भारत का सौर क्षमता लक्ष्य

अप्रैल 2022 में जेएमके रिसर्च (JMK Research) और इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत सौर ऊर्जा क्षमता के 100 गीगावॉट स्थापित करने के अपने 2022 के लक्ष्य से चूक सकता है, जिसका मुख्य कारण रूफटॉप सोलर का अपर्याप्त उपयोग है।

महत्वपूर्ण तथ्य: दिसंबर 2021 तक, भारत की संचयी स्थापित सौर क्षमता 55 गीगावॉट थी, जिसमें ग्रिड से जुड़ी उपयोगिता-पैमाने की परियोजनाएं कुल का 77% और ग्रिड से जुड़े रूफटॉप सोलर 20% और मिनी या माइक्रो ऑफ-ग्रिड परियोजनाओं से 3% थीं।

  • 2022 के केवल 7 महीने शेष हैं, 100 गीगावॉट लक्ष्य का लगभग 50% ही पूरा किया गया है। 100 गीगावॉट लक्ष्य में 60 गीगावॉट उपयोगिता-पैमाने और 40 गीगावॉट रूफटॉप सौर क्षमता शामिल है।
  • 2022 में लगभग 19 गीगावॉट सौर क्षमता जोड़े जाने की उम्मीद है, उपयोगिता-पैमाने से 15.8 गीगावॉट और रूफटॉप सोलर से 3.5 गीगावॉट।

संसद प्रश्नोत्तर सार

हिमालयी क्षेत्र के ग्लेशियरों का पिघलना

  • विभिन्न भारतीय संस्थान/विश्वविद्यालय/संगठन जैसे- भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI), वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान (WIHG), राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केन्द्र (NCPOR) आदि विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों समेत हिमनद पिघलने पर नजर रखने के लिए हिमालय हिमनदों की निगरानी करते हैं।
  • कुछ हिमालयी हिमनदों पर किए गए द्रव्यमान संतुलन अध्ययनों में पाया गया कि अधिकांश हिमालयी हिमनद पिघल रहे हैं या अलग-अलग दरों पर उनका संकुचन हो रहा है। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान उत्तराखंड में कुछ हिमनदों की निगरानी कर रहा है, जिसमें यह पाया गया कि भागीरथी बेसिन में डोकरियानी हिमनद वर्ष 1995 से 15-20 मीटर प्रति वर्ष की दर से संकुचित हो रहा है, जबकि मंदाकिनी बेसिन में चोराबाड़ी हिमनद वर्ष 2003 से 2017 के दौरान 9-11 मीटर प्रति वर्ष की दर से संकुचित हो रहा है। WIHG सुरू बेसिन, लद्दाख में डुरुंग-ड्रुंग तथा पेनसिलुंगपा हिमनदों की भी निगरानी कर रहा है, जो क्रमश: 12 मीटर प्रति वर्ष तथा ~ 5.6 मीटर वर्ष की दर से संकुचित हो रहे हैं। हिमनदों के पिघलने से ग्लेशियर बेसिन हाइड्रोलॉजी में परिवर्तन होता है, जिसका हिमालयी नदियों के जल संसाधनों पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता है, तथा आकस्मिक बाढ़ एवं अवसाद के कारण हाइड्रोपॉवर प्लांट्स एवं डाउनस्ट्रीम वॉटर बजट पर प्रभाव पड़ता है। हिमनद झीलों के परिमाण एवं संख्या बढ़ने, आकस्मिक बाढ़ में तीव्रता आने, तथा ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (GLOFs), उच्च हिमालयी क्षेत्र में कृषि कार्यों पर प्रभाव आदि के कारण भी हिमनद संबंधी जोखिमों के खतरे में वृद्धि होती है।

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी