Question : भ्रूणवध से संबंधित सामाजिक-सांस्कृतिक कारक
(2004)
Answer : भ्रूणवध वास्तव में समाज के लिए एक अभिशाप की तरह है जो लिंग-भेद पर आधारित होता है। वर्तमान समय में भारतीय समाज में यह समस्या विकराल रूप लेती जा रही है। भ्रूणवध से संबंधित सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों का वर्णन हम निम्नलिखित बिन्दुओं के तहत कर सकते हैं-
Question : शिशु-मत्यु दर से संबंधित सामाजिक सांस्कृतिक कारक
(2003)
Answer : धर्म एवं जाति भारतीय समाज का मूल तत्व है। इसके अतिरिक्त सांस्कृतिक प्रयोग में परिवार की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। परिवार के अंतर्गत बच्चों का पालन-पोषण एवं महिलाओं के द्वारा समाजीकरण का कार्य, बच्चों का जन्म देना एवं देखभाल प्रमुख हैं।
विभिन्न अध्ययनों के द्वारा यह देखा गया कि धर्म, जाति एवं परिवार के प्रकार शिशु-मृत्यु दर को बहुत प्रभावित करता है। साधारणतया, हिन्दू जातियों में अहिन्दू जातियों की अपेक्षा अधिक शिशु-मृत्यु दर पायी जाती है। ....
Question : स्त्री-पुरुष अनुपात में स्त्रियों के घटते अनुपात से संबंधित सामाजिक सांस्कृतिक कारक
(2000)
Answer : जनसंख्या में लिंग अनुपात महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इसका प्रभाव विवाह दर, मृत्यु दर, जन्म दर और यहां तक कि प्रव्रजन दर भी पड़ता है। 2001 जनसंख्या आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रति 1000 पुरुषों पर 933 स्त्रियों का अनुपात आता है। लिंग असन्तुलन के कारण हैः स्त्री बाल हत्या, बालिकाओं की उपेक्षा, बाल-विवाह, बच्चे की जन्म पर मृत्यु, स्त्रियों के साथ बुरा व्यवहार और कठिन कार्य से लिंग अनुपात लगातार गिरता चला जा रहा ....
Question : भारत में बाल-कल्याण कार्यक्रमों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। क्या इनसे भारत में बच्चों के सभी वर्गों को लाभ मिला है?
(2000)
Answer : मानव संसाधन विकास मंत्रालय में 1985 में महिला और बाल विकास विभाग का गठन किया गया। इसका उद्देश्य महिलाओं और बच्चों के लिए आवश्यक सर्वांगीण विकास की जरूरत को पूरा करना है। यह विभाग देश में महिलाओं और बच्चों की स्थिति में सुधार के लिए कार्य कर रहे सरकारी तथा गैर-सरकारी, दोनों तरह के संगठनों के प्रयासों में तालमेल कायम करने के साथ-साथ इस संबंध में योजनाएं, नीतियां और कार्यक्रम तैयार करने तथा कानूनों के ....
Question : भारतीय आबादी के बदलते आयु-संघटन के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का परीक्षण कीजिए।
(1998)
Answer : उच्च जन्म दर और तेजी से कम होती मृत्यु दर के कारण जनसंख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी होती है, जिसके कारण आयु संबंधी ढांचा विकृत होने लगता है। यह आयु-लिंग पिरामिड के आधार को भी व्यापक करता है। यह कार्यशील जनसंख्या अर्थात् काम पर लगे हुए लोगों पर निर्भरता के बोझ को बहुत अधिक बढ़ा देता है। इस विकृत संरचना का प्रभाव कई वर्षों तक बना रहता है, उस समय भी जबकि जन्म दर कम ....