आकांक्षी जिला कार्यक्रम


दुनिया भर के नीति निर्माता अपनी विकास रणनीति में एक संक्रमणकालीन बदलाव के साक्षी बन रहे हैं, जो केंद्रीकृत योजना से साक्ष्य आधारित नीति निर्माण की ओर बढ़ रहा है। डिजिटल प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा डैश बोर्ड के माध्यम से प्रगति की वास्तविक समय (real time) निगरानी करने से नागरिकों के जीवन और आर्थिक उत्पादकता की गुणवत्ता पर सीधा असर पड़ा है।

  • ‘‘आकांक्षी जिलों का परिवर्तन’’ कार्यक्रम नीति आयोग द्वारा एक ऐसी पहल है, जिसका उद्देश्य भारत में प्रतिस्पर्धी संघवाद की संस्कृति को बढ़ावा देकर 117 पिछड़े जिलों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में तेजी से सुधार करना है। यह कार्यक्रम प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों जैसे कि प्रसवपूर्व देखभाल, सीखने की कला, कृषि मूल्य प्राप्ति, मुद्रा ऋण का संवितरण, सड़क संपर्क आदि पर राज्यों की वास्तविक समय निगरानी और रैंकिंग सुनिश्चित करता है।

कार्यक्रम के मुख्य सिद्धांत

  • समाभिरूपताः केन्द्रीय और राज्य योजनाओं की।
  • सहयोगः केंद्रीय, राज्य स्तर के प्रभारी अधिकारी और जिला कलेक्टर।
  • प्रतिस्पर्धाः जिलों के बीच।

कार्यक्रम की पांच मुख्य विषय-वस्तु

  • स्वास्थ्य और पोषण।
  • शिक्षा।
  • कृषि और जल संसाधन।
  • वित्तीय समावेशन और कौशल विकास।
  • बुनियादी ढांचा।

कार्यक्रम की मुख्य रणनीति

  • परिवर्तन के मुख्य चालकों के रूप में राज्यों के साथ सामूहिक राष्ट्रीय प्रयास है।
  • प्रत्येक जिले की क्षमता के अनुरूप कार्य करना और इसे विकास के लिए उत्प्रेरक जनांदोलन बनाना।
  • प्रतिस्पर्धा की भावना को बढ़ावा देने के लिए जिलों की रैंक और प्रगति का मापन।
  • जिले राज्य के सर्वश्रेष्ठ से राष्ट्र के सर्वश्रेष्ठ बनने की आकांक्षा रखेंगे।

कार्यक्रम की आलोचना

  • एक शासकीय संगठन (executive organization) द्वारा केंद्रीय निगरानी वाला यह कार्यक्रम संघवाद की अवधारणा को चुनौती देता है।
  • पंचायती राज संस्थानों (पीआरआई) को खतरा पैदा करता और विकेन्द्रीकृत योजना को कमजोर करता है।
  • तीसरे पक्ष की एजेंसियों द्वारा आंकड़ों का सत्यापन सीमित है।
  • यह कार्यान्वयन की स्थिति की अनदेखी करता है। संकेतकों में दिखाए गए वृद्धिशील सुधार को बढ़ाया जा सकता है और यह जमीनी वास्तविकता को प्रतिबिंबित नहीं कर सकता है।
  • नौकरशाही और निरीक्षण में वृद्धि करता है।
  • कार्यक्रम में बजटीय सहायता और वित्तीय सहायता का अभाव है।
  • कार्यक्रम उसी प्रशासनिक ढांचे की पृष्ठभूमि में बेहतर परिणामों की उम्मीद करता है।

आगे की राह

  • कार्यक्रम की केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति की समीक्षा करने की आवश्यकता है।
  • वित्तीय स्वायत्तता के साथ-साथ पंचायती राज संस्थाओं की वैधता सुनिश्चित की जानी चाहिए।
  • इस कार्यक्रम में सहकारी संघवाद की अवधारणा को भी आत्मसात करने की आवश्यकता है।
  • क्षेत्र में सरकारी प्रगति को बढ़ा-चढ़ाकर प्रदर्शित करने वाले सरकारी सेवकों के लिए दंड को निर्धारित करना।
  • कार्यक्रम की बजटीय आवश्यकताओं को पूरा करना।
  • की गई प्रगति और दिखाए गए आंकड़ों को निरीक्षण के लिए जनता के लिए खोला जाना चाहिए।