Question : स्वतंत्रता एवं निष्पक्ष चुनाव कराने में भारत के चुनाव आयोग के संघटन, प्रकार्यण एवं भूमिका का एक आकलन कीजिए।
(2005)
Answer : भारत में निर्वाचन आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय है और संविधान इस बात को सुनिश्चित करता है कि यह उच्चतम और उच्च न्यायालयों की भांति कार्यपालिका के बिना किसी हस्तक्षेप के स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से अपने कार्यों को संपादित कर सके। संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत निर्वाचन का निरीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण करने के लिए निर्वाचन आयोग की स्थापना की गयी है। इसके तहत निर्वाचन आयोग में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य ....
Question : ‘संपूर्ण क्रांति’ पर जय प्रकाश नारायण के विचार
(2005)
Answer : जय प्रकाश नारायण के अनुसार, जब तक मनुष्य की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती है, उससे सांस्कृतिक सृजनात्मक की आशा करना व्यर्थ है। उन्होंने उत्पादन के साधनों का समाजीकरण की मांग की। वह समाज के समस्त वर्गों का समान रूप से कल्याण चाहते थे। हालांकि उन्होंने निर्बल वर्गों पर विशेष ध्यान देने की बात कही है। समाजवाद को व्यावहारिक रूप देने के लिए उन्होंने ग्राम पुनर्गठन का विस्तृत कार्यक्रम प्रस्तुत किया। भूमि कानून को ....
Question : 1998 से भारत में केंद्र में गठबंधन की सरकारें
(2005)
Answer : भारत में लंबे समय तक बहुदलीय व्यवस्था में एक राजनीतिक दल की प्रधानता थी तथा एक दल की ही सरकार बनती थी। लेकिन अब केंद्रीय स्तर पर और राज्य स्तर पर गठबंधन की सरकार एक सामान्य स्थिति बन गयी है।
12वीं लोकसभा चुनावों के बाद सबसे बड़े दल के रूप में उभरे भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 19 दलों के गठबंधन की सरकार का गठन किया। भाजपा को 179 सीटें मिली थीं। ये ....
Question : संविधान (73 संशोधन) अधिनियम, 1992 के अधीन ग्राम सभा की भूमिका
(2005)
Answer : संविधान संशोधन (73वां) अधिनियम 22 दिसंबर, 1992 को लगभग पूर्ण सहमति से पारित हो गया तथा 20 अप्रैल, 1993 को देश में संवैधानिक रूप से नई पंचायती राज व्यवस्था लागु हो गयी।
ग्राम स्तर पर पंचायती राज्य प्रणाली की दो संस्थायें होती हैं-ग्राम सभा एवं ग्राम पंचायत। ग्राम सभा स्थानीय नागरिकों की आम सभा होती है। गांव के सभी व्यस्क सदस्य इसके सदस्य एवं मतदाता होते हैं। ग्राम सभा बैठक वर्ष में कम से कम दो ....
Question : भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अधीन ‘संघीय योजना’ को स्पष्ट कीजिए। इस योजना को कार्यान्वित क्यों नहीं किया जा सका था?
(2005)
Answer : 1919 के अधिनियम पारित होने के बाद से इसका विरोध होने लगा था। तब सरकार में साइमन आयोग और नेहरू रिपोर्ट के आधार पर 1935 का अधिनियम पारित किया। 1935 के अधिनियम के अधीन संघ की स्थापना की गयी जिसमें इकाईयां थीं प्रांत एवं देशी रियासतें। देशी रियासतों के लिए परिसंघ में सम्मिलित होने का विकल्प था। देशी रियासतों के शासक ने अपनी सहमति इस अधिनियम के लिए नहीं दिया जिससे जिस परिसंघ की व्यवस्था ....
Question : क्या आप इस विचार से सहमत हैं कि ‘मूल अधिकार’ और ‘राज्य की नीति के निदेशक तत्व’ भारत के संविधान के ‘क्रोड़ और अंतः करण’ में स्थित हैं? उनके अन्योन्य-संबंधों में उभरती हुई प्रवृत्तियों पर टिप्पणी कीजिए।
(2005)
Answer : संविधान के अंतरंग भाग के रूप में ‘मूल अधिकार’ और राज्य के नीति निदेशक तत्वों का बहुत अधिक महत्व है। ये प्रजातंत्र के आधार स्तम्भ हैं। इसमें हमारे संविधान का और इसमें सामाजिक न्याय दर्शन का वास्तविक तत्व निहित है। जहां मौलिक अधिकार के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति के पूर्ण शारीरिक, मानसिक ओर नैतिक विकास की सुरक्षा प्रदान की जाती है, वहीं नीति निर्देशक तत्व का उद्देश्य जनता के कल्याण को प्रोत्साहित करने वाली सामाजिक व्यवस्था ....
Question : भारत की सर्वोच्च न्यायालय किस प्रकार ‘संविधान के अभिभावक तथा नागरिकों के अधिकारों के रक्षक’ के रूप में कार्य करती है?
(2004)
Answer : किसी भी संवैधानिक शासन व्यवस्था में न्यायपालिका की आवश्यकता नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा हेतु होती है चाहे वहां संसदीय शासन प्रणाली हो अथवा अध्यक्षात्मक। शुरू से ही न्यायपालिका के अधिकारों को मौलिक अधिकारों के विस्तार के रूप में देखा गया है, क्योंकि न्यायालय के माध्यम से ही अधिकार प्रभावकारी साबित हो सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय इसी संकल्प की पूर्ति करता है। इसका क्षेत्रधिकार अत्यंत व्यापक है। सर्वोच्च न्यायालय संविधान के रक्षक एवं अधिकारिक व्याख्याता ....
Question : भारतीय संविधान की प्रस्तावना में निहित मुख्य सिद्धांतों की व्याख्या कीजिए। उनका क्या महत्व है? क्या आप समझते हैं कि वे देश की राजनीतिक जन्मपत्री हैं? विवेचना कीजिए।
(2004)
Answer : भारतीय संविधान की अंतरात्मा, न्याय, समता, अधिकार और बंधुत्व के आसव से अभिसिंचित है। संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है, फ्हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न लोकतंत्रत्मक समाजवादी गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को समाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्राप्त करने के लिए इस संविधान को अधिनियमित तथा आत्मसमर्पित करते हैं।य् संविधान का सार है। भारतीय संविधान की ये प्रस्तावना संविधान का अंग नहीं है किंतु व्यवहार में ....
Question : भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी की भूमिका उजागर कीजिए।
(2004)
Answer : भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में घटनायें जिस प्रकार गांधी के वृत्त में घूमती रहीं उसके आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास 1914 से 1947 तक गांधी का इतिहास है। 1916 से 1920 तक के वर्षों में ये बात साफ जाहिर होने लगी थी कि देश को जिस नेतृत्व की तलाश थी उसकी पूर्ति के लिए गांधी जी भारत आ गये हैं।
1917 और 1918 में चंपारण की भूमि में गांधी ....
Question : भारत में संसदीय समितियां
(2004)
Answer : संसद अपने बहुत से कार्य समितियों के माध्यम से करती है। वैसे तो भारत में समिति व्यवस्था काफी पुरानी है परंतु नये संविधान के लागू होने के बाद इनमें अधिक परिवर्तन आया है। एक नई समिति व्यवस्था का विधिवत उद्घाटन दसवीं लोकसभा (1991-96) में किया गया। इस समय भारतीय संसद की पुरानी समितियों के अतिरिक्त 17 नई स्थायी समितियां हैं। संसद में समितियों की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 118(1) के अंतर्गत दोनों सदनों द्वारा बनाये ....
Question : भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्य
(2004)
Answer : संविधान ने न केवल नागरिकों के अधिकारों का ही वर्णन किया है वरन् उसके कर्तव्यों का भी उल्लेख किया है। संविधान ने नागरिकों को देश तथा समाज के प्रति कर्तव्य तथा देश के विकास में उसकी भूमिका का वर्णन मौलिक कर्तव्य में किया है। प्रेक्षकों का मानना है कि राष्ट्र निर्माण के लिए आवश्यक है कि नागरिक कुछ समान्य मूल्यों के आधार पर देशप्रेम तथा राष्ट्रवाद का अनुकरण करें। संविधान में अनुच्छेद 51(क) तथा भाग ....
Question : भारत सरकार अधिनियम, 1919
(2004)
Answer : भारत सरकार अधिनियम, 1919 जिसे पूर्व में मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड प्रतिवेदन कहा जाता था। भारत के संवैधानिक विकास में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। राष्ट्रवादियों के स्वराज की मांग पर ब्रिटिश सरकार ने 20 अगस्त, 1917 को यह घोषणा की कि प्रशासन की प्रत्येक शाखा में भारतीय को अधिकाधिक सम्मिलित किया जाय और धीरे-धीरे स्वतंत्र संस्थाओं का विकास किया जाय जिससे उत्तरदायी सरकार की स्थापना हो।
भारत शासन अधिनियम, 1919 द्वारा अपनाई गई प्रणाली के मुख्य लक्षणों में प्रमुख ....
Question : सूरत की फूट
(2004)
Answer : बंगाल विभाजन के बाद उत्पन्न परिस्थिति के परिणामस्वरूप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदारवादियों एवं राष्ट्रवादियों के बीच विरोध तीव्र हो गया और 1907 के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस के दो टुकड़े हो गये जो नौ साल 1916 तक अलग-अलग काम करते रहे।
बंगाल विभाजन के तुरंत बाद ही कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन गोखले की अध्यक्षता में बनारस में संपन्न हुआ। कांग्रेस के नरमदल के नेता बंगाल में शुरू हुए आंदोलन को पूरे देश में विस्तार को ....
Question : भारतीय राजनीति में प्रमुख दबाव समूहों की पहचान कीजिये और भारत की राजनीति में उनकी भूमिका का परीक्षण कीजिए?
(2003)
Answer : मानव समाज विभिन्न समुदायों से निर्मित समाज है, जिसमें लोग अपने धार्मिक, नैतिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक विकास आदि के लिए अलग-अलग समूहों का निर्माण करते हैं। समाज के समूह निर्माण और उनकी अनेकता के दो आधार होते हैं। हितों की एकता तथा हितों की विभिन्नता। एक ही प्रकार के हित रखने वाले व्यक्ति एक समूह में सम्मिलित तथा संगठित होते हैं ताकि सामूहिक प्रयास के द्वारा वे अपने उद्देश्यों की पूर्ति में सफल हो सकें। ....
Question : ‘राज्य की नीति के निदेशक तत्व पवित्र घोषणा मात्र नहीं हैं बल्कि राज्य की नीति के मार्गदर्शन के लिये सुस्पष्ट निर्देश हैं।’ व्याख्या कीजिये और बताइये कि वे व्यवहार में कहां तक लागू किये गये हैं?
(2003)
Answer : भारतीय संविधान में नागरिकों के कर्तव्यों की तरह राज्य को भी कर्त्तव्यों से जोड़ा गया और यह निर्धारित किया गया कि राज्य जब भी कोई कार्य करेगा तो इन कर्त्तव्यों का ध्यान रखेगा, जिसे हम नीति के निदेशक तत्व के नाम से जानते हैं। यह निदेशक सिद्धांत भारतीय संविधान में आयरलैंड के संविधान से लिया गया है, जो अनुच्छेद 36 से 51 में वर्णित हैं। नीति निदेशक तत्वों में वे उद्देश्य एवं लक्ष्य निहित है, ....
Question : पंडित जवाहर लाल नेहरू हमारे सम्मुख एक महान राष्ट्रवादी, अंतर्राष्ट्रवादी और मानवतावादी के रूप में आते हैं। विवेचना कीजिये?
(2003)
Answer : प्रकृतितः अत्यन्त संवेदनशील होते हुए भी नेहरू का दृष्टिकोण वैज्ञानिक था। उनका संपूर्ण जीवन राजनैतिक सिद्धांतों के साथ-साथ व्यावहारिक पक्ष पर भी आश्रित था। वे पूर्णतः यर्थाथवादी तो नहीं थे क्योंकि उनमें आदर्शवाद भी था। नेहरू राष्ट्र के प्रति संपूर्ण रूप से समर्पित थे और स्वतंत्रता के लिए उन्होंने सब कुछ न्योछावर कर डाला।
नेहरू का दृष्टिकोण उद्योगवाद, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षतावाद, अंतर्राष्ट्रवाद के प्रति एक नयी सोच थी, जिसका आधार विवेकवाद था।
नेहरू एक महान राष्ट्रवादी के रूप ....
Question : भारतीय संविधान के अधीन शोषण के विरुद्ध अधिकार
(2003)
Answer : भारतीय संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 32 तक नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया है। इसमें से अनुच्छेद 23 तथा 24 शोषण के विरुद्ध अधिकार का उपबंध करता है।
अनुच्छेद 23 में मानव के दुर्व्यापार और बालात श्रम का प्रतिषेध किया गया है। इस उपबंध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा, जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा। राज्य के लिए एक विशेष व्यवस्था के अंतर्गत अनुच्छेद 23 (11) की कोई बात राज्य ....
