संघर्ष’, अंग्रेजी शासन के विरुद्ध हिंदू और मुसलमानों का संघर्ष’ आदि कहकर इसकी व्यापकता को नकारने की कोशिश की है। इधर भारतीय इतिहासकारों ने इस विद्रोह को अपने ढंग ....
Question : 1876 से 1921 तक ब्रिटिश सरकार की अकाल संबंधी नीति के क्रमिक विकास का वर्णन कीजिए। क्या इससे जनता को राहत मिली?
(2005)
Answer : भारतीय कृषि को ‘मानसून का जुआ’ कहा गया है क्योंकि यह मुख्यतः मानसून पर निर्भर है, जो कभी निश्चित नहीं रही। अतः भारत में अकाल तो प्राचीन काल से ही पड़ते रहे। परंतु ऐतिहासिक साक्ष्य से स्पष्ट होता है कि यह कम ही होते थे तथा जनता के इन अकाल एवं सूखे से राहत के लिए सरकार भी राहत कार्य करती थी। जैसा कि अर्थशास्त्र से पता चलता है कि सरकार ने राहत कार्य के ....
Question : 1930-31 के सविनय अवज्ञा आंदोलन के आरंभ होने में सहायक तत्वों का विश्लेषण कीजिए। 1935 के भारत सरकार अधिनियम के द्वारा उसके उद्देश्यों की पूर्ति किन अंशों में हुई?
(2005)
Answer : महात्मा गांधी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन विभिन्न कारणों से प्रारंभ किया गया। भारत की तत्कालीन परिस्थितियों एवं सरकारी रवैया ने गांधी जी को आंदोलन करने पर मजबूर कर दिया। 1922 में असहयोग आंदोलन के असफल होने के बाद भी राष्ट्रवाद की मशाल को देशभक्तों ने विभिन्न तरीकों से जलाए रखा तथा साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष को अपने-अपने ढंग से चलाते रहे। इस समय तक भारतीय जनता तथा साम्राज्यवाद के मध्य जो अंतर्विरोध था वह और ....
Question : ‘भारतीय जनता के राष्ट्रीय प्रजातंत्रत्मक जागरण ने धार्मिक क्षेत्र में भी अभिव्यक्ति प्राप्त की।’
(2005)
Answer : अंग्रेजों ने भारत में अपने साथ आधुनिक पश्चिमी शिक्षा भी लाए। यद्यपि उन्होंने आरंभ से अंत तक आधुनिक शिक्षा का प्रसार अपनी जरूरतों के अनुसार किया। लेकिन बाद में पश्चिमी शिक्षा प्राप्त भारतीयों ने इसके महत्व को पहचान कर इस पश्चिमी ज्ञान तथा आधुनिक शिक्षा को भारतीय समाज में फैलाने की कोशिश की।इसके कारण पाश्चात्य विचारों का भारत में आगमन हुआ। आधुनिक शिक्षा तथा अंग्रेजी के ज्ञान ने भारतीयों को पश्चिम के स्वतंत्रता, समानता, लोकतंत्र ....
Question : सहायक संधि प्रथा के मूलभूत सिद्धांतों का परीक्षण कीजिए। भारत में ब्रिटिश कंपनी की सर्वोच्च प्रभुत्व संपन्न सत्ता को स्थापित करने में इसका क्या योगदान था?
(2005)
Answer : 1798 में सर जॉन शोर के पश्चात भारत का गवर्नर-जनरल बना रिचर्ड वैलेजली। भारत के देशी रियासतों को अंग्रेजी राजनैतिक परिधि में लाने के लिए सहायक संधि प्रणाली का उपयोग किया। वैलेजली भारतीय राजनीति को अच्छी तरह परख चुका था। उसका मानना था कि अहस्तक्षेप की नीति से कंपनी के हितों की संरक्षा नहीं हो सकती है। भारतीय राजनीति को कंपनी के अनुकूल बनाने और कंपनी की सीमा में विस्तार करने के लिए हस्तक्षेप और ....
Question : ‘लोगों पर सरकार के प्रभाव का तत्वतः अर्थ था सरकार का गांव पर प्रभाव’।
(2005)
Answer : भारत की अर्थव्यवस्था और उसके सामाजिक जीवन को किसी भी विजेता ने इतना अधिक प्रभावित तथा परिवर्तित नहीं किया जितना कि ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकार ने किया। अंग्रेज से पहले जो विजेता आए थे, उन्होंने केवल राजनीतिक दृष्टि से वंश परिवर्तन ही किया और आर्थिक व्यवस्था के सामाजिक गठन व संबंधों को पूर्णतया परंपरागत भारतीय व्यवस्था के अनुकूल ही रहने दिया। साथ ही वे स्वयं भी हिंदुस्तान में समा गए, क्योंकि सब ऐसे बर्बर विजेता थे ....
Question : रेग्यूलेटिंग अधिनियम का उद्देश्य तो अपने आप में अच्छा था, परन्तु इसके द्वारा जो प्रणाली स्थापित की गई, वह त्रुटिपूर्ण थी।
(2004)
Answer : ब्रिटिश सरकार द्वारा अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी कीभारतीय गतिविधियों पर 1773 के रेग्यूलेटिंग एक्ट द्वारा नियंत्रण स्थापित किया गया। 1773 ई. के पूर्व कंपनी का अस्तित्व चार्टर पर निर्भर था जो ब्रिटिश सरकार प्रदान करती थी, परन्तु ब्रिटिश सरकार का इस पर कोई विशेष अधिकार नहीं था। 1757 से पहले कंपनी केवल व्यापारिक संस्था मानी जाती थी। किन्तु 1964 के पश्चात यह राजनीतिक संस्था का रूप धारण करती जा रही थी। लार्ड क्लाइव द्वारा बंगाल ....
Question : स्थायी बन्दोबस्त से अनेक आशाओं पर पानी फिर गया और उसके ऐसे परिणाम निकले जिनकी कोई संभावना नहीं थी।
(2004)
Answer : बंगाल का स्थायी बंदोबस्त प्रारम्भ करने के पीछे कार्नवालिस का उद्देश्य था, ‘कृषि तथा व्यापार नष्ट हो रहा है, जमींदार तथा खेतिहर मजदूर व किसान दिन-प्रतिदिन और अधिक निर्धन होते जा रहे हैं तथा जाति में केवल साहूकार ही समृद्धिशाली हैं’ को खत्म करना। 1793 से पूर्व मालगुजारी की रकम घटती-बढ़ती रहती थी। इससे कंपनी की आय, अस्थिरता का शिकार होती रहती थी। खेती पर भी ठेकेदारी प्रथा का बुरा असर पड़ रहा था क्योंकि ....
Question : सालबाई की संधि (1782) न तो अंग्रेजों के लिए सम्मानजनक थी और न ही उनके हितों की दृष्टि से लाभदायक।
(2004)
Answer : 1782 में मराठा और अंग्रेजों के बीच ‘सालबाई की संधि’ हुई, जिसने प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध को समाप्त किया। इस संधि के अनुसारः
प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध के परिणाम दोनों ही पक्षों के लिए अनिर्णायक सिद्ध हुए। अंग्रेजों को अपार क्षति उठानी पड़ी। 1775 ई. में ....
