Question : कृषक समाजों के लक्षण।
(2005)
Answer : रॉबर्ट रेडफील्ड ने कृषक समाज अवधारणा के माध्यम से ग्रामीण समाज की आन्तरिक एवं बाह्य संरचना को समझाने का प्रयत्न किया है। कृषक समाजों में काफी जटिलता और स्तरीकरण देखने को मिलता है। ऐसे समाजों में कई प्रकार के समूह, वर्ग एवं श्रेणियां सम्मिलित हैं, जिनमें संबंधित लोगों को किसी भी स्वीकृत अर्थ में कृषक नहीं कहा जा सकता।
कृषक समाजों के लक्षण को स्पष्ट करने की दृष्टि से आन्द्रे बिताई ने कृषक शब्द के तीन ....
Question : पीढ़ी अन्तराल।
(2005)
Answer : पीढ़ी अंतराल निश्चित रूप से एक आधुनिक घटना है परन्तु यह प्राचीन काल में भी विद्यमान रहा है। एस.एन. एजेनटाड ने माना है कि अन्तर पीढ़ीय अन्तर्क्रिया अनौपचारिक मित्र समूहों में अधिक मुक्त वातावरण में फलती है। सार्वभौमिक शिक्षा की तरह यद्यपि कम सीमा में, उद्योग में काम और आफिस में नौकरी ने भी अनेक युवकों को अपनी पहचान बनाने और सामूहिक अनुभव प्राप्त करने का आधार प्रदान किया है। कभी-कभी युवक प्रभावी मानदण्डों के ....
Question : भारत में मध्यम वर्ग के उद्गम की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए। राष्ट्रीय विकास में मध्यम वर्ग ने क्या भूमिका निभाई है?
(2005)
Answer : आधुनिक भारत में सामाजिक वर्ग सामाजिक संरचना का एक महत्वपूर्ण भाग है सभी कालों में सामाजिक वर्ग सदैव विद्यमान रहा है परन्तु जैसा कि सामाजिक वर्ग हमें आज भारत में दिखता है, उसका प्रादुर्भाव अंग्रेजी शासन में हुआ था। आधुनिक शिक्षा के साथ राज्य एवं प्रशासनिक व्यवस्था का विकास वे अन्य सामाजिक शक्तियां थीं जिन्होंने भारत में नये वर्गों को स्वरूप प्रदान किया।
वास्तव में, अंग्रेजी शासन द्वारा लाई गई नई आर्थिक व राज्य व्यवस्थाओं को, ....
Question : भारत में जनजातीय समुदायों के विशिष्ट लक्षणों की व्याख्या कीजिए। जनजातीय पहचान पर प्रभाव डालने वाले कारकों की विवेचना कीजिए।
(2005)
Answer : जनजातीय समुदाय मूल रूप में बहुत ही समान प्रकृति के होते हैं तथा जिनके पास सरल प्रविधि भी होती है। अधिकतर जनजातियां जीववाद में विश्वास करती हैं, जिसके अनुसार सभी वस्तुओं-चेतन और जड़ में स्थाई या अस्थाई रूप से आत्माएं रहती हैं।अक्सर कोई कार्य इन आत्माओं के कारण होता है। कुछ आत्माओं की पूजा की जाती है और कुछ का आदर किया जाता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि जीववाद जनजातियों में धर्म का ....
Question : जाति की उत्पत्ति के प्रजातीय सिद्धान्त।
(2005)
Answer : जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति को स्पष्ट करने में प्रजातीय आधार को लगभग सभी विद्वानों ने किसी न किसी रूप में अवश्य स्वीकार किया है। एक ओर रिजले और मजूमदार जैसे विद्वान इस कारक को सबसे अधिक महत्व देते हैं, जबकि दूसरी ओर धुरिये, एन.के. दत्त और राय ने प्रजातीय आधार को एक सहयोगी आधार के रूप में ही स्वीकार किया है। विभिन्न विद्वानों के अनुसार जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति में प्रजातीय कारकों के योगदान को इस प्रकार ....
Question : सामाजिक न्याय के लिए एक साधन के रूप में, शिक्षा का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
(2004)
Answer : शिक्षा का एक माध्यम के रूप में तीन उद्देश्यों पर प्रकाश डाला जा सकता हैः
Question : सामंतवाद और अर्ध-सामंतवाद।
(2004)
Answer : सामान्यतः अंग्रेजी के ‘फ्रयुडलिज्म’ शब्द का प्रयोग एक ऐसी कुलीन तंत्रीय, सैनिक तथा धर्म प्रधान राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था के लिए किया जाता है, जिसका मध्ययुगीन यूरोप में प्रभुत्व रहा है। किन्तु इससे मिलती-जुलती व्यवस्था के साक्ष्य जापान में भी पाये गये हैं। इस व्यवस्था के अंतर्गत भूमि का विभाजन छोटी अथवा बड़ी जागीरों के रूप में किया जाता है तो बड़े सामंतों द्वारा छोटे-छोटे जागीरदारों को इस शर्त पर दी जाती है कि ....
Question : भारतीय समाज पर मुसलमानों का प्रभाव।
(2004)
Answer : भारतीय समाज एवं संस्कृति पर मुसलमानों के प्रभाव का एक इतिहास रहा है। इतिहासकार ताराचंद ने अपनी पुस्तक, भारतीय संस्कृति पर इस्लाम का प्रभाव में लिखा है कि इस्लामिक संस्कृति के प्रभाव के कारण दक्षिण भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण आया। एच.पी. श्रीनिवास मूर्ति और एस.यू. कामथ ने भारतीय समाज पर इस्लाम के प्रभाव के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पहलुओं पर प्रकाश डाला है। उनके अनुसार- ‘हिंदू समाज को घोर-जातिवादी और अन्य बनाने में ....
Question : उत्तर भारत में जाति लामबंदी।
(2004)
Answer : उत्तर भारत में जाति लामबंदी वर्तमान राजनीति का एक मुख्य हिस्सा सा बनता जा रहा है। जाति लामबंदी वास्तव में राजनीतिक क्षेत्र में प्रभुत्व स्थापित करने का एक जरिया है। जाति आधारित राजनैतिक दल का निर्माण हो रहा है। हाल के दशकों में उत्तर भारत में यह स्थिति अधिक देखने को मिलती है। विभिन्न राजनैतिक दल भी जाति आधारित समीकरण पर विश्वास करता है। इस प्रवृति ने क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों को जन्म दिया है।
उत्तर भारत ....
Question : मुसलमानों में जाति।
(2003)
Answer : वास्तव में भारत के मुस्लिम समाज में भी जाति के समान समूह मौजूद हैं, अतः जाति व्यवस्था की सांस्कृतिक विशेषताओं की विवेचना मुस्लिम सामाजिक संगठन का रूप समझने के लिए भी की जा सकती है। अपने मूल की शुद्धता के लिए मुस्लिम लोग जात (जाति के समान) शब्द का प्रयोग करते हैं। प्रत्येक जाति, मुस्लिम समाज में अंतर्विवाह की इकाई है। एक गांव में प्रत्येक जाति के घर अपनी सामूहिक अस्मिता को पहचानते हैं और ....
Question : भारत में कृषक समुदायों में अशांति के लिए उत्तरदायी कृषकों का विवरण दीजिए। इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए आप क्या सुझाव देंगे?
(2003)
Answer : ग्रामीण-जीवन की सभी समस्याओं में कृषक असंतोष आज सर्वाधिक गंभीर समस्या है जो कम या अधिक मात्र में देश के सभी क्षेत्रों और अधिकांश ग्रामीण-जीवन से संबद्ध हो गयी है। यह सच है कि ग्रामीण-जीवन की अन्य समस्याएं कृषक असंतोष का आधार हैं लेकिन यह समस्या स्वयं में आज एक ऐसी स्वतंत्र समस्या के रूप में विकसित हुई है।
प्रो. आन्द्रे बिते का विचार है कि ‘कृषक असंतोष ग्रामीण-जीवन की यद्यपि सर्वप्रमुख समस्या है लेकिन अब ....
Question : प्रबल (प्रभु) जातियों के लक्षणों का वर्णन कीजिए। भारतीय ग्रामीण राजनीति में उनकी भूमिका की विवेचना कीजिए।
(2003)
Answer : प्रभु जाति के समानांतर अनेक शब्दों का प्रयोग किया जाता है। इनमें प्रबल जाति, प्रभुता संपन्न जाति, प्रभावी जाति तथा संरक्षक जाति आदि प्रचलित शब्द हैं। यह सभी शब्द एक ग्रामीण समुदाय के अंतर्गत किसी ऐसे जाति समूह का बोध कराते हैं जिसके द्वारा गांव में पारस्परिक संबंधों तथा ग्रामीण एकता को एक बड़ी सीमा तक प्रभावित किया जाता है। प्रभु जाति की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए प्रो. श्रीनिवास के अनुसार एक जाति को ....
Question : जनजातियों में वर्गों का उद्गमन।
(2003)
Answer : एन.के. बोस एवं आंद्रे बेतेई ने जनजातियों का वर्गीकरण का मुख्य आधार भाषा, धर्म एवं पृथकता बतलाया है। बोस ने जनजातीय लोगों को तीन मुख्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया हैः
(1) शिकारी, मछुआरे और संग्रहक (2) झूम कृषक और (3) स्थायी कृषक जो हल और हल खींचने वाले पशुओं को काम में लेते हैं। तीसरी श्रेणी में संथाल, गौंड, भील, उरांव और मुण्डा आदि जनजातियों के लोग हैं। इन जनजातियों के कृषक और गैर-जनजातियों के कृषकों ....
Question : जनजातियों का हिंदू संस्कृति में एकीकरण।
(2002)
Answer : विभिन्न जनजातीय समूहों के नृशास्त्रीय अध्ययनों से पता चलता है कि जनजाति के लोगों के अपने पड़ोसियों के साथ संपर्क के कारण या तो वे आंशिक रूप से अलग हो गए या पूर्णरूप से उनमें घुल-मिल गये। उत्तर भारत की केंद्रीय हिमालय की थारु और खासी जनजातियां पूर्ण रूप से हिन्दुओं के साथ मिल गयीं। इन जनजातियों के लोगों ने हिंदूओं के जाति उपनामों को अपना लिया और जनेऊ भी धारण कर लिया। इन लोगों ....
Question : कश्मीर में हिंदू अल्पसंख्यकों की समस्याएं।
(2002)
Answer : नेहरूजी ने कहा था कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता का परीक्षण इस बात से नहीं होना चाहिए कि बहुसंख्यक वर्ग क्या सोचता है बल्कि इस बात से आंका जाना चाहिए कि अल्पसंख्यक वर्ग कैसा महसूस करता है। वास्तव में कश्मीर मुस्लिम बहुल राज्य हैं जहां पर मुख्यतः हिंदू व सिख अल्पसंख्यक है। कश्मीर में आज नहीं बल्कि भारतीय स्वतंत्रता के प्रति के बाद से लोगों पर अत्याचार एवं हत्याएं आम बात सी हो गयी है। आये दिन ....
Question : ब्राह्मणों के बीच असमानता।
(2002)
Answer : भारतीय समाज विभिन्न जातियों एवं उपजातियों, धर्मों एवं संप्रदायों में विभक्त है। वैसे तो भारतीय सामाजिक संरचना मुख्यतः चार वर्णों में विभक्त है जिसमें ब्राह्मण पहले दूसरे क्षत्रिय, तीसरे वेश्य एवं शूद्र का स्थान चौथे पायदान (क्रम) पर आता है लेकिन इन चारों वर्ण व्यवस्था के अतिरिक्त इनमें भी विभिन्न संस्तरण जिसके आधार पर इनमें नये संबंध बनते हैं और ये एक-दूसरे से अंतर्संबंधित होते हैं।
ब्राह्मण समुदाय के बीच भी विभिन्न प्रकार की जातियां पायी ....
