शंघाई सहयोग संगठन के रक्षा मंत्रियों की बैठक


27 से 29 जुलाई, 2021 के मध्य शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के रक्षा मंत्रियों की बैठक ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में आयोजित की गई।

बैठक की प्रमुख बातें

  • आतंकवाद को अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए सबसे गंभीर खतरे के रूप में स्वीकार किया गया| सीमा-पार आतंकवाद सहित किसी भी प्रकार की आतंकवादी गतिविधि के समर्थन को मानवता के खिलाफ अपराध के रूप में माना गया।
  • एससीओ के सदस्य देशों ने रक्षा सहयोग को मजबूत करने की आवश्यकता को दोहराया।
  • बैठक में गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों जैसे महामारी, जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, जल-सुरक्षा और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य को प्रभावित करने की क्षमता रखने वाले सामाजिक व्यवधानों पर प्रकाश डाला गया।
  • अफगानिस्तान के मुद्दे पर एससीओ की भूमिका पर भी चर्चा की गई। इसके अंतर्गत यह प्रकाश डाला गया कि:
    • अफगानिस्तान को एससीओ में पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है। इसलिए, अफगानिस्तान की सुरक्षा स्थिति पर चर्चा करने के लिए एससीओ सबसे उपयुक्त मंच है।
    • एससीओ में वे सभी क्षेत्रीय शक्तियां शामिल हैं जिनकी अफगानिस्तान के साथ सुरक्षा और वित्तीय हित जुड़े हैं। एक क्षेत्रीय सुरक्षा संगठन के रूप में, यह तालिबान के प्रभाव को समाप्त करने के साथ बाहरी शक्तियों को संतुलित करके अफगानिस्तान में एक स्थाई भूमिका निभा सकता है।
    • एससीओ चार्टर, संगठन को स्पष्ट रूप से आतंकवाद, कट्टरपंथ और अलगाववाद की ताकतों के खिलाफ निर्णायक कदम उठाने की शक्ति प्रदान करता है। एससीओ की एक क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (Regional Anti-terrorist Structure RATS) भी कार्यरत है।

भारत के लिए SCO का महत्व

  • क्षेत्रीय सुरक्षा: यूरेशियाई सुरक्षा समूह के एक अभिन्न अंग के रूप में एससीओ इस क्षेत्र में धार्मिक उग्रवाद और आतंकवाद जैसे खतरों को समाप्त करने में सहायक हो सकता है। यही कारण है कि भारत ने एससीओ तथा इसके क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी ढांचे (RATS) के साथ अपने सुरक्षा संबंधी सहयोग को और भी अधिक मजबूती प्रदान करने में दिलचस्पी दिखाई है।
  • पाकिस्तान और चीन से निपटना: एससीओ मंच के माध्यम से भारत क्षेत्रीय स्तर पर चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ अपने सुरक्षा हितों को रचनात्मक रूप से संतुलित कर सकता है।
  • अफगानिस्तान में स्थिरता लाना: अफगानिस्तान में भारत की सुरक्षा और आर्थिक हिस्सेदारी है। अफगानिस्तान में तेजी से बदलती स्थिति को स्थायित्व प्रदान करने के लिए एससीओ एक वैकल्पिक क्षेत्रीय मंच के रूप में कार्य कर सकता है।
  • मध्य-एशिया से जुड़ना: एससीओ भारत को अपनी कनेक्ट मध्य-एशिया नीति (Connect Central Asia Policy) के उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद कर सकता है। इस संगठन के माध्यम से भारत को मध्य-एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों को नई दिशा देने की प्रेरणा मिल सकती है।

SCO में भारत के लिए चुनौतियां

  • चीन का आधिपत्य: इस संगठन में चीनी-प्रभुत्व देखने को मिल रहा है। भारत को छोड़कर इसके सभी सदस्य राज्यों ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का समर्थन किया है। BRI भारत के लिए एक चिंता का विषय है क्योंकि इसके अंतर्गत निर्मित किए जाने वाला चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करता है।
  • विश्वास की कमी: रूस और चीन की बढ़ती नजदीकियां भारत के लिए चिंता का विषय बन सकती हैं। इसके साथ SCO में चीन-पाकिस्तान धुरी के कारण उत्पन्न होने वाली मुश्किलें और भी अधिक बढ़ सकती हैं। चीन के प्रभाव से अन्य सदस्य देशों द्वारा भी पाकिस्तान के प्रति अनुकूल व्यवहार करने पर भारत को इस क्षेत्रीय समूह में अलग-थलग होने का जोखिम उठाना पड़ सकता है।
  • पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद: पाकिस्तान को चीन द्वारा मिलने वाले समर्थन के कारण पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को नियंत्रित करने में एससीओ बहुत प्रभावी नहीं है।
  • मध्य एशिया के साथ संपर्क का अभाव: भारत और अफगानिस्तान के बीच प्रत्यक्ष भूमि संपर्क की कमी मध्य एशिया के साथ भारत के संपर्क में एक बड़ी बाधा है।

आगे की राह

  • एससीओ के अंतर्गत सुरक्षा क्षेत्र में विश्वास के सुदृढ़ीकरण को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। समूह के भागीदारों के साथ समानता, आपसी सम्मान और समझ के आधार पर द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की आवश्यकता है।
  • एससीओ के सदस्य देशों को संयुक्त रूप से संस्थागत क्षमता विकसित करनी चाहिए जो व्यक्तिगत राष्ट्रीय संवेदनशीलता का सम्मान करे तथा लोगों, समाजों और राष्ट्रों के बीच संपर्क एवं सहयोग की भावना पैदा करे।
  • एक संगठन के रूप में एससीओ सामूहिक सुरक्षा तथा स्थिरता को बढ़ावा देने का एक बेहतर साधन है। इस संगठन के माध्यम से सामूहिक प्रयासों द्वारा मानव विकास सूचकांकों के मानदंडों पर सुधार किया जा सकता है।