Question : गांधीजी की सत्य और अहिंसा की अवधारणा। वे आधुनिक सभ्यता के विरोधी क्यों थे?
(2003)
Answer : ‘सत्य ही ईश्वर है’। गांधीजी के अनुसार सत्य शब्द का प्रार्दुभाव ‘सत्’ शब्द से हुआ जिसका आशय है- किसी वस्तु का वस्तु में होना। गांधीजी का विचार था कि संसार में सत्य के अलावा कुछ भी नहीं हैं। सत्य वहीं है जहां वास्तविक है। जहां ज्ञान का अभाव है, वहां सत्य ठहर ही नहीं सकता।
गांधीजी के अनुसार दैनिक जीवन में सत्य सापेक्ष (Relative) है, किंतु सापेक्ष सत्य के माध्यम से एक निरपेक्ष सत्य तक पहुंचा ....
Question : संघ लोक सेवा आयोग
(2003)
Answer : भारत में सर्वप्रथम 1919 के भारत शासन अधिनियम के अधीन 1924 की ली कमीशन की संतुतियों के आधार पर 1926 में लोक सेवा आयोग स्थापित किया गया, जिसे 1935 के अधिनियम द्वारा संघीय लोक सेवा आयोग का नाम दे दिया गया। संविधान के अनुच्छेद 315 में यह व्यवस्था उपबंधित है कि संघ के लिए एक लोक सेवा आयोग तथा प्रत्येक राज्य के लिए अपना एक राज्य लोक सेवा आयोग होगा। दो या दो से अधिक ....
Question : साइमन कमीशन
(2003)
Answer : 1919 के भारत सरकार अधिनियम के संवैधानिक सुधारों के प्रश्न पर विचार करने के लिए 1927 में गठित इंडियन स्टेट्यूटी कमीशन के अध्यक्ष सर जान साइमन की अध्यक्षता में साइमन कमीशन गठित किया गया। यह आयोग 1928 में भारत आया और इसने विरोध-प्रतिरोध के साथ भारत दौरा किया। इस कमीशन ने मई 1930 में अपनी रिर्पोट प्रस्तुत की, जिस पर लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में विचार किया गया। इस कमीशन के निम्न उद्देश्य थेः
Question : भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम (1947) के सत्ता हस्तांतरण संबंधी प्रमुख अभिलक्षणों का परीक्षण कीजिए। इस अधिनियम ने सर्वोपरिता समाप्त करने के लिए कौन से विशिष्ट प्रावधान किए थे?
(2002)
Answer : मार्च 1947 में लार्ड लुई माउंटबेटन को सत्ता के निर्बाध हस्तांतरण की व्यवस्था करने के लिए नये वायसराय के रूप में भेजा गया। तत्पश्चात माउंटबेटन भारत के विभिन्न परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह निष्कर्ष पर पहुंचे की कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के लिए न तो अंतरिम सरकार में और न ही संविधान सभा में एक साथ मिलकर काम करना संभव होगा। इसके साथ ही उन्होंने यह निर्णय लिया कि सांप्रदायिक हिंसा और अधिक ....
Question : साधारणतया यह समझा जाता है कि केंद्रीकृत आयोजना की प्रणाली में संघवाद क्षींण हो जाता है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? क्या 1991 से प्रारंभ उदारीकरण के संदर्भ में आप भारत के लिए ‘विकेंद्रित शासन’ की पैरवी करेंगे।
(2002)
Answer : सरकार, केंद्र सरकार एवं उसके विभिन्न अवयवों के मध्य संबंधों के आधार एकात्मक एवं संघीय प्रकारों में विभाजित हैं। एकात्मक पद्धति के अंतर्गत सभी शक्तियां केंद्र के द्वारा नियंत्रित एवं निर्देशित होती हैं, परंतु भारत का संघ ‘राज्यों का समूह’ के रूप में परिभाषित किया जाता है। भारतीय संघ विभिन्न इकाइयों का एक समझौता नहीं है एवं इसके अवयवों को केंद्र से विभिन्न आयामों में स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है। जैसे- भारत में केंद्र एवं राज्य ....
Question : भारत के संविधान के तिहत्तरवें और चौहत्तरवें संशोधनों के साझे और अनन्य अभिलक्षणों को बतलाइए। क्या आप समझते हैं कि यह दोनों संशोधन तृणमूल-स्तर पर ‘स्त्री- पुरुष’ और ‘सामाजिक न्याय’ स्थापित करने में सहायक होंगे।
(2002)
Answer : स्वतंत्रता के बाद सरकार ने ग्राम पुनर्निर्माण योजना को प्राथमिकता देने के लिए उसे अपनी हाथों में ले लिया। वास्तव में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में पंचायती राज के उद्भव और विकास में अनेक कारकों की भूमिका महत्वपूर्ण थी, जिनमें प्रमुख हैं- गांधीजी की शिक्षाएं, राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत, पंचवर्षीय योजना के तहत जनभागीदारी पर बल और सामुदायिक विकास कार्यक्रम।
बलवंत राय मेहता समिति ने पंचायती राज के लिए त्रिस्तरीय व्यवस्था का सुझाव दिया, जो ....
Question : नवीन आर्थिक नीति (1991)
(2002)
Answer : 1990 का दशक अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय संकट के लिए जाना जाता है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की स्थिति में परिवर्तन होने के कारण खाड़ी से संबंधित देशों में आर्थिक संकट बढ़ गया था, जिसके फलस्वरूप हम खाड़ी देशों के साथ निर्यात की स्थिति खो चुके थे। साथ ही विदेशी मुद्रा के आवागमन में भी काफी गिरावटें आयी थीं, जिसके फलस्वरूप हमें काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। वास्तव में इस प्रकार की संकट की स्थिति ....
Question : उत्तर-पूर्व में जनजातीय लोगों का आंदोलन
(2002)
Answer : स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार नागा क्षेत्र को असम राज्य के साथ एकीकृत करना चाहती थी, परंतु नागा जनजाति का एक भाग ए.जे. पीजो के नेतृत्व में भारत से अलग स्वतंत्र राज्य की मांग करने लगे, जिसे कुछ ब्रिटिश अधिकारियों एवं मिशनरियों ने भी उत्साहित किया। अंत में 1955 में नागा के एक अलगाववादी गुट ने हिंसात्मक कार्यवाही के पश्चात् स्वयं स्वतंत्र सरकार का निर्माण कर लिया। नेहरू ने बहुत से तरीकों जैसे बल ....
Question : मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के अन्तर्गत ‘द्वैध शासन’।
(2002)
Answer : 1919 के एक्ट से सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन प्रांतीय प्रशासन में आया। प्रांतों में द्वैध प्रशासनिक आरंभ की गयी। इससे प्रान्तीय विषयों को दो भागों में बांट दिया गया- आरक्षित तथा हस्तांतरित विषय। आरक्षित विषयों का प्रशासन गवर्नर अपने उन पार्षदों की सहायता से करता था, जिन्हें वह मनोनीत करता था और वे विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी नहीं थे। हस्तान्तरित विषयों का प्रशासन गवर्नर उन मंत्रियों की सहायता से करता था जिन्हें वह निर्वाचित सदस्यों में ....
Question : भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
(2002)
Answer : प्रशासन का वित्तीय नियंत्रण संसदीय लोकतंत्र का कवच है और वित्तीय नियंत्रण के लिए एक स्वतंत्र लेखा परीक्षा विभाग है। भारतीय संविधान के अंतर्गत एक नियंत्रक महालेखा परीक्षक का प्रावधान है। इसकी नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। वर्तमान कार्यपालिका से इस पद की स्वतंत्रता को सुनिश्चित किया जा सके, इसके लिए उपबंध किया गया है कि नियंत्रक महालेखा परीक्षक को उसके पद से तभी हटाया जा सकेगा, जब सिद्ध कदाचार या असमर्थता के आधार पर संसद ....
Question : भारत के संविधान के निर्माण पर राष्ट्रीय आंदोलन के प्रभाव का आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
(2001)
Answer : मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड रिपोर्ट पर आधारित शासन एक्ट के 1919 में इस बात का स्पष्ट कर देने का प्रयास किया गया था कि अंग्रेज शासक भारतीयों के जिम्मेदार सरकार के ध्येय की पूर्ति तक केवल धीरे-धीरे पहुंचने के आधार पर स्वशासी संस्थानों के क्रमिक विकास को मानने के लिए तैयार हैं। संवैधानिक प्रगति के प्रत्येक चरण के समय, ढंग तथा गति का निर्धारण केवल ब्रिटिश संसद करेगी और यह भारत की जनता के किसी आत्मनिर्णय पर आधारित ....
Question : भारतीय जनतंत्र कुशल सिविल सेवा और एक सुसंगठित राजनीतिक दल की मौजूदगी के अनुपम लाभ के साथ शुरू हुआ था फिर इसका इकाई बहुत बहुत ही निराशाजनक है। ऐसे कार्य निष्पादन के कारण क्या है?
(2001)
Answer : विकासशील दंगों को लोक सेवाओं के क्षेत्र में अपने औपनिवेशिक अतीत से एक संपन्न विरासत मिली है। अधिकांश उपनिवेशों की भांति भारतवर्ष में भी कठोर प्रशासनतंत्र का ढांचा संगठित किया गया था कि वह उपनिवेश की शांति एवं व्यवस्था की समस्याओं को प्रशासित करने के लिए सुयोग्य अंग्रेज युवक (और बाद में भारतीय भी) भर्ती कर सके। नौकरशाही के गठन में एक विचार यह भी रहा है कि वह संसदीय संस्थाओं के असंतुलित विकास पर ....
Question : महिला सक्रियतावादियों ने 1974 तक आरक्षण का समर्थन नहीं किया। बाद में उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन आने का क्या कारण है?
(2001)
Answer : भारत विश्व का एक बड़ा प्रजातांत्रिक देश है। प्रजातंत्र की सबसे छोटी इकाई ग्राम पंचायत है और स्थानीय स्वशासन में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से हमारे देश में महिलाओं को समाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक रूप से विकास के समान अवसर प्राप्त हुए हैं तथा संविधान में कुछ विशेष व्यवस्थाएं की गयी हैं। भारतीय संविधान द्वारा महिलाओं को पुरुषों के समकक्ष सभी सुविधाएं और अवसरों की गारंटी प्रदान की है। अप्रैल 1993 ....
Question : भारत में क्षेत्रवाद के विकास के कारक
(2001)
Answer : भारत बहुत बड़ा देश है तथा इसके विभिन्न क्षेत्रों में अत्यधिक विविधताएं पायी जाती हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में राज्यों का पुनगर्ठन भाषा के आधार पर किया गया। किंतु देश और राज्य सदैव समरूप नहीं हो पाते। इसलिए हमें पूरे देश में क्षेत्रवाद की समस्याओं का सामना करना पड़ा रहा है। भाषा के आधार पर देश के पुनर्गठन के बाद देश में दंगे हुए वे किसी भी देश के लिए शर्म की बात ....
Question : वचनबद्ध अधिकारी तंत्र की संकल्पना
(2001)
Answer : हमारा प्रशासन वचनबद्ध अधिकारी तंत्र होना चाहिए। जब यह बात कही गयी तो उसके पक्ष और विपक्ष में बहुत विवाद हुआ। वचनबद्ध तंत्र को तो किसके प्रति। संसदीय ढंग के लोकतंत्र में जहां दलीय सरकार बनती है। वचनबद्धता की यह शर्त और भी कठिन होगी। वचनबद्धता तंत्र उस दल विशेष के प्रति प्रतिबद्ध होता है, जो आज सत्तारूढ़ है, तो उसके दल का शासन बदलने पर प्रशासन को भी नये शासन से असहयोग अथवा विद्रोह ....
Question : भारत में आयोजन पर विनिवेश और निजीकरण का प्रभाव
(2001)
Answer : भारत में आयोजना पर विनिवेश और निजीकरण का व्यापक प्रभाव पड़ा है। विदेशी कंपनी ने भारत में जो अपना पूंजी निवेश किया है उससे इसकी स्थिति वास्तव में खराब ही हुआ न कि अच्छा। हाल में विदेशी मीडिया ने भारत में अपना पूंजीनिवेश करने के केंद्र सरकार से इजाजत ले लिया है। इससे यहां के मीडिया पर उसका प्रभाव पड़ेगा। सरकार की जो निजीकरण की प्रक्रिया है उससे, जैसे कि दिल्ली में बिजली का निजीकरण ....
Question : भारत में न्यायिक सक्रियतावाद विषयक बहस
(2001)
Answer : कल्याणकारी राज्य में न्यायपालिका की भूमिका एक अति सजग प्रहरी की होती है। उसे वह सुनिश्चित करना पड़ता है कि संविधान के कल्याणकारी आदर्श एवं अवधारणा क्रियान्वित हों। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही न्यायपालिका ने भारतीय लोकतंत्र की रक्षा और विकास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। परंतु हाल के वर्षों में तो न्यायालयों ने अपने निर्णय से संपूर्ण जनता का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है। भारतीय संविधान ने अपनी प्रस्तावना में ....