Question : उन तरीकों का परीक्षण कीजिए जिनके द्वारा भारतीय समाज को बहु-सांस्कृतिक समाज के रूप में सुदृढ़ किया जा सकता है। क्या एकल संस्कृति की प्रभाविता भारत में बहु-सांस्कृतिकता के लिए बाधक है?
(2002)
Answer : प्रत्येक संस्कृति में एक एकीकरण सिद्धांत और एक जीवन दर्शन होता है, जो संस्कृति के प्रत्येक पहलू में व्याप्त होता है। किसी संस्कृति विशेष के सांस्कृतिक आदर्श में सामान्य रूप से दो अथवा उससे अधिक इकाइयां होती हैं जहां तक बहु-संस्कृति की बात है, यह वास्तव में कई संस्कृतियों का समूह होता है। इस प्रकार के समाज में सभी समूहों को अपनी-अपनी संस्कृति का संचालन करने का पूर्ण अधिकार होता हैं। ये एक-दूसरे की सांस्कृतिक ....
Question : लुई डुमां की पवित्रता और अपवित्रता की संकल्पना की विवेचना कीजिए। ये संकल्पनाएं हिंदू जाति व्यवस्था की व्याख्या करने में कहां तक प्रासंगिक है?
(2002)
Answer : लुई डुमोंट की पवित्रता और अपवित्रता की अवधारणा उनकी प्रसिद्ध रचना ‘होमो हाइअररकिकस’ में स्पष्ट हुई है। इस पुस्तक के माध्यम से लुई डुमॉ ने भारतविद्या, मानवशास्त्र और उच्च समाजशास्त्रीय सिद्धांतों का बड़ी कुशलता एवं पांडित्यपूर्ण ढंग से समन्वय कर भारतीय जाति व्यवस्था और उसके प्रभावों का सारगर्भित विश्लेषण किया है। वास्तव में डुमॉ ने भारतीय जाति व्यवस्था को संस्तरण के रूप में देखा है। डुमॉ के अनुसार, भारत एक ऐसा धार्मिक समाज है जो ....
Question : हिंदू सामाजिक संगठन के तत्वमीमांसीय और नैतिक आधारों की चर्चा कीजिए।
(2002)
Answer : हिंदू सामाजिक संगठन एक अत्यंत प्राचीन संगठन है। हिंदू सामाजिक संगठन के अंतर्गत बहुत सारी बातें आती है जिसमें हिंदू धार्मिक ग्रंथ, व्यक्ति, परिवार और समाज में अनुसरणीय नैतिक व्यवहारों की चर्चा आती है। जहां तक इस संगठन के तत्वमीमांसीय और नैतिक आधारों की बात है यह वस्तुतः धर्म के समझ से ही स्पष्ट किया जा सकता है। इसका कारण यह है कि तत्वमीमांसीय आधार का मतलब उच्च प्राकृतिक शक्तियों के विश्वास से होता है ....
Question : जाति और भारतीय राजव्यवस्था
(2001)
Answer : जाति एवं भारतीय राजव्यवस्था के बीच वर्तमान समय में अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। रजनी कोठारी ने जाति एवं भारतीय राजव्यवस्था के बीच संबंधों के इस विषय का विश्लेषण करके परीक्षण किया कि जातियों के वोटों के कारण राजनीति व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है। उन्होंने पाया कि तीन कारक शिक्षा, सरकारी संरक्षण और धीरे-धीरे विस्तृत मताधिकार प्रमुख हैं। जाति के राजनीति में संलग्न होने के दो परिणाम हुए-जाति व्यवस्था ने राजनैतिक गतिशीलता के लिए नेतृत्व ....
Question : भारत में कृषकवर्ग संरचना।
(2001)
Answer : यदि हम स्वतंत्रता पश्चात् के भारतीय ग्रामीण वर्ग की संरचना का विश्लेषण करें तो हमें चार वर्ग मिलते हैं: कृषि क्षेत्र में तीन वर्ग हैं, भू-स्वामी, आसामी और मजदूर, जबकि चौथा वर्ग है गैर-कृषि वालों का। ए.आर.देसाई के अनुसार भू-स्वामी लगभग 22 प्रतिशत, आसामी लगभग 27 प्रतिशत तथा श्रमिक वर्ग के 31 प्रतिशत लोग, और 20 प्रतिशत गैर-कृषक हैं। कृषकों का एक बड़ा भाग (60%) सीमान्त किसान होते हैं जिनके पास 2 हेक्टेयर से भी ....
Question : भारतीय परिवार की अस्थिरता के लिए उत्तरदायी कारक कौन से हैं? क्या परिवार आधुनिक समाज में स्थित संकट से उत्तरजीवित रह पायेगा?
(2001)
Answer : भारतीय परिवार का मतलब मुख्य तौर पर संयुक्त परिवार व्यवस्था से लगाया जाता है। भारतीय परिवार को अस्थिर करने में औद्योगीकरण, नगरीकरण, जनसंख्या में वृद्धि, पश्चिम का प्रभाव एवं वर्तमान कानूनों का योगदान मुख्य रूप से रहा है। इस संबंध में बोटोमोर का कहना है कि ‘संयुक्त परिवार का विघटन केवल औद्योगीकरण से संबंधित दशाओं का ही परिणाम नहीं है बल्कि इसका प्रमुख कारण यह है कि संयुक्त परिवार आर्थिक विकास की आवश्यकताओंको पूरा करने ....
Question : भारतीय ईसाइयों में जाति प्रथा।
(2000)
Answer : भारत में अधिकतर ईसाई मूल निवासियों के धर्म परिवर्तन द्वारा बने हुए हैं सन् 1952 में जिन हिंदुओं ने हिंदू धर्म को छोड़कर ईसाई धर्म अपनाया था उन्हें अपनी मूल जाति समूह से अलग होने पर भी विवश होना पड़ा था। लेकिन उन्होंने अपनी जाति की अवस्थिति कायम रखी। उन्होंने उच्च और निम्न जाति के बीच परंपरागत मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं किया जबकि वे ईसाई जीवन के नैतिक नियमों के प्रतिकूल थे। केवल इसी तरीके ....
Question : परंपरागत जाति-व्यवस्था में सामाजिक गतिशीलता के कौन-से साधन उपलब्ध थे? समकालीन भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
(2000)
Answer : जब भी जाति एवं सामाजिक गतिशीलता की चर्चा की जाती है तो अनिवार्यतः भारतीय समाज में परिवर्तन की प्रक्रियाओं का जिक्र होता है। समाजशास्त्रियों का मानना है कि जाति व्यवस्था की बंद प्रकृति के बावजूद जातिगत पदक्रम तथा इसके प्रतिमानों में समय-समय पर परिवर्तन आते रहे हैं। उदाहरण के लिए, वैदिक काल में हिंदू धर्म की सांस्कृतिक रीतियां कालांतर में निषिद्ध हो गयीं। इनमें कुछ रीतियों के अनुसार वैदिक हिंदू धर्म जाति-जैववादी था, वैदिक ब्राह्मण-सोमरस ....
Question : भारत के सुविधावंचित समूहों के लिए संरक्षात्मक भेदभाव नीति की आलोचनात्मक परीक्षा कीजिए। क्या आप इस नीति से किसी परिवर्तन का सुझाव देंगे?
(2000)
Answer : सरंक्षात्मक भेदभाव उन तरीकों में से एक है जिनके आधार पर सरकार सुविधावंचित समूहों के समस्याओं के समाधान हेतु प्रयास करती है। प्रथम, अनेक ऐसे संवैधानिक और अन्य कानूनी प्रावधान हैं जो अस्पृश्यों के प्रति भेदभाव समाप्त करते हैं और उन्हें अन्य नागरिकों के समान ही अधिकार प्रदान करते हैं। द्वितीय, कुछ लाभ केवल अनुसूचित जाति के लोगों को ही उनके योग्य बनाते हैं तथा अन्य लोगों को नहीं, जैसे- छात्रवृत्तियां, ऋण एवं अनुदान आदि। ....
Question : विभिन्न जनजातीय नीतियों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। भारत में जनजातीय विकास के लिए आप कौन-सी जनजातीय नीति का समर्थन करेंगे और क्यों?
(2000)
Answer : अनुसूचित जनजातियों के विकास पर और अधिक ध्यान केंद्रित करने के उद्देश्य से अक्टूबर 1999 के एक अलग जनजातीय कार्य मंत्रालय का गठन किया गया। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से पृथक किया गया यह मंत्रालय अनुसूचित जनजातियों के बारे में नीति निर्धारित करने,योजनाओं में समन्वय स्थापित करने वाला शीर्ष मंत्रालय है।
देश में 194 समन्वित जनजातीय विकास परियोजनाएं चलायी जा रही है, जहां पर प्रखंडों अथवा प्रखंड समूहों की कुछ जनसंख्या में जनजातीय आबादी 50 ....
Question : कृषक समाज।
(1999)
Answer : कृषकों का वह समूह जिसके लिए कृषि आजीविका का मात्र साधन ही नहीं, वरन् उनकी जीवन-शैली का आधार भी होता है, कृषक समाज कहलाता है। कृषकों के लिए कृषि-वृत्ति का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता। वे व्यापार के लिए नहीं, वरन्, उपभोग के लिए खेती करते है। रेडफिल्ड के शब्दों में, ‘वे ग्रामीण व्यक्ति जो पारम्परिक जीवन-शैली के अंग के रूप में जीवनयापन के लिए अपनी भूमि को खुद जोतते हैं एवं जिसका नियंत्रण भी ....
Question : धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग की परिभाषा दीजिए। भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक वर्गों की समस्याओं की विवेचना कीजिए।
(1999)
Answer : अल्पसंख्यक की कोई सर्वस्वीकृत परिभाषा नहीं है। अलग-अलग समाज में इसे अलग-अलग परिप्रेक्ष्य में परिभाषित किया गया है। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र संघ भी इसे परिभाषित करने में विफल रहा है। राष्ट्र संघ घोषणा पत्र में धार्मिक, भाषाई, जातीय अल्पसंख्यकों को अधिकारों का जिक्र है। फिर भी अल्पसंख्यक वर्ग को इस प्रकार समझा जा सकता है- किसी समुदाय में सरलता से पहचाने जाने वाला ऐसा कोई भी प्रजातिक, धार्मिक अथवा नृजातीय समूह जो पूर्वाग्रहों ....
Question : शहरी मध्यम वर्ग के बढ़ते विस्तार के कारणों और परिणामों का परीक्षण कीजिए।
(1998)
Answer : किसी समाज का आर्थिक तथा सामाजिक स्तरीकरण की व्यवस्था का वह भाग जिसका स्तर न हो अत्यधिक निम्न होता है और न ही अत्यधिक ऊंचा। यह सामाजिक वर्ग, कुलीन वर्ग तथा सर्वहारा द्वारा बने सामाजिक माप के दो छोर बिंदुओं के मध्य में स्थित होता है। इस वर्ग में मुख्यतः सफेदपोश तथा निम्न प्रबंधकीय व्यवसायों में कार्यरत व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है।
ब्रिटिश शासनकाल में भारत में जिन सामाजिक वर्गों का उदय हुआ वे इस ....
Question : धार्मिक अल्पसंख्यक वर्गों के संवैधानिक रक्षा-उपायों का विवेचन कीजिए और भारत में बढ़ते धार्मिक रूढि़वाद के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
(1998)
Answer : भारत में अल्पसंख्यकों को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में बांटा गया है- (क) धार्मिक अल्पसंख्यक, (ख) भाषाई अल्पसंख्यक एवं (ग) जनजातीय अल्पसंख्यक। लगभग सभी देशों में धर्म एवं भाषा के आधार पर अल्पसंख्यक समूहों को मान्यता प्रदान की गई है। धार्मिक अल्पसंख्यक वर्गों के संवैधानिक रक्षा उपायों हेतु अनेक प्रयास किये गए हैं। भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए अनेक प्रावधान किये गये हैं। संविधान के अनुच्छेद 14, 15 व ....