Question : '' संघीय राज्य में संप्रभु की खोज एक असंभव साहसिक कार्य है।'' (लास्की)
(2005)
Answer : लास्की का विचार है कि राज्य वस्तुतः वर्ग शक्ति, वर्ग-प्रभुत्व या वर्ग शोषण का साधन नहीं है। यदि यथार्थ जगत में ऐसा कोई राज्य विद्यमान है तो वह राज्य का विकृत रूप है। एक सच्चे उदारवादी होने के नाते लास्की स्वयं राज्य को सर्वगुण संपन्न संस्था नहीं मान लेता है, जैसा कि हीगेल के आदर्शवादी सिद्धांत के अंतर्गत माना गया था। ‘द स्टेट इन थ्योरी एंड प्रैक्टिस’ के अंतर्गत लास्की ने राज्य के मूल्यांकन के ....
Question : ''मार्क्स के अनुसार, राजनीति का मूल, राज्य में निहित नहीं है; वह तो संस्था की तह में स्थित समाजिक दशाओं में निहित है, अर्थात् जीवन की भौतिक दशाओं में, जैसी कि वे उत्पादन की रीतियों में प्रतिबंधित होती है।'' टिप्पणी कीजिए।
(2005)
Answer : राजनीति का संबंध मनुष्यों के सार्वजनिक जीवन से है। यह एक ऐसा विषय है जिसका सरोकार संपूर्ण समुदाय से है। राजनीति के आधुनिक दृष्टिकोण के अंतर्गत इसे एक सामाजिक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है। आधुनिक युग में विभिन्न समूहों को भी राजनीति का अंग माना जाता है केवल राज्य ही इसके विषय नहीं हैं। सार्वजनिक निर्णयों में संपूर्ण समाज के भिन्न-भिन्न वर्गों की अपनी भूमिका होती है।
मार्क्स के अनुसार राजनीतिक संस्थाएं और गतिविधियां ....
Question : ''लोकतांत्रिक थियोरी आत्म-निर्धारण, मानव अधिकार और समाजिक न्याय की पूर्वमान्यताओं को लेकर चलती है।'' मो.क. गांधी का विशेष हवाला देते हुए इस पर चर्चा करें।
(2005)
Answer : प्रत्येक सामाजिक तथा राजनीतिक दर्शन मानव स्वभाव एवं सामाजिक संगठन के कुछ तथ्यों को आधार तत्व मानकर चलता है। लोकतंत्रवाद की दृष्टि में ऐसा एक तथ्य यह है कि मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है जो अपनी उन्नति करने और समस्या सुलझाने में बुद्धि से काम लेता है। लोकतंत्रवादियों का विश्वास है कि मनुष्य व्यक्तिगत एवं सामाजिक रूप से बराबर संपूर्णता की ओर बढ़ रहा है। यदि मनुष्य प्रगतिशील है तो वह अवश्य ही अपने आपको ....
Question : क्या आप इस विचार से सहमत हैं कि उदारवादी थियोरियां ‘परमाणुवाद’ पर आधारित हैं, जबकि समुदायवादियों की एक ‘सामाजिक स्थापना’ होती है? अपनी तर्क-रेखा प्रस्तुत कीजिए।
(2005)
Answer : उदारवाद राजनीति का ऐसा सिद्धांत है जो व्यक्ति को यथासंभव अधिकतम स्वतंत्रता प्रदान करके सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देना चाहता है। इस सिद्धांत के शुरूआती दौर में इसके प्रतिपादक व्यक्ति को राजनीति का केंद्र बताते हुए व्यक्तिवाद को अपनाया परंतु धीरे-धीरे इसने राजनीति समूहों की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए बहुलवाद को अपना लिया। ये बदलती हुई परिस्थितियों में नई चुनौतियों को सामना करने हेतु नये-नये विचारों को अपनाता चला गया। इसने मुक्त बाजार ....
Question : ''किसी मानव की कार्य-स्वतंत्रता में, व्यक्तिगत रूप से या सामूहिक रूप से, हस्तक्षेप करने में मानव जाति के जिस एकमात्र उद्देश्य को औचित्यपूर्ण ठहराया जा सकता है, वह है आत्मरक्षा'' (जे.एस. मिल)
(2005)
Answer : जे.एस. मिल व्यक्तिवाद एवं स्वतंत्रता का महान प्रवर्तक माना जाता है। उसने समय के अनुरूप स्वतंत्रता की संकल्पना को नया रूप दिया। मिल का विश्वास था कि सामाजिक एवं राजनीतिक प्रगति बहुत हद तक व्यक्ति की मौलिकता और ऊर्जा पर आश्रित है। साथ ही मानव व्यक्तित्व के विकास के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता सर्वथा आवश्यक है।
मिल ने व्यक्ति स्वातंत्र्य के दो पहलुओं पर बल दिया है-विचार स्वातंत्र्य और कार्य स्वातंत्र्य। मिल के द्वारा विचार और अभिव्यक्ति ....
Question : ''उनके (अधिकारियों के) गबन के तरीके चालीस हैं।'' (कौटिल्य)
(2005)
Answer : कौटिल्य का राज्य बहुत सीमा तक एक कल्याणकारी राज्य है और उसने प्रशासनिक व्यवस्था का विषद विवेचना किया है। कौटिल्य के अनुसार प्रशासनिक कार्य अत्यंत योग्य अधिकारियों द्वारा किया जाना चाहिए और राजा द्वारा इन अधिकारियों के कार्यों तथा चरित्र पर कड़ी निगरानी रखी जानी चाहिए, जिससे वे अपने पद तथा अधिकारों को भ्रष्ट तरीके अपनाकर दुरूपयोग न करें और राज्य की आय तथा प्रजा के कल्याण को आघात पहुंचाकर स्वयं अपनी स्वार्थसिद्धि में न ....
Question : ''राज्य बृहत् स्वरूप में व्यक्ति ही है।'' (प्लेटो)
(2005)
Answer : अपने आदर्श राज्य का चित्रण करते हुए प्लेटो व्यक्ति तथा राज्य के बीच एक स्पष्ट साध्श्यता खड़ा कर देता है। उनका कथन था कि राज्य मानव मानस का प्रतिरूप है और जिस प्रकार एक आदर्श मानव में सत्, रज तथा तम गुणों का मेल होना चाहिए, उसी प्रकार एक आदर्श राज्य में, इन तीनों गुणों का सामंजस्य और सतोगुण की अन्य गुणों पर प्रधानता होनी चाहिए यह एक शाश्वत सत्य है।
प्लेटो न्याय के दो रूपों ....
Question : प्लेटो के साम्यवाद की व्याख्या कीजिए तथा आधुनिक साम्यवाद से उसकी तुलना कीजिए।
(2004)
Answer : प्लेटो ने न्याय की खोज करते-करते जहां एक ओर दार्शनिक राजाओं के शासन के विलक्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया, वहां दूसरी ओर उसने उससे कहीं अधिक विलक्षण तथा चकित कर देने वाला सम्पति तथा पत्नियों के साम्यवाद का सिद्धांत भी प्रस्तुत किया है। प्लेटो के आदर्श राज्य की स्थापना निर्लिप्त बुद्धि तथा विशुद्ध विवेक से सम्पन्न परम सत्य के ज्ञाता दार्शनिकों के संरक्षण में ही हो सकती है, लेकिन शासकों की बुद्धि तथा विवेक भ्रष्ट ....
Question : ''समाज संघात्मक है, सत्ता भी संघात्मक होनी चाहिए'' (लास्की)
(2004)
Answer : लॉस्की का राजनीतिक चिंतन बहुलवाद तथा श्रेणी समाजवाद से मार्क्सवाद और मार्क्सवाद से प्रजातांत्रिक समाजवाद की दिशा में एक प्रयास है। उसने राज्य और समाज में विभेद स्थापित करते हुए राज्य की तुलना में समाज की सत्ता का सर्वोच्च माना है। लॉस्की के अनुसार व्यक्ति का सर्वोच्च नैतिक कर्तव्य अपने व्यक्तित्व का विकास करना है लेकिन संप्रभुता की परंपरागत धारणा राज्य को चरम साध्य और व्यक्ति को साधन आज बना देती है और यह स्थिति ....