Question : 1947 और 1964 के बीच तटस्थता (छवद-।सपहदउमदज) की भारतीय विदेश नीति का विश्लेषण कीजिए।
(2004)
Answer : स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय विदेश नीति का आधार ‘गुटनिरपेक्षता’ (छवद-।सपहदउमदज) थी। 1946 में अंतरिम प्रधानमंत्री का पद संभालने के पश्चात जवाहर लाल नेहरू ने जिस विदेश नीति की घोषणा की थी वह आगे चल कर गुट-निरपेक्षता की अवधारणा के रूप में विकसित हो गई। उस काल में विश्व दो गुटों में बंटा हुआ था- एक अमेरिका के नेतृत्व में पूंजीवादी या लोकतांत्रिक गुट था तथा दूसरा सोवियत संघ के नेतृत्व में समाजवादी या पूर्वी ....
Question : उन्नीसवीं सदी में भारतवर्ष के सामाजिक जीवन पर पड़ने वाले ब्रिटिश राज्य के प्रभाव की समीक्षा कीजिए।
(2004)
Answer : 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा भारत पर आधिपत्य ने भारतीय सामाजिक जीवन पर व्यापक प्रभाव डाला। यह प्रभाव विभिन्न रूपों में दृष्टिगत होता है। सामाजिक जीवन पर सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़ा। देश पर जैसे-जैसे अंग्रेजों का आधिपत्य बढ़ा, शोषण की गति तेज होती गई और देश का आधार हिलने लगा। इसका भारत के सामाजिक जीवन पर घातक प्रभाव पड़ा। ऐसी स्थिति में आर्थिक विपन्नता के साथ सामाजिक कुरीतियां, भेदभाव एवं धार्मिक अंधविश्वास बढ़ते ....
Question : प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल में जिन कारणों से धन का पलायन हुआ, उनकी विवेचना कीजिए।
(2004)
Answer : धन और जनसमुदाय का सहर्ष सहयोग राज्य की सफलता के दो मूल आधार हैं। भारत में ब्रिटिश शासन ने धन पर स्वयं को केन्द्रित किया। सन् 1757 में प्लासी के युद्ध तक भारत में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की भूमिका एक व्यापारिक निगम की थी। वह बाहर से वस्तुएं अथवा बहुमूल्य धातु भारत लाती थी और उनका कपड़ों, मसालों आदि भारतीय वस्तुओं से विनिमय करती थी। कंपनी भारतीय वस्तुओं को विदेशों में बेचती थी। इससे ....
Question : 1905 से 1931 तक भारत में क्रांतिकारी आंदोलन के उदय और प्रगति के कारणों का परीक्षण कीजिए।
(2003)
Answer : 20 वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में भारत में उग्रवाद के साथ-साथ उग्र क्रांतिवाद का भी विकास हुआ। क्रांतिकारी आंदोलन के उत्थान के मुख्यतः वही कारण थे, जिनसे राष्ट्रीय आंदोलन में उग्रवाद का उदय हुआ। उग्र राष्ट्रवादियों का ही एक दल क्रांतिकारी के रूप में उभरा। भेद केवल यह था कि उग्र क्रांतिकारी शीघ्र परिणाम चाहते थे। 1905 के बंग-विभाजन के बाद सरकार का दमन कांग्रेस का आपसी संघर्ष और साथ में जनता को कुशल नेतृत्व ....
Question : उन कारकों को अनुरेखित कीजिए, जिनके कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में 1907 में फूट पड़ गयी थी। इस बात का राष्ट्रीय आंदोलन की दिशा पर क्या प्रभाव पड़ा था?
(2003)
Answer : शुरुआती दो दशकों, (1885-1905) में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का विकास हुआ। इस काल में कांग्रेस पर उदारवादी नेताओं का प्रभुत्व रहा। अपने पहले चरण (1885-1905) में कांग्रेस का कार्यक्रम बहुत सीमित था। उनकी मांगे हल्के-फुल्के संवैधानिक सुधारों, आर्थिक सहायता, प्रशासकीय पुनर्संगठन तथा नागरिक अधिकारों की सुरक्षा तक सीमित थी। उदारवादी नेताओं की मान्यता थी कि भारत अंग्रेजों के ‘कृपापूर्ण मार्गदर्शन और नियंत्रण’ में ही प्रगति कर सकता है। उनकी नियमबद्ध प्रगति में आस्था थी। वे ....
Question : अंग्रेजों की प्रारंभिक भूमि नीति का उत्तरी भारत के ‘ग्रामीण समुदायों’ पर क्या प्रभाव पड़ा था?
(2003)
Answer : अंग्रेजों के आने से पूर्व भारत की अर्थव्यवस्था ग्रामीण अर्थव्यवस्था थी। भारतीय ग्राम आत्मनिर्भर थे और प्राचीन ग्राम समुदाय में खेती और दस्तकारी साथ-साथ चलती थी। परंतु मुख्य व्यवसाय में कृषि कार्य ही था। राज्य तथा जनता की आय का प्रमुख साधन भू-राजस्व तथा कृषि थी। गांव के उत्पादन का मुख्य भाग राज्य के लगान के रूप में दिया जाता था और उसका एक अंश बाहर शहरों में बेचने के लिए भेजा जाता था। ग्राम ....
Question : ‘दूरवासी जमींदारी प्रथा बंगाल के स्थायी भूमि बंदोबस्त का एक परिणामी अभिलक्षण थी।’
(2003)
Answer : दूरवासी जमींदारी से तात्पर्य ऐसी व्यवस्था से है जिसमें कोई कथित भू-स्वामी (जमींदार) अपने अधिकृत जमींदारी से दूर रहकर बिचौलिये के माध्यम से कृषि कार्य संपन्न करवाता है। यह सर्वप्रथम ब्रिटिश काल में देखा गया था। विशेषतया उन क्षेत्रों में जहां स्थायी भूमि बंदोबस्त प्रणाली लागू की गयी थी।
कार्नवालिस द्वारा 1793 ई. में स्थायी भूमि बंदोबस्त प्रथा बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में लागू किया गया था। इसमें भू-स्वामित्व जमींदारों को सौंपी गयी थी। हालांकि उन ....
Question : ‘1942 की ग्रीष्म ऋतु में, गांधी की विचित्र एवं अद्वितीय रूप से आक्रमक मनःस्थिति में थे।’
(2003)
Answer : 1941 के प्रारंभ में गांधी की आक्रमक मनःस्थिति भारतीयों के साथ-साथ ब्रिटिश शासक के लिए विचित्र एवं अद्वितीय बात थी। गांधी ने इससे पूर्व किसी आंदोलन, समझौते या सम्मेलन में ऐसी आक्रमकता का परिचय नहीं दिया था जैसा कि 1942 में ग्रीष्म ऋतु में देखा गया। गांधी के कुछ कथनों या कार्यों में इस आक्रामक मनःस्थिति को ढूंढा जा सकता है। उनका ब्रिटिश सरकार से भारत छोड़ने और सत्ता भारतीयों को सौंपने की मांग तथा ....
Question : रबींद्रनाथ टैगोर की राष्ट्रीयता एक उदार अंतर्राष्ट्रीयता पर आधारित थी।
(2003)
Answer : रबीन्द्रनाथ की राष्ट्रीयता मानवतावाद से जुड़ी हुई थी। चूंकि मानवतावाद की कोई भौगोलिक सीमा नहीं होती, फलतः इसे राष्ट्रीयता तक सीमित नहीं रखा जा सकता। टैगोर के मतानुसार राष्ट्रवाद का संबंध जाति या संप्रदाय विशेष से न होकर सार्वभौम होनी चाहिए। उनके अनुसार राष्ट्रीयता किसी व्यक्ति का अपने राष्ट्र के प्रति पूर्ण समर्पण अंध राष्ट्र भक्ति कतई नहीं है। अगर यह राजनीतिक, जातीय, धार्मिक या सांप्रदायिक उन्माद पैदा करता है तब राष्ट्रवाद संकीर्ण हो जाता ....
Question : ‘उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में बार-बार होने वाले दुर्भिक्षों के परिणामस्वरूप भारत को व्यथा एवं मृत्यु का सामना करना पड़ा था।’
(2003)
Answer : उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में दुर्भिक्षों की एकशृंखला देखने को मिलती है, जो प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः ब्रिटिश आर्थिक नीतियों का परिणाम था। भारत के ब्रिटिश सरकार ने ऐसी नीतियों को लागू किया जो ब्रिटिश को संपन्नता एवं भारत को विपन्नता की ओर ले गया। इसमें भू-राजस्व की ऊंची दर, कृषि का वाणिज्यीकरण, हस्तशिल्प को आघात, धन का निकास और सबसे ऊपर रेलवे की शुरुआत प्रमुख हैं। भू-राजस्व की ऊंची दर कृषकों को शाहूकारों ....
Question : ‘सुभाष चन्द्र बोस की विचारधारा राष्ट्रवाद, फासीवाद तथा साम्यवाद का मिश्रण थी।’
(2002)
Answer : सुभाष चन्द्र बोस उग्र राष्ट्रीयता के समर्थक थे। महात्मा गांधी को समग्र राष्ट्रवाद की विचारधारा एवं केवल औपनिवेशिक सत्ता के विरोध को वे अपना उद्देश्य नहीं मानते थे। उनके स्वराज सम्बन्धी विचार का तात्पर्य भी केवल डोमिनियन स्टैटस नहीं था, अपितु वे भारत की सम्प्रभुता के लिए संघर्षरत थे। साम्यवादी चिन्तकों की भांति वे यह मानते थे कि ब्रिटिश शासन से मुक्ति मात्र में भारतीयों का कल्याण निहित नहीं है। इसके लिए राष्ट्र के अंदर ....
Question : ‘गांधी ने जन-आन्दोलनों पर अंकुश लगाया फिर भी जनता में अपनी लोकप्रियता बनाए रखी।’
(2002)
Answer : जब कांग्रेस का नेतृत्व गांधी के हाथ में था, तब उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन का मार्गदर्शन अपनी वैचारिक पूर्व धारणाओं के आधार पर करने का प्रयत्न किया। गांधीजी की विचारधारा, खासकर वर्ग संबंधों जनांदोलनों और आधुनिक सभ्यता से संबंधित उनके विचारों में बड़ी विसंगति थी।
जहां वह एक जनांदोलन चलाने के इच्छुक थे, वहीं वे संगठित नेतृत्व के माध्यम से उसे नियंत्रित रखना चाहते थे। हालांकि नेताओं पर अधिक निर्भरता और जनांदोलनों के प्रति संदेह की भावना ....
Question : ‘भारत ने पश्चिमी हथौड़ों से ही अंग्रेजों की दासता के बन्धन तोड़ डाले।’
(2002)
Answer : 19वीं सदी को भारत में धार्मिक एवं सामाजिक पुनर्जागरण की सदी माना गया है। इस समय कंपनी की पाश्चात्य शिक्षा पद्धति से आधुनिक तत्कालीन युवा मन चिंतनशील हो उठा, तरुण व वृद्ध सभी भारत की बदहाली और स्वतंत्रता प्राप्ति के विषय में सोचने लगे। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के शुरुआती काल के नेता व मध्यमवर्गीय बुद्धिजीवी पश्चिम की उदारवादी एवं अतिवादी विचारधारा से प्रभावित थे। यहां तक कि उग्रवादी विचारधारा वाले संगठनों ने भी ब्रिटिश साम्राज्यवाद ....
Question : ‘प्लासी के निर्णय को अंग्रेजों द्वारा प्राप्त बक्सर की विजय ने पुष्ट कर दिया।’
(2002)
Answer : प्लासी का युद्ध (23 जून 1757) का परिणाम नियति ने पहले से ही तय कर रखा था। इस युद्ध में क्लाइव बिना युद्ध किये ही विजयी रहा। यद्यपि यह एक छोटी सी सैनिक झड़प थी, लेकिन इसमें भारतीयों की चारित्रिक दुर्बलता उभरकर सामने आई। भारत के इतिहास में इस युद्ध का महत्व उसके राजनीतिक एवं आर्थिक महत्व के कारण है। निःसंदेह, प्लासी के युद्ध के बाद भारत में दासता के उस काल की शुरुआत हुई, ....
Question : ‘ब्रिटिश साम्राज्य का उदय और प्रसार एक संयोग था न कि किसी सुनिश्चित नीति या मंसूबे का परिणाम।’ इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
(2002)
Answer : ब्रिटिश इतिहासकार अक्सर लिखते हैं कि ब्रिटेन ने संयोग से भारत में साम्राज्य स्थापित किया था और भारत में ब्रिटिश राज्य स्थापित करने की ब्रिटिश सरकार की कोई निश्चित नीति नहीं थी। इस संयोग के सिद्धांत का जे-आर- सीले कृत दि एक्सपेंशन ऑफ इंग्लैंड में पहली बार जिक्र किया गया और इस दृष्टिकोण को रैम्जे म्यूर तथा अन्य ब्रिटिश इतिहासकारों ने भी स्वीकार किया। रैम्जे म्यूर अपनी दि हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया नामक पुस्तक में ....
Question : कांग्रेस समाजवादी पार्टी के नेतृत्व की प्रकृति और कार्यक्रम का विवेचन कीजिए?
(2002)
Answer : कांग्रेस समाजवादी पार्टी की स्थापना, 20वीं शताब्दी के चौथे दशक में स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण परिप्रेक्ष्य में हुई। कांग्रेस के दक्षिणपंथी तत्वों के हाथों से जन नेतृत्व सरकता जा रहा था। कांग्रेस के प्रगतिशील तत्व जो की गांधीजी के हठधर्मी से असंतुष्ट था, इसके निर्माण में पहल की और दक्षिणपंथी भी तात्कालिक वातावरण से प्रभावित होते हुए इसे स्वीकार किये। कांग्रेस समाजवादी पार्टी पर सरसरी नजर डालने से पहले ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के राजनीति पक्ष ....
Question : ‘उन्नीसवीं सदी में बारम्बार पड़ने वाले दुर्भिक्ष ब्रिटिश नीति का अपरिहार्य परिणाम थे और वे ब्रिटिश प्रशासन की कृषक-वर्ग के प्रति पितृवत् चिन्ता की वास्तविक प्रकृति की पोल खोलते हैं।’ इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
(2002)
Answer : भारत में इंग्लिश ईस्ट इंडिया कम्पनी की प्रारम्भिक गतिविधियां सीमित थीं क्योंकि कम्पनी का मूल उद्देश्य व्यापार था। इस पर क्षेत्रीय प्रशासन का उत्तरदायित्व नहीं था। पर अपनी वित्तीय स्थिति को अधिक मजबूत करने के उद्देश्य से कम्पनी को भारतीय प्रांतों पर आर्थिक नियंत्रण स्थापित करना आवश्यक प्रतीत होने लगा। अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने के लिए कम्पनी ने कठोर नीतियों को अपनाया। इन नीतियों का ही ये परिणाम था कि आम भारतीयों की ....
Question : ‘भारत छोड़ो आंदोलन ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जनता द्वारा छेड़ा गया स्वतःस्फूर्त आंदोलन था।’
(2001)
Answer : ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारतीयों द्वारा छेड़ा गया एक स्वतःस्फूर्त आंदोलन था। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक 8 अगस्त, 1942 को बंबई में हुई। इस सम्मेलन में ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित करते हुए गांधीजी के नेतृत्व में पूरे भारत में अहिंसक आंदोलन छेड़ने का निर्णय लिया गया। इसी अवसर पर गांधीजी ने देशवासियों को ‘करो या मरो’ का नारा दिया। अर्थात् हम भारत को स्वतंत्र करेंगे या इसी ....
Question : जवाहर लाल नेहरू गुटनिरपेक्षता की भारतीय नीति के वास्तुकार थे। इस उद्धरण के आलोक में, 1947 से 1964 के बीच भारत की दोनों महाशक्तियों से संबंधों की विवेचना कीजिए।
(2001)
Answer : भारत की वैदेशिक नीति पर पं. जवाहर लाल नेहरू के व्यक्तित्व एवं विचारधारा का व्यापक प्रभाव रहा। नेहरू जी साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद और फासीवाद के प्रबल विरोधी थे और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के पक्षधर थे। वे मैत्री, सहयोग और सह-अस्तित्व के पोषक तो थे ही, साथ में अन्यायपूर्ण आक्रमण का प्रतिवाद करने के लिए शक्ति के प्रयोग को भी उतना ही महत्व देते थे। शीत युद्ध एवं गुटों की विश्व राजनीति में भारत के लिए ....
Question : दक्षिण भारत में शुरू की गयी ‘रैयतवारी प्रणाली’ के मुख्य बिंदुओं पर चर्चा कीजिए। क्या इस प्रणाली से किसानों की जरूरतें पूरी हुईं?
(2001)
Answer : दक्षिणी और दक्षिण पश्चिमी भारत में ब्रिटिश शासन के विस्तार से जमीन बंदोबस्त की नयी समस्याएं उठ खड़ी हुईं। अधिकारियों का मत था कि इन क्षेत्रों में बड़ी जागीरों वाले ऐसे जमींदार नहीं हैं जिनके साथ मालगुजारी के बंदोबस्त किये जा सकें और इसलिए वहां जमींदारी प्रथा लागू करने से स्थिति उलट-पुलट जायेगी। रीड और मुनरो ने नेतृत्व में मद्रास के अनेक अधिकारियों ने यह सिफारिश की कि सीधे वास्तविक काश्तकारों के साथ बंदोबस्त किया ....
Question : ‘ब्रिटिश उद्योग नीति ने उन्नीसवीं शताब्दी में भारतीय हस्तकरघा उद्योग को विनष्ट कर दिया।’
(2001)
Answer : ब्रिटिश सरकार की उद्योग नीति ने 19वीं शताब्दी में भारतीय हस्तकरघा उद्योग को विनष्ट कर दिया।
विदेशी व्यापार तथा धन अर्जित करने के प्राथमिक भारतीय स्रोतों हस्तकरघा तथा कुटीर उद्योगों को ब्रिटिश उद्योग नीति ने नष्ट कर दिया। बंगाल सूती वस्त्र और सिल्क के कपड़ों के लिए विख्यात था। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के मातहतों ने बंगाल में ब्रिटिश राजनीतिक प्रभुत्व (1757) स्थापित होने के पश्चात बंगाल के कारीगरों का शोषण तथा उनके साथ निर्दयी व्यवहार ....
Question : ‘डलहौजी ने भारत के मानचित्र को तेजी और संपूर्णता के साथ बदल डाला। उसके इस अभियान की तुलना किसी के साथ नहीं की जा सकती।’
(2001)
Answer : अपने आठ वर्षीय शासनकाल में भारत के गर्वनर जनरल लार्ड डलहौजी (1848-1856) ने अपने पूर्ववर्तियों की मेल-मिलाप वाली नीति त्यागते हुए बिखरे क्षेत्रों को कंपनी के प्रत्यक्ष शासनाधीन लाया। उत्तर और पश्चिम में अब ब्रिटिश सत्ता दर्रों की रक्षक बन गयी तथा उत्तर में ब्रिटिश भारत की सीमा तिब्बत और चीन के साम्राज्य से टकराने लगी। दक्षिण-पूर्व में ब्रिटिश शक्ति बंगाल की खाड़ी के दोनों ओर तटीय क्षेत्रों को नियंत्रित करने लगी।
उसके द्वारा समायोजित ब्रिटिश ....
Question : ‘आदिवासी और किसान आंदोलनों ने 1857 के विद्रोह की आधारशिला रखी।’
(2001)
Answer : ब्रिटिश नीतियों के कारण भारत का आदिवासी समाज व कृषक वर्ग, अंग्रेजों से रुष्ट होकर देश को दासता से मुक्ति दिलाने की दिशा में तत्पर हुआ। नये करों का भारी बोझ, आदिवासी किसानों को अपनी जमीन से बेदखल कर भूमि पर कब्जा, खेतों व जंगलों पर परंपरागत आदिवासी अधिकारों का दमन करने व राजस्व वसूली करने वाले बिचौलिये व महाजनों के उदय से ग्रामीण समाज का शोषण तेजी से बढ़ा। आदिवासी बहुल क्षेत्रों में सामाजिक ....
Question : उन आर्थिक और सामाजिक कारणों का परीक्षण कीजिए जिनसे 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रवाद को बढ़ावा मिला।
(2001)
Answer : 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में राष्ट्रीय राजनीतिक चेतना बहुत तेजी से विकसित हुई और भारत में एक संगठित राष्ट्रीय आंदोलन का प्रारंभ हुआ। अंग्रेजों ने अपने हितों की पूर्ति के लिए ही भारत को अधीन बनाया था और इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर वे भारत का शासन चलाते थे। धीरे-धीरे भारतीयों ने अनुभव किया कि लंकाशायर के उद्योगपतियों तथा अंग्रेजों के दूसरे प्रमुख वर्गों के हितों के लिए उनके अपने हितों का बलिदान दिया ....
Question : क्या आप मानते हैं कि 1857 का विद्रोह राष्ट्रीय प्रकृति का था? यदि नहीं, तो उसका स्वरूप क्या था?
(1999)
Answer : 1857 में उत्तरी भारत में एक शक्तिशाली जनविद्रोह उठ खड़ा हुआ और उसने ब्रिटिश शासन की जड़ें तक हिलाकर रख दी। इसका आरंभ तो कंपनी की सेना के भारतीय सिपाहियों से हुआ, लेकिन जल्द ही एक व्यापक क्षेत्र के लोग इसमें शामिल हो गए। देखते ही देखते देश का एक बहुत बड़ा भाग विद्रोह की लपेट में आ गया। कई स्थानों पर अंग्रेजी राज के चिह्न तक मिटा देने का प्रयत्न किया गया। परंतु शीध्र ....
Question : 1813 के बाद से ईसाई मिशनरी का प्रचार ‘प्रायः संवेदनाहीन और आहत करने वाला’ हो गया।
(1999)
Answer : जब 1813 में ईस्ट इंडिया कंपनी के चार्टर के नवीनीकरण के लिए ब्रिटिश पार्लियामेंट में प्रस्ताव आया तब डायरेक्टरों के विरोध के बावजूद संसद ने चार्टर एक्ट में एक धारा जोड़ दी, जिसके अनुसार मिशनरियों को भारत में बसने और काम करने की आज्ञा मिल गई। कलकत्ता में मिशनरी के कार्य का प्रधान कार्यालय खोला गया और एक बिशप की नियुक्ति कर दी गई जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकृत भूभागों में धर्म प्रचार एवं ....
Question : लॉर्ड विलियम बैंटिक के आगमन के साथ ब्रिटिश भारतीय राज्य ने ‘परिवर्तन की बयार’ को अनुभव किया।
(1999)
Answer : 1828 में लॉर्ड विलियम बैंटिक भारत में गवर्नर जनरल बनकर आया। वह एक कट्टर उदारवादी था और उन्हीं आदर्शों से प्रेरित हुआ था, जिनसे इंग्लैंड में सुधारों के युग का सूत्रपात हुआ। बैंटिक वह व्यक्ति था जिसे जीवन में अपनी क्षमता से अधिक सफलता उपलब्ध हुई। वह अपने व्यवहार में सादा तथा विचारों में उदारवादी और उदार हृदय व्यक्ति था। लॉर्ड विलियम बैंटिक के आने से कई पक्षों में एक नवीन युग का सूत्रपात हुआ। ....
Question : भारतीय मध्यम वर्ग का दृढ़ विश्वास था कि फ्ब्रिटेन ने भारत पर एक उपनिवेशवादी अर्थव्यवस्था थोप दी, जिसने देश को कंगाल बना दिया"।
(1999)
Answer : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत में राजनीतिक जागृति को नया मोड़ दिया। इस संगठन के मंच से देश के सभी मध्यमवर्गीय प्रतिभाशाली बुद्धिजीवियों ने अपनी न्यायोचित मांगों पर आपस में विचार-विमर्श किया तथा देश में नवचेतना जागृत की। साम्राज्यवाद की अर्थशास्त्रीय आलोचना उनका सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक कार्य था। उन्होंने तत्कालीन औपनिवेशिक आर्थिक शोषण के तीनों रूपों अर्थात व्यापार, उद्योग और वित्त के द्वारा शोषण पर ध्यान दिया। भारत की आर्थिक समस्याओं की तरफ उनकी वैज्ञानिक ....
Question : फ्गांधी की रहस्यात्मकता में मौलिक विचारों का, दांवपेंचों की सहज प्रवृत्ति और लोक चेतना में अनोखी पैठ के साथ अनोखा मेल शामिल है।" व्याख्या कीजिए।
(1999)
Answer : मार्च, 1919 में जब मोहनदास करमचंद गांधी ने ‘रौलट एक्ट’ के खिलाफ सत्याग्रह का नारा दिया तो यह भारत में देशव्यापी संघर्ष छेड़ने का उनका पहला प्रयत्न था। वह व्यक्तित्व जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की बागडोर संभालने ही वाला था और जिसके नेतृत्व में इस संग्राम को सबसे महत्वपूर्ण दौर से गुजरना था, उनकी रहस्यात्मकता में मौलिक विचारों का, दांवपेंचों की सहज प्रवृत्ति और लोक चेतना में अनोखी पैठ के साथ अनोखा मेल शामिल था।
ब्रिटेन ....
Question : इंडियन मुस्लिम लीग के उद्भव और विकास का वर्णन कीजिए।
(1999)
Answer : अलीगढ़ आंदोलन ने जिस बौद्धिक जागरूकता का विस्तार किया, उससे मुसलमानों को अपनी एक पहचान स्थापित करने में सहायता मिली। इसी जागरूकता से आगे चलकर उन्हें राजनीतिक रूप में संगठित होने का अवसर मिला। अलीगढ़ कॉलेज शीघ्र ही मुसलमानों में एक नवीन राजनीतिक आंदोलन का केंद्रबिंदु बन गया।
सैयद अहमद खां तथा अलीगढ़ आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा उसके उद्देश्यों के प्रति आरंभ से ही एक शत्रुता दिखाई। अलीगढ़ आंदोलन, भारत के कोने-कोने में मुस्लिम ....
Question : 1757 के बाद एक बंगाल राज्य उभर कर आया जो कि एक ‘प्रायोजित राज्य’ भी था और ‘लुटा हुआ राज्य’ भी।
(1999)
Answer : बंगाल में ब्रिटिश राजनीतिक सत्ता का आरंभ 1757 के प्लासी के युद्ध से माना जाता है, जब अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हरा दिया। इस युद्ध के बाद बंगाल के लिए ‘शाश्वत् दुख की काली रात’ का आरंभ हुआ। अंग्रेजों ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब घोषित किया। बदले में कंपनी को बंगाल, बिहार, उड़ीसा में मुक्त व्यापार का अधिकार और कलकत्ता के पास चौबीस परगना की जमींदारी ....
Question : 1857 के विद्रोह के स्वरूप का विवेचन कीजिये और 1857 के बाद भारत के ब्रिटिश सििवल तथा सैनिक प्रशासन में होने वाले बहुविध परिवर्तनों का परीक्षण कीजिये।
(1998)
Answer : बीसवीं शताब्दी के छठें और सातवें दशक में इतिहासकारों के बीच यह बहस का मुद्दा रहा कि यह विद्रोह एक सिपाही बगावत था या राष्ट्रीय आंदोलन था या सामंती प्रतिक्रिया का प्रस्फुटन था। भारतीय असंतोष को कम करके आंकने के लिए अंग्रेज इतिहासकारों ने यह मत सामने रखा कि यह विद्रोह सिपाहियों की बगावत से ज्यादा कुछ नहीं था। अतः उन्होंने इस विद्रोह को सिपाही बगावत का नाम दिया। इन इतिहासकारों ने निम्नलिखित मुद्दों पर ....
Question : अंग्रेजों ने ‘‘पहला मराठा युद्ध उस समय लड़ा, जब उनकी दशा सबसे खराब थी।’’
(1998)
Answer : अंग्रेजों और मराठों में पहला युद्ध 1775 ई. में आरंभ हुआ। उस समय अंग्रेजों की दशा बेहद खराब थी। वे मराठों की शक्ति एवं सक्षमता से अवगत थे। बंबई की अंग्रेजी सरकार ने मराठों के आंतरिक मामले में रघुनाथ राव की तरफ से हस्तक्षेप किया था। पेशवा माधव राव-द्वितीय उस समय अल्पवयस्क था और रघुनाथ राव खुद पेशवा बनना चाहता था। अंग्रेजों के इस हस्तक्षेप ने मराठा सरदारों को अपने आपसी झगड़ों को भूलाकर पेशवा ....
Question : आर्यसमाज कोई प्रमुख रूप से आधुनिक भारत को प्रभावित करने में सफल नहीं हुआ।"
(1998)
Answer : स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा 1875 ई. में स्थापित आर्यसमाज के पीछे शुद्ध वैदिक आधार पर हिन्दूवाद को पुनर्जीवित तथा पुनर्स्थापित करने का उद्देश्य था।
स्वामी जी का लक्ष्य यह था कि हिन्दूवाद को पुनर्जीवित कर उसे ईसाई धर्म के बढ़ते प्रभाव के विरुद्ध खड़ा किया जाये और इस्लाम द्वारा हिन्दुओं को मुस्लिम बनाकर हिन्दू धर्म को जो क्षति पहुंचायी जा रही है, उससे हिन्दू धर्म को बचाया जा सके। उन्होंने अपना शुद्धि आंदोलन भारत को राष्ट्रीयता, ....
