समुद्री तट पर मैंग्रोव वन आवश्यकता एवं महत्व


  • मई 2021 में भारत के पूर्वी तट पर आए यास चक्रवात के कारण काफी नुकसान हुआ था, इस दौरान भितरकणिका राष्ट्रीय उद्यान के मैंग्रोव (Mangroves) वनों ने चक्रवाती हवाओं के प्रति एक प्राकृतिक अवरोध के रूप में कार्य किया था। इस कारण यहां कम नुकसान हुआ।
  • मैंग्रोव वन के लाभों को देखते हुए, ओडिशा सरकार द्वारा समुद्र तटीय क्षेत्र में मैंग्रोव और कैसुरीना का वृक्षारोपण करने की योजना पर विचार किया जा रहा है। ओडिशा, अपनी विशिष्ट भू-जलवायु अवस्थिति के कारण चक्रवात, बाढ़ जैसी विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के प्रति काफी सुभेद्य है।
  • समुद्र तट पर उगने वाले मैंग्रोव न केवल तटों की रक्षा करते हैं बल्कि जैव विविधता को भी बढ़ावा देते हैं। भारत की विशाल तट रेखा और इस पर रहने वाली घनी आबादी को देखते हुए इनका महत्व और भी बढ़ जाता है। जलवायु परिवर्तन के कारण मैंग्रोव का महत्व बढ़ गया है।

मैंग्रोव वन क्या हैं?

  • मैंग्रोव, तटीय लवणीय जल या खारे पानी (Brackish Water) में उगने वाले झाड़ीनुमा या छोटे आकार के वृक्ष होते हैं। इन्हें लवणमृदोद्भिद या हेलोफाइट्स (Halophytes) भी कहा जाता है, और ये कठोर तटीय परिस्थितियों के लिए अनुकूलित होते हैं।
  • मैंग्रोव, विश्व भर में उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रें, मुख्यतः 30 डिग्री उत्तर और 30 डिग्री दक्षिणी अंक्षाशों के मध्य पाए जाते हैं। मैंग्रोव वनों का सर्वाधिक विस्तार, भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5 डिग्री अक्षांशों के मध्य पाया जाता है।
  • इनकी करीब 80 प्रजातियां हैं जो ऊष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) इलाकों में उगती हैं जहां मिट्टðी में कम ऑक्सीजन हो। इनमें, खारे जल के प्रति अनुकूकन के लिए एक जटिल लवण निस्पंदन प्रणाली और जटिल जड़-तंत्र होता है। इनकी जड़ों को श्वसन-सूल या न्यूमेटोफोर (Pneumatophores) कहा जाता है। ये जड़ें इन वृक्षों को अवायवीय मृदा में सांस लेने में मदद करती हैं।

मैंग्रोव वन की आवश्यकता

  • मैंग्रोव का पारिस्थितिक महत्व समुद्री घास और कोरल रीफ की तरह ही है और इनका आपस में एक करीबी रिश्ता है। मैंग्रोव और समुद्री घास गाद और प्रदूषकों को समुद्र के भीतर जाने से रोकते हैं और कोरल रीफ को जिन्दा रखते हैं वहीं दूसरी ओर कोरल रीफ विनाशकारी समुद्री लहरों की ताकत को कम करके मैंग्रोव और समुद्री घास को बचाती है।
  • मैंग्रोव न केवल तटीय भूमि में समुद्र के प्रवेश को रोकते हैं बल्कि वह मछलियों, झींगा, केकड़ों और कई जन्तुओं और वनस्पति प्रजातियों को निवास और प्रजनन क्षेत्र प्रदान करते हैं। इस तरह से जैव विविधता के संरक्षण में उनका अहम रोल है। मैंग्रोव के जंगल कई पक्षियों और जानवरों का घर भी हैं और खाद्य सुरक्षा चक्र में उनकी विशेष भूमिका है।
  • मैंग्रोव, चक्रवातों और समुद्र जल स्तर में बढ़ोतरी से तटीय क्षेत्र में रहने वाली आबादी की रक्षा ही नहीं करते बल्कि खारे पानी को रोककर तटीय क्षेत्र में जमीन को कृषि योग्य बनाए रखते हैं।
  • ग्लोबल इन्वायरमेंटल चेंज जर्नल में 2014 में प्रकाशित जानकारी के मुताबिक भारत के तटों पर फैले मैंग्रोव के जंगल जितनी इकोलॉजिकल सेवाएं देते हैं उनकी कीमत 14 करोड़ रु- प्रति हेक्टेयर से अधिक है।

भारत में मैंग्रोव का फैलाव

  • भारत में मैंग्रोव का फैलाव कई राज्यों की समुद्र तट रेखा पर है। पूर्वी तट पर पश्चिम बंगाल और ओडिशा तथा पश्चिमी तट पर गुजरात में मैंग्रोव के घने जंगल हैं। यह दिलचस्प है कि भारत के दो राज्यों, पश्चिम बंगाल (जहां तट रेखा सबसे छोटी है) और गुजरात (जहां तट रेखा की लंबाई सबसे अधिक है) मैंग्रोव का सबसे घना फैलाव है। दूसरे राज्यों में ओडिशा, तमिलनाडु और केरल के अलावा अंडमान में मैंग्रोव बहुतायत में हैं।
  • भारत-बांग्लादेश सीमा पर बसा सुंदरवन दुनिया का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है और यूनेस्को की विश्व धरोहर (वर्ल्ड हैरिटेज) में शामिल है। मैंग्रोव को यहां सुंदरी भी कहा जाता है जिस वजह से इस जगह का नाम सुंदरवन पड़ा।
  • सुंदरवन कई वनस्पतियों और वन्य जीवों की प्रजातियों के अलावा बंगाल टाइगर का भी घर है और इसलिए यह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।

जलवायु परिवर्तन के दौर में मैंग्रोव वन का महत्व

  • पिछले 4 साल में हर मॉनसून से पहले अरब सागर में चक्रवाती तूफान पैदा हुए और इनसे तटीय क्षेत्रें में काफी नुकसान हुआ। पूर्वी तट पर भी चक्रवात की संख्या और तीव्रता में बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
  • विशेषज्ञ कहते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग से समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण यह बदलाव आ रहे हैं और ऐसे में मैंग्रोव कई मोर्चों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से लड़ने के लिए जरूरी हैं। खासतौर से तब जब भारत की समुद्र तट रेखा 7,500 किलोमीटर से अधिक लम्बी है और करीब 20-25 करोड़ लोग अपनी जीविका के लिए सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से तटों पर निर्भर हैं।
  • चक्रवाती तूफानों की वजह से खारा पानी खेतों में भर जाता है तो कई सालों के लिए जमीन बर्बाद हो जाती है और आप वहां कुछ नहीं उगा पाते।
  • सुंदरवन में 2009 में आइला तूफान के बाद इसका विकराल प्रभाव दिखा और वहां लगातार तूफान आ ही रहे हैं। ऐसे में मैंग्रोव एक प्रतिरक्षा दीवार की तरह काम करते हैं और इसके प्रभाव को काफी हद तक कम करते हैं।
  • मैंग्रोव वन, पोषक तत्वों के प्राकृतिक पुनर्चक्रण को तीव्र करते हैं। मैंग्रोव अनेक वनस्पतियों, उभयचरों और वन्य जीवों के लिए अनुकूल माहौल उपलब्ध कराते हैं।
  • विभिन्न प्रकार की मछलियों के प्रजनन, अंडे सेने, पालन-पोषण के लिए एक सुरक्षित और अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं। स्थानीय लोगों को लकड़ी, जलाऊ लकड़ी, औषधीय पौधे और खाद्य वनस्पति की आपूर्ति करते हैं।

आगे की राह

  • समुद्र-स्तर में वृद्धि के बुरे प्रभावों का मुकाबला करने के लिए तटों तक अवसाद (सेडीमेंट) बनाए रखना आवश्यक है। तटों पर जहां अवसाद या कीचड़ की आपूर्ति सीमित है, मैंग्रोव वनों और जैव विविधता के नुकसान से बचने के लिए लोगों को तटों को छोड़कर किसी अन्य जगह बसना चाहिए। ऐसे कारणों का भी पता लगाया जाना चाहिए जो लोगों के तटों को छोड़कर दूसरी जगह प्रवास को रोकने में बाधक हैं तथा इन्हे दूर किया जाना चाहिए।