Question : ''मिल खोखली स्वतंत्रता तथा अमूर्त व्यक्ति का मसीहा था'' (बार्कर)
(2004)
Answer : मिल ने अपने स्वतंत्रता संबंधी सिद्धांत का प्रतिपादन और समर्थन दो प्रकार के दार्शनिक आधारों पर किया है। प्रथम व्यक्ति की दृष्टि से और दूसरा समस्त समाज की दृष्टि से। मिल का मानना है कि सामाजिक एवं राजनीतिक प्रगति बहुत हद तक व्यक्ति की मौलिकता एवं ऊर्जा पर आधारित है। इसलिए उसने व्यक्तिगत स्वतंत्रता की वकालत की। मिल का ये विचार है कि बहुमत के दृष्टिकोण को किसी व्यक्ति पर थोपा नहीं जा सकता है। ....
Question : ''हाॅब्स एक व्यक्तिवादी की तरह आरंभ करता है लेकिन एक निरंकुशतावादी की तरह अंत करता है।''
(2004)
Answer : हॉब्स ने जहां एक ओर निरंकुश तथा असीमित संप्रभुता का प्रतिपादन किया है, वहीं दूसरी ओर उसकी विचारधारा में व्यक्तिवाद के स्पष्ट और प्रबल दर्शन होते हैं। डर्निग ने इस संबंध में लिखा है कि हॉब्स के सिद्धांत में राज्य की शक्ति का उत्कर्ष होते हुए भी उसका मूल आधार पूर्ण रूप से व्यक्तिवादी है। वह सब व्यक्ति की प्राकृतिक समानता पर उतना ही बल देता है जितना कि मिल्टन या अन्य किसी क्रांतिकारी विचारक ....
Question : भारतीय परंपरा के चार पुरूषार्थ
(2004)
Answer : प्राचीन भारतीय राजनीति चितंन को हिंदू राजनीति चिंतन की संज्ञा दी जाय तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। प्राचीन भारत के संपूर्ण चिंतन एवं दर्शन में आत्मा और परमात्मा जैसे अधिभौतिक विषयों में गहरी अभिरूचि का परिचय मिलता है। हिंदू धर्म के अंतर्गत मानव जीवन के चार पुरूषार्थ माने गये जो मानव जीवन के चार साध्य भी हैं। ये हैं- धर्म (virtue) अर्थ (wealth), काम (Pleasure) और मोक्ष (Emancipation)।
धर्म का विवेचन धर्मशास्त्र में किया गया है। अर्थ ....
Question : क्या ग्राम्शी उपरी संरचनाओं का सिद्धांत-वेत्ता है? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
(2004)
Answer : एंटोनियो ग्राम्शी चिरसम्मत मार्क्सवाद की अनेक मान्यताओं को अस्वीकार करते हुए बुर्जुआ राज्य का नया विश्लेषण प्रस्तुत किया है। यह मार्क्सवादी चिंतन में नये मोड़ का संकेत देता है। यह मार्क्सवाद की कुछ पुरानी मान्यताओं से अलग दूसरी दिशा में सोचने का ढंग है। चिरसम्मत मार्क्सवाद यह मानता है कि जब उत्पादन की शक्तियां इतनी विकसित हो जाती हैं तो प्रचलित उत्पादन संबंध उन्हें संभाल नहीं पाते हैं तथा क्रांति हो जाती है इसके फलस्वरूप ....
Question : हीगेल के द्वंद्वात्मक आदर्शवाद के सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
(2004)
Answer : हीगेल का विचार है कि सभी समाजिक परिवर्तन और विकास परस्पर विरोधी तत्वों के संघर्ष का परिणाम है। अर्थात् परस्पर विरोधी विचारों या विचारों में अंर्तविरोध या द्वंद्व ही संपूर्ण समाज की प्रगति की कुंजी है। इस वैचारिक पद्धति को द्वंद्वात्मक पद्धति कहा जाता है।
हीगेल के द्वंद्व सिद्धांत को वास्तव में एक क्रांतिकारी सिद्धांत कहा जा सकता है। इस द्वंद्वात्मक सिद्धांत पर आधारित आदर्शवादी दर्शन ने हीगेल को राजनीतिक चिंतन में महत्वपूर्ण स्थान दिलवाया। द्वंद्वात्मक ....
Question : ''प्लेटो का ‘शिक्षा सिद्धांत’ उसके न्याय सिद्धांत का तार्किक परिणाम है।'' विवेचना कीजिए।
(2004)
Answer : प्लेटो तत्कालीन यूनानी नगर राज्यों, मुख्यतया एथेन्स एवं स्पार्टा में प्रचलित शिक्षा प्रणाली से प्रभावित था। उसने दोनों राज्यों में प्रचलित शिक्षा व्यवस्था के तत्वों को लेकर जिस शिक्षा व्यवस्था की योजना निर्मित की है उसके व्यक्तिक एवं समाजिक दोनों रूप हैं। शिक्षा के ये दोनों रूप प्लेटो के न्याय सिद्धांत से संगति रखते हैं।
प्लेटो के न्याय सिद्वांत के अनुसार मानवीय जीवन के तीन नैसर्गिक तत्व, विवेक, साहस, और तृष्णा है। इन तीनों नैसर्गिक तत्वों ....
Question : मनुष्यों के नागरिक समाज में सम्मिलित होने का उनका उद्देश्य अपनी सम्पति का परिरक्षण करना होता है।(लॉक)
(2003)
Answer : सामाजिक समझौता सिद्धान्त का मुख्य प्रतिपादक लॉक को माना जाता है। समझौता क्यों? लॉक कहता है कि प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य के पास तीन अधिकार थे- जीवन, संपति तथा स्वतंत्रता का अधिकार। जब कुछ लोग इन अधिकारों का हनन करने लगे तब समाज में असुरक्षा की भावना के तहत समझौता सिद्धांत प्रकाश में आया। लॉक ने सम्पति को बहुत महत्व दिया है और सम्पति की सुरक्षा का ही विचार उसे नागरिक समाज स्थापित करने पर ....
Question : मैकियावेली का राजनीतिक दर्शन संकीर्ण रूप से स्थान विशेष और समय विशेष के लिये था। सेबाइन
(2003)
Answer : मैकियावेली के राजनीतिक विचारों में उसके अपने युग और देश की परिस्थितियों का प्रभाव इतना स्पष्ट लक्षित होता है कि डब्ल्यू.ए. डनिंग ने उसे ‘अपने युग का संतान’ माना है। मैकियावेली की रचनाएं ‘लिवी पर वार्ता’ और ‘द प्रिंस’ में निहित एक-एक विचारों के पीछे मैकियावेली के अपने युग और उसके अपने जीवन के अनुभवों की छाप ढूंढना कठिन नहीं है। समय के साथ-साथ देश या स्थान का प्रभाव भी मैकियावेली पर इतना गहरा दिखाई ....
Question : ‘अब तक के समस्त सामाजिक जीवन का इतिहास वर्ग-संघर्ष का ही इतिहास है।’ कार्ल मार्क्स समीक्षा कीजिए।
(2003)
Answer : मार्क्सवाद का कार्ल जनक, जिसने समाज की ऐतिहासिक व्याख्या करके समाज को आर्थिक स्वरूप प्रदान करके नया रूप दिया और बताया कि समस्त सामाजिक जीवन का इतिहास वर्ग संघर्ष का ही इतिहास है।
कार्ल मार्क्स ने अपनी विचारधारा में वर्ग संघर्ष की धारणा को विशेष महत्व प्रदान किया है। वर्ग संघर्ष के बारे में ‘साम्यवादी घोषणा पत्र’ में कहा है कि अब तक के समाजिक जीवन का इतिहास वर्ग संघर्ष का ही इतिहास है। मार्क्स के ....
Question : हन्ना आरेण्ट के राजनीतिक दर्शन की व्याख्या कीजिए।
(2003)
Answer : जहां बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में अनेक विचार संप्रदायों ने विशेषतः प्रत्यक्षवादियों, नव प्रत्यक्षवादियों और तार्किक प्रत्यक्षवादियों ने राजनीतिक सिद्धांत को प्रायः मृत घोषित कर दिया था, वहीं, समकालीन उदारवादी सिद्धांत और समकालीन मार्क्सवादी सिद्धान्त से जुड़े हुए विचारों के आलावा ऐसे अनेक राजनीतिक दार्शनिक उभर कर सामने आये, जिन्होंने स्वतंत्रता, सर्वाधिकार वाद, क्रांति, शक्ति, सत्ता, नेतृत्व, प्रतिनिधित्व, वैधता और प्रगति इत्यादि ढेर सारी समस्याओं का विश्लेषण मौलिक ढंग से प्रस्तुत किया। इन विचारकों में ....