Question : पूर्वी भारत में 1817 से 1857 तक जनजातीय विद्रोहों की संक्षेप में विवेचना कीजिये। क्या वे जमींदारी और उपनिवेशवाद के विरुद्ध निर्दिष्ट थे?
(1998)
Answer : जनजातियों द्वारा किये गये विरोध किसानों के विरोध आंदोलनों के समान ही थे, किन्तु उनकी अपनी कुछ विशेषतायें थीं। ये जातियां दुर्गम पहाड़ी और वन्य क्षेत्रों में रहती रही थीं। आदिवासी बाहरी संसार का विरोध तभी करते थे जब मैदानों की बढ़ती हुई आबादी के कारण वहां के लोग आदिवासी क्षेत्रों में बसने लगते थे और सरकार जंगली लकड़ी काटने पर नियंत्रण लगाती थी। सभी आदिवासी अपने और बाहरी लोगों के बीच अंतर स्पष्ट करने ....
Question : अठारहवीं सदी में अंग्रेजों ने किस प्रकार बंगाल को जीता? वे कौन-सी परिस्थितियां थीं जिन्होंने उनकी सहायता की?
(1998)
Answer : अंग्रेजों का बंगाल के साथ निरंतर संबंध 1630 के दशक में शुरू हुआ। पूरब में प्रथम अंग्रेजी कंपनी की स्थापना 1633 में उड़ीसा में (बालासोर में) हुई और फिर हुगली, कासिम बाजार, पटना और ढाका में। 1689 में अंग्रेजी कंपनी को सुतानति, कलकत्ता एवं गोविन्दपुर नाम के तीन गांवों का जमींदारी अधिकार प्राप्त हो गया और कंपनी द्वारा इस स्थान पर कलकत्ता की स्थापना के साथ ही बंगाल में अंग्रेजी व्यापारिक बस्ती को बसाने की ....
Question : 1909, 1919 और 1935 में हुए संवैधानिक परिवर्तनों के प्रति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विचारों का वर्णन कीजिये।
(1998)
Answer : 1909 के बाद हुए संवैधानिक परिवर्तन इंग्लैंड के बदलते हुए मूल्यों और राष्ट्रीय आंदोलन के 1905 के बाद उग्रवाद के उदय के उपरांत एक नये दौर में प्रवेश कर जाने के द्योतक थे। 1909 के बाद अंग्रेजों ने उदारवादियों द्वारा दिखाये राह पर आगे बढ़ने के लक्षण दिखाना आरंभ किया, जिसमें मानव के विकास के लिए प्रजातंत्र को आधार बिंदु माना जाता था। लेकिन भारत के राष्ट्रवादी स्वराज एवं स्वतंत्रता के लक्ष्य को जल्द से ....
Question : स्वतंत्रता तथा विभाजन दोनों ही भारतीय मध्यम वर्ग की देन हैं।"
(1998)
Answer : किसी भी देश में राष्ट्रीयता के विकास के लिए यह माना जाता है कि वहां मध्यम वर्ग की उपस्थिति अनिवार्य है। भारत में भी राष्ट्रीयता के विकास के पीछे प्रबुद्ध मध्यम वर्ग की ही भूमिका रही। यह प्रबुद्ध मध्यम वर्ग प्रजातंत्र, स्वतंत्रता और समानता के प्रगतिशील विचार से प्रभावित था। इस तरह यही लोग राष्ट्रीय आंदोलन के नेता बने। साधारण जनता, जो अज्ञान एवं अंधविश्वास के गहरे दलदल में फंसी हुई थी, राष्ट्रीय आंदोलन को ....
Question : मांटेग्यू घोषणा (20 अगस्त, 1917) का अनुपालन किसी और बात की बजाय ‘‘साम्राज्यिक-संबंधों के क्षेत्र’’ में अधिक ध्यानपूर्वक किया गया।
(1998)
Answer : प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिक सक्रिय हुई और भारत के लिए स्वशासन की प्राप्ति के लिए ‘होमरूल आंदोलन’ आरंभ किया गया। इस मांग की प्रतिक्रियास्वरूप ब्रिटिश सरकार ने 20 अगस्त, 1917 को सरकार की नयी नीति की घोषणा की। इस घोषणा में प्रांतों को थोड़ा-बहुत अधिकार देने के सिवाय और कुछ नहीं किया गया था।
इस घोषणा में इस बात की व्यवस्था थी कि गवर्नर जनरल, सह परिषद् के मार्फत शांति, व्यवस्था ....
Question : कांग्रेस के आंदोलन में वामपक्ष के उदय और विस्तार का विवरण दीजिये। भारत की समसामयिक राजनीति पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?
(1997)
Answer : कांग्रेस के अंदर वामपंथी प्रवृति या समाजवादी धारा की अभिव्यक्ति जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, जयप्रकाश नारायण, नरेन्द्र देव जैसे नेताओं के द्वारा हुई। इन लोगों के विचार में भारत की आर्थिक दुर्व्यवस्था के लिए यहां की दोषपूर्ण उत्पादन प्रणाली जिम्मेदार थी। जिन लोगों के द्वारा उत्पादन नियंत्रित होता था, वे न्यूनतम मजदूरी देकर अधिकतम मुनाफा पैदा करना चाहते थे। जो धनी थे वे और धनी बनना चाहता थे। इसके लिए वे गरीबों और ....
Question : जनजातीय आंदोलनों को फ्नीचे से उभरते इतिहास" के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्नीसवीं शताब्दी में भारत में चले आंदोलनों के लक्ष्यों और स्वरूप की व्याख्या कीजिये।
(1997)
Answer : भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन पर जो भी इतिहास लेखन की परंपरा रही है-उसे कई विचार धाराओं के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है। इनमें से एक है-सबआल्टर्न पद्धति। इस पद्धति के अंतर्गत जनाधारित इतिहास का अध्ययन किया जाता है। इस पद्धति से अध्ययन करने वाले इतिहासकारों के अनुसार राष्ट्रीय आंदोलन में निचले स्तर की जनता ने अभिजात्य वर्ग (ब्रिटिश एव भारतीय) का विरोध किया। उनके मत में भारतीय जनता ने उपनिवेशवाद के विरुद्ध संघर्ष नहीं किया। उनका ....
Question : उन्नीसवीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण एक साथ पश्चिमी मूल्यों की स्वीकृति और अस्वीकृति था। क्या आप सहमत हैं?
(1997)
Answer : उन्नसीवीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके बहुमुखी स्वरूप और व्यापकता की दृष्टि से इस आंदोलन को संघषपूर्ण आधुनिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है। इस आंदोलन ने भारत की तात्कालिक जड़ता को समाप्त किया और देश के जन-जीवन को झकझोर दिया। इसने एक ओर धार्मिक तथा सामाजिक सुधारों का आह्नान किया वहीं दूसरी ओर इसने भारत के अतीत को उजागर कर भारतवासियों के मन ....
Question : कर्जन के बंगाल विभाजन ने अनायास ही विराट घटनाओं को जन्म दे दिया और अनेक वर्ष बाद देश की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त कर दिया।"
(1997)
Answer : 20 जुलाई, 1905 को एक आज्ञा जारी कर तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन ने बंगाल को दो भागों में बांट दिया। पहले भाग में पूर्वी बंगाल और असम थे, जबकि दूसरे भाग में बिहारी और उडि़या भाषा-भाषी थे। तर्क यह दिया गया कि बंगाल प्रांत इतना बड़ा था कि एक प्रांतीय सरकार द्वारा उसका प्रशासन चला सकना संभव नहीं था, लेकिन भारतीय राष्ट्रवाद की दिशा को रोकने के लिए ही वैसा कदम उठाया गया था।
राष्ट्रवादियों ....
Question : स्थायी बंदोबस्त ‘एक साहसिक, शौर्यपूर्ण और बुद्धिमत्तापूर्ण कदम’ था।
(1997)
Answer : कंपनी ने 1765 में बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी प्राप्त कर ली थी। इससे कंपनी को वहां मालगुजारी वसूल करने का अधिकार मिल गया था। आरंभ में उसने मालगुजारी की वसूली की पुरानी पद्धति को ही जारी रखा लेकिन जमा की जाने वाली रकम उसने बढ़ा दी थी। 1765 से 1792 तक का समय वस्तुतः प्रयोगों का समय था। इससे कंपनी की आय एक ऐसे समय में अस्थिरता का शिकार हुई जबकि उसे पैसों ....
Question : भारत ने पश्चिमी हथौड़ों से ही अंग्रेजों की दासता की बेडि़यां तोड़ डाली।"
(1997)
Answer : उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में राष्ट्रीय राजनीतिक चेतना बहुत तेजी से विकसित हुई और भारत में एक संगठित राष्ट्रीय आंदोलन का आरंभ हुआ। विदेशी शासन से स्वतंत्रता पाने के लिए अंग्रेजों ने एक लंबा और साहसपूर्ण संघर्ष चलाया और अंत में 15 अगस्त, 1947 को भारत मुक्त हो गया।
स्वयं ब्रिटिश शासन की परिस्थितियों ने भारतीय जनता में राष्ट्रीय भावना विकसित करने में सहायता दी। ब्रिटिश शासन तथा उसके प्रत्यक्ष और परोक्ष परिणामों ने ही भारत ....
Question : 1937 के बाद की अवधि में देशी राज्यों में उत्पन्न हुए जन-आन्दोलन का चित्र प्रस्तुत कीजिये। कांग्रेस नेतृत्व की इसके प्रति क्या प्रतिक्रिया रही?
(1996)
Answer : चौथे दशक के मध्य में हुए दो घटनाक्रमों ने देशी राज्यों के जन-आंदोलन में तेजी ला दी और इसे मुख्य धारा के राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ दिया। पहली घटना थी, भारत सरकार अधिनियम, 1935, जिसके द्वारा सांविधानिक रूप से देशी रियासतों को शेष भारत (ब्रिटिश भारत) से जोड़ने की योजना थी। यह स्कीम लागू तो नहीं हो पायी, लेकिन इसके निहितार्थ ने कांग्रेस और रियासती जनता के बीच की कलई खोल दी। दूसरी घटना थी- ....
Question : 1818-1858 की अवधि में भारतीय रजवाड़ों के प्रति अंग्रेजों की नीति अलग रहने और हस्तक्षेप न करने के साथ यदा-कदा उन्हें अपने राज्य में मिला लेने की भी रही।"
(1996)
Answer : ली वार्नर ने ब्रिटिश सर्वोच्च सत्ता की कार्यविधि की विवेचना करते हुए सन् 1813 से 1858 तक की कालावधि को अधीनस्थ पृथक्करण की नीति के अंतर्गत रखा है। इसके अनुसार, देशी राज्यों को अपने अधीन करने तथा इन राज्यों को एक-दूसरे से पृथक् रखने की नीति अपनायी जाती थी। लॉर्ड हेस्टिंग्स ने पहले हस्तक्षेप न करने की नीति का पालन किया, किन्तु बाद में उसने अनुभव किया कि देश की स्थिति ऐसी है कि उस ....
Question : अंग्रेजों ने एक ‘बेखबरी के दौर में’ भारत को जीत लिया।
(1996)
Answer : 1600 से 1757 तक भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की भूमिका एक ऐसे व्यापारिक निगम की थी जो भारत में बहुमूल्य धातुएं लाता था तथा उसके बदले कपड़े, मसाले जैसी भारतीय वस्तुएं लेकर उसे विदेशों में बेचकर मुनाफा कमाती थी। इस प्रकार उसने भारतीय मालों का निर्यात बढ़ाया। यही कारण था कि भारतीय शासक भारत में कंपनी की स्थापना को न सिर्फ सह ही लेते बल्कि इसे प्रोत्साहित भी किया करते थे। हालांकि भारत में ....
Question : भारत के गांवों के बदलते जीवन में भारत की जनता पर अंग्रेजों के प्रशासन का प्रभाव परिलक्षित होता है। परिवर्तन के प्रक्रम और विस्तार का स्वरूप स्पष्ट करते हुए समझाइये।
(1996)
Answer : भारतीय जनता पर ब्रिटिश शासन के प्रभावों का आकलन भारतीय ग्रामों के बदलते जीवन से किया जा सकता है। इन परिवर्तनों में आर्थिक क्षेत्र के परिवर्तन सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इसके प्रभाव बहुत ही दूरगामी रहे। अंग्रेजों के आने से पहले भारतीय ग्राम आत्मनिर्भर थे और प्राचीन ग्राम समुदाय में खेती और दस्तकारी साथ-साथ चलती थी। भारतीय ग्राम में आत्मनिर्भरता का अर्थ पूर्ण पृथकता नहीं था। इसका अर्थ केवल यह था कि गांव के लोग ....
Question : उन्नीसवीं शताब्दी के धार्मिक सुधार आन्दोलनों ने यह प्रयास किया कि फ्प्राचीन धर्म (हिन्दू धर्म) को ऐसा नया रूप दिया जाये जो नये समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके।"
(1996)
Answer : उन्नीसवीं सदी में धर्म सुधार आन्दोलन सामाजिक और सांस्कृतिक जागरण की कड़ी थी। आधुनिक पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव और विदेशी शक्ति द्वारा पराजित होने की चेतना के चलते लोगों में नयी जागृति आयी। लेकिन भारत की बहुसंख्यक जनता ने पश्चिम के साथ समझौता करना अस्वीकार कर दिया। इन लोगों ने परंपरागत भारतीय विचारों और संस्थाओं में अपनी आस्था व्यक्त की। दूसरी बात यह थी कि लोग धीरे-धीरे यह मानने लगे कि अपने समाज में फिर ....
Question : "प्लासी के युद्ध के निर्णय की पुष्टि अंग्रेजों द्वारा बक्सर की विजय ने कर दी।"
(1996)
Answer : 1764 में हुए बक्सर के युद्ध के बाद अंग्रेजों को अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं रह गयी। देश के अन्दर सभी छोटी-बड़ी ताकतों ने इस युद्ध के बाद अंग्रेजों की शक्ति को स्वीकार कर लिया। अंग्रेजों का मुख्य प्रतिद्वन्द्वी फ्रांस पहले ही बान्डीवाश के युद्ध के बाद अपनी शक्ति खो बैठा था। मराठे 1761 के पानीपत की तीसरी लड़ाई में अपनी गरिमा खो चुके थे। अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि 1757 ....
Question : 1905 के बाद भारत में नयी रुचियों और नये लक्ष्यों का उदय हुआ, जिन्होंने नीति को नयी दिशाएं देने के लिए विवश किया।"
(1996)
Answer : सन् 1905 के बंग-भंग के बाद भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की दिशा में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया। आन्दोलन की अगुवाई कर रही कांग्रेस के अन्दर भी यह परिवर्तन देखने को मिला। उदारवाद की जगह उग्रवाद की परम्परा ने ले लिया। उग्रवादी आन्दोलन को नेतृत्व देने वाले प्रमुख नेता थे- बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, अरविंद घोष एवं विपिन चन्द्र पाल। उग्रवाद देश की जनता की नयी रुचि थी और लक्ष्य थे स्वदेशी एवं स्वराज।
अब मांग-पत्रों, ....
