राजद्रोह क़ानून की संवैधानिक वैधता: आलोचनात्मक विश्लेषण


  • 31 मई, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने दो टीवी समाचार चैनलों के खिलाफ आंध्र प्रदेश पुलिस को राजद्रोह (sedition) के आरोप में दंडात्मक कार्रवाई करने से रोकते हुए कहा कि “यह राजद्रोह की सीमा को परिभाषित करने का समय है” (“It’s time to define limits of sedition”)।
  • सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि उसके अनुसार भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860 की धारा 124ए (राजद्रोह), 153ए और 505 के प्रावधानों के दायरे और मापदंडों की व्याख्या की आवश्यकता है, विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के समाचार और सूचना पहुंचाने के सन्दर्भ में।
  • साथ ही उन सूचनाओं के संबंध में भी उक्त धाराओं की व्याख्या की आवश्यकता होगी, जिनमें देश के किसी भी हिस्से में प्रचलित शासन की आलोचना की गई हो।
  • जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, एल नागेश्वर राव और एस रविंद्र भट्ट की पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह एफआईआर मीडिया की आजादी को खत्म करने की कोशिश प्रतीत होती है।

मामला क्या है?

  • आंध्र प्रदेश पुलिस ने वाईएसआर कांग्रेस के विधायक कनुमुरी रघु राम कृष्ण राजू द्वारा किए गए "अपमानजनक भाषणों" को प्रसारित करने के लिए टीवी 5 और एबीएन आंध्रज्योति चैनल के खिलाफ राजद्रोह को अपराध घोषित करने वाली आईपीसी की धारा 124ए के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की थी।
  • चैनलों द्वारा अपनी याचिका में यह कहते हुए प्राथमिकी रद्द करने की मांग की गई थी कि किसी मौजूदा सांसद के भाषण प्रसारित करने का कार्य राजद्रोह नहीं हो सकता।
  • समाचार चैनलों द्वारा यह भी कहा गया था कि यह एफआईआर 'इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का मुंह बंद करने' और 'प्रेस की स्वतंत्रता के उल्लंघन' का एक प्रयास है।

धारा 124ए के तहत राजद्रोह क्या है?

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत राजद्रोह को ऐसी किसी भी कार्रवाई के रूप में परिभाषित किया गया है जो भारत सरकार के प्रति घृणा या अवमानना लाने का प्रयास करता है।
  • इसके अनुसार, यदि कोई व्यक्ति बोले गए या लिखित शब्दों, संकेतों या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा या किसी और तरह से भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करे या पैदा करने का प्रयास करे अथवा असंतोष (Disaffection) उत्पन्न करे या करने का प्रयत्न करे तो वह राजद्रोह का आरोपी होगा।
  • राजद्रोह एक ग़ैर-जमानती अपराध है और इसके लिए 3 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा तथा जुर्माने (या दोनों) का प्रावधान है।
  • इस कानून के तहत आरोपित व्यक्ति को सरकारी नौकरी करने से रोक दिया जाता है। साथ ही उसे अपने पासपोर्ट के बिना रहना होता है तथा आवश्यकता पड़ने पर हर समय खुद को अदालत में पेश करना होता है।

राजद्रोह से संबंधित डेटा

  • नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार भारत में वर्ष 2015 में 30, 2016 में 35, 2017 में 51, 2018 में 70 तथा 2019 में 93 राजद्रोह के मामले दर्ज हुए।
  • वर्ष 2019 में जो 93 राजद्रोह के मामले दर्ज हुए उनमें 96 लोगों को गिरफ़्तार किया गया. इन 96 लोगों में से 76 आरोपियों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर की गई और 29 को बरी कर दिया गया। इन सभी आरोपियों में से केवल 2 को ही अदालत ने दोषी ठहराया।
  • वर्ष 2019 में पिछले वर्षों से लंबित तथा 2019 में दायर किए गए राजद्रोह के 9% मामलों को बंद कर दिया गया, क्योंकि आरोपी का पता नहीं चल सका। केवल 17 फीसदी मामलों में ही चार्जशीट दाखिल की गई।

धारा 124ए के समर्थन में तर्क

  • आईपीसी की धारा 124ए की उपयोगिता राष्ट्रविरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्वों से निपटने में है। यह चुनी हुई सरकार को हिंसा एवं अवैध तरीकों से उखाड़ फेंकने के प्रयासों से सुरक्षा प्रदान करता है।
  • कानून द्वारा स्थापित सरकार की निरंतरता व अस्थिरता राज्य के विकास के लिए एक अनिवार्य शर्त है।
  • यदि अदालत की अवमानना के लिए दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान है, तो सरकार की अवमानना के लिए दंड आखिर क्यों नहीं होना चाहिए।
  • भारत में कई जिले माओवादी विद्रोह का सामना करते हैं तथा विद्रोही समूह वस्तुतः एक समानांतर प्रशासन चलाते हैं, जो खुले तौर पर क्रांति द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने की वकालत करते हैं। इस पृष्ठभूमि में धारा 124ए जैसे प्रावधान देश की अखंडता की रक्षा करते हैं।

धारा 124ए के खिलाफ तर्क

  • धारा 124ए औपनिवेशिक विरासत का अवशेष है एवं लोकतंत्र में अनुपयुक्त है। साथ ही यह संविधान द्वारा प्रत्याभूत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मार्ग में एक बाधा है।
  • सरकार की असहमति और आलोचना एक जीवंत लोकतंत्र में मजबूत सार्वजनिक बहस के आवश्यक तत्व हैं। इन्हें राजद्रोह नहीं माना जाना चाहिए।
  • भारतीयों पर अत्याचार करने के लिए जिन अंग्रेजों ने राजद्रोह क़ानून बनाया था, उन्होंने खुद अपने देश में ही इसे समाप्त कर दिया है।
  • धारा 124ए के तहत 'असंतोष' (disaffection) जैसे शब्द अस्पष्ट स्वरूप के (vague) हैं तथा इनकी क्या व्याख्या की जाएगी यह जांच अधिकारी की मर्जी एवं समझ पर निर्भर करता है।
  • कई बार राजनीतिक असंतोष को दबाने के लिए राजद्रोह कानून का एक उपकरण के रूप में दुरुपयोग किया जाता है।
  • वर्ष 1979 में भारत ने 'नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिज्ञापत्र' (International Covenant on Civil and Political Rights) इसकी पुष्टि की थी, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मानकों को निर्धारित करता है।
  • इस सन्दर्भ में देशद्रोह का दुरुपयोग तथा मनमाने ढंग से लोगों पर इसका आरोप लगाना भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुरूप नहीं है।

क्या राजद्रोह कानून को खत्म कर देना चाहिए?

  • पिछले कुछ सालों से इस बात पर बहस जारी है कि क्या राजद्रोह कानून को खत्म कर देना चाहिए।
  • जुलाई 2019 में राज्य सभा में एक प्रश्न के जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा था कि राष्ट्रविरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्वों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए इस प्रावधान को बनाए रखना जरूरी है।
  • वहीं कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रावधान ब्रिटिश काल में निर्मित किया गया था तथा यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के वर्तमान मानकों से मेल नहीं खाता।
  • राजद्रोह पर विधि आयोग के परामर्श पत्र में कहा गया है कि जबकि यह प्रावधान राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा के लिए आवश्यक है इसका दुरुपयोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को रोकने के लिए एक उपकरण के रूप में नहीं किया जाना चाहिए।
  • वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में लंबित किशोरचंद्र वांगखेमचा एवं कन्हैया लाल शुक्ल नामक दो पत्रकारों द्वारा दायर एक याचिका में याचिकर्ताओं द्वारा कहा गया है कि राजद्रोह का क़ानून नागरिकों के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का स्पष्ट रूप से उल्लंघन करता है.
  • धारा 124ए को चुनौती देने वाली उक्त याचिका पर 30 अप्रैल, 2021 को जस्टिस यूयू ललित, इंदिरा बनर्जी और केएम जोसेफ की तीन-न्यायाधीशों की खंडपीठ ने राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता की जांच करने के लिए सहमति व्यक्त की है।

केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य

  • 1962 के ऐतिहासिक 'केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य' मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था, लेकिन इसके दुरुपयोग के दायरे को सीमित करने का भी प्रयास किया।
  • अदालत ने कहा कि जब तक हिंसा के लिए उकसावा या आह्वान न हो, सरकार की आलोचना को देशद्रोह नहीं कहा जा सकता।
  • इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 124ए के बारे में कहा था कि इस प्रावधान का इस्तेमाल "अव्यवस्था पैदा करने की मंशा या प्रवृत्ति, या क़ानून और व्यवस्था की गड़बड़ी, या हिंसा के लिए उकसाने वाले कार्यों" तक सीमित होना चाहिए।

राजद्रोह पर विधि आयोग का परामर्श पत्र

  • अगस्त 2018 में भारत के विधि आयोग ने एक परामर्श पत्र प्रकाशित किया जिसमें सिफारिश की गई कि यह समय देशद्रोह से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए पर पुनर्विचार करने या उसे निरस्त करने का है।
  • विधि आयोग के अनुसार "लोकतंत्र में एक ही गीत की किताब से गाना देशभक्ति का पैमाना नहीं है" और "लोगों को अपने तरीके से अपने देश के प्रति अपना स्नेह दिखाने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए" और ऐसा करने के लिए "सरकार की नीति में ख़ामियों की ओर इशारा करते हुए कोई रचनात्मक आलोचना या बहस" की जा सकती है।
  • लॉ कमीशन ने यह भी कहा कि धारा 124ए केवल उन मामलों में लागू की जानी चाहिए जहां किसी भी कार्य के पीछे की मंशा सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने या हिंसा और अवैध साधनों से सरकार को उखाड़ फेंकने की है।
  • साथ ही यह भी कहा कि तत्कालीन सरकार की नीतियों से मेल न खाने वाले विचार व्यक्त करने के लिए किसी व्यक्ति पर राजद्रोह की धारा के तहत आरोप नहीं लगाया जाना चाहिए।

भविष्य की राह

  • असहमति और आलोचना जीवंत लोकतंत्र में नीतिगत मुद्दों पर एक मजबूत सार्वजनिक बहस के आवश्यक तत्व हैं और इसीलिए स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति पर हर प्रतिबंध की सावधानीपूर्वक जांच की जानी चाहिए।
  • सर्वोच्च न्यायालय को राजद्रोह क़ानून की संवैधानिक वैधता की जांच करने के साथ-साथ यह भी जांच करनी चाहिए कि क्या इसे संज्ञेय और गैर-जमानती के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
  • 'देशद्रोह' शब्द के अर्थ अत्यंत बारीक हैं, और इसलिए इसे सावधानी के साथ लागू करने की आवश्यकता है। यह एक तोप की तरह है जिसका उपयोग चूहे को मारने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
  • देशद्रोह की परिभाषा को सीमित किया जाना चाहिए तथा इसके अंतर्गत केवल उन मुद्दों को ही शामिल करना चाहिए जो भारत की क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ देश की संप्रभुता से संबंधित हों।