Question : आत्म-सम्मान आन्दोलन।
(2005)
Answer : पेरियार ई.वी. रामास्वामी ने 1925 में आत्मसम्मान आंदोलन की शुरूआत की थी। यह आंदोलन मूलतः सामाजिक सुधार आंदोलन के कोटि में रखा जाता है। यह आंदोलन गैर-ब्राह्मण तथा छुआछूत के विरूद्ध चलाये गये थे। इस आंदोलन की मूल बात यह थी कि इसमें ब्राह्मण की उच्चता की प्रवृत्ति को बहिष्कार कर गैर-ब्राह्मण को आत्मसम्मान दिलाना था।
इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं-
Question : निम्न जातियों में सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए तथा इस प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाने में पिछड़ी जाति आन्दोलन की भूमिका की विवेचना कीजिए।
(2005)
Answer : एम.एन. श्रीनिवास ने कहा है कि जब परम्परात्मक भारतीय समाज स्थिर लक्षण वाला था, फिर भी इसने स्थानीय श्रेणी क्रम में जातियों की उर्धवोन्मुखी और अधोन्मुखी गतिशीलता को नहीं रोका। सुरजीत सिन्हा ने भी संकेत किया है कि कई कबीले विजय तथा शक्ति प्राप्ति के बल पर श्रत्तियता का दावा करके शादी स्थिति तक पहुंच गए।
सिलवर वर्ग ने विराग के माध्यम से भारत में सामाजिक गतिशीलता की चर्चा की है। आश्रमों की योजना से संन्यास ....
Question : भारत में विवाह-आयु पर सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों के प्रभाव पर चर्चा कीजिए।
(2004)
Answer : भारत में विवाह की आयु पर वर्तमान समय में बदलती परिस्थितियों के फलस्वरूप निश्चित रूप से प्रभाव पड़ा है और यह प्रभाव मुख्यतः परंपरागत विवाह की संरचना पर पड़ा है जो कुछ वर्ष पहले बाल-विवाह के रूप में समाज में देखने को मिलता था। परंतु आधुनिकीकरण की प्रक्रिया, शिक्षा, औद्योगिकीकरण, शहरीकरण एवं सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक चेतना ने विवाह की आयु में परिवर्तन कर बाल-विवाह की प्रवृत्ति को समाप्त करने में तो नहीं परंतु बहुत कम ....
Question : दलित चेतना का अविर्भाव।
(2002)
Answer : दलित के लिए साइमन कमीशन ने अनुसूचित जाति नामक शब्द 1927 में प्रयोग किया। औपनिवेशिक काल में, अनुसूचित जातियों के लिए सामान्यतया ‘दलित वर्ग’ ‘बाह्य’ जातियां व ‘अस्पृश्य’ जैसी अभिव्यक्तियां प्रयुक्त हुई। गांधी जी ने इन्हें ‘हरिजन’ (ईश्वर के जन) की संज्ञा दी। परंतु 1935 में भारत सरकार अधिनियम के पास होने के उपरांत प्रायः इन्हें अनुसूचित जातियां ही कहा गया है। वास्तविक रूप में, दलित एक सामाजिक प्रस्थिति का शब्द है जब अनुसूचित जाति ....
Question : नक्सलबाड़ी आंदोलन के वैचारिक और रणनीतिक अभिलक्षणों का विश्लेषण कीजिए।
(2002)
Answer : उत्तर बंगाल के दार्जलिंग जिले के नक्सलबाड़ी क्षेत्र में पचासवीं दशक से कम्युनिस्टों ने संथाल, उरांव एवं राजवंशी जनजाति लोग जो प्रकृति से sharecroppers एवं चायइस्टेट में लेबर के बीच एक सामाजिक आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन में किसान तथा कृषक मजदूरों ने उन लोगों के विरुद्ध हिंसात्मक संघर्ष किया, जिन्हें वे अपना शोषक मानते थे। यह आंदोलन 1965 में सर्वप्रथम इस क्षेत्र के चारु मजूमदार के नेतृत्व में शुरू किया गया जो पूर्णतः कृषक ....
Question : भारत में सुधार आंदोलनों के रूप में आर्य समाज एवं रामकृष्ण मिशन की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
(2001)
Answer : भारत में सामाजिक आंदोलन केवल विरोध और असहमति प्रकट करने वाले आंदोलन ही नहीं रहे हैं, बल्कि सुधारात्मक, प्रतिक्रियात्मक के साथ-साथ सामाजिक-धार्मिक और स्वतंत्रता आंदोलन भी रहे हैं। ये आंदोलन जिन्हें ‘परिवर्तन को प्रोत्साहित/विरोध करने के सामूहिक प्रयत्न’ कहा गया है, बौद्धिक विकास, सामाजिक संरचना, वैचारिक वरीयताओं और सत्य के ज्ञान आदि से अस्तित्व में आये। यह सर्वविदित सत्य है कि समाज की विशेषताएं ही आंदोलनों के प्रारूप तैयार करती है। अतः सामाजिक संरचना के ....
Question : सत्य शोधक समाज।
(2001)
Answer : यह समाज पश्चिमी भारत में ज्योतिराव गोविन्दराव फूले ने 1873 में निम्न जातियों के विभिन्न क्षेत्रों में न्याय के लिए स्थापना किया। इस समाज का मुख्य उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गांे को सामाजिक न्याय दिलाने से था।
ज्योतिराव फूले यह समझते थे कि ब्राह्मण लोग धर्म की आड़ लेकर अन्य वर्णों पर अत्याचार करते हैं तथा उन्हें अपना दास बना लेते हैं। ज्योतिबा ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं की कमजोर वर्गों के लोगों के हितों ....
Question : भारत में स्त्रियों के लिए विद्यमान कल्याणकारी कार्यक्रमों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। क्या इनसे भारत में स्त्रियों के सभी वर्ग लाभान्वित हुए है?
(2001)
Answer : मानव संसाधन विकास मंत्रालय में 1985 में महिला और बाल विकास विभाग का गठन किया गया। इसका उद्देश्य महिलाओं और बच्चों के लिए आवश्यक सर्वांगीण विकास की जरूरत को पूरा करना है। यह विभाग देश में महिलाओं और बच्चों की स्थिति में सुधार के लिए कार्य कर रहे सरकारी तथा गैर-सरकारी दोनों तरह के संगठनों के प्रयासों में तालमेल कायम करने के साथ-साथ इस संबंध में योजनाएं, नीतियां और कार्यक्रम तैयार करने तथा कानूनों के ....
Question : आत्मसम्मान आंदोलन।
(2000)
Answer : आत्मसम्मान आंदोलन मूल रूप में व्यक्ति वर्ग अपनी बुरी आदतों और हीनता की भावना का त्याग कर आत्मसम्मानपूर्ण जीवन जीने से संबंधित आंदोलन है। यह आंदोलन दलितों से जुड़ा हुआ है। इस आंदोलन का नेतृत्व करने का श्रेय डा. भीमराव अंबेडकर को जाता है जिन्होंने महार आंदोलन के द्वारा दलितों को विभिन्न क्रियाकलापों में भाग लेने का अवसर प्रदान करवाया था। डा. अंबेडकर ने जाति प्रथा में व्याप्त कुरीतियों का जमकर विरोध किया एवं उच्च ....
Question : दलित चेतना की अभिव्यक्ति की प्रणाली और विषय वस्तु।
(1998)
Answer : भारत में अस्पृश्यता का बहुत पुराना इतिहास है, यद्यपि इसका जन्म और प्रचलन अस्पष्ट और अज्ञात है। 1930 के दशक के प्रारंभ तक अवपीड़ित वर्ग की अधिकांशतः परिभाषा अशुद्धता की धार्मिक अवधारणा के अर्थ में थी। प्रश्न उठता है कि क्या दलित समाज की मुख्य धारा में समाहित हो सकेंगे? युगों की दासता बेडि़यों को तभी समाप्त किया जा सकता है जब दलित स्वयं को शिक्षित और कुशल बना लें और आधुनिक समाज में प्रभावी ....
Question : भारत में पुनरुद्धारवादी सामाजिक आंदोलन।
(1998)
Answer : एम.एस.ए. राव ने तीन प्रकार के आंदोलनों की बात की है- सुधारवादी, परिवर्तनवादी और क्रांतिकारी। सुधारवादी आंदोलन मूल्य व्यवस्था में आंशिक परिवर्तन लाते हैं, वे संरचनात्मक परिवर्तनों को प्रभावित नहीं करते। इस प्रकार के आंदोलन हमें मुख्यतः कृषक आंदोलन, जनजातीय आंदोलन, दलित आंदोलन, पिछड़ी जाति/वर्ग आंदोलन और महिला आंदोलन के रूप में देखने को मिलता है। इन सभी आंदोलनों में ये पांच तत्व हैं- (i) सामूहिक लक्ष्य, (ii) वृहद स्वीकृति वाले कार्यक्रमों की समान विचारधारा, ....
Question : जातिवादी संगठनों की भूमिका।
(1998)
Answer : भारतीय समाज में वर्तमान समय में जाति आधारित अनेको संगठनों का निर्माण हो रहा है। ये संगठन मूल रूप से सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक प्रक्रियाओं में भाग लेते हैं। ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में ये संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है। रुडोल्फ का विचार है कि जाति संघों ने जाति को एक नयी स्फूर्ति प्रदान की है और लोकतंत्र ने भारत में जाति को नयी महत्वपूर्ण भूमिका के योग्य बनाया है। एम.एन. श्रीनिवास ने ....
Question : ‘महिलाओं को राजनीतिक और आर्थिक शक्ति प्रदान करना जरूरी है लेकिन भारत में महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार लाने के लिए यह विधान पर्याप्त नहीं है।’ टिप्पणी कीजिए।
(1998)
Answer : भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् स्त्रियों की स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। यद्यपि पिछली एक शताब्दी में ही स्त्रियों की स्थिति में सुधार करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयत्न होते रहे हैं लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात् स्त्रियों की सामाजिक आर्थिक स्थिति में जो परिवर्तन हुआ है, उसे एम.एन. श्री निवास ने पश्चिमीकरण, लौकिकीकरण और जातीय गतिशीलता को इन परिवर्तनों का प्रमुख कारण माना है। इसके अतिरिक्त स्त्रियों में शिक्षा का प्रसार होने तथा औद्योगिकरण के ....