Question : ‘इच्छा, न कि बल, राज्य का आधार है।’
(2002)
Answer : ग्रीन का स्थान उन उदारवादियों में सर्वप्रथम है, जिन्होंने समाज की अपेक्षा व्यक्ति को अधिक महत्व दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि समाजिक जीवन में महत्वपूर्ण भाग अदा करने से ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास हो सकता है। ग्रीन का उदारवादी दर्शन का केंद्र सामाजिक हित रहा है, जो राज्य द्वारा बनाये जाने वाले कानून का मापदंड निर्धारित करते हैं। ग्रीन के अनुसार उदारवादी राज्य का कार्य एक स्वतंत्र समाज की स्थापना करना ....
Question : ‘जहां तक राष्ट्रीय घटनाओं के निर्णयन की बात है, उनका निर्णयन ‘शक्ति-संभ्रात वर्ग’ ही करता है।’(सी. राइटमिल्स)
(2002)
Answer : सी राइट मिल्स ने बर्नहम की इस मान्यता को अस्वीकार कर दिया है कि अभिजन वर्ग की राजनीतिक शक्ति का स्रोत आर्थिक शक्ति या उत्पादन पर नियंत्रण है। मिल्स ने शक्ति को केंद्रबिंदु मानते हुए अभिजन सिद्धांत की व्याख्या की है। उसने ‘शक्ति अभिजन’ की अवधारणा को आगे बढ़ाया है। ‘शक्ति-अभिजन’ को पारिभाषित करते हुए उसने कहा कि शक्ति अभिजन वह है जो आदेशात्मक पदों पर पदस्थापित होता है। उसने अमेरिका के अभिजन वर्ग को ....
Question : ‘अधिकार का यथार्थ स्त्रेत कर्त्तव्य है। यदि हम सब अपने-अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें, तो अधिकार आसानी से प्राप्त हो जायेंगे’।(मो.क. गांधी)
(2002)
Answer : गांधीजी का सम्पूर्ण जीवन इस बात की धुरी पर हमेशा घूमता रहता था कि व्यक्ति को अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करना चाहिए, न कि अधिकारों की चिंता। अधिकार कर्त्तव्यों की पूर्ति के अनुगामी हैं। वास्तव में, अधिकारों का वास्तविक स्रोत कर्त्तव्यों में ही निहित है। कर्त्तव्यों को छोड़कर अधिकारों के पीछे भागना मृग-मरीचिका के समान है। इनके अनुसार, अधिकारों के पीछे जितना दौडे़ंगे, उतने ही अधिकारो से दूर होते जायेंगे। गांधीजी ने इस अधिकार एवं ....
Question : ‘राज्य का अस्तित्व प्राकृतिक है और वह व्यक्ति का पूर्वगामी है।’(अरस्तू)
(2002)
Answer : प्राचीन काल से ही विद्वानों ने राज्य से संबंधित विभिन्न तथ्यों को उजागर करने का प्रयास किया है, जिसमें से राज्य के उद्देश्य और औचित्य का विवेचन, राज्य की आवश्यकता, युक्ति-संगत आधार तथा राज्य को मानव-जीवन के लिए अपरिहार्य मानना प्रमुख है। यूनान के प्राचीन दार्शनिक प्लेटो और अरस्तु ने राज्य के औचित्य की व्यापक व्याख्या प्रस्तुत की है। उन्होंने राज्य को प्राकृतिक, स्वाभाविक तथा सर्वश्रेष्ठ संगठन बतलाया। उनके अनुसार राज्य उसी प्रकार प्राकृतिक संस्था ....
Question : एम.एन. रॉय की मार्क्सवादी उग्र-मानववाद तक की वैचारिक यात्र का विश्लेषण कीजिए।
(2002)
Answer : एम.एन. रॉय का दर्शन एक राजनीति नेता के रूप में उनके विकास के साथ-साथ विकसित होता है। रॉय ने एक ‘रोमांटिक क्रांतिवादी’ के रूप में शुरुआत की और मार्क्सवाद के विस्तृत ढांचे से होते हुए अंत में एक ऐसी स्थिति में पहुंचे, जहां उन्होंने उग्र- मानववाद या नव-मानववाद का मौलिक राजनीतिक विचार प्रस्तुत किया।
एक मार्क्सवादी के रूप में रॉय का जीवनकाल 1917 से 1946 तक रहा, जिसमें प्रारंभिक चरण में अर्थात् 1917 से 1930 तक ....
Question : प्राकृतिक अधिकारों से सामूहिक एवं पर्यावरणीय अधिकारों तक, मानव-अधिकारों के सिद्धांतों के विकास की विवेचना कीजिए।
(2002)
Answer : यह सिद्धांत अत्यंत प्राचीन है। इसके अनुसार मनुष्य के अधिकार प्राकृतिक हैं और उन्हें जन्मसिद्ध भी कहा जा सकता है। अधिकारों के प्राकृतिक सिद्धांतों के अनुसार मनुष्य अपने अधिकारों का उसी तरह मालिक है, जैसे अपने हाथ, पांव, आंख आदि का। आशीर्वाधम् ने सही ही कहा है ‘वे उसी प्रकार मनुष्य की प्रकृति के भाग हैं, जिस प्रकार उसकी खाल का रंग।’ वे स्वयंसिद्ध हैं, निरपेक्ष हैं, पूर्ण सामाजिक हैं और जन्मजात हैं। ये अधिकार ....
Question : राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन में ‘आदर्शक बनाम आनुभाविक बहस’ में प्रयुक्त तर्कों का परीक्षण कीजिए।
(2002)
Answer : राजनीतिक विज्ञान के परंपरागत और आधुनिक उपागमों में बुनियादी अंतर क्या है, यह जानने के लिए प्रारंभ में आदर्शक और आनुभाविक उपागमों में अंतर करना जरूरी है। आनुभविक उपागम के अन्तर्गत केवल उन तथ्यों से सरोकार रखते हैं जो हमारी अनुभव और निरीक्षण पर आधारित हो और उन्हीं निष्कर्षो पर विश्वास करते हैं, जिनका सत्यापन किया जा सके।
अतः इसमें तथ्यों के वर्णन को प्राथमिकता दी जाती है और उन्हें ‘सत्य’ या ‘असत्य’ की कसौटी पर ....
Question : सिद्धांतवाद की परिभाषा दीजिए। ‘सिद्धांतवाद का अंत’ विषयक बहस की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
(2001)
Answer : राजनीति सिद्धांत के अंतर्गत सिद्धांतवाद का विश्लेषण दो स्तरों पर किया जाता है। (1) ऐसे विचारों का समुच्चय जिनमें कोई समूह आस्था और विश्वास रखता है। (2) सिद्धांतों का विज्ञान जिसमें यह पता लगाते हैं कि सिद्धांतों और विश्वासों का निर्माण कैसे होता है। उनमें विकृतियां कैसे पैदा होती हैं और उन विकृतियों से बचाव तथा सच्चा ज्ञान प्राप्त करने की संभावना क्या है।
सिद्धांतवाद का अर्थ है किसी समाज या समूह में प्रचलित उन विचारों ....
Question : आधुनिक भारतीय राजनीतिक विचारधारा के प्रमुख घटक क्या हैं? गांधीजी और एम.एन. राय के संदर्भ में उसकी समीक्षा कीजिए।
(2001)
Answer : आधुनिक भारतीय सामाजिक एवं राजनीति चिंतन को वर्गीकृत करना सरल नहीं है क्योंकि प्रत्येक विचारक ने राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं पर अपने व्यक्तिगत विचार प्रस्तुत किये हैं। उनके द्वारा प्रतिपादित विचारों में कड़ी परंपरा एवं आधुनिकता का सम्मिश्रण है, तो कहीं पर इनका परस्पर विरोधी संघर्ष भी है। आधुनिक भारतीय समाजिक एवं राजनीतिक चिंतन का घटक निम्नांकित रूप में निर्धारित किया जाता है।
दूसरी विचारधारा में आधुनिक भारतीय सामाजिक एवं राजनीतिक चिंतन के उन विचारकों ....