Question : अधिकारी तंत्र पर वेबर के विचारों की समीक्षा कीजिए और भारत के दृष्टिकोण से उसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
(2000)
Answer : अधिकारी तंत्र एक प्रकार का प्रशासकीय संगठन है। जिसमें विशेष योगयता, निष्पक्षता तथा मनुष्यता का अभाव आदि लक्षण पाये जाते हैं। ये तत्व लोक प्रशासन में नौकरशाही सत्ता अथवा निजी उद्योगों में नौकरशाही प्रबंध का निर्माण करते हैं। वेबर ने नौकरशाही के निम्न विशेषताएं बतायी हैंः
विकास प्रशासन, लोक प्रशासन की नवीन ....
Question : भारत में संघीय पुनर्निर्माण से संबंधित, विशेषकर राज्यों की स्वायत्तता की मांग के संदर्भ में सरकारिया आयोग की रिपोर्ट के प्रमुख लक्षण क्या हैं।
(2000)
Answer : राज्य के प्रशासन में राज्यपाल की वही स्थिति होती है जो केंद्र में राष्ट्रपति की होती है। भारत में संसदीय प्रणाली की सरकार है। जहां वास्तविक अधिकार मंत्रिमंडल के पास होता है। संविधान द्वारा राज्यपाल को अनेक अधिकार दिये गये हैं, लेकिन वो इन अधिकारों का प्रयोग केवल मुख्यमंत्री की सलाह पर ही कर सकता है। इसका अपवाद केवल वो क्षेत्र हैं जहां राज्यपाल को विवेकाधिकार प्राप्त है। सिद्धांततः अधिकारों की दृष्टि से राज्यपाल का ....
Question : संघीय शक्ति साझेदारी की संभावना के स्पष्टीकरण में साझा शासन उतना ही महत्वपूर्ण होगा, जितना स्वशासन।
(2000)
Answer : भारतीय संविधान साझा सरकार या कार्यवाहक सरकार जैसी कोई अवधारणा प्रस्तुत नहीं करता और न ही संविधान में कहीं उल्लेख है। संविधान का अनुच्छेद 74 कार्यवाहक या गठबंधन सरकार या अन्य निर्वाचित सरकार के मध्य कोई स्पष्ट विभेद नहीं करता है। वास्तव में यह अनुच्छेद केवल एक मंत्रिपरिषद को ही मान्यता देता है। नब्बे का दशक भारतीय राजनीति में व्यापक उठा-पटक का वर्ष रहा है। यद्यपि गठबंधन सरकार का इतिहास पुराना है, किंतु नब्बे के ....
Question : भारत में महिला शक्ति प्रदानन और लोकतंत्र पर उसका प्रभाव।
(2000)
Answer : इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं की क्या स्थिति थी और अभी क्या स्थिति है। जबकि किसी समाज को सबल होने के लिए पुरुष के साथ महिलाओं का साथ-साथ चलना बहुत जरूरी है। तभी कोई भी समाज पूर्णतः विकसित हो सकता है। आज महिलाओं को संविधान के द्वारा बहुत सारे अधिकार दिये गये हैं, जिसके फलस्वरूप महिलाएं हरेक क्षेत्र में अपने आपको आगे लाने में सफल ....
Question : संघीय तंत्र में भारत के प्रधानमंत्रियों की भूमिका हमेशा ही विवादास्पद रही है। क्या आप इस प्रकथन से सहमत हैं? उपयुक्त उदाहरण देते हुए अपने उत्तर के लिए कारण बताइये।
(2000)
Answer : वास्तव में संघीय तंत्र में भारत के प्रधानमंत्रियों की भूमिका विवादास्पद रहने का प्रमुख कारण आपातकालीन प्रावधान का सही ढंग से लागू नहीं करना है। आपातकालीन प्रावधान हमेशा से ही राजनीति से ओत-प्रोत होता है एवं संघीय तंत्र इसके प्रमुख आधार हैं। इस प्रावधान के अंतर्गत अनुच्छेद 352 (राष्ट्रीय आपात) एवं 356 (राज्य में आपात स्थिति) का वर्णन किया जा सकता है। इस संदर्भ में 1975 में श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा लगाये गये राष्ट्रीय आपात ....
Question : भारत की राजनीति में परवर्ती कारकों के रूप में जाति और धर्म।
(2000)
Answer : इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भारत की राजनीति में परवर्ती कारकों के रूप में जाति और धर्म अहम भूमिका निभाती है। यह बात सिफ आधुनिक भारतीय राजनीति में ही नहीं बल्कि जाति और धर्म पुराने इतिहास में मिलता है और आज की राजनीति तो पूर्णतः जाति और धर्म के नाम पर होता है। चुनाव प्रक्रिया के आते ही जाति और धर्म का समीकरण बनना शुरू हो जाता है। यहां तक ....
Question : भारत में प्रशासन में भ्रष्टाचार और सामाजिक-आर्थिक पुनर्निर्माण पर उसका प्रभाव।
(2000)
Answer : प्रशासन में भ्रष्टाचार एक या दूसरे रूप में विद्यमान रहा है। यद्यपि उसका स्वरूप, आकार, प्रकार और छवि समय-समय और स्थान-स्थान पर बदलते रहे हैं। एक समय था जब रिश्वत गलत कार्यों को रोकने के लिए दी जाती थी। अब सही कार्य को सही समय पर करने के लिए दी जाती है। प्रशासन में भ्रष्टाचार इस प्रकार व्याप्त है कि जनता को प्रशासन पर से विश्वास उठ गया है, खासकर पुलिस विभाग को अधिक भ्रष्ट ....
Question : राजनीतिक दल-दबाव समूह में भेद कीजिए। भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में संघ परिवार की इकाइयों- राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बजरंग दल की दबाव समूहों के रूप में भूमिका की व्याख्या कीजिए।
(1999)
Answer : राजनीतिक दल तथा दबाव समूह दोनों ही संविधानोत्तर तत्व हैं, लेकिन दोनों ही राजनीतिक व्यवस्था के मूलभूत आधार स्तंभ हैं। जो संविधान और शासन द्वारा स्थापित विभिन्न संस्थाओं के प्रेरक तत्व के रूप में कार्य करते हैं। राजनीतिक विचारकों ने इन तत्वों को राजनीतिक व्यवस्था की प्राण वायु कहा है। इनकी अनुपस्थिति या इनकी असक्रियता की स्थिति में शासन तंत्र व व्यवस्था निर्जीव सी हो जाती है। दोनों ही शासन की नीतियों को प्रभावित करने ....
Question : ‘भारतीय मतदाताओं का मतदान व्यवहार न्यूनाधिक जाति-प्रधान है। इसमें दलीय प्रत्याशियों की चयन प्रक्रिया भी शामिल है।’ इस कथन के संदर्भ में भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में जाति की सकारात्मक अथवा नकारात्मक भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
(1999)
Answer : भारतीय चुनाव व्यवस्था में जातिवाद, मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख तत्व रहा है, वैसे तो इस तत्व का प्रभाव उत्तर भारत और दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में सर्वाधिक है, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि जब-जब कोई मुद्दा या समस्या उठ खड़ी होती है तब लोग जातिवादी भावनाओं से उठ कर मतदान करते हैं। वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव, 1972 के विधानसभा चुनाव, 1977 के लोकसभा चुनावों और दिसंबर 1984 ....
Question : जनता दल, कांग्रेस, भारतीय साम्यवादी दल और अकाली दल के विशेष संदर्भ में राजनीतिक दलों में ‘विभाजनवाद।’
(1999)
Answer : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपने स्थापना वर्ष 1885 से 1968 तक भारतीय मंच की सबसे बड़ी ताकत के रूप में रही। परंतु कांग्रेस के अंदर उस दौरान भी वामपंथी और दक्षिणपंथी विचारधारा को मानने वालों के बीच काफी अंतर था। इस अंतर ने आपस में सत्ता संघर्ष और इस उद्देश्य के लिए गुटबंदी को कांग्रेस में बढ़ाया। परिणामस्वरूप वर्ष 1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया। सत्ता कांग्रेस और संगठन कांग्रेस में विभाजित होने के उपरांत ....
Question : जनहित मुकदमें एवं न्यायिक सक्रियतावाद।
(1999)
Answer : जनहित मुकदमें या जनहित याचिकाएं ऐसी याचिकाएं होती हैं, जिन्हें सामान्य हित में पीडि़त व्यक्ति उनके स्थान पर कोई भी व्यक्ति द्वारा दायर किया जा सकता है। वर्ष 1986 में पी.एन. भगवती ने मात्र पोस्टकार्ड पर जनहितकारी प्रार्थना मिलने पर भी सुनवाई की परंपरा आरंभ किये जाने के उपरांत इस याचिका का और भी महत्व बढ़ गया है। न्यायालय अपने सभी तकनीकी नियमों को एक तरफ कर इन पर तत्परता से विचार करता है। इस ....
Question : भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के अधीन संविधानिक उपचारों का अधिकार तथा ‘रेस जुडिकेटा’ का पालन।
(1999)
Answer : अनुच्छेद 32 भारतीय संविधान की आत्मा है। अनुच्छेद 32 (1) को नागरिकों को संविधान के भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उच्चतम न्यायालय को समुचित कार्यवाहियों द्वारा प्रचलित करने का अधिकार की गारंटी देता है। अनुच्छेद 32(2) उच्चतम न्यायालय को इन अधिकारों के लिए समुचित निर्देश या रिट, जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा और उत्प्रेषण नामक रिट शामिल हैं, जारी करने की शक्ति प्रदान करता है। इन रिटों ....
Question : गोखले और तिलक के विचार तथा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर उनका प्रभाव।
(1999)
Answer : महाराष्ट्र के कोल्हापुर नामक स्थान में जन्में गोपालकृष्ण गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के आरंभिक दौर के एक महत्वपूर्ण नेता थे। कांग्रेस के उदारवादी दौर (1885-1905 ई.) के दौरान गोखले उदारवादियों के सिरमौर थे। गांधीजी इन्हें अपना राजनीतिक गुरू मानते थे। गोखले का भारतीय राजनीति में पदार्पण सर्वप्रथम 1889 में इलाहाबाद में हुए कांग्रेस अधिवेशन में हुआ। गोखले 1897 में दक्षिणी शिक्षा समिति के सदस्य बने। बेल्बी आयोग के समक्ष गवाही दी,। बाद में 1902 में ....
Question : भारतीय संविधान के निर्माण में गांधी, नेहरू और अंबेडकर का प्रभाव।
(1999)
Answer : यद्यपि महात्मा गांधी ने संविधान सभा के निर्माण कार्यों में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लिया, लेकिन जो योगदान उनके विचार तथा कार्यक्रमों से मिला वह अविस्मरणीय है, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता है। गांधीजी के एक आर्दश लोकतांत्रिक शासन की कल्पना की थी, जिसमें सभी को मत देने तथा सक्रिय रूप से शासन संचालन में भाग लेने का अधिकार था। गांधीजी ने आर्थिक क्षेत्र में विकेंद्रीकरण को अपनाने का सुझाव दिया और उद्योगों को ....
Question : अफ्रीकी एशियाई देशों की राजनीतिक प्रक्रियाओं पर आधुनिकीकरण और नवीन संचार प्रौद्योगिकी का प्रभाव।
(1999)
Answer : अल्पविकसित एवं विकासशील अफ्रीकी एशियाई राष्ट्रों की सबसे बड़ी समस्या व चुनौती विकास की है। यह विकास सभी क्षेत्रों के लिए आवश्यक है। आर्थिक, प्रौद्योगिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में विकास का तात्कालिक उद्देश्य था, एक पिछड़ी हुई व्यवस्था को आधुनिक व्यवस्था का रूप प्रदान करना। यह आधुनिकीकरण राजनीतिक विकास को भी प्रोत्साहित करता है। आधुनिकीकरण ने जनता को राजनीतिक रूप से जागरुक बनाया है। अब इन देशों की जनता अपनी समस्याओं और सरकारी ....
Question : राजनीतिक दलों पर लेनिन, मिचेल्स और डुर्वजर के विचार।
(1999)
Answer : लेनिन, जो रूस की बोलशेविक क्रांति के कर्णधार के रूप में प्रसिद्ध हैं, वे मार्क्सवाद के प्रचार-प्रसार के लिए एक सुसंगठित, अनुशासनबद्ध तथा क्रांतिकारी दल को महत्वपूर्ण अस्त्र समझता था। उसके अनुसार मजदूरों में समाजवादी बनने के लिए क्रांतिकारी चेतना स्वतः नहीं आ सकती, वरन् इस प्रकार की चेतना के लिए बाहरी शक्ति की आवश्यकता रहती है, इसलिए एक सुसंगठित, शक्तिशाली और स्फूर्तिदायक दल आवश्यक है। लेनिन का मानना था कि पूंजीवाद के खिलाफ मजदूरों ....
Question : सामाजिक सुधारक के रूप में राजा राम मोहन राय
(1998)
Answer : आधुनिक भारतीय समाज के अग्रदूत राजा राम मोहन राय ने भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में बेहद ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। समाज सुधारक के रूप में उन्होंने मुख्य रूप से अपना ध्यान नारी उत्थान पर केन्द्रित रखा। उनके द्वारा सती-प्रथा के विरोध में तथा नारी को उत्तराधिकार का अधिकार दिलाने के लिए पुस्तिकाओं की रचना की गयी। बहु-विवाह का विरोध तथा विधवा विवाह का समर्थन राम मोहन राय ने ....
Question : भारत में आतंकवाद की राजनीति
(1998)
Answer : आतंकवाद का अर्थ है किसी क्षेत्र या किसी विशेष जनसमूह के बीच किसी भी माध्यम से जैसे कि हत्याएं करके, डरा-धमका कर, अपहरण करके, दंगे आदि भड़का कर आदि डर का वातावरण पैदा कर देना। आधुनिक राजनीति में आतंकवाद की राजनीति एक प्रमुख भूमिका अख्तियार करती जा रही है। आज विश्व का शायद ही कोई ऐसा देश होगा जो आतंकवाद की राजनीित के साये से बचा होगा ऐसी स्थिति में यह संभव नहीं था कि ....
Question : स्पष्ट कीजिए कि क्षेत्रीयता और सांप्रदायिकता की राजनीति ने भारत में राष्ट्र-निर्माण के कार्यों को कैसे प्रभावित किया है।
(1998)
Answer : भारतीय राजनीति का स्वरूप भारत की सामाजिक धार्मिक, आर्थिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों ने निर्धारित किया है। भारतीय राजनीति में विशिष्ट तत्त्वों के समावेश से इसका जो स्वरूप विकसित हुआ है उसकी निम्नलिखित विशेषताएं हैंः
भारतीय राजनीति की उपर्युक्त विशेषताओं ने ....
Question : ‘‘हाल की न्यायिक सक्रियता की बाढ़ ने भारत में संसदीय प्रजातंत्र के संचालन में अनेक समस्याएं खड़ी कर दी हैं।’’ विवेचन कीजिए।
(1998)
Answer : हाल के वर्षों में न्यायपालिका द्वारा प्रशासन को कार्य करने के लिए मजबूर करने की प्रवृति में काफी तीव्रता आई है जिससे कई विवादों का जन्म हुआ है। न्यायिक सक्रियता अर्थात् न्यायपालिका द्वारा प्रशासन को कार्य करने के लिए मजबूर करने की बढ़ती प्रकृति को राजनीतिज्ञों द्वारा न्यायपालिका द्वारा विधायिका एवं कार्यपालिका की शक्तियों का अतिक्रमण करने की प्रकृति की संज्ञा दी है। कुछ विद्वानों एवं राजनीतिज्ञों का यह मानना है कि हाल की न्यायिक ....
Question : आज संसार में प्रचलित, विधायिका-कार्यपालिका संबंधों के नमूने की विवेचना कीजिए। किन कारकों व शक्तियों के कारण अधिकांश देशों में कार्यपालिका, विधायिका पर हावी होने में सफल हो सकी है?
(1997)
Answer : राजनीतिक लेखक 18वीं शताब्दी और 19वीं शताब्दी के शुरुआत के दिनों में, जब अर्थव्यवस्था काफी सरल थी और आधुनिक राजनीतिक दलों का उदय नहीं हुआ था, सरकार के तीन अंगों के बीच समान संतुलन के बारे में सोच सकते थे ओर लिख सकते थे। लेकिन कुछ नये कारक, जो उन लेखकों के सामने उपस्थित नहीं हुए थे, वर्तमान शताब्दी में काफी प्रभावी हो गये हैं। इन कारकों ने सरकार के तीन अंगों- न्यायपालिका, कार्यपालिका और ....
Question : विकास प्रशासन के राजनीतिक आयाम
(1997)
Answer : आज विश्व में प्रचलित आधुनिक राजनीतिक व्यवस्था में विकास प्रशासन किसी भी सरकार का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू होता है। वर्तमान विश्व में अधिकांश सरकारें अपने लोगों के समर्थन के आधार पर बनती हैं। अतः सभी सरकारों का अपने लोगों या मतदाताओं के प्रति एक नैतिक और राजनीतिक उत्तरदायित्व होता है। सभी राजनीतिक दल जो सरकार में रहते हैं, यह प्रयत्न करते हैं कि विकास प्रशासन पर नियन्त्रण रखा जाये क्योंकि विकास प्रशासन पर उचित ....
Question : बोफोर्स दलाली और प्रतिभूति घोटालों के विशेष संदर्भ में राजनीतिक भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के संबंध में भारतीय संसद की भूमिका और उसकी सीमाओं की विवेचना कीजिए।
(1997)
Answer : सरकार में शामिल लोगों का बोफोर्स, प्रतिभूति, यूरिया, संचार जैसे घोटालों में लिप्त होने की बढ़ती घटनाओं ने उन लोगों के उत्साह को बढ़ाया है जो संसदीय शासन व्यवस्था को पूर्णतया गलत मानते हैं। उनकी मान्यता को इस तथ्य ने मजबूत किया है कि 1988-98 के बीच हुए लगभग सभी घोटालों में सरकारी मशीनरी और निर्णयों की प्रभावी भूमिका रही है। लेकिन यह एक-ध्यान देने वाला तथ्य है कि इन घोटालों में सरकार दोषी भले ....
Question : भारत के अनुभव के प्रकाश में वेबर द्वारा प्रतिपादित चमत्कारी नेतृत्व का परीक्षण कीजिए।
(1996)
Answer : करिश्मा (चमत्कार) शब्द का शब्दकोशीय अर्थ है ‘ईश्वरीय वरदान’। यह ईश्वर की कृपा से मिली योग्यता होती है। वेबर के अनुसार यह ''दूसरों पर लागू एक प्रकार की शक्ति है, जिसे लोग सत्ता के रूप में भी मानते हैं। जिस व्यक्ति के पास करिश्मे का गुण हैं, उसकी सत्ता दैविक ध्येय, अंतर्दृष्टि, नैतिक गुण आदि से संबंधित मिथक के रूप में देखी जा सकती है।'' करिश्मा अथवा चमत्कार का अर्थ है कुछ व्यक्तियों के असाधारण ....
Question : भारत के अनुभव के प्रकाश में वेबर द्वारा प्रतिपादित चमत्कारी नेतृत्व का परीक्षण कीजिए।
(1996)
Answer : करिश्मा (चमत्कार) शब्द का शब्दकोशीय अर्थ है ‘ईश्वरीय वरदान’। यह ईश्वर की कृपा से मिली योग्यता होती है। वेबर के अनुसार यह फ्दूसरों पर लागू एक प्रकार की शक्ति है, जिसे लोग सत्ता के रूप में भी मानते हैं। जिस व्यक्ति के पास करिश्मे का गुण हैं, उसकी सत्ता दैविक ध्येय, अंतर्दृष्टि, नैतिक गुण आदि से संबंधित मिथक के रूप में देखी जा सकती है।य् करिश्मा अथवा चमत्कार का अर्थ है कुछ व्यक्तियों के असाधारण ....
Question : भारत में राष्ट्र-निर्माण की समस्याओं की विवेचना कीजिए।
(1996)
Answer : प्रकृति द्वारा प्रदत्त विशेषताओं के कारण विविधता से भरे भारत देश में राष्ट्र-निर्माण की समस्याएं भी विविध हैं। क्षेत्र-जाति- धर्म-भाषा एवं सांस्कृतिक पहलुओं की विविधता के कारण भारत की राष्ट्र-निर्माण प्रक्रिया बराबर बाधित होती रही है। रजनी कोठारी ने भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन होने के बाद कहा था कि, ''नेताओं और भारत से सहानुभूति रखने वाले राजनीतिक पर्यवेक्षकों की आशंकाओं के बावजूद पुनर्गठन (भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन) से भारत का राजनीतिक ....
Question : ''भारत की प्रशासनिक समस्याओं की जड़ें सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था से राजनीति में अधिक हैं। अर्थात् वे देश के राजनीतिक ढांचे में स्थित हैं।'' विवेचन कीजए।
(1996)
Answer : आज भारतीय प्रशासन एक ऐसे दौर से गुजर रहा है, जिसमें संपूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था बिखरी हुई तो नहीं मगर समस्याओं से ग्रसित जरूर दिख रही है। भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, लालफीताशाही, कर्तव्यहीनता एवं कमिशनखोरी की बढ़ती प्रवृति ने सम्पूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था को असक्षम-सा बना डाला है। प्रख्यात राजनीतिक विश्लेषकों यथा, रजनी कोठारी से लेकर प्रो. सी.पी. भाम्मरी तक ने अपने लेखों में यह व्यक्त किया है कि भारत की प्रशासनिक समस्याओं की जड़ें हमारे खुद के राजनीतिक ....
Question : ‘क्रीमी लेयर’ तथा सामाजिक न्याय
(1995)
Answer : ‘क्रीमी लेयर’ तथा सामाजिक न्याय की धारणा की चर्चा अन्य पिछड़े वर्गों को भारत सरकार द्वारा मंडल आयोग के तहत आरक्षण दिये जाने के समय उभरी। मंडल आयोग ने अन्य पिछड़े वर्गों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की अनुशंसा की थी। भारत सरकार जब मंडल आयोग को लागू कर रही थी, तब यह प्रश्न उभर कर सामने आया कि समाज के पिछड़े वर्गों के अमीर, समृद्ध और ऊंचे पदों पर पहुंच चुके लोगों को ....
Question : आतंकवाद की राजनीति
(1995)
Answer : वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय राजनीति में आतंकवाद की राजनीति एक राजनीतिक हथकण्डे के रूप में काफी महत्त्वपूर्ण होती जा रही है। दो देशों के बीच या आंतरिक राजनीति में आतंकवाद की राजनीति परोक्ष युद्ध के रूप में होती है। आतंकवाद का अर्थ है- एक ऐसी विचारधारा जो आतंक को अपना आधार बनाती है। आतंक फैलाने के जरिये अलग-अलग हो सकते हैं। कहीं कोई देश या समूह अपनी शक्ति को इतना बढ़ा ले कि विरोधी पक्ष ....
Question : विधायिका का कार्य केवल कानून बनाना नहीं है। आधुनिक विधायिका से और किन कार्यों की उपेक्षा की जाती है?
(1995)
Answer : विधायिका का वास्तविक और वैध कार्य कानूनों को बनाना, उन्हें संशोधित करना और समाप्त करना है। समाज की बदलती जरूरतों के अनुकूल यह नये-नये कानूनों को बनाता है। पुराने कानून, जो वर्तमान परिस्थितियों में उपयोगी या अनुकूल नहीं रह गये हों, उनमें संशोधन करना या उन पुराने कानूनों को पूरी तरह समाप्त कर देना भी विधायिका के कार्य हैं। आधुनिक राज्य एक सकारात्मक या कल्याणकारी राज्य है।
परिणामस्वरूप विधायिका का कार्य बहुत अधिक बढ़ गया है। ....
Question : भारत के वर्तमान अनुभव से संभ्रांतजनों के परिचालन के दृष्टांत बताइये।
(1995)
Answer : डगलस बी. वर्ने का मानना है कि ‘कोई भी राज-व्यवस्था अपने आपको प्रजातान्त्रिक बतलाने की चाहे कितनी ही चेष्टा क्यों न करे, उसके संगठन में वर्गवादी तत्त्व विद्यमान होते ही हैं -------- व्यक्ति सोच सकते हैं कि वे राजनीतिक प्रक्रिया में भाग ले रहे हैं, लेकिन वास्तव में उनका प्रभाव चुनाव तक ही सीमित रहता है। सत्ता के केन्द्र में एक सामाजिक विशिष्ट वर्ग होता है, जो कि महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।’ ‘अभिजन’ (Elite) शब्द ....
Question : भारत के विशेष संदर्भ में राजनीतिक संस्कृति और नागरिक संस्कृति में क्या संबंध है?
(1995)
Answer : मानव इसलिए मानव है, क्योंकि उसके पास संस्कृति है। संस्कृति के अभाव में मानव को पशु से श्रेष्ठ नहीं माना जा सकता। संस्कृति ही मानव की श्रेष्ठतम धरोहर है जिसकी सहायता से मानव पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता है, प्रगति की ओर उन्मुख होता है। डॉ. आर.सी. दुबे के अनुसार, ''सीखे हुए व्यवहार प्रकारों की उस समग्रता को, जो किसी समूह को वैशिष्ट्य प्रदान करती है, ‘संस्कृति’ की संज्ञा दी जा सकती है।'' अन्य शब्दों ....