Question : पाकिस्तान के आन्दोलन ने जनता के सांस्कृतिक और धार्मिक अस्तित्व को पृथकतावादी राजनीतिक शक्ति में बदल दिया। स्पष्ट कीजिये।
(1996)
Answer : मुस्लिम लीग के 1940 के लाहौर अधिवेशन में मुसलमानों के लिए अलग देश बनाये जाने की औपचारिक मांग के साथ ही पाकिस्तान के आंदोलन को एक धरातल मिल गया। पाकिस्तान के विचार का प्रवर्तक कवि और राजनैतिक चिन्तक इकबाल को माना जाता है, जिन्होंने 1930 के अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के इलाहाबाद अधिवेशन में पैन इस्लामिक (सर्व इस्लामबाद) के आदर्श को प्राप्त करने की बात कही थी। उस वक्त जिन्ना ने इकबाल के इस विचार ....
Question : सिन्ध की अंग्रेजी विजय प्रथम अफगान युद्ध की राजनीतिक और नैतिक परिणाम थी। व्याख्या कीजिये।
(1995)
Answer : सिन्ध की अंग्रेजी विजय के पीछे तत्कालीन अन्तर्राष्ट्रीय घटनाएं-परिघटनाएं जिम्मेदार रही। रूस ने मध्य एशिया में प्रसार
करते हुए फारस (ईरान) पर अपने प्रभाव बना लिये थे। फारस के शाह ने रूस के कहने पर हरात पर आक्रमण करने की धमकी दी। अंग्रेज राजनीतिक एवं सैन्य विशेषज्ञों ने रूस के बढ़ते प्रभाव को भारतीय उपनिवेश के लिए खतरा बताया। अतः अंग्रेजों की नीति अफगानिस्तान को अपने संरक्षण में लेकर हरात में अपनी सेनाएं तैनात करना था ....
Question : 1920 से 1930 के दशक के उत्तरार्द्ध के पश्चात् से भारत में आर्थिक परिवर्तनों ने देश की राजनीति की दिशा प्रवाह को प्रभावित किया। व्याख्या कीजिये।
(1995)
Answer : देश में बढ़ती आर्थिक चेतना ने राष्ट्रीय राजनीतिक आन्दोलनों की धार को पैना किया। इस आर्थिक चेतना को जगाने में विभिन्न राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय घटनाएं सहायक हुईं। परन्तु अंग्रेजों की उपनिवेशवादी आर्थिक नीति ने देश के बुद्धिजीवियों को संश्लेषण और विश्लेषण करने का जो मौका दिया वह आम जनों की आंखें खोल देने वाली थी। 1920 वाले दशक के उत्तरार्द्ध के पश्चात् दो बड़े अन्तर्राष्ट्रीय घटना घटे। एक तो 1929-32 की महान आर्थिक मंदी थी और दूसरी ....
Question : फ्राजनीतिक-स्वतंत्रता जीतने के बाद भारत को आर्थिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता जीतनी थी।"
(1995)
Answer : एक लंबे संघर्ष के बाद 15 अगस्त, 1947 को हमारा देश भारत आजाद हो गया। भारत को मिली राजनीतिक आजादी की देश और विदेश के सभी लोगों ने खुशियां मनायी। दुर्भाग्य से इस आजादी से देशवासियों को वह खुशी नहीं मिल सकी जो इसके हकदार हैं। किसी भी देश की राजनीतिक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं रह जाता जबकि वह आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से गुलाम बना रहा हो। ब्रिटेन अपने साम्राज्य के अस्त होते ....
Question : मोन्टफोर्ड सुधारों द्वारा स्थापित द्वैध प्रणाली ने ‘निश्चित रूप से बाह्य संदेश और भीतरी घर्षण पैदा किया।’
(1995)
Answer : भारत सचिव मौंटेग्यू और गवर्नर जनरल चेम्सफोर्ड द्वारा प्रस्तावित तथाकथित सुधार 1919 में भारत सरकार अधिनियम का आधार बनी। इस अधिनियम में सबसे अधिक महत्वपूर्ण परिवर्तन प्रान्त संबंधी प्रशासन के क्षेत्र में आया। प्रान्तों में उत्तरदायी शासन के नाम पर द्वैध शासन प्रणाली (क्लंतबील) की व्यवस्था की गयी थी। इस प्रणाली के आधार पर प्रांतीय कार्यकारिणी परिषद् को दो भागों में विभाजित कर दिया गया। पहले भाग में गवर्नर तथा उसकी चार सदस्यीय कार्यकारिणी परिषद् ....
Question : कैनिंग से कर्जन तक भारत सरकार को फ्रचनात्मक प्रयत्न के लिए चुनौती अथवा नये युग की तैयारी की अपेक्षा एक श्वेत व्यक्ति पर भार समझा गया।"
(1995)
Answer : लार्ड कैनिंग से लार्ड कर्जन (1856-1905) तक के काल में कुछ ऐसे कदम भी उठाये गये जो भारत में नये विहान लाने के लिए जिम्मेदार रहे। इन्हीं सुधारों और सद्कार्यों से प्रभावित होकर कुछ साम्राज्यवादी इतिहासकारों ने इस काल के लिए ‘रचनात्मक प्रयत्न के लिए चुनौती’ अथवा ‘नये युग की तैयारी’ जैसे मुहावरों का प्रयोग किया है। पर वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है। इससे भी पहले, जब अंग्रेज पूरी दुनिया में ईसाई मिशनरियों की ....
Question : 20वीं सदी में दक्षिण भारत में जाति आन्दोलनों की दिशा का वर्णन करते हुए उनके स्वरूप की व्याख्या कीजिये। उनके उद्देश्य किस सीमा तक प्राप्त हुए?
(1995)
Answer : 20वीं सदी के आरंभिक दशकों में दक्षिण भारत में जाति सभाओं, समितियों एवं आंदोलनों की एक महत्वपूर्ण भूमिका शुरू हो चुकी थी। इन समूहों को नेतृत्व निचली जाति के कुछ शिक्षित लोग देते थे। व्यवसाय अथवा नौकरियों की होड़ में देर से शामिल होने वाले इन लोगों को लगता था कि इस क्षेत्र में पहले से रूपायित ब्राह्मणों एवं अन्य उच्च जातियों के विरुद्ध संघर्ष की दृष्टि से एकत्रित होने के लिए जाति एक उपयोगी ....
Question : अपने कुछ कार्यों से क्लाइव ने अपनी उपलब्धि की उपयोगिता और कीर्ति को घूमिल कर दिया।"
(1995)
Answer : भारत में अंग्रेजी राज की स्थापना का श्रेय क्लाइव को दिया जाता है। ईस्ट इंडिया कंपनी में एक क्लर्क के रूप में अपने कैरियर को प्रारंभ करनेवाला क्लाइव शीघ्र ही अपनी योग्यता और प्रतिभा से कंपनी की सेना में कैप्टन नियुक्त हुआ तथा अन्ततः 1758 में बंगाल का गवर्नर बन गया और जिस पद को उसने दो बार सुशोभित किया। 1757 में उसने साम.दाम.दंड.भेद सभी का उपयोग कर प्लासी की वह लड़ाई देशी राजा सिराजुद्दौला ....