Question : सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व के संदर्भ में राज्य विषयक मार्क्सवादी सिद्धांत की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
(2001)
Answer : राज्य का वर्ग-सिद्धांत मार्क्सवाद से जुड़ा हुआ है। इसके अनुसार, राज्य न तो प्राकृतिक संस्था है, न ही भौतिक संस्था है। जैसा कि राज्य का आंशिक सिद्धांत मानता है, यह एक कृत्रिम उपकरण है। परंतु यंत्रीय सिद्धांत की मान्यताओं के विपरीत राज्य का वर्ग सिद्धांत को न तो जनसाधारण की इच्छा की अभिव्यक्ति मानता है न परस्पर विरोधी हितों के सामंजस्य का साधन स्वीकार करता है। इसके अनुसार राज्य उस समय अस्तित्व में आता है ....
Question : ‘शक्ति के मानचित्र’ के रूप में संविधान।
(2001)
Answer : किसी देश का संविधान उसकी राजनीतिक व्यवस्था का वह बुनियादी सांचा-ढांचा निर्धारित करता है जिसके अंतर्गत उसकी जनता शासित होती है। यह राज्य की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे प्रमुख अंगों की स्थापना करता है और उनकी शक्तियों की व्याख्या करती है और उनके दायित्वों का सीमांकन करता है और उनके पारस्परिक तथा जनता के साथ संबंधों का विनियमन करता है। किसी देश के संविधान को ऐसी आधार विधि भी कहा जा सकता है जो ....
Question : इस कथन की विधि मान्यता कि गांधीवादी सिद्धांतों में सबसे प्रमुख है- अहिंसा सत्य का पालन और धर्म की गरिमा।
(2001)
Answer : गांधीवादी सिद्धांतों में अहिंसा, सत्य का पालन और धर्म की गरिमा मूलरूप से समाहित है और इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। जब हम स्वतंत्रता के लिए इच्छुक थे और अंग्रेजी सरकार का बहिष्कार कर रहे थे तो इस समय भी गांधीवादी विचारधारा के लोग सत्य, अहिंसा और धर्म की गरिमा को अच्छी तरह समझते हुए उसका पालन करते थे। वो यह बात का सूचक है कि गांधीवादी विचारधारा के लोग सत्य, ....
Question : राजनीति सिद्धांत के अध्ययन के लिए सांदर्भिक दृष्टिकोण की प्रासंगिता।
(2001)
Answer : वास्तव में सांदर्भिक दृष्टिकोण, राजनीति सिद्धांत के अध्ययन का कोई विशेष एवं प्रमुख दृष्टिकोण के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है। सांदर्भिक दृष्टिकोण का मूल तात्पर्य यह है कि किसी परिस्थिति को कर्ता के आधार पर विचार करना। अतः यह दृष्टिकोण किसी भी प्रकार के ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक तथ्यों को अस्वीकार करता है। यह मुख्य रूप से यर्थाथता पर ध्यान केंद्रित करता है। जैसा कि हम जानते हैं कि राजनीति विज्ञान में हम शक्ति ....
Question : ‘मैं उस प्रत्येक राज्य को नाम देता हूं जो विधि द्वारा शासित हैं, भले ही उसके प्रशासन का रूप कुछ भी हो।’ -रूसो
(2000)
Answer : रूसो के सामाजिक समझौते सिद्धांत द्वारा जिस राजनीतिक समाज का जन्म होता है उसके अंतर्गत किन्हीं व्यक्तियों का शासन नहीं वरन् विधि का शासन स्थापित होता है। रूसो, हॉब्स या लॉक की तरह इस बात को स्वीकार नहीं करता कि प्राकृतिक अवस्था में किसी प्रकार के प्राकृतिक नियम या प्राकृतिक विधियां प्रचलित थीं। उसके अनुसार विधि का अस्तित्व तो राजनीतिक समाज में ही संभव है। सामाजिक समझौते के पश्चात सामान्य इच्छा द्वारा संवैधानिक विधियों का ....
Question : ‘शक्ति अपने में एक साध्य है और वह उन साधनों की खोज करता है जो शक्ति के अर्जन, प्रतिधारण और विस्तार के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त है और इस प्रकार वह शक्ति को नैतिकता, आचारनीति, धर्म और तत्वमीमांसा से पृथक कर देता है।’-मैकियावेली एवं एस्बेस्टाइन
(2000)
Answer : मैकियावली की मानव स्वभाव संबंधित विचारधारा निश्चित रूप से अत्यधिक त्रुटिपूर्ण है। प्रथमतः मैकियावली की मानव स्वभाव संबंधित धारणा न केवल एकांगी है। मैकियावली की मानव स्वभाव संबंध धारणा न केवल एकांगी वरन् सतार्किक और अवैज्ञानिक भी है। वह मानव स्वभाव संबंधित अपने निष्कर्षों पर मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर नहीं पहुंचती है और न ही वह हॉब्स के समान मानव स्वभाव संबंधी दोषों को तर्क के आधार पर सिद्ध करने का प्रयास किया है। ....
Question : सामाजिक न्याय प्राप्त करने का रौलसीय लक्ष्य किस सीमा तक सांस्कृतिक, धार्मिक और वैचारिक समूहों के बीच आधारवादी मतैक्य पर निर्भर करता है?
(2000)
Answer : समकालीन उदारवादी चिंतन के अंतर्गत प्रगति बनाम न्याय के विवाद में डेयक ने प्रगति का पक्ष लेते हुए न्याय की अवहेलना की है। इसके विपरीत जॉन रॉल्स (1921) ने अपनी विख्यात कृति ‘ए थ्योरी ऑफ जस्टिस’ के अंतर्गत यह तर्क दिया कि उत्तम समाज में अनेक सद्गुण अपेक्षित होते हैं। उनमें न्याय का स्थान सर्वप्रथम है। न्याय, उत्तम समाज की आवश्यक शर्त है। परंतु यह इसके लिए पर्याप्त नहीं है। किसी समाज में न्याय के ....
Question : ‘जब तक दार्शनिक नरेश नहीं को जाने या इस संसार के नरेश और राजकुमार दर्शन की भावना और शक्ति से ओत-प्रोत नहीं हो जाते, तब तक शहरों को बुराई से कभी भी राहत नहीं मिलेगी।’ -प्लेटो
(2000)
Answer : प्लेटो के संपूर्ण राजनीतिक दर्शन में सर्वाधिक भौतिक धारणा दार्शनिक राजाओं का शासन है। किंतु उसने तत्कालीन राजनीतिक समाज की जो बुराइयां देखीं, उससे वह राजनीति से विमुख हो गया और उसने स्वयं राजनीतिक जीवन व्यतीत करने की अपेक्षा राजनीति से अलग रहते हुए राजनीतिक जीवन की बुराइयां को दूर करने के उपायों पर विचार किया। यद्यपि प्लेटो सामान्यतः एक ही दार्शनिक राजा का शासन स्थापित करने के पक्ष में है। किंतु उसका विचार है ....
Question : ‘उत्तर व्यवहारवाद व्यवहारात्मक क्रांति का नकार नहीं है, वरन केवल उसका संशोधक है।’ यह राजनीति विज्ञान के विषय की प्रतिष्ठा को ऊपर उठाने का किस प्रकार एक प्रयास है।
(2000)
Answer : व्यवहारवाद राजनीति के अध्ययन का एक आधुनिक उपागम है। इस उपागम के सूत्रपात से राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में ऐसा युगांतरकारी परिवर्तन आ गया। इसे व्यवहारवादी क्रांति की संज्ञा दी जाती है। यह बात ध्यान देने की है कि प्रणाली विश्लेषण और संरचनात्मक, कृत्यात्मक विश्लेषण जैसे सिद्धांत तो स्वयं राजनीति की व्याख्या देने का प्रयत्न करते हैं। परंतु व्यवहार स्वयं राजनीति की कोई व्याख्या नहीं देता। यह केवल राजनीति के जन्म का ढांचा प्रस्तुत करता ....
Question : आधुनिक बहुलवादी लोकतंत्रों ने राष्ट्र राज्य के ताने-बाने पर एक बड़ा खतरा पैदा कर दिया है। चर्चा कीजिए।
(2000)
Answer : लोकतंत्र का बहुलवादी सिद्धांत इसके विशिष्ट वर्गवादी सिद्धांत के साथ निकट से जुड़ा है। जोसेफ शुंपीटर और रेमोदं आरों जैसे विचारकों ने उदार समाज में विशिष्ट वर्गों की बहुलता की चर्चा की थी। इस दृष्टि से उसके चिंतन में लोकतंत्र के बहुलवादी सिद्धांत का संकेत मिलता है।
इधर कुछ विचारकों ने लोकतंत्र के बहुलवादी सिद्धांत को नये ढंग से प्रस्तुत किया है। उन्हें प्रायः समूह सिद्धांतों का व्यक्ति माना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार, उदार ....
Question : हमारा विश्वास है कि सिद्धांतः समाज के प्रत्येक व्यक्ति की न्याय पर आधारिक अपनी अनुलंघनीयता होती है। (रॉल्स)
(1999)
Answer : जान रॉल्स ने अपनी पुस्तक ‘ए थ्योरी ऑफ जस्टिस’ में प्रक्रियात्मक न्याय और सामाजिक न्याय के सिद्धांत को मिलाकर न्याय के व्यापक सिद्धांत की स्थापना का प्रयत्न किया है। रॉल्स मानते हैं कि प्रत्येक स्वतंत्रता और विवेकशील मनुष्य जो अपने हितों की अभिवृद्धि के इच्छुक हैं, समानता मूल स्थिति में, समाज की संरचना करने में, स्वीकार करेंगे। इसे और स्पष्ट करते हुए रॉल्स कहता है कि ‘हमारा विश्वास है कि सिद्धांततः समाज के प्रत्येक व्यक्ति ....
Question : सर्वप्रथम किसी को व्यक्तिगत स्वतंत्रता, संपत्ति या किसी वस्तु से जो विधि के अंतर्गत उसकी है, वंचित करना प्रायः अन्यायपूर्ण माना जाता है। (सर जॉन स्टॅअर्ट मिल)
(1999)
Answer : जॉन स्टुअर्ट मिल ने अपनी पुस्तक ‘ऑन लिबर्टी’ में स्वतंत्रता के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि ‘मानवजाति किसी भी घटक की स्वतंत्रता में केवल एक आधार पर हस्तक्षेप कर सकती है और वह है आत्मरक्षा। सभ्य समाज में किसी भी सदस्य के विरुद्ध उसका प्रयोग तभी हो सकता है जब उससे दूसरों को हानि पहुंचे अर्थात विधि विरुद्ध हो। उसका अपना भौतिक या नैतिक हित, हस्तक्षेप का औचित्यपूर्ण कारण नहीं हो सकता। ....
Question : ‘वैज्ञानिक राजनीति का विकास तभी हो सकता है, जबकि राजनीति की सामग्री को क्रियाओं की व्यवस्थाओं के रूप में लिया जाये।’ कैप्लन के उपरोक्त कथन के प्रकाश में व्यवस्था सिद्धांत को राजनीति विज्ञान में लागू करने पर उत्पन्न दोषों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
(1999)
Answer : राजनीति विज्ञान के अध्ययन में व्यवस्था सिद्धांत का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। कैप्लन ने व्यवस्था सिद्धांत को अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में लागू करके इस सिद्धांत को और भी महत्वपूर्ण बना दिया है। व्यवस्था सिद्धांत के विकास में अनेक अनुशासनों का योगदान रहा है। राजनीति विज्ञान में उसकी महत्वपूर्ण उपयोगिता यह है कि ऐसी राजनीति संस्थाओं को जो राज्य नहीं हैं, जैसे अंतर्राष्ट्रीय राजव्यवस्था, नगर के अनुभविक अध्ययन को संभव बनाता है। इससे राजव्यवस्थाओं में ....
Question : राजनीतिक व्यवस्थाओं के विश्लेषण में व्यवहारवादी व उत्तर व्यवहारवादी उपागमों का इनकी दुर्बलताओं सहित आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। राजनीतिक व्यवहार का मूल्यांकन करने के लिए राजनीति शास्त्र में नाप-तौल के क्या मानक उपलब्ध हैं?
(1999)
Answer : आधुनिक राजनीति विज्ञान में व्यवहारवाद या व्यवहारवादी उपागम राजनीतिक तथ्यों की व्याख्या और विश्लेषण का एक विशेष तरीका है, जिसे द्वितीय महायुद्ध के बाद अमेरिकी राज वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया, यद्यपि इसकी जड़ें प्रथम महायुद्ध के भी पूर्व ग्राहम वालस और बैंडले आदि की रचनाओं में देखी जा सकती है। व्यवहारवाद आज बहुत अधिक प्रचलित और व्यापक हो गया है, इस कारण इसे राजनीति के वैज्ञानिक अध्ययन का सहचर कहा जा सकता है। कुछ ....
Question : ‘स्वतंत्रता या स्वाधीनता का तात्पर्य है- गति के बाह्य अवरोधकों में विरोध का अभाव।’
(1999)
Answer : प्राकृतिक अवस्था के बारे में बताते हुए हाब्स कहता है कि प्राकृतिक अवस्था में प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कार्य करने के लिए स्वतंत्र था। व्यक्ति यह कार्य भावावेशों द्वारा ग्रस्त होकर अपनी सहज प्रवृत्ति से प्रेरित होकर करता था, जिसका उद्देश्य आत्मसंरक्षण तथा आनंद की खोज पर आधारित था। प्रत्येक व्यक्ति उतनी संपत्ति अधिग्रहित तथा संरक्षित कर सकता था, जो शक्ति द्वारा रक्षित हो सकती है। यह शक्ति उसका शारीरिक बल था। हॉब्स के अनुसार, ....
Question : ‘मार्क्स के कार्य में तीन तत्वों का मिश्रण दिखायी देता है- जर्मन दर्शन, अंग्रेजी राजकीय अर्थशास्त्र और फ्रांसीसी समाजवाद।’ (लेनिन)
(1999)
Answer : लेनिन के अनुसार मार्क्स अपने वैज्ञानिक समाजवाद के सिद्धांत के प्रतिपादन में अपने पूर्ववर्ती विचारकों तथा प्रचलित विचारधाराओं का ऋणी है। लेनिन के अनुसार, यदि मार्क्स की द्वंद्वात्मक पद्धति जर्मनी के दर्शन से प्रभावित थी तो उसका ‘अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत’ ब्रिटिश राजकीय अर्थशास्त्र की देन थी और राज्य तथा क्रांति का सिद्धांत फ्रांस के समाजवाद से निकला है। मार्क्स ने हीगल नामक जर्मन दार्शनिक से विकास का विरोध और संघर्ष का सिद्धांत सीखा। इस ....
Question : ‘समग्र मानव इतिहास एक प्रक्रिया है जिसमें प्रत्यय भौतिक यथार्थ का रूप धारण कर लेते हैं।’
(1999)
Answer : हीगल द्वारा प्रतिपादित द्वंद्वात्मक पद्धति का सिद्धांत इस तथ्य पर आधारित है कि वाद, प्रतिवाद तथा संवाद का क्रम निरंतर चलता है। हीगल के अनुसार वाद प्रारंभिक विचार है, प्रतिवाद उसके विरोध में उत्पन्न हुआ विचार है तथा जब दोनों विचार आपस में अंतःक्रिया करते हैं तो तीसरा विचार, जिसे संवाद कहा जाता है, उत्पन्न हो जाता है। इस तरह हीगल के अनुसार संपूर्ण विकास प्रक्रिया में प्रत्यय या विचार ही महत्वपूर्ण तत्व है तथा ....
Question : ‘वह महान उद्देश्य और मुख्य उद्देश्य जिसके लिए मनुष्य राज्य में एकताबद्ध होते हैं और शासनाधीन होते हैं, वह है संपत्ति का संरक्षण, जिसके लिए प्राकृतिक अवस्था में अनेक अभाव हैं।’ (जॉन लॉक)
(1999)
Answer : अपनी पुस्तक ट्रीटाइज में लॉक ने इस तथ्य पर सबसे अधिक जोर दिया है कि राज्य के निर्माण का मुख्य उद्देश्य ही नागरिकों के जीवन, उनकी स्वतंत्रता और उनकी संपत्ति के उन प्राकृतिक अधिकारों को सुरक्षित करना है जिसका उपयोग में वे प्राकृतिक अवस्था में करते थे। इसी परिप्रेक्ष्य में संपत्ति को वे व्यापक तथा विशेष, दो अर्थों में प्रयोग करते हैं। व्यापक अर्थ में जीवन, स्वतंत्रता तथा संपत्ति के अधिकार सम्मिलित हैं। संकीर्ण (विशेष) ....
Question : ‘राज्य व्यवस्था या संवैधानिक शासन से सामान्यतः तात्पर्य है कुलीन तंत्र व लोकतंत्र का विलयन’ (अरस्तू)
(1999)
Answer : अरस्तू एक व्यवहारिक विचारक होने के साथ-साथ संविधानों या सरकारों का वैज्ञानिक वर्गीकरण करने वाला पहला विचारक था। अरस्तू ने संविधानों के छः वर्ग बतलाये हैंः एकतंत्र या राजतंत्र, आततायी तंत्र, कुलीन तंत्र, वर्गतंत्र या धानिक तंत्र, बहुतंत्र या संविधानिक तंत्र तथा भीड़तंत्र। सरकारों का वर्गीकरण करने के उपरांत अरस्तू ने इस बात की खोज का प्रयास किया कि शासन के इन छः रूपों में शासन का कौन सा रूप सबसे अच्छा, व्यवहारिक तथा उपयुक्त ....
Question : जॉन स्टुअर्ट मिल ने किस प्रकार प्रारंभिक आमूल परिवर्तनवादी उदारतावाद में संशोधन किया, स्पष्ट कीजिये।
(1998)
Answer : यद्यपि बेन्थम और जेम्स मिल की विचारधारा द्वारा अनेक प्रकार के उदारवादी दर्शन को सहायता प्रदान की गयी, लेकिन उदारवादी दर्शन की पूर्ण अभिव्यक्ति सर्वप्रथम जॉन स्टुअर्ट मिल की विचारधारा में ही है। मिल ने उन सिद्धांतों को लागू करने के लिए संघर्ष किया जो उसने बेंथम और जेम्स मिल से ग्रहण किये थे। इस संबंध में उसने अनुभव और परिस्थितियों से पाठ ग्रहण करते हुए नागरिक अधिकारों को व्यापक बनाने पर बल दिया और ....
Question : ‘रूसो का सामाजिक संविदा सिद्धांत हॉब्स के लेवियाथन का ही दूसरा रूप है केवल उसका शीर्ष कटा हुआ है।’ विवेचन कीजिए।
(1998)
Answer : हॉब्स, लॉक और रूसो इन तीनों समझौतावादियों की विचारधारा के तुलनात्मक अध्ययन से यह स्पष्ट है कि हॉब्स और लॉक का समझौता सिद्धांत एक-दूसरे के नितान्त विपरीत है तथा रूसो ने अपने समझौता सिद्धांत में हॉब्स और लॉक के विचारों का समन्वय करने का प्रयत्न किया है। इस प्रकार रूसो के विचार कहीं हॉब्स से मिलते-जुलते हैं और कहीं लॉक से। हॉब्स तथा रूसो को प्रभुसत्ता संबंधी विचार बहुत कुछ सीमा तक एक से हैं। ....
Question : राजनीति के प्रति ‘व्यवहारवादी दृष्टिकोण’ से क्या तात्पर्य है? क्या यह अकाट्य (सुस्पष्ट) दृष्टिकोण है? क्या यह कहना सही है कि राजनीतिक विश्लेषण में व्यवहारवादी दृष्टिकोण का उद्भव मार्क्सवादी दृष्टिकोण की जवाबी कार्रवाई के रूप में हुआ?
(1998)
Answer : व्यवहारवाद या व्यवहारवादी उपागम राजनीतिक तथ्यों की व्याख्या और विश्लेषण का एक विशेष तरीका है जिसे द्वितीय महायुद्ध के बाद अमरीकी राजवैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया यद्यपि इसकी जड़ें प्रथम महायुद्ध के भी पूर्व ग्राहम वालस बैंडले आदि की रचनाओं में देखी जा सकती है। व्यवहारवाद आज बहुत अधिक प्रचलित और व्यापक हो गया है किंतु इसके अर्थ के संबंध में सभी का दृष्टिकोण समान नहीं है। कुछ विद्वानों के अनुसार यह केवल एक ‘मनोदशा’, ....
Question : ‘शक्ति संपन्नता’ की संकल्पना पर लगभग 200 शब्दों में टिप्पणी लिखिए।
(1998)
Answer : रॉबर्ट बायर्सटेड के अनुसार, ‘शक्ति बल प्रयोग की योग्यता है, न कि उसका वास्तविक प्रयोग।’ मैकाइवर ने कहा है कि ‘शक्ति होने से हमारा अर्थ व्यक्तियों या व्यक्तियों के व्यवहार को नियंत्रित करने, विनियमित करने या निर्देशित करने की क्षमता से हैं।’ शक्ति संपन्नता की संकल्पना किसी व्यक्ति को किस आधार पर शक्ति प्राप्त होती है से संबंधित है। मैक्सवेबर के अनुसार शक्ति को तीन प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है। ये तीन प्रकार ....
Question : ‘लेनिनवाद साम्राज्यवाद और सर्वहारा क्रांति के युग का मार्क्सवाद है।’-स्टालिन
(1998)
Answer : स्टालिन के उल्लेखित वक्तव्य का अर्थ यह है कि जिस तरह मार्क्स ने पूंजीवाद के अंर्तद्वंद को देखकर अपने विचार व्यक्त किये थे वैसे ही पूंजीवाद जब आगे बढ़कर साम्राज्यवाद का रूप ले लेता है, तब उसमें जो अंर्तद्वंद पैदा होते हैं उसे ही लेनिन ने मार्क्सवादी सिद्धांत के आधार पर व्यक्त किया। अपने ग्रंथ ‘साम्राज्यवाद: पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था’ में लेनिन ने यह धारणा प्रकट की कि उन्नत औद्योगिक देशों के नीचे मध्य वर्ग ....
Question : ‘हॉब्स ने प्रभुसत्ता को उन सभी अक्षमताओं से मुक्त कर दिया जिन्हें बोडिन ने बिना परिमार्जन के वैसे ही छोड़ दिया था।’-सैबीन
(1998)
Answer : सैबाइन हॉब्स द्वारा प्रस्तुत प्रभुसत्ता के विचार के अध्ययन के उपरांत माना कि ‘हॉब्स ने संप्रभुता को उन समस्त अयोग्यताओं से पूर्णतया मुक्त कर दिया जिन्हें बोडिन ने बिना परिमार्जन के वैसे ही छोड़ दिया था।’ यद्यपि बोडिन ने संप्रभुता को राज्य की सर्वोच्च सत्ता कहा था जिस पर कि कानून का कोई प्रतिबंध नहीं है, तथापि उसने संप्रभु की सत्ता को दैवी-कानून, प्राकृतिक कानून, राष्ट्रों के कानून, संवैधानिक कानून तथा सम्पत्ति के अधिकारों द्वारा ....
Question : ‘राज्य-व्यवस्था सरकार का सर्वोत्तम व्यावहारिक रूप है।’-अरस्तु
(1998)
Answer : अरस्तु ने राज्य-व्यवस्था अथवा वैधानिक जनतंत्र को वर्गतंत्र तथा प्रजातंत्र का मिश्रण मानते हुए इसे सरकार का सर्वोत्तम व्यावहारिक रूप माना है। उसके द्वारा प्रस्तुत राज्यों के वर्गीकरण के अनुसार वर्गतंत्र कुलीनतंत्र का और प्रजातंत्र वैधानिक जनतंत्र का विकृत रूप है। अरस्तु ने वैधानिक जनतंत्र या राज्य-व्यवस्था की धारणा को साधारणतया ऐसे मिश्रण के लिए प्रयुक्त किया है जो वर्गतंत्र तथा प्रजातंत्र के तत्त्वों से निर्मित हो, परंतु प्रजातंत्र की और अधिक झुकाव रखता हो। ....
Question : ‘पाप, अतः, सुविधा-अधिकार का जनक है, और मनुष्य की मनुष्य के प्रति अधीनता का प्रथम कारण है।’ (संत ऑगस्टीन)
(1997)
Answer : राजनीतिक विचारधाराओं के संदर्भ में आरंभिक चर्च संस्थापकों में से सन्त ऑग्स्टीन की रचनाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं। सांसारिक राज्य के संबंध में ऑगस्टीन रोमन लेखकों से भिन्न दृष्टिकोण रखता है। उसके अनुसार राज्य का आधार न्याय तथा कानून नहीं है। वह अंशतः दंड देने वाली और अंशतः उपचार के रूप वाली संस्था है। प्रारंभ में सब मानव समान थे और विवेक तथा न्याय के नियमों का अनुगमन करते थे। परंतु अपने पापों के फलस्वरूप कुछ ....
Question : आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत में मान्यताप्राप्त प्रतिरोध और क्रांति के अधिकारों की प्रकृति और सीमाओं का परीक्षण कीजिए।
(1997)
Answer : साधारणतया यह प्रश्न किया जाता है कि आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत में व्यक्ति को राज्य के प्रति प्रतिरोध और क्रांति का अधिकार प्राप्त है या नहीं और अगर है, तो इसकी प्रकृति और सीमाएं क्या हैं? राज्य के प्रति भक्ति और राज्य की आज्ञाओं का पालन व्यक्ति का कानूनी कर्तव्य होता है और इसलिए व्यक्ति को राज्य के प्रति विद्रोह का कानूनी अधिकार तो प्राप्त हो ही नहीं सकता क्योंकि कानून के द्वारा व्यक्ति को कानून ....
Question : ‘जो कोई भी प्राकृतिक अवस्था से समाज में शामिल हुआ, तो यह समझ जाना चाहिए कि उसने अपनी वे सब शक्तियां जो उन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक थीं जिनके लिए समाज का गठन किया गया था, समाज के बहुसंख्यक वर्ग को अर्पित कर दीं।’(लॉक)
(1997)
Answer : लॉक ने मानव स्वभाव तथा प्राकृतिक स्थिति का काफी हद तक यथार्थ चित्रण किया है। उसकी प्राकृतिक अधिकारों संबंधी धारणा मानवीय है। उसके विचार क्रम में यह संदेह करने की गुंजाइश कम है कि प्राकृतिक स्थिति के मानव संविदा द्वारा राजनीतिक समाज निर्मित करने को क्यों प्रेरित हुए। क्योंकि प्राकृतिक स्थिति के जीवन में जो कठिनाइयां थीं, उन्हें लॉक तर्क-सम्मत ढंग से व्यक्त कर सका है। लॉक ने संविदा की धारणा को इसलिए आवश्यक दर्शाया ....
Question : लोक-संप्रभुता सिद्धांत के दार्शनिक आधार एवं मानव जाति के लिए उसके महत्व की विवेचना कीजिए।
(1997)
Answer : लोक-संप्रभुता का विचार आधुनिक लोकतंत्र का आधारभूत सिद्धांत है। इस धारणा के अनुसार अंतिम प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है। लोक प्रभुता के विचार को मध्य युग में मार्सीलियो ऑफ पेडुआ (Marsiglio of Padua) और विलियम ऑफ ओकम (William of Occam) आदि विचारकों के द्वारा जन्म दिया गया। परंतु इस धारणा का प्रमुख प्रतिपादक रूसो है, जिसने ‘सामान्य इच्छा’ को ही लोक संप्रभुता माना है। ‘सामान्य इच्छा’ से रूसो का तात्पर्य सबकी इच्छा के उस ....
Question : ‘किसी वस्तु की प्रकृति से उत्पन्न आवश्यक संबंधों को कानून कहते हैं।’ (मांटेस्क्यू)
(1997)
Answer : मांटेस्क्यू की राजनीतिक विचारधाराओं का सुसंबद्ध रूप उसके ग्रंथ ‘स्पिरिट ऑफ दि लॉज’ में पाया जाता है। ‘कानून की आत्मा’, जैसा इस पुस्तक के नाम का हिंदी अर्थ है, इस बात का द्योतक है कि मांटेस्क्यू के राजनीतिक विचारों का आधार उसकी कानून संबंधी धारणा है। मांटेस्क्यू की दृष्टि से कानून न तो विवेक का आदेश है जिसका अस्तित्व प्रकृति में है और न वह ईश्वर या संप्रभु का आदेश है, अपितु कानून की धारणा ....
Question : आधुनिक राजनीतिक विश्लेषण के व्यवस्था सिद्धांत के महत्व की विवेचना कीजिए।
(1997)
Answer : व्यवस्था विश्लेषण सिद्धांत आधुनिक राजनीति की वैज्ञानिकता, व्यापकता और प्रौढ़ता की खोज का अप्रतिम उदाहरण है। राजनीति में व्यवस्था सिद्धांत की सार्थकता इस बात में है कि यह राजनीतिक जीवन की व्यापकता और गहराई को समझने के लिए परंपरागत राजनीति के संकीर्ण दायरे से निकलकर अन्य विज्ञानों की खोज से प्राप्त निष्कर्षों को भी औजार के रूप में इस्तेमाल करता है।
राजनीति विज्ञान में व्यवस्था विश्लेषण सिद्धांत का प्रयोग इसके परिवर्तित अध्ययन क्षेत्र का परिचायक है। ....
Question : ‘मनुष्यों की चेतना उनका अस्तित्व निर्धारित नहीं करती, वरन् इसके विपरीत उनका सामाजिक अस्तित्व उनकी चेतना निर्धारित करता है।’(मार्क्स)
(1997)
Answer : मार्क्स ने इतिहास की व्याख्या करने में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया है और वह यह नहीं मानता कि इतिहास केवल अतीत के राजा-महाराजाओं तथा योद्धाओं की वीरता तथा युद्धों की कहानी मात्र है। प्रत्युत इतिहास को समझने के लिए हमें संबंधित युग के सामाजिक संबंधों का ज्ञान आर्थिक स्थितियों के संदर्भ में भी करना चाहिए। मार्क्स के अनुसार इतिहास में कभी भी मनुष्यों की चेतना मनुष्य का अस्तित्व निर्धारित नहीं करती, वरन् इसके विपरीत उनका सामाजिक ....
Question : ‘विरोधाभास दुनिया का नियामक सिद्धांत है।’
(1996)
Answer : हीगल का समूचा दर्शन द्वंद्ववाद की पद्धति पर आधारित है। इस पद्धति का उद्देश्य इतिहास की दार्शनिक व्याख्या प्रस्तुत करना था। हीगल के मत से मानवीय सभ्यता का विकास क्रम एक सीधी रेखा के रूप में नहीं बढ़ता, अपितु इसके विकास का मार्ग टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं के रूप में होता है। इसमें समय-समय पर जो व्यवस्थाएं बनी रहती हैं या जो घटनाएं घटती हैं, उनमें स्वयं विरोधाभासी प्रवृत्तियों के कारण नई व्यवस्थाओं या घटनाओं की सृष्टि ....
Question : ‘एक राज्य की वकत, दूरगामी समय में, उन व्यक्तियों की वकत में है जो उसमें निवास करते हैं।’(जे. एस. मिल)
(1996)
Answer : मिल समाज की विभिन्न संस्थाओं की भांति राज्य को भी एक सामाजिक संस्था के रूप में मानता है। परंतु मिल न तो राज्य की धारणा के संबंध में दार्शनिक ढंग से चिंतन करता है और न ही राज्य की उत्पत्ति के सामाजिक समझौता सिद्धांत को अमान्य करता है। इसे वह एक यांत्रिक धारणा मानता है जिसके अंतर्गत मानव की इच्छा तथा व्यक्तित्व के महत्व की उपेक्षा की गयी थी। मिल के मत में राज्य मानवों ....
Question : ‘कोई भी व्यक्ति अपननी सहमति के बिना संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता।’(लॉक)
(1996)
Answer : राज्य की उत्पत्ति से संबंधित संविदावादी सिद्धांतों को देने के क्रम में लॉक ने राज्य-पूर्व के प्राकृतिक अधिकारों एवं कानूनों का उल्लेख किया है। उसके अनुसार प्राकृतिक स्थिति में प्राकृतिक कानूनों के द्वारा मानव के समस्त कार्यकलापों तथा व्यापारों का नियमन होता है। उस स्थिति में इसके निर्वचन, परिपालन एवं कार्यान्वयन हेतु किसी सर्वमान्य मानवीय सत्ता के अभाव में जो कठिनाई थी, उसी को दूर करने के लिए राजनीतिक समाज निर्मित करने की संविदा व्यक्तियों ....
Question : ‘दासता, मालिक और दास दोनों के लिए स्वाभाविक एवं कल्याणकारी है।’(अरस्तू)
(1996)
Answer : अरस्तू परिवार को राज्य की आधारशिला तथा दास को परिवार का अभिन्न अंग मानता है। दास-प्रथा के औचित्य को दर्शाते हुए अरस्तू प्रकृति के नियमों और अपने दार्शनिक तथा तथ्यगत तर्कों का सहारा लेता है। उसका तर्क है कि यह बात आवश्यक एवं व्यावहारिक है कि कुछ लोग शासक होंगे तथा कुछ शासित। जन्म से ही कुछ लोग शासन करने के लिए तथा कुछ शासित बने रहने के लिए निश्चित कर दिये जाते हैं। यह ....
Question : ‘लॉक की विचारधारा को किसी प्रकार के अयोग्य जनतांत्रीय सिद्धांत में परिवर्तित करना कठिन है।’ (मेकफरसन) विवेचन कीजिए।
(1996)
Answer : जॉन लॉक के विचार निरंकुशतावाद के विरुद्ध मर्यादित शासन-सत्ता का समर्थन करते हैं। लॉक के राजनीतिक चिंतन का केंद्र व्यक्ति तथा राज्य के मध्य संबंधों का विवेचन करना था। वह इस समस्या को लेकर चलता है कि राजनीतिक सत्ता के अस्तित्व का, जो कि कानून बनाने तथा दंड देने का अधिकार रखती है, क्या कारण है? लॉक का उत्तर है कि उसका औचित्य जनता का हित करना है। इसी आधार पर वह व्यक्तियों के राज्य ....
Question : व्यवहारवाद की मौलिक मान्यताओं का विवेचन कीजिए। व्यवहारवाद किस प्रकार व्यवहारवाद सिद्धांत से भिन्न है?
(1996)
Answer : व्यवहारवाद या व्यवहारवादी उपागम राजनीतिक तथ्यों की व्याख्या और विश्लेषण का एक विशेष तरीका है, जिसे द्वितीय महायुद्ध के बाद अमेरिकी राजवैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया। यद्यपि इसकी जड़ें प्रथम महायुद्ध के भी पूर्व ग्राह्मम वालस और बैंडले आदि की रचनाओं में देखी जा सकती हैं। यह उपागम राजविज्ञान के संदर्भ में मुख्यतया अपना ध्यान राजनीतिक व्यवहार पर केंद्रित करता है और इस बात का प्रतिपादन करता। है कि राजनीतिक गतिविधियों का वैज्ञानिक अध्ययन, व्यक्तियों ....
Question : शक्ति और सत्ता में भेद बताइए। सत्ता पर आश्रित होने से शक्ति की प्रकृति पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(1996)
Answer : रॉबर्ट डैल के मतानुसार शक्ति के अध्ययन की प्रमुख कठिनाई यह है कि इसके अनेक अर्थ होते हैं। वस्तुस्थिति यही है कि शक्ति को विभिन्न विचारकों ने अलग-अलग रूप से परिभाषित किया है। शक्ति की कुछ परिभाषाएं इस प्रकार हैंः
रॉबर्ट बायर्सटेड के अनुसार, ‘शक्ति बल प्रयोग की योग्यता है, न कि उसका वास्तविक प्रयोग।’ मैकाइवर ने कहा है कि ‘शक्ति होने से हमारा तात्यपर्य व्यक्तियों या व्यक्तियों के व्यवहार को नियन्त्रित करने, विनियमित करने या ....
Question : ‘लंबे समय में राज्य की वकत (worth) उन व्यक्तियों की वकत है जो उसके भाग हैं।’ (जे.एस. मिल)
(1995)
Answer : मिल समाज की विभिन्न संस्थाओं की भांति राज्य को भी एक सामाजिक संस्था के रूप में मानता है। परंतु मिल न तो राज्य की धारणा के संबंध में दार्शनिक ढंग से चिंतन करता है और न ही राज्य की उत्पत्ति के सामाजिक समझौता सिद्धांत को अमान्य करता है। इसे वह एक यांत्रिक धारणा मानता है जिसके अंतर्गत मानव की इच्छा तथा व्यक्तित्व के महत्व की उपेक्षा की गयी थी। मिल के मत में राज्य मानवों ....
Question : ‘दंड न होकर निरोधात्मक एवं सुधारक होना चाहिए।’ (बेन्थम)
(1995)
Answer : बेंथम स्वयं एक विधिवेत्ता था। उसके समय में दंड तथा व्यवहार संहिताएं उपयोगिता के सिद्धांत की दृष्टि से दोषपूर्ण थीं। छोटे-छोटे अपराधों के लिए भी कठोर तथा अमानवीय दंड की व्यवस्था थी। साथ ही दंड का उद्देश्य भी उपयोगिता के सिद्धान्त से असंगतिपूर्ण था। दंड का उद्देश्य प्रतिशोध या निवारक था। बेंथम का यह भी मत था कि दंडात्मक कानून उन लोगों के द्वारा बनाये जाते रहे हैं, जो सामाजिक जीवन में उच्चतर स्थिति रखते ....
Question : समाजवादी विचारों में मार्क्स के बाद की गतिविधियों की विवेचना कीजिए।
(1995)
Answer : नयी-नयी समस्या अथवा परिस्थितियों की सही-सही व्याख्या करने और उपयुक्त ठहराने की राजनीतिक जरूरतों और सोच के कारण किसी भी विचारधारा में निरंतर कुछ न कुछ सुधार चलता रहता है। समाजवादी विचारों में मार्क्स के बाद की गतिविधियां, सिर्फ सम्मेलनों या वाद-विवादों से ही नहीं, बल्कि शासन करने में समाजवादी विचारों के प्रयोग से भी ओत-प्रोत रहा। लेनिन से माओ तक और स्टालिन से खुश्चेव तक ने मार्क्स द्वारा प्रतिपादित समाजवादी विचारों में अपनी- अपनी ....
Question : ‘अंत में हर मनुष्य की लगातार सफलता उन चीजों को पाने पर है, जिन्हें वह समय-समय पर चाहता है।’ (हॉब्स)
(1995)
Answer : उपर्युक्त वक्तव्य में हॉब्स मनुष्य की चाहत पर अधिक बल देते हुए यह बताता है कि मनुष्य की लगातार सफलता इन चाहतों को प्राप्त करने से ही निर्धारित होती है। हॉब्स के अनुसार प्रकृतिवश मनुष्य स्वार्थी और झगड़ालू होता है। अतः यह संभव नहीं था कि प्राकृतिक स्थिति में कोई भी मनुष्य अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर पाता क्योंकि उस समय मनुष्य-मनुष्य के बीच संघर्ष की स्थिति बनी हुई थी। इस स्थिति का अंत राज्य ....
Question : ‘व्यक्ति के शासन से विधि का शासन बेहतर है।’(अरस्तू)
(1995)
Answer : अरस्तू प्लेटो का शिष्य था, लेकिन मैक्सी के अनुसार, ‘जहां प्लेटो हमें एक आदर्श राज्य का आभास कराता है, वहीं अरस्तू हमें उस सामग्री को प्रदान करता है जिसके द्वारा परिस्थितियों की अनुकूलता का अवलंबन करते हुए एक आदर्श राज्य का निर्माण किया जा सके।’ इस दृष्टि से प्लेटो आदर्शवादी तथा अरस्तू यथार्थवादी है। अरस्तू ने राजतंत्र के गुण-दोषों का विवेचन दो सिद्धांतों के आधार पर किया है। यदि राजा का व्यक्तिगत शासन हो, तो ....
Question : राजनीति विज्ञान में तथ्य मूल्य के द्विभागीकरण का परीक्षण कीजिये। उत्तर- व्यवहारवाद ने किस हद तक इसे हल किया है?
(1995)
Answer : राजनीति विज्ञान विविध विषयों का अध्ययन अनुभवसिद्ध तथ्यों और मूल्य वरीयता के अनुसार करता है। तथ्यों का प्रश्न, ‘क्या है’ से संबंधित होता है, जबकि मूल्य वरीयता ‘क्या होना चाहिए’ से संबंधित होता है। विषय क्षेत्र की लम्बे समय से चली आ रही स्थिति से असंतोष और मूल्य निर्णय में अधिक लगे रहने के कारण राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र और इसके अध्ययन पद्धतियों के बारे में विवाद बढ़ने लगा। एक प्रकार की अनुभव प्रेरित ....
Question : राजनीतिक सिद्धांतों में बाध्यता के महत्व का परीक्षण कीजिए।
(1995)
Answer : राज्य की सदस्यता अनिवार्य है और कोई भी व्यक्ति इस विवशता से बच नहीं सकता। लेकिन क्या वह अपने राज्य के सभी कार्यों को मानने के लिए बाध्य है? क्या व्यक्ति अपने विवेक के आधार पर राज्य के कानून का विरोध कर सकता है? संक्षेप में यही राजनीतिक ‘बाध्यता’ की समस्या है। राजनीतिक सिद्धांतों में व्यक्ति (नागरिक) और राज्य के बीच के संबंधों को समझने में ‘बाध्यता’ का काफी महत्वपूर्ण स्थान है। कानूनी दृष्टि से ....