Question : शिक्षा में असमानता।
(2005)
Answer : यद्यपि यह एक तथ्य है कि सभी मनुष्य योग्यता और दक्षता में समान नहीं हैं और ऐसे समाज की कल्पना करना भी अविवेकपूर्ण और आदर्शहीन होगा जो अपने सभी सदस्यों को एक समान स्थिति और लाभ प्रदान कर सके। फिर भी उनके उद्देश्यों और आकांक्षाओं की प्राप्ति के लिए सभी लोगों को समान अवसर प्रदान करना आवश्यक है। अतः इस समाज का प्रयत्न, जो अवसरों की समानता के लिए कटिबद्ध है, अधिकतर सेवाएं प्रदान करने ....
Question : समकालीन भारतीय समाज में परिवर्तन की विरोधाभासी प्रकृति की विवेचना कीजिए। इसके लिए उत्तरदायी कारकों की व्याख्या कीजिए।
(2005)
Answer : बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक भारतीय समाज को परम्परागत समाज समझा जाता था यद्यपि ब्रिटिश सरकार ने हमारे देश को औद्योगिक बनाने का प्रयत्न किया और अनेक सामाजिक व आर्थिक परिवर्तन लाने की भी कोशिश की, लेकिन लोगों के जीवन के गुणात्मक सुधार करने और जीवन स्तर उठाने में उनकी रूचि नहीं थी। योगेन्द्र सिंह तथा एस.सी. दुबे जैसे विद्वानों का मत है कि दोनों का सह-अस्तित्व हो सकता है। परम्परावाद को स्वीकारने का यह ....
Question : शिक्षा एवं सामाजिक गतिशीलता।
(2001)
Answer : शिक्षा एवं सामाजिक गतिशीलता में सीधा संबंध है। शिक्षा ही एक ऐसा सशक्त माध्यम है जिसके द्वारा सामाजिक गतिशीलता की गति को त्वरित किया जा सकता है। शिक्षा के फलस्वरूप व्यक्तियों में स्वयं की चेतना के साथ-साथ ज्ञान एवं समाज में अर्जित प्रस्थिति प्राप्त करता है जो वास्तव में सामाजिक गतिशीलता का द्योतक है।
सामाजिक गतिशीलता दोनों प्रकार की हो सकती है- सामाजिक एवं व्यावसायिक। सामाजिक गतिशीलता के अंतर्गत हम उदग्र एवं समस्तरीय दोनों प्रकार की ....
Question : सामाजिक न्याय।
(1999)
Answer : एक सावयवी रूप में संगठित समाज के निर्माण के लिए व्यक्तियों का तर्क संगत सहयोग, ताकि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यताओं के अनुसार फलने-फूलने तथा जीवन को सही ढंग से जीने की कला सीखने के समान तथा वास्तविक अवसर प्राप्त हो सके, सामाजिक न्याय कहलाती है। सामाजिक न्याय प्रजातंत्र की एक आवश्यक शर्त है।
सामाजिक न्याय का अर्थ सामान्यतः यह लगाया जाता है कि समाज के सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से वंचित खण्डों या वर्गों को ....