भारत का तटीय क्षरण

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने अप्रैल 2022 में लोक सभा को सूचित किया कि भारतीय मुख्य भूमि की 6,907.18 किलोमीटर लंबी तट रेखा में से लगभग 33.6% तटीय क्षरण/कटाव की स्थिति के अंतर्गत है।

महत्वपूर्ण तथ्य: तटीय क्षेत्र का लगभग 26% अभिवृद्धि प्रकृति (accretional nature) का है और शेष 40% स्थिर अवस्था में है।

  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के संलग्न कार्यालय नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च, चेन्नई द्वारा 1990 से 2018 तक मुख्य भूमि की लगभग 6,907.18 किलोमीटर लंबी भारतीय तट रेखा का विश्लेषण किया गया है।
  • प्रतिशत के संदर्भ में, देश के पूर्वी तट पर स्थित पश्चिम बंगाल (जिसकी 534.35 किलोमीटर लंबी तट रेखा है) को 1990 से 2018 की अवधि में लगभग 60.5% (323.07 किमी) तटीय कटाव का सामना करना पड़ा।
  • पश्चिमी तट पर स्थित केरल (जिसकी तट रेखा 592.96 किमी लंबी है) को 46.4% (275.33 किमी) तटीय कटाव का सामना करना पड़ा।
  • तमिलनाडु (जिसकी 991.47 किमी की लंबी तट रेखा है) को 42.7% (422.94 किमी) के तटीय कटाव का सामना करना पड़ा है।
  • 1,945.6 किमी की सबसे लंबी तट रेखा के साथ गुजरात ने 27.06% (537.5 किमी) का तटीय कटाव दर्ज किया है।
  • केंद्र-शासित प्रदेश पुडुचेरी (जिसकी 41.66 किलोमीटर लंबी तट रेखा है) को लगभग 56.2% (23.42 किमी) तटीय कटाव का सामना करना पड़ा है।

GK/GS तथ्यावलोकन

  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत एक अन्य संगठन, इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इंफॉर्मेशन सर्विसेज (INCOIS) ने 1: 100000 के पैमाने पर भारत के पूरे समुद्र तट के लिए तटीय सुभेद्यता सूचकांक (Coastal Vulnerability Index: CVI) मानचित्रों का एक एटलस तैयार कर उसका प्रकाशन किया